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1967 क्रिकेट डायरीः धमाकेदार उपलब्धि के अनजान लम्हे

पटौदी के नेतृत्व में भारत ने 50 साल पहले जीती थी विदेशी धरती पर पहली सीरीज
न्यूजीलैंड के खिलाफ जीत के पूरे हुए 50 साल

विदेशी धरती पर भारतीय क्रिकेट टीम की पहली टेस्ट सीरीज जीत का यह 50वां साल है। यह ऐतिहासिक जीत भारत ने न्यूजीलैंड के खिलाफ 1967-68 के दौरे में दर्ज की थी। लगता है, इस उपलब्धि का रोमांच भारत और न्यूजीलैंड के बीच हालिया एकदिवसीय और टी-20 सीरीज के हो-हल्ले में लोग भूल से गए हैं। न्यूजीलैंड के खिलाफ इतिहास बनाने वाली यह वही टीम थी जिसे कुछ दिन पहले ही ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार मैचों की सीरीज में सभी मैचों में हार का सामना करना पड़ा था।

न्यूजीलैंड में जीत का स्वाद चखना काफी खुशी देने वाला था। हालांकि इस दौरे के समय मैं नया था और यह मेरा दूसरा विदेशी दौरा था। इससे पहले मैंने 1967 में इंग्लैंड का दौरा किया था। मुझे लगता है कि न्यूजीलैंड दौरे के समय हम लोगों के पास रन और विकेट के बारे में काफी कम जानकारी थी। प्रिंट मीडिया भी आज की तरह तेज नहीं था कि लोगों को ज्ञात और अज्ञात रिकॉर्ड की तत्काल जानकारी दे पाता। मैं ईमानदारी से कहता हूं कि हम में से किसी को इस बात का इल्म नहीं था कि यह विदेशी धरती पर हमारी पहली टेस्ट सीरीज जीत है। लेकिन हमें इस महान उपलब्धि की जानकारी होनी चाहिए थी। हालांकि हम अच्छे पर्यटक जरूर थे जो फील्ड और फील्ड से बाहर खूब मजे कर रहे थे।

टाइगर का शानदार दबदबा

मंसूर अली खान पटौदी ‘टाइगर’ के रूप में हमारे पास एक महान कप्तान था जिसकी लोकप्रियता टीम के लिए वरदान थी। जीत के प्रति उनके दो-टूक जज्बे से पूरी टीम वाकिफ थी। वे नियम-कायदों के भी सख्त पाबंद थे। डुनेडिन टेस्ट के दौरान बापू नाडकर्णी को न्यूजीलैंड के तेज गेंदबाज ब्रूस टेलर की गेंद पर एलबीडब्ल्यू आउट करार दिया गया पर बापू ने अंपायर की उठी उंगली देखने में काफी समय लिया। इस पर टेलर आपा खो बैठा और बापू पर भद्दा फिकरा कसा। भौचक्के रह गए बापू ने टेलर को खेल भावना पर लंबा भाषण पिला दिया। दोनों की भिड़ंत मजेदार थी, पर इसी बीच टाइगर ने चिल्ला कर बापू को मैदान से बाहर आने को कहा। क्योंकि टाइगर को मैदान पर किसी भी तरह की अशोभनीय घटना मंजूर नहीं थी। वाकई वह काफी मजाकिया लम्हा था। लेकिन यह घटना मेरे दिमाग में अमिट छाप छोड़ने वाली साबित हुई।

दो देशों के इस दौरे से जो याद मेरे मन में आज भी ताजा है, वह है इरापल्ली प्रसन्ना का शानदार प्रदर्शन। वे लाजवाब ऑफ स्पिनर थे और हमारे मुख्य स्ट्राइक गेंदबाज थे। उन्होंने आठ टेस्टों में 49 विकेट चटकाए। 25 ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ और 24 न्यूजीलैंड के खिलाफ। इसी दौरे के दौरान अजीत वाडेकर को ठोस बल्लेबाज के रूप में उभरते देखा गया।

