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“भारत अब भी बड़ा बाजार है, स्वर्णकाल तो आगे आएगा”

देश के एयरलाइन उद्योग की दिशा बदल देने वाले कैप्टन जीआर गोपीनाथ कभी बिजनेस स्कूल में नहीं गए। हालांकि 2003 में एयर डेक्कन शुरू करने से पहले वे कई वर्षों से अपनी तरह के उद्यमी रहे हैं। इस दौरान उन्होंने कई उतार-चढ़ाव भी देखे और राजनीति में भी दांव आजमाया। 65 वर्षीय गोपीनाथ बताते हैं कि उद्यम शुरू करने का तो हमेशा ही अच्छा वक्त होता है, क्योंकि मायने तो यही रखता है कि आपका बिजनेस मॉडल कैसा है। अजय सुकुमारन से उनकी बातचीत के कुछ अंश:
कैप्टन जीआर गोपीनाथ

आप कभी बिजनेस स्कूल नहीं गए। क्या आपको इसका कोई मलाल है?

बिजनेस चलाने में मुझे इसकी कमी कभी महसूस नहीं हुई। कई बड़े उद्योगपति, जो आज सफल हैं औऱ यहां तक कि छोटे उद्योगपतियों ने भी अपने सहज बुद्धि और साहस से काम किया। वे सपने देखने वाले लोग हैं। जैसा कि गेटे (जर्मन दार्शनिक) ने कहा है, ‘सिर्फ जानना ही पर्याप्त नहीं है, हमें उस पर अमल करना चाहिए, सिर्फ इच्छा रखना ही काफी नहीं है, हमें उसके लिए कुछ करना भी चाहिए।’ दोनों का एक साथ होना जरूरी है। या संक्षेप में कहें तो कई मामलों में, जिसमें मैं भी शामिल हूं, यह मायने रखता है कि चाहे खेती करना हो या कोई दूसरा उद्यम, जब मैं सपने देख रहा था तो उसे पूरा भी कर रहा था। असल में, एक सीमा के बाद, जैसा कि कहावत है, नतीजों की परवाह करके कभी कोई काम नहीं किया जाता है। अंत में, आपको अपने पर ही भरोसा करना पड़ता है।

मेरे सारे उद्यम वैसे हैं, जो किसी न किसी तरह मेरी सोच से निकले हैं। उदाहरण के लिए, मैंने खराब आधारभूत सुविधाओं वाले देश को देखने के बाद एयरलाइन या हेलिकॉप्टर कंपनी शुरू की। इससे हमारे सामने जो बाधाएं थीं, वे अवसर बन गईं। जब मैंने एयर डेक्कन शुरू किया तो लोग रात की बस से बेंगलुरू से कोच्चि आते थे और मेरी फ्लाइट लेते थे, क्योंकि उन दिनों कोच्चि-दिल्ली या कोयंबत्तूर-दिल्ली उड़ान नहीं थी। मैं हर रोज नई तरह की सोच रखने वाला शख्स हूं। उद्योगपति बनने के लिए समय हमेशा अच्छा होता है क्योंकि हमेशा नई तकनीक ही नहीं, बल्कि यह भी मायने रखता है कि आप अपने बिजनेस को कैसे देखते हैं। यह कई वर्षों में एक बार ही होता है, जब कोई नई खोज या आविष्कार आता है जो चीजों को पूरी तरह बदलता है। लेकिन जब आप दर्शिनी-शैली वाले उडुपी होटल को देखेंगे तो पाएंगे कि वहां कोई नई खोज नहीं की गई, लेकिन उन्होंने जिस तरह से बिजनेस किया, वह अपने आपमें एक खोज है।

अगर हम एयर डेक्कन से प्रबंधन का कोई सबक लेना चाहें, तो वह क्या होगा?

