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चलो फिर स्कूल की ओर

बेहद सक्रिय और गतिशील कॉरपोरेट माहौल की लगातार नई जरूरतों के मुताबिक नए हुनर से वाबस्ता होने की खातिर टॉप मैनेजरों में अकादमिक जगत की ओर रुख करने की शुरू हुई होड़
भविष्य की चर्चा करते छात्र

लगातार उत्पादों की घटती मियाद और अंतरराष्ट्रीय उत्पादों तथा तकनीक का नित नयापन कारोबार की सबसे बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। न सिर्फ स्टार्ट अप, बल्कि स्थापित कारोबार वालों को भी तकनीक, सेवाओं और उत्पाद में नए रुझानों की होड़ में बने रहने के लिए लगातार नए प्रयोग करने पड़ रहे हैं। नवोन्मेष अब नया फैशन है। सो, ऊंचे पायदान पर न सही, नई धारा के साथ बने रहने के लिए ही टॉप मैनेजर और सीईओ नए हुनर से वाबस्ता होने के लिए कोर्सेस में दाखिला ले रहे हैं। इसे कॉरपोरेट मुहावरे में रीटूलिंग या नए हुनर में उस्ताद बनाना कहते हैं।

उद्यमिता को बढ़ावा देकर सामुदायिक सशक्तिकरण पर फोकस करने वाले छात्रों के लिए गैर-मुनाफा अंतरराष्ट्रीय संगठन एनाक्टस वर्ल्डवाइड की सहायक कंपनी एनाक्टस इंडिया के प्रेसिडेंट डॉ. फरहान पेटीवाला कहते हैं, “दरअसल बड़े संस्थानों में ऊंचे ओहदों पर पहुंचे लोगों ने 1970 और 1980 के दशक में एमबीए किया है। ये लोगों से संवाद कायम करने में तो लाजवाब हैं लेकिन नई तकनीक, खासकर इंटरनेट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मामले में फिसड्डी साबित होते हैं। इसलिए इस पहलू का भारतीय शिक्षा में अभाव है।”

हालांकि पिछले कुछ साल से नई पढ़ाई में पारंगत होने के लिए सीईओ और टॉप मैनेजरों के विदेश जाने का रुझान बदला है। अब तेलंगाना के हैदराबाद, पंजाब के मोहाली में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आइएसबी) के अलावा कुछ आइआइएम संस्थान भी स्पेशलाइजेशन कोर्स शुरू कर रहे हैं। वनईयर एमबीए के चेयरमैन शिखर मोहन का कहना है कि फ्रेशर्स के लिए दो साल के ग्रेजुएट पाठ्यक्रम के बजाय “कार्यानुभव वालों के लिए एक साल के पाठ्यक्रम की पेशकश की जा रही है। लेकिन बिजनेस स्कूल एक साल के पाठ्यक्रम के लिए कम से कम पांच साल के कार्यानुभव की शर्त रखते हैं।”

मैनेजरों के लिए कुछ छोटी अवधि के रीफ्रेशर या स्पेशलाइजेशन कोर्स उनके लिए हैं जिनका कार्यानुभव 15 साल से ज्यादा है। ये कोर्स कुछ दिनों से लेकर कुछेक महीनों के होते हैं। मैनेजरों के फिर से स्कूल की ओर रुख करने की जरूरत के एहसास के साथ कई संस्थान स्पेशलाइजेशन के अपने पैकेज तैयार कर रहे हैं। आइआइएम-लखनऊ के प्रोफेसर मौतुसी माइती कहते हैं कि कोर्स बाजार और तकनीक के बदलावों के अनुसार बनाए जाते हैं मसलन डिजिटल मार्केटिंग में क्या हो रहा है। वरना ये छात्रों को अपील नहीं करेंगे।”

पहले आइआइएम-बंगलोर में रह चुके माइती कहते हैं, जो लोग कार्यानुभव के साथ स्कूलों की ओर रुख कर रहे हैं, वे “व्यावहारिक मसलों को उठाकर और खास नजरिया पेश करके बहस में गहराई ला देते हैं, जिससे नए पहलू जुड़ जाते हैं।” मोटे तौर पर कार्यानुभव वाले तीन तरह के लोग स्कूलों में आ रहे हैं। एक, अपने क्षेत्र में नए बदलावों में पारंगत होने के लिए मैनेजर काडर के लोग। दूसरे, अपनी जॉब प्रोफाइल को बेहतर बनाने को उत्सुक लोग। और तीसरे, खासकर किसी आइआइएम से एमबीए ब्रांड वैल्यू जोड़ने को इच्छुक लोग। लेकिन, ये रिटूलिंग कोर्स कितने उद्योग की उम्मीदों पर कितने खरे हैं?

