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बहुत कुछ लगा है दांव पर

गुजरात के चुनाव में किसी भी दूसरे मुद्दे से ज्यादा अहम आर्थिक मुद्दे हैं। नोटबंदी के बाद जीएसटी का लागू होना देश भर में आर्थिक मुद्दों पर नई बहस लेकर आया है
मोदी और राहुल के सामने हैं चुनौतियां

सोचिए, अगर इस साल के अंत में मध्यप्रदेश विधानसभा का चुनाव होता और वहां भाजपा बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती, तो नतीजों को किस तरह देखा जाता। बहुत संभव है, यह कह दिया जाता कि तीन बार से राज्य में भाजपा सरकार है और लोग बदलाव चाहते थे या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे, वगैरह-वगैरह। अब मध्यप्रदेश की जगह गुजरात को रखकर देखिए। तुरंत सब कुछ बदल जाएगा क्योंकि गुजरात मध्यप्रदेश नहीं है बशर्ते वहां करीब 20 साल से भाजपा की सरकार है। वजह है गुजरात का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से जुड़ा होना। इस साल के अंत में तय गुजरात विधानसभा का चुनाव किसी एक राज्य का सामान्य चुनाव भर नहीं है। इसके नतीजों के साथ देश और भाजपा की आने वाले दिनों की राजनीति ही नहीं जुड़ी है, देश की अर्थव्यवस्था का भी बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है।

केंद्र सरकार का कार्यकाल करीब डेढ़ साल बचा है और गुजरात चुनाव अगले लोकसभा चुनाव की दिशा तय करने वाले साबित होंगे। यही वजह है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में भाजपा की जीत पक्की करने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। वे बार-बार गुजरात जा रहे हैं। रोड शो और बड़ी रैलियां कर रहे हैं। दूसरी ओर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी पीछे नहीं है। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी बार-बार वहां जा रहे हैं। गुजरात का चुनाव कितना महत्वपूर्ण है, यह इसी से साफ है कि अभी चुनाव आयोग ने कार्यक्रम घोषित भी नहीं किया है लेकिन वहां चुनाव का पूरा माहौल जम गया है।

इसे इस तरह समझा जा सकता है, जब यूपीए सरकार का दूसरा कार्यकाल था तो बाद के दो साल में वह बहुत कमजोर सरकार दिखने लगी थी। तब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी 2013 में ही जिस तरह से उभर कर आ रहे थे उससे लगभग साफ हो गया था कि वे प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। उनके साथ बहुप्रचारित गुजरात विकास मॉडल भी था यानी नई सरकार आर्थिक मोर्चे पर एक बेहतर दौर ले कर आने वाली है, यह बात विदेशी और घरेलू निवेशकों को साफ दिख रही थी। जबकि 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए सरकार की वापसी के कयास भी बहुत मजबूत थे। लेकिन चुनाव नतीजे दूसरी तरह के आए। यूपीए सरकार वाम दलों के सहयोग से बन रही थी, जिससे आर्थिक मोर्चे पर सुधारों की गाड़ी के पटरी से खिसकने के कयास अर्थविद और मार्केट एक्सपर्ट्स लगा रहे थे। नतीजा मार्केट की निगेटिव प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया। बाद में स्थिति जरूर सामान्य हो गई क्योंकि अर्थव्यवस्था में स्थिरता आ गई थी।

फिलहाल देश की इकोनॉमी सुस्ती के दौर में है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों ने यहां भारी निवेश किया है क्योंकि उनका मानना है कि इकोनॉमिक स्टेबिलिटी बरकरार रहेगी और नरेंद्र मोदी की राजनैतिक पकड़ मजबूत बनी रहेगी। सो, गुजरात की 182 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा 150 सीटों के लक्ष्य के बजाय 120 सीटें भी जीतती है तो भी 2019 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के लिए कोई बड़ा चैलेंज नहीं होगा।

लेकिन गुजरात में भाजपा का प्रदर्शन अगर किसी वजह से कमजोर रहता है और वह चुनाव नहीं भी हारती है पर उसकी सीटें अप्रत्याशित रूप से कम रहती हैं तो सरकार बनने के बावजूद यह भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए चिंता लेकर आएगा। उसके बाद केंद्र सरकार की बकाया अवधि में मजबूत सरकार के रूप में छवि कमजोर हो सकती है। वजह साफ है, गुजरात के चुनाव में किसी भी दूसरे मुद्दे से ज्यादा अहम आर्थिक मुद्दे हैं। नोटबंदी के बाद जीएसटी का लागू होना देश भर में आर्थिक मुद्दों पर नई बहस लेकर आया है। जीएसटी के विरोध में राज्य में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन भी हुए हैं। वहां के लोगों के लिए कारोबार सबसे महत्वपूर्ण है। औद्योगिक उत्पादन में आगे रहने के साथ गुजरात में बड़े मैन्यूफैक्चरिंग और ट्रेडिंग क्लस्टर्स हैं, जिन पर जीएसटी का असर पड़ा है। इसके अलावा वहां पाटीदार आरक्षण आंदोलन और दलितों पर हुए कुछ हमलों को लेकर भी पार्टी थोड़ी असहज है।

जिस तरह भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप बढ़े हैं, उससे यह बात जरूर लगती है कि यह चुनाव केवल औपचारिकता नहीं है। जमीन पर कुछ दिक्क्तें हैं और उसके चलते ही ‘डायनेस्टी वर्सेज डेवलपमेंट’ के बयान बढ़ गये हैं। वहां की हार-जीत राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के नाम ही नहीं होने वाली है, यह सीधे प्रधानमंत्री और भाजपा प्रमुख से जुड़ी है। गुजरात का चुनाव भाजपा शासित दूसरे राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के कामकाज या उनके खिलाफ एंटी इनकंबेंसी के नतीजे के रूप नहीं देखा जाएगा बल्कि केंद्रीय नेतृत्व की कामयाबी या नाकामी के रूप में ही देखा जाएगा। इसका पूरा एहसास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को है। यही वजह है कि गुजरात पर लगे बड़े दांव पर उनकी गंभीरता भी साफ दिख रही है।

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