प्रबंधन का हमेशा कोई न कोई सबक होता है। यह हमेशा आपका साहस ही नहीं होता है। यहां आपका अध्ययन, आपकी शिक्षा और अनुभव भी काम करता है। एयरलाइन शुरू करना एक साहस भरा फैसला था, लेकिन मैंने सबसे पहले हेलिकॉप्टर कंपनी (डेक्कन एविएशन) शुरू किया और इसे छह साल तक चलाया और एविएशन से जुड़ा रहा। मेरी पृष्ठभूमि आर्मी की है, इसलिए प्रबंधन के बारे में थोड़ा-बहुत जानता था। लेकिन, उस वक्त मेरा साथी कैप्टन केजे सैमुअल ऑपरेशन का काम देखता था। मैं इस क्षेत्र में उतना अच्छा नहीं था। मुझे लगता है कि एक अच्छे उद्यमी और नेतृत्व को ठीक से समझा जाना चाहिए कि किस क्षेत्र में आप अच्छे हैं और क्या आपकी कमियां हैं। मुझे लगता है कि एयरलाइन के साथ मैं जल्दबाजी में था। जल्दबाजी से मेरा मतलब मेरी आक्रामकता से है, क्योंकि पहले से मौजूद एयरलाइंस मुझे रोकने की कोशिश कर रहे थे।

इसलिए मुझे लगा कि एयरलाइन को बड़ा और तेज बनाने के लिए किसी न किसी तरह उन्हें पीछे छोड़ना होगा। लेकिन इसके लिए एक अच्छे प्रबंधन संरचना की जरूरत थी, जो हमारे पास नहीं थी। इसलिए, किसी भी उद्योग में कोई न कोई सबक जरूर होगा और मुझे लगता है कि शुरुआत में क्रियान्वयन बहुत अच्छा नहीं था। हमें उस वक्त अच्छे लोग नहीं मिले।

हमारे सपने पर किसी ने यकीन नहीं किया। उस वक्त भारत में एविएशन में किसी तरह के प्रबंधन का विकल्प नहीं था। उस वक्त सिर्फ दो एयरलाइंस थीं। हमारे पास उत्कृष्ट विकल्प नहीं थे, लेकिन जब हमारा मॉडल जम गया और हमें फंड मिलने लगे, तो मैं ब्रिटेन के सबसे अच्छे एयरलाइन से सीओओ, ब्रिटिश एयरवेज से एक चीफ इंजीनियर, केएलएम से एक चीफ पायलट लेकर आया। इस तरह मैंने अंतर को कम किया। मैं खुद सीईओ था। सीओओ मुनाफा सहित पूरा ऑपरेशन देखता था, इसलिए एक तरह से वही सीईओ था। यह भी मुमकिन था कि शुरू में मैं किसी ऐसे को लेकर आता जो मेरी जगह बतौर सीईओ बनता। लेकिन मुझे लगता है कि मैंने एक अच्छी व्यावसायिक प्रबंधन टीम को जुटाया।

फिलहाल आप एयरलाइन उद्योग को किस तरह से देखते हैं, अभी तेल की कीमतें भी अनुकूल हैं और इस क्षेत्र में वृद्धि भी हो रही है?

दरअसल, बहुत ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। जब किंगफिशर और डेक्कन बंद हुआ तो 100 एयरक्राफ्ट भी बंद हो गए। इनके साथ एक-दो छोटे भी बंद हुए। साथ ही, कुछ ने छोटे एयरक्राफ्ट वापस भेजे। इस तरह कुल 150 एयरक्राफ्ट बाहर हो गए। इनकी जगह लगभग इतनी ही संख्या में एयरक्राफ्ट आए। इंडिगो ने इस रिक्त स्थान को भरने की दिशा में बेहतरीन काम किया।

लेकिन बाजार खुद नहीं बढ़ा। यहां तक कि आज भी डीजीसीए के आंकड़े के मुताबिक कुल यात्रियों की संख्या 9 करोड़ है। लेकिन, विशिष्ट यात्रियों की संख्या (अक्सर यात्रा करने के आलावा) लगभग 2.5-3 करोड़ होनी चाहिए। जबकि हमारी कुल आबादी 1.3 अरब है। इसलिए वृद्धि के लिए काफी संभावनाएं हैं। अगर आपके पास कुछ तुलनात्मक आंकड़े हैं, जैसे-यूरोप में रेयान एयर के पास 400 बोइंग हैं और हर साल वह 10 करोड़ यात्रियों को उड़ान सेवा देते हैं। यह हमारी पूरी इंडस्ट्री से भी अधिक है। दरअसल, मैं यह कहना चाहता हूं कि एयर ट्रैवल, प्रति व्यक्ति उपभोग के मामले में हम काफी पीछे हैं।

आप क्षेत्रीय एयरलाइन के साथ फिर से इस क्षेत्र में आ रहे हैं?