स्टूडेंट्स डेस्टिनेशन के सह-संस्‍थापक तथा सीईओ मोहन तिवारी बताते हैं, “आइएसबी और आइआइएम-बंगलोर जैसे ही कुछ संस्थान देश में नवाचार कोर्सेस ऑफर कर रहे हैं जबकि आइआइएम-रांची और आइआइएम-बंगलोर जैसे कई प्रमुख संस्थान डाटा मैनेजमेंट और डाटा एनालाइटिक्स में विशेषज्ञता वाले कोर्सेस ऑफर कर रहे हैं।” उनका कहना है, “उद्योग जगत में अग्रणी डेल और आइबीएम के सहयोग से कई संस्थान डाटा एनालाइटिक्स में शॉर्ट टर्म कोर्सेस और सर्टिफिकेशन ऑफर कर रहे हैं।” तिवारी का मानना है कि ऐसे विषयों में डिग्री कोर्सेस तैयार किए जा सकते हैं क्योंकि हमारे पास विश्वस्तरीय जानकारी रखने वाले लोग और उद्योग जगत है जिससे उन्हें कामयाब बनाया जा सकता है।

हालांकि पेटीवाला का कहना है कि ज्यादातर संस्थान अभी भी पढ़ाई के केस स्टडी वाले तरीके पर ही भरोसा करते हैं और फैकल्टी की रिटूलिंग तथा रिसर्च पर सही तरह से ध्यान नहीं दे रहे हैं। कुछ इसी तरह के हालात कई आइआइटी के उद्यमी सेल में हैं जहां कॉरपोरेट जगत के फैकल्टी और डोमेन विशेषज्ञों को बुलाने और छात्रों को पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। पेटीवाला कहते हैं, “यह एक पहलू अभी भी भारतीय शिक्षा प्रणाली से गायब है। आइआइएम में प्रबंधन विकास पाठ्यक्रम है लेकिन फिर भी वे केस स्टडी मेथड पर ही भरोसा करते हैं लेकिन जरूरी है कि भविष्य के लिए हम क्या प्रयास कर रहे हैं। मसलन हार्वर्ड और स्टेनफोर्ड जैसे आइवी लीग विश्वविद्यालय आजकल ज्यादा एक्सपेरिमेंटल लर्निंग पर ध्यान देते हैं। दुर्भाग्यवश भारत में हमारे संस्थान एक्सपेरिमेंटल लर्निंग को नहीं समझते।”

क्लासरूम से अलग शिक्षण की बात करें तो एनाक्टस इंडिया एक्सपेरिमेंटल लर्निंग के लिए प्रोत्साहित करती है जिसमें छात्र विभिन्न समुदायों के साथ बातचीत करते हैं। आइआइटी और आइआइएम समेत देश में 160 संस्थानों के साथ काम कर रही एनाक्टस छात्रों को ग्रुप या क्लब बनाने के लिए प्रोत्साहित करती है जो लोगों के बीच जाते हैं और उनके साथ काम करते हैं, कारोबार शुरू करने के लिए धन जुटाते हैं तथा सामाजिक या लाभकारी उद्यम बनाते हैं। लाभकारी बनाने के अलावा किसी उद्यम को शुरू करने और बनाए रखने के लिए चुनौतियां दिन-ब-दिन बढ़ रही हैं। फ्लिपकार्ट और स्नैपडील ऐसे उदाहरण हैं जो हमेशा बाजार में आने वाले अचानक बदलावों के लिए तैयार रहते हैं।

गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (जीआइएम) के निदेशक प्रो. अजीत पारुलेकर ने वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम की फ्यूचर ऑफ जॉब रिपोर्ट 2016 का हवाला दिया, जिसमें बताया गया है कि 2020 में दस स्किल्स की जरूरत होगी। पारुलेकर कहते हैं, “उद्योग में 4.0 (आटोमेशन में मौजूदा ट्रेंड और निर्माण तकनीक में डाटा एक्सचेंज) पर फोकस होगा और जो चीजें हम संचालित कर रहे हैं वह नए तरह से नजर आएंगी। यानी एडवांस्ड रोबोटिक्स, स्वचालित परिवहन, काल्पनिक जानकारी और मशीन से सीखने के सभी आयामों में बदलाव नजर आएगा। इस प्रगति के साथ भविष्य के कर्मचारियों को कौशल विकास के तहत तैयार करने की जरूरत होगी।” उनका कहना है कि इस परिदृश्य में बिजनेस स्कूलों को भी अपने पाठ्यक्रम में बदलाव करना होगा। उन्होंने कहा कि जीआइएम गोवा अपने अगले कदम के तहत टिकाऊ कारोबार और समाज के साथ शिक्षा, उद्योग और पूर्व छात्रों को जोड़कर सीखने के एक समृद्ध माहौल को बनाने की कोशिश कर रहा है। पीजीडीएम कायर्क्रम में पहले साल में चार क्रेडिट कोर्स भी अनिवार्य होंगे।

