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दाम को लेकर नया संकट

उत्तर प्रदेश में गन्ना मूल्य तय कराने की नई सिफारिश किसानों के लिए बन सकती है घाटे का सौदा
मिल में गन्ना ले जाते किसान

साल 2022 तक देश के किसानों की आय दोगुना करने की घोषणा करने वाली भाजपा सरकार उत्तर प्रदेश के किसानों की आमदनी घटाने की तैयारी कर रही है। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस शासन के दर्जनों फैसलों की आलोचना के बाद उन पर अमल करने की परंपरा को निभाते हुए उत्तर प्रदेश में गन्ना मूल्य के लिए रंगराजन फार्मूला लागू करने की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं। राज्य में मौजूदा राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) की जगह फेयरऐंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) की व्यवस्था लागू करने पर विचार किया जा रहा है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली मनमोहन सिंह सरकार ने रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर सी. रंगराजन की अध्यक्षता में चीनी उद्योग के लिए नीति निर्धारित करने के मकसद से एक कमेटी गठित की थी। इस समिति की सिफारिशों में कहा गया है कि चीनी की बिक्री से होने वाली कमाई का 70 फीसदी किसानों के साथ बांटकर गन्ने का दाम तय होना चाहिए। गन्ने से चीनी के अलावा बनने वाले सहउत्पादों को शामिल करने की स्थिति में बंटवारा 75 फीसदी करने की सिफारिश है।

लेकिन जिस तरह सरकार की इस कोशिश के विरोध में स्वर उठने लगे हैं उसके चलते राजनीतिक रूप से घाटे का सौदा साबित होने वाले इस कदम को लागू करना राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए आसान नहीं होगा। राज्य में 40 लाख से अधिक गन्ना किसान हैं और गन्ने के दाम घटाने वाला कोई भी कदम उनको आंदोलन के लिए सड़क पर आने को मजबूर कर सकता है। वैसे भी राज्य में गन्ना मूल्य पर कई बार हिंसक आंदोलन तक हो चुके हैं और इसमें किसानों ने जान गंवाई है क्योंकि गन्ना राज्य की सबसे अहम नकदी फसल है।

असल में यह सारा खेल चीनी मिलों के संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) और केंद्र सरकार की एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। इसके तहत उत्तर प्रदेश सहित उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और बिहार जैसे राज्यों में गन्ना मूल्य के लिए एसएपी की व्यवस्था को समाप्त करने की तैयारी है। एसएपी राज्य सरकारें तय करती हैं और इसे एग्रीड प्राइस कहा जाता है। पेराई सत्र (2016-17) के लिए 20 रुपये की बढ़ोतरी उत्तर प्रदेश में गन्ने की विभिन्न प्रजातियों के लिए 305 रुपये, 310 रुपये और 315 रुपये प्रति क्विंटल का एसएपी तय किया गया था। इसके पहले तीन साल में राज्य की सपा सरकार ने एसएपी को फ्रीज कर दिया था।

ताजा मामले की जड़ में 7 जुलाई, 2017 को केंद्र सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के खाद्य एवं सार्वजिनक वितरण विभाग की वह चिट्ठी है जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार को गन्ना मूल्य के लिए एफआरपी व्यवस्था लागू करने की सिफारिश की गई है। मंत्रालय के निदेशक (चीनी नीति) जी.एस. साहू द्वारा राज्य के शुगरकेन डेवलपमेंट ऐंड शुगर इंडस्ट्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी संजय भूसरेड्डी को भेजी इस चिट्ठी में कहा गया है कि राज्य में एसएपी की जगह एफआरपी की व्यवस्था को लागू करने का यह अनुकूल समय है। साथ ही इसी मुद्दे पर 24 अप्रैल, 2013 को लिखी चिट्ठी का हवाला भी दिया गया है। पत्र के मुताबिक आगामी पेराई सीजन (2017-18) में राज्य में चीनी की रिकवरी 10.61 फीसदी रहने का आकलन है। इसके चलते रिकवरी के आधार पर एफआरपी 284 रुपये प्रति क्विटंल रहेगा जो मौजूदा एसएपी के काफी करीब है। राज्य सरकार को सलाह दी गई है कि वह नई मूल्य व्यवस्था को लागू करने की दिशा में जरूरी प्रक्रिया शुरू करे।

अगर नई व्यवस्था लागू होती है तो राज्य के गन्ना किसानों को 30 रुपये प्रति क्विंटल तक की मूल्य कटौती झेलनी पड़ सकती है। यह किसानों की आय दोगुना करने का कौन-सा फार्मूला है, इसका जवाब तो केंद्र या राज्य की भाजपा सरकार ही दे सकती है। लेकिन चुनावी साल के पहले तीन साल तक गन्ने का दाम स्थिर रखकर अखिलेश सरकार ने नई व्यवस्था के लिए रास्ता जरूर आसान कर दिया था।

