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वक्त से पहले बजी परीक्षा की घंटी

अर्थव्यवस्था और सामरिक मोर्चे पर बिगड़े हालात से अपनों के भी निशाने पर आई भाजपा 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले ही चुनौतियों से रू-ब-रू
नजर 2019 परः भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने किया भविष्य की योजनाओं पर मंथन

आजकल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की पार्टी के छोटे कार्यकर्ताओं के घर खाना खाने की तस्वीरें सोशल मीडिया से लेकर अखबारों तक में छाई रहती हैं। आखिर उन्हें 2019 के अगले लोकसभा चुनाव में 350 सीटें लाने का पार्टी का लक्ष्य ही साधना नहीं है, बल्कि उसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अपने लिए प्रतिष्ठा का सवाल गुजरात के चुनाव और राजस्‍थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में भी पार्टी का प्रदर्शन बरकरार रखना है। लेकिन उसके पहले ही अर्थव्यवस्‍था और सामरिक मोर्चे ऐसे दुरूह बनते दिख रहे हैं, जिससे अपनों ने भी निशाना साधना शुरू किया तो विपक्ष के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। 

मगर भाजपा अध्यक्ष को सरकारी मोर्चे की कथित कमजोरियों की भरपाई अपने संगठन कौशल और सामाजिक समीकरणों को साधने की कला से कर लेने का पूरा भरोसा लगता है। भाजपा महासचिव विनय सहस्रबुद्धे कहते हैं, “पार्टी अध्यक्ष ने 50 हजार किलोमीटर की यात्रा कर 18 हजार कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद किया है। इस मामले में बाकी राजनैतिक दलों के नेता शाह के आसपास भी नहीं हैं। यह नए तेवर की अखिल भारतीय भाजपा है, जिसे कामयाबी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।” दरअसल, जोर नई भाजपा, नई रणनीति के साथ-साथ जमीनी स्तर तक फैले कार्यकर्ताओं की ऐसी फौज पर है जो पूरे माहौल को अपने पक्ष में करने में कारगर साबित हो। इसलिए कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलने और उनसे संपर्क साधने का शाह कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के इसी तरह के प्रयासों को भाजपा नेता गरीबी पर्यटन कहकर खारिज करते रहे हैं। लेकिन अब लगता है कि भाजपा की सबसे ज्यादा उम्मीदें गरीब-पिछड़े वर्ग पर ही टिकी हैं।

नई दिल्ली में 25 सितंबर को भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भाजपा अध्यक्ष ने दावा किया कि 2019 में पार्टी की जीत पिछली बार की जीत से भी बड़ी होगी। इस बड़ी जीत के लिए अमित शाह के बड़े प्रयास साफ दिखाई पड़ रहे हैं। तीन साल पहले जब शाह भाजपा अध्यक्ष बने तब से उनका ज्यादातर समय देश भर के दौरों, चुनाव अभियानों और कार्यकर्ताओं से मिलने में बीता है। मार्च में यूपी चुनाव के बाद से उनकी सक्रियता खासतौर पर बढ़ गई।

लेकिन इधर, कई घटनाक्रम ऐसे हुए हैं, जो 2019 से पहले भाजपा के सामने पेश आने वाली चुनौतियों की आहट माने जा सकते हैं। मसलन, मोदी मंत्रिमंडल से आधा दर्जन मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया। खासकर राजीव प्रताप रूडी और संजीव बालियान जैसे युवा नेताओं को अगर उनके प्रदर्शन के आधार पर मंत्रिमंडल से हटाना पड़ा तो इसका संदेश है कि कई मोर्चो पर मोदी सरकार अपनी उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पा रही है। सरकार के कामकाज को लेकर सवाल उठ ही रहे थे कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने आर्थिक, राजनैतिक, सामरिक मोर्चों पर सरकार की पोल खोलनी शुरू कर दी। अर्थव्यवस्था को गिरावट के रास्ते पर ले जाने के लिए उन्होंने नोटबंदी और उसके बाद जीएसटी के फैसले पर सवाल उठाए हैं। सिन्हा कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार की नीतियों पर भी प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। उनका यह कहना कि भावनात्मक तौर पर भारत ने कश्मीर को खो दिया है, सीधे पीएम मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उनके सलाहकारों की टोली की नीतिगत कुशलता पर सवाल उठाता है। ऐसे समय जब मोदी सरकार के सामने मजबूत विपक्ष न होने की बातें कही जा रही थीं, सिन्हा ने भाजपा के भीतर से ही इस कमी की भरपाई कर दी है।