यकीनन भविष्य में कौशल विकास के बाद रचनात्मकता और नवाचार की मांग बहुत अधिक हो जाएगी और जीआइएम नवाचार और रचनात्मकता का नवगठित केंद्र होगा। इसका मकसद कला, तकनीक और प्रबंधन के इस्तेमाल करने के लिए बहु उद्देशीय कौशल को विकसित करना है ताकि जब कोई उपाय न दिखे तो छात्र उसका हल निकालें। जीआइएम को अटल इनक्यूबेशन सेंटर स्थापित करने के लिए नीति आयोग से अनुदान भी मिला ताकि बाजार की मांग के अनुसार नई नौकरियां मिल सकें। यह बड़े डाटा प्रबंधन और एनालाइटिक्स, मेटीरियल्स मैनेजमेंट, आइटी कंसल्टिंग, प्रॉडिक्टिव एनालाइसेस, डिजिटल मार्केटिंग आदि के वैकल्पिक पाठ्यक्रम भी ऑफर करता है।  आइआइएम कोलकाता के डीन (नई पहल और बाहरी संबंध) प्रो. उत्तम कुमार सरकार के अऩुसार, आला और केंद्रित विशेषज्ञता के प्रबंधकों को अक्सर आज की दुनिया में पसंद किया जाता है। “यह विभिन्न विशेष डोमेनों में प्रबंधन कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में कर  रहे पेशवरों को चला रहा है। चुनौतीपूर्ण कारोबारी माहौल से बचने और प्रभावी ढंग से योगदान करने के लिए, प्रबंधकों और अधिकारियों को अपने कौशल को सुधारने तथा व्यावसायिक कौशल का उन्नयन करने, उद्योगों के रुझान को बनाए रखने और उभरते अवसरों का फायदा उठाने की जरूरत होती है। हमारे विशेषज्ञ फैकल्टी सदस्यों के साथ राज्य के अति आधुनिक कारोबारी प्रबंधन सिद्धांतों और व्यावहारिकता को समझने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।”

एक अनूठी पहल के तहत आइआइएम-कोलकाता ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आइएसआइ) और आइआइटी खड़गपुर के साथ मिलकर बिजनेस एनालाइटिक्स में बहुउद्देशीय और समावेशी स्नातकोत्तर  कार्यक्रम तैयार किया है। दो साल के डिग्री कोर्स में तीन क्षेत्रों प्रबंधन, सूचना तकनीक, सांख्यिकीय सिद्धांतों और अनुप्रयोगों को शामिल किया गया है ताकि उद्योगों के लिए प्रशिक्षित पेशेवर तैयार किए जा सकें। इसके अलावा आइआइएम-कोलकाता नवाचार प्रबंधन विकास कायर्क्रम का भी ऑफर करता है ताकि उद्योगों की जरूरत को पूरा किया जा सके। इस तरह के कार्यक्रमों में नेताओं के कार्यक्रम, प्रबंधकीय संचार, तेल की अर्थव्यवस्था, गुणवत्ता विश्लेषण, स्वास्थ्य सेवा लीडरशिप और बिजनेस एनालाइटिक्स शामिल हैं। इस तरह के कार्यक्रमों से उद्योग में पेशेवरों की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सकेगा जो आधुनिक कारोबार में विश्लेषण की क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए सक्षम हैं।

मौजूदा समय में, कारोबार के कभी-कभी उभरते हुए और बाजार की गतिशीलता तथा तकनीक के चलते कई अधिकारी अभी भी स्टेनफोर्ड, हार्वर्ड और एमआइटी स्लोन से ऑफर शॉर्ट टर्म ऑनलाइन कोर्स का चयन कर रहे हैं। भारत में काफी संभावनाओं को देखते हुए कई विदेशी संस्थानों ने कौशल विकास हासिल करने के इच्छुक मैनेजरों को लुभाने के लिए भारतीय संस्थानों से गठबंधन किया है।

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