इस मुद्दे पर आउटलुक ने जब राज्य के गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा से बात की तो उन्होंने कहा कि हम राज्य में वही फैसला लेंगे जो किसानों के हित में है। उत्तर प्रदेश में भले ही औसत रिकवरी 10.61 फीसदी हो लेकिन कई जगह रिकवरी का स्तर 9.1 फीसदी तक है। ऐसे में नए फार्मूले से राज्य में किसानों को मिलने वाले गन्ना मूल्य में भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा। हमारा प्रयास राज्य में बेहतर रिकवरी वाली प्रजाति को बढ़ावा देने और अधिक उत्पादकता वाली प्रजातियों का क्षेत्रफल बढ़ाने का है जिससे किसान की आमदनी बढ़ सके। इसके साथ ही हम राज्य में गन्ना आपूर्ति की प्रक्रिया में बदलाव के तहत किसानों को अधिक सुविधा देने के कदम उठा रहे हैं। एफआरपी लागू करने पर किसानों के लिए दाम घटने के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि हम ऐसा कोई फैसला नहीं लेंगे जिसके चलते किसानों को घाटा हो।

असल में नई व्यवस्था के लिए चीनी उद्योग केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के साथ मिलकर लगातार दबाव बनाने की कोशिश करता रहा है क्योंकि इससे उसकी कमाई बढ़ेगी। चालू पेराई सीजन (अक्टूबर, 2016 से सितंबर, 2017) के दौरान देश में 202 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ है। इसमें सबसे अधिक 87.5 लाख टन चीनी उत्तर प्रदेश में पैदा हुई। इस सीजन के दौरान चीनी की कीमतों में भारी तेजी आई और चीनी उद्योग को रिकार्ड मुनाफा हुआ। दो साल पहले चीनी की एक्स फैक्टरी कीमत 25 रुपये किलो तक चली गई थी जो इस समय 37 रुपये प्रति किलो चल रही है। ऊंची कीमतों का सबसे अधिक फायदा उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को ही मिला। अक्सर देश में सबसे अधिक चीनी उत्पादन करने वाले महाराष्ट्र का उत्पादन इस साल घटकर 42 लाख टन रह गया, जो उत्तर प्रदेश के आधे से भी कम है।

चीनी उद्योग ने कीमतों को ऊंचा रखने के लिए आंकड़ों का भी काफी खेल खेला। सीजन के शुरू में इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने 240 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया था, जो वास्तव में 202 लाख टन रहा है। इस पर चीनी उद्योग के एक बड़े कारोबारी का कहना है कि इस्मा को अगर यूपीइस्मा कहें तो ज्यादा बेहतर होगा क्योंकि यह केवल यूपी के बड़े चीनी मिलों के हित ही देखती है। ये गलत आंकड़े देश में चीनी आयात को रोकने के लिए थे जिससे उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों को मुनाफा कमाने का मौका मिल सके। हालांकि गलत आंकड़ों पर इस्मा को केंद्र सरकार की नाराजगी भी झेलनी पड़ी। दिलचस्प बात यह है कि भारी कमाई के बावजूद गन्ना आयुक्त की 12 सितंबर की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी मिलों पर राज्य के किसानों का 1435 करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य भुगतान बकाया है।

अक्टूबर, 2017 से शुरू हो रहे पेराई सीजन में चीनी के उत्पादन पर नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रकाश नायकनवरे ने आउटलुक को बताया कि नए पेराई सीजन (अक्टूबर, 2017 से सितंबर, 2018) में देश में करीब 240 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है। इसमें भी सबसे अधिक करीब 95 से 97 लाख टन उत्पादन उत्तर प्रदेश में होगा। जबकि महाराष्ट्र में उत्पादन सुधरकर 60 से 70 लाख टन के बीच रहेगा। तीसरे बड़े उत्पादक राज्य कर्नाटक में चीनी उत्पादन करीब 25 लाख टन रह सकता है। यानी आगे भी चीनी की कीमतें बेहतर बनी रहेंगी।

केंद्र सरकार के डायरेक्टरेट ऑफ शुगर के एक पूर्व अधिकारी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में यह फार्मूला चीनी मिलों के दबाव में लागू होता है तो राज्य के किसानों को भारी नुकसान हो सकता है। अलग-अलग चीनी मिलों के किसानों को अलग दाम मिलने लगेगा क्योंकि वहां रिकवरी में भारी अंतर है। ऐसे में कुछ किसानों के लिए गन्ना मूल्य 50 से 60 रुपये क्विटंल तक घट सकता है। वैसे भी चीनी मिलों की रिकवरी के आंकड़ों पर सवाल खड़े होते रहे हैं।

वहीं राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी.एम. सिंह ने आउटलुक को बताया कि हम किसी भी कीमत पर यह फार्मूला स्वीकार नहीं करेंगे। वी.एम. सिंह की याचिका पर 2004 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बहुमत से फैसला देते हुए एसएपी को वैधानिक करार दिया था। इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश सरकार सहित कई दूसरी राज्य सरकारें भी एसएपी के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में गई थीं। सिंह का कहना है कि राज्य के 40 लाख से ज्यादा गन्ना किसान यह बरदाश्त नहीं करेंगे। हम एग्रीड प्राइस के तहत एसएपी को सुप्रीम कोर्ट के जरिए लागू करा चुके हैं। इसलिए हम एफआरपी को नहीं मानते हैं।

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आउटलुक को बताया कि हम एफआरपी किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे। इस बारे में मुख्यमंत्री के साथ बैठक में भी विरोध जता चुके हैं। हमने साफ कर दिया है कि अगर एफआरपी लागू होता है तो सरकार को किसानों के आंदोलन से जूझना पड़ेगा। अब यह सरकार को देखना है कि वह किसानों का हित देखती है या चीनी मिलों की मदद में खड़ी होती है।

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