यशवंत सिन्हा ही नहीं, कभी नोटबंदी के समर्थक रहे गुरुमूर्ति का रुख भी बदला हुआ है। नोटबंदी पर भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट ने सारे सरकारी दावों और ऐलानों को फीका कर दिया। फिर जीएसटी पर छोटे व्यापारियों के विरोध से भी माहौल बदला है। गुजरात के सूरत में कपड़ा व्यापारियों के एक तबके ने कहना शुरू किया है कि ‘कमल का फूल, भारी भूल।’ शायद इसी का असर है कि अपने दशहरा संबोधन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सरकार से किसानों और छोटे व्यापारियों की तकलीफों पर ध्यान देने को कहा है।

भाजपा और संघ परिवार में मोदी सरकार की ऐसी आलोचनाएं हमलावर होने की ताकत जुटा रहे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों में उत्साह पैदा कर रही हैं। यशवंत सिन्हा की टिप्पणियां तो उनके लिए संजीवनी साबित हो सकती हैं। इसकी छाप आजकल सोशल मीडिया पर भी देखी जा सकती है, जहां भाजपा और मोदी सरकार के खिलाफ तेजी से माहौल बन रहा है। रही सही कसर मोदी, शाह, जेटली की तिकड़ी पर हो रहे तीखे व्यंग्य के वार ने पूरी कर दी है। चुनाव प्रबंधन से जुड़े एक अनुभवी विशेषज्ञ का मानना है कि आने वाले दिनों में सोशल मीडिया पर भाजपा विरोधी माहौल बढ़ता जाएगा। भाजपा और खासकर मोदी-शाह की जोड़ी ने भले ही सबसे पहले इस्तेमाल कर सोशल मीडिया का लाभ उठाया मगर यह जागरूकता अब उसके लिए चुनौती बनने वाली है।

गुजरात जैसे राज्य में इसका असर दिखाई भी दे रहा है। पिछले दिनों कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की गुजरात यात्रा के दौरान जिस प्रकार “विकास पगला गया है” जैसा जुमला वायरल हुआ, वह भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है। नोटबंदी, जीएसटी, किसानों की दुर्दशा, बेरोजगारी और इकोनॉमी में गिरावट के मुद्दे पर मोदी सरकार के खिलाफ लोग मुखर हो रहे हैं। पिछले दो महीनों के भीतर आया यह बदलाव जमीनी स्तर से लेकर सोशल मीडिया तक साफ देखा जा सकता है। डीयू-जेएनयू समेत देश के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में जिस तरह भाजपा समर्थित छात्र संगठन एबीवीपी को हार का मुंह देखना पड़ा, उससे भी युवाओं के मूड का अंदाजा लगता है।

भाजपा के छोटे-बड़े कई नेता अनौपचारिक बातचीत में इस बदलते माहौल से चिंतित दिखते हैं। लेकिन उन्हें अमित शाह की रणनीति और पीएम मोदी के करिश्मे पर भरोसा है। पिछले महीने वृंदावन में हुई संघ परिवार की समन्वय बैठक में भी ये चिंताएं छाई रहीं। खासकर किसान, मजदूर और छोटे व्यापारियों के साथ काम करने वाले संघ के अनुषांगिक संगठनों ने जीएसटी के प्रभाव और युवा और किसानों के असंतोष के मुद्दे को उठाया था। भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि मध्य वर्ग की नाराजगी की भरपाई करने के लिए पार्टी गरीब और पिछड़े वर्ग को साथ जोड़कर कर लेगी। इसके लिए मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं कारगर साबित हो सकती हैं। खासतौर पर ‘उज्ज्वला’ और ‘जन-धन’ जैसी योजनाएं गेमचेंजर मानी जा रही हैं। इसी कड़ी में पिछले दिनों पीएम मोदी ने हर घर बिजली पहुंचाने की सौभाग्य योजना की शुरुआत की है।

विशेषकर गरीब और वंचित वर्ग को ध्यान में रखकर चलाई जा रही इन योजनाओं का असर अपनी जगह है, लेकिन मोदी सरकार को अपने पुराने वादों का हिसाब भी देना होगा। खासकर किसानों की उपज लागत का डेढ़ गुना दाम, युवाओं को रोजगार और 2022 तक हर परिवार को मकान मुहैया कराने जैसे वादे बड़ी चुनौती हैं। दिसंबर, 2017 में भाजपा की बड़ी परीक्षा मोदी और अमित शाह के गढ़ गुजरात में होनी है। पाटीदार आंदोलन, किसानों की समस्याएं और दलित उत्पीड़न के मुद्दे  चुनौती साबित हो सकते हैं। हाल में मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने कहा भी कि हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश में दम हो तो चुनाव लड़कर दिखाएं। राहुल गांधी को गुजरात यात्रा में मिली कामयाबी से भी भाजपा की पेशानी पर बल पड़ा है। बहरहाल, शाह के लिए चुनौतियां आसान तो नहीं हैं।    

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