मैदान पर नोक-झोंक

कुछ लोग अक्सर यह सवाल पूछते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में हार के बाद टीम ने न्यूजीलैंड दौरे में अपने जज्बे को इस कदर कैसे संभाला जबकि दोनों दौरों के बीच टीम के पास संभलने का काफी कम वक्‍त था। उस समय हमारी टीम के साथ कोई सहयोगी स्टाफ भी नहीं हुआ करता था। इसलिए जिस भी तरह तैयारी और जज्बे की दरकार होती, वह व्यक्तिगत प्रयासों से ही संभव थी। बेशक, हमारे पास टाइगर के रूप में एक शानदार लीडर था। इसके अलावा गुलाम अहमद साहब के रूप में हमारे पास अद्‍भुत मैनेजर भी था।

गुलाम टेस्ट ऑफ स्पिनर और बीसीसीआइ के सचिव रह चुके हैं। वे बड़े प्यारे इनसान थे। डिनर के बाद का टाइगर का भाषण बेजोड़ होता था। न्यूजीलैंड में एक औपचारिक कार्यक्रम में उन्होंने गुलाम का परिचय कुछ इस तरह से दिया, “ये ऐसे शख्स हैं जिनके पास कोई काम लटका नहीं रहता।” 1962 में वेस्टइंडीज दौरे के समय भी गुलाम ही भारतीय टीम के मैनेजर थे। इसी सीरीज के दौरान तेज गेंदबाज चार्ल्स ग्रिफिथ की गेंद पर भारतीय बल्लेबाज नारी कॉन्ट्रैक्टर के सिर में चोट लगी थी। इसके बाद गुलाम की सक्रियता के कारण ही उन्हें ऑपरेशन के लिए तत्काल बारबाडोस से न्यूयॉर्क लाना संभव हुआ था।

मेहमाननवाजी का स्वाद

न्यूजीलैंड में रहने वाले गुजराती अपनी मेहमाननवाजी के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हमारा काफी सत्कार किया और टीम के लोगों को खाना भी उपलब्ध कराया। यह वह समय था जब भारत के लिए खेलने पर बीसीसीआइ से हमें शायद ही कोई पैसा मिला करता था। हमें हर हफ्ते बस 25-30 न्यूजीलैंड डॉलर मिलते थे जो अच्छे खान-पान के लिए नाकाफी होते थे। वहां रहने वाले भारतीयों के घर खिलाड़ियों के बेझिझक चले जाने का यह भी एक कारण था। इतना ही नहीं, जब 1971 में हमने इंग्लैंड को उसकी धरती पर हराया तब भी वहां रहने वाले भारतीय हमें खाने पर बुलाते थे। हम कई आधिकारिक कार्यक्रमों में बोर्ड से मिले जैकेट और टाई पहन कर शामिल हुए।

किस्‍सा कैच लपकने का

मैंने ऑस्ट्रेलिया में एक भी टेस्ट मैच नहीं खेला। पर, मेलबर्न टेस्ट में 12वें खिलाड़ी के रूप में एकाध कैच जरूर पकड़ा था। उस मैच में ऑस्ट्रेलिया ने पारी से जीत दर्ज की थी। उसमें दूसरे खिलाड़ियों ने कई आसान-से कैच छोड़ दिए थे। उसके बाद आस्ट्रेलिया के पूर्व टेस्ट क्रिकेटर से पत्रकार बने जैक फिंगलटन ने लिखा, “बेदी को केवल फील्डिंग के दम पर ही टीम में होना चाहिए।” इस पर टाइगर खूब हंसे थे। मुझे उस दौरान फारूक इंजीनियर और रूसी सुरती की मौजूदगी की भी याद आती है जिनके खास मजाकिया अंदाज से ड्रेसिंग रूम में हंसी के फौवारे छूटा करते थे।

(विदेश में पहली जीत दर्ज करने वाली टीम के सदस्य, पूर्व कप्तान)

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