अगर देखा जाए तो मैं कमोबेश अब रिटायर्ड हो चुका हूं। मैं सिर्फ अपनी टीम को सलाह देता हूं, जो कंपनी चला रही है। वह कंपनी जो 20 साल पुरानी है। इसलिए उन्होंने सरकारी एविएशन में बोली लगाई। लेकिन हम फिलहाल उस तरह से एयरलाइन बिजनेस में नहीं आ रहे हैं। हम 20 सीटों वाले ऐसे एयरक्राफ्ट ला रहे हैं, जो उन छोटे शहरों में जाएंगे जो अभी वायुसेवा से सही से जुड़ नहीं पाए हैं। यह मैसूरू, कूचबिहार, जमशेदपुर भी हो सकता है। दरअसल, समस्या यह है कि छोटे एयरक्राफ्ट में किराया अधिक होता है, इसलिए सरकार सब्सिडी को बढ़ावा दे रही है। इस कारण सुधार और निवेश इन जगहों पर तब तक नहीं पहुंचेगा जब तक उन जगहों से कनेक्टिविटी न हो। इसलिए इन छोटे शहरों का एयर मार्ग से जुड़ाव जरूरी है, क्योंकि इनमें अधिकांश दूरस्थ इलाकों में पड़ते हैं।  

एयर एशिया के टोनी फर्नांडिस अक्सर कहते हैं कि हमें कम कीमत वाले टर्मिनल की आवश्यकता है...

बिलकुल, हमें ओबेरॉय होटल और उडुपी दर्शिनी औऱ इन दोनों के बीच वाली सुविधाओं की भी जरूरत है। मैंने पहले भी कहा कि ये (बड़े) एयरपोर्ट गलत नीतियों का नतीजा हैं और सरकार ने कुछ गलतियां की हैं, क्योंकि उन्हें लगा कि विदेशों की तरह बड़े एयरपोर्ट्स की जरूरत है। लेकिन, उन्होंने यह नहीं सोचा कि लंदन में 5 एयरपोर्ट्स हैं...कम खर्च वाली एयरलाइन मुख्य एयरपोर्ट से नहीं चलती हैं। इसलिए हमें कम खर्चीले और साफ-सुथरे एयरपोर्ट की जरूरत है। एयरपोर्ट पर भला कौन रहना चाहता है? आप वहां अंदर जाते हैं और बाहर आते हैं। हमें सभी सुविधाओं से लैस एयरपोर्ट की जरूरत है, लेकिन विशाल और भव्य नहीं। एयरपोर्ट टर्मिनल बिल्डिंग के निर्माण में हमें कम खर्च करना चाहिए और रन-वे, लैंडिंग उपकरण वगैरह पर अधिक ध्यान देना चाहिए। दुर्भाग्य से, हमने एकाधिकार बना लिया है।

देखिए, दुनिया में कई जगहों पर लोगों ने इस तरह की गलतियां की हैं। और हमारे सामने इस तरह के उदाहरण मौजूद हैं, तो हमें ऐसी गलतियां नहीं करनी चाहिए।

लेकिन आप बहुत आशावादी हैं...

आमतौर पर, हम यह सुनने के अभ्यस्त हैं कि स्वर्णकाल अतीत में रहा है। मैं यह कहना चाहता हूं कि तमाम समस्याओं गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा के साथ भारत अब भी एक बड़ा बाजार है और स्वर्णकाल आगे आने वाला है। 

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