Advertisement

संकीर्णता का गहरा विवेचन

जाति व्यवस्था पर सवाल उठाती है पुस्तक
कांचा अइलैय्या की पुस्तक

पहले संदर्भ हिंदुत्व का। यह पद पिछली सदी में वी.डी. सावरकर ने गढ़ा था जिससे एक खास राजनैतिक विचारधारा का सूत्रपात माना जाता है। व्यापक हिंदू धर्म, उसकी जाति या वर्ण-व्यवस्था या उसके दर्शन और धर्मतंत्र से उसका अर्थ नहीं निकलता है। इसलिए समाज विज्ञानी तथा चिंतक कांचा अइलैय्या की किताब ‘पोस्ट हिंदू इंडिया’ के हिंदी संस्करण हिंदुत्व-मुक्त भारत पर यह सवाल उठना लाजिमी है कि हिंदुत्व शब्द किस संदर्भ में इस्तेमाल किया गया है?

बेहद सजग विचारक कांचा अइलैय्या से किसी विसंगति की उम्मीद नहीं की जा सकती। आउटलुक से बातचीत में कहा कि यह शब्द खासकर हिंदी और मराठी संस्करणों में मौजूदा दौर में रूढ़िवादी हिंदू शक्तियों के उभार के संदर्भ में प्रयुक्त किया गया है। लेकिन उनका अध्ययन मूल रूप से हिंदू आध्यात्मिक दर्शन और जाति तथा वर्ण-व्यवस्था के बरक्स शूद्र, दलित, जनजातीय-बहुजनों की व्यवस्था पर ही केंद्रित है। कांचा अइलैय्या की विचारधाराओं के संबंध के अपने पैमाने हैं। उनकी स्थापनाओं से कोई सहमत-असहमत हो सकता है लेकिन उनका यह अध्ययन देश में जातियों के बारे में बहुत हद तक नया नजरिया पेश करता है।

उनका अध्ययन मूल रूप से आंध्र प्रदेश में शूद्र और दलित तथा आदिवासियों के आचार-विचार, खानपान, जीविकोपार्जन के तरीकों और उसके लिए औजारों तथा तकनीक के इस्तेमाल पर है। इसे वे ब्राह्मणवादी या मनुवादी जातियों के बरक्स रखकर बताते हैं कि कैसे शूद्रों का जीवन दर्शन ज्यादा वैज्ञानिक और उत्पादक है। ब्राह्मण, बनिया, क्षत्रिय जातियों ने उनकी उत्पादकता का इस्तेमाल करने का तंत्र गढ़ा। शोषण को बरकरार रखने के लिए आध्यात्मिक फासीवाद की नींव रखी और समाज में ऊंच-नीच का पदानुक्रम कायम किया। उनका यह सवाल भी मौजूं है कि उत्पादन के साधन, श्रम और औजार अगर शूद्र और अति शूद्र जातियों के पास रहे हैं तो ये ब्राह्मणवादी जातियां पदानुक्रम में ऊपर कैसे मान ली गईं। यही सवाल एक दूसरे संदर्भ में कुछ विचारकों की ओर से उठता है कि अगर राज-सत्ता और व्यापार क्षत्रिय और बनियों के हाथ रहा है तो पदानुक्रम में ब्राह्मणों को ऊपर कैसे मान लिया गया। जाहिर है, यह शोषण और अन्याय के दर्शन यानी कांचा अइलैय्या के शब्दों में आध्यात्मिक फासीवाद की स्थापना से जुड़ा हुआ है।

लेखक पूजा-पद्धतियों और धर्म दर्शनों के विश्लेषण से इस आध्यात्मिक फासीवाद का बेहतर निरूपण करते हैं। वे बताते हैं कि दुनिया चार बड़े धर्मों बौद्ध, ईसाई, इस्लाम और हिंदू में गैर-बराबरी के दर्शन पर आधारित हिंदू धर्म ही है। हिंदू धर्म में ब्राह्मण विष्णु के मुख से, क्षत्रिय भुजाओं से, वैश्य उदर से और शूद्र पैरों से जन्मे बताए गए हैं। यही गैर-बराबरी और अन्याय का मूल है। बाकी धर्मों में सभी समान हैं। वे यह भी गिनाते हैं कि आखिर क्या वजह है कि हिंदू धर्म वाले क्षेत्रों में ही इस्लाम ज्यादा फैला। अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के उदाहरण सामने हैं। सबसे अधिक शूद्रों ने उसे अपनाया क्योंकि अन्याय और गैर-बराबरी उन्हें कम से कम दर्शन, पूजा-पद्धतियों में समानता वाले दायरे में धकेल रही थी। इसीलिए वे कहते हैं कि हिंदू धर्म तंत्र जितनी संकीर्णता के साथ उभरेगा, उतनी ही जल्दी वह अतीत की वस्तु बनता जाएगा। हिंदुत्व-मुक्त भारत से उनका यही आशय है।

कांचा अइलैय्या विश्व में अब तक के पांच मसीहाओं का जिक्र करते हैं जिन्होंने समता और लोकतंत्र पर आधारित समाज की स्थापना का दर्शन और आध्यात्म प्रदान किया। सबसे पहला स्थान वे बुद्ध को देते हैं और उसके बाद ईसा मसीह, पैगंबर मोहम्मद, मार्क्स और डॉ. भीमराव आंबेडकर को रखते हैं। बौद्ध धर्म के प्रसार करने के नाते ही प्राचीन भारत में वे सम्राट अशोक को सबसे ऊपर रखते हैं। वे कहते हैं कि ब्राह्मण, बनिया बौद्धिक उसे ही नकारने के लिए गुप्त काल को देश का स्वर्णिम काल कहते हैं। आधुनिक दौर में वे गांधी, नेहरू को उन नेताओं में गिनते हैं, जिन्होंने सेकुलर, लोकतांत्रिक, अपेक्षाकृत समानता वाली व्यवस्था कायम करने की कोशिश की। इसी वजह से हिंदू आध्यात्मिक फासीवादियों के हाथों गांधी मारे गए।

कांचा अइलैय्या के विचारों में असंगति की तलाश की जा सकती है। वे अंग्रेजी भाषा को अपने लिए बड़ी देन मानते हैं। यह अलग बात है कि इसका औपनिवेशिक संदर्भ है। लेकिन इसमें दो राय नहीं कि यह अध्ययन बेहद महत्वपूर्ण है और समाज तथा देश को देखने की नई दृष्टि प्रदान करता है। अनुवाद और प्रूफ की त्रुटियां हैं पर विषय की गंभीरता उन पर भारी पड़ती है। 

बृहत हिन्दी शब्दकोश

शब्दकोश तैयार करना दुरूह काम है। अगर शब्दकोश हिंदी का हो तो कठिनाई बढ़ जाती है। हिंदी में शब्दकोश को अमलीजामा पहनाना आसान नहीं है। मानक हिंदी के साथ-साथ कई शब्दों के देशज अर्थ इतने प्रचलित हो गए हैं कि एक शब्द के अर्थ पर घंटों माथापच्ची की जा सकती है। साथ ही हिंदी को ‘हिंग्लिश’ से भी जूझना पड़ रहा है। अंग्रेजी के कई ऐसे शब्द हैं जो हिंदी में दूध-पानी की तरह घुल-मिल गए हैं जिन्हें अलग करना आसान नहीं है। संभव है लोग हिंदी के बजाय अंग्रेजी के शब्द को ज्यादा करीब से सही अर्थों में समझ लें। इसलिए यह शब्दकोश ‘प्रचलित शब्दों का अद्यतन समावेश’ करता है। शब्दकोश में यदि अंजनी का अर्थ है तो अंग्रेजी के शब्द अंडर का भी अर्थ मिल जाएगा। इस शब्दकोश में अंग्रेजी के ऐसे शब्दों को भी समाहित किया गया है जो आम बोलचाल में बहुत गहरे ढंग से शामिल हो गए हैं। जैसे जिलाधीश शायद कोई न समझे पर जन-जन तक कलक्टर शब्द पहुंच चुका है। शब्दकोश में ऐसे भी शब्द हैं, जिनका मूल किसी भाषा, बोली या क्षेत्र से निकला है। जैसे पृष्ठ 194 पर एक शब्द है, कारसेवक। यह शब्द हिंदी के कर (हाथ) सेवा से बना है लेकिन पंजाबी भाषा में प्रचलित था। राममंदिर आंदोलन के दौरान यह हिंदी बेल्ट में लोकप्रिय हो गया। यह प्रचलित अंग्रेजी और हिंदी के शब्दों का मिला-जुला शब्दकोश है, जिसमें अंग्रेजी के शब्द धड़ल्ले से चले आए हैं। अंत में साहित्य अकादेमी विजेताओं की सूची है। होने को तो ज्ञानपीठ की भी है, लेकिन इसमें सिर्फ हिंदी वालों के नाम हैं। उसमें भी कुंवर नारायण की कृति ‘वाजश्रवा के बहाने’ है जिसे ‘बाजश्रवा’ लिखा गया है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement