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राजमार्गों के संचालन में भी बाधाएं कम नहीं

नए नेशनल हाइवे और एक्सप्रेसवे का निर्माण जितना मुश्किल है इसके संचालन और रख-रखाव की चुनौतियां भी कम नहीं, नई तकनीक के बूते उभर रहा है यह भरा-पूरा क्षेत्र
लंबी कतारेः आधुनिक टोल मैनेजमेंट से खत्म होगा ऐसा नजारा

समूचे देश में जिस तरह से हाइवे और एक्सप्रेसवे निर्माण ने गति पकड़ ली है उसके चलते एक नई इंडस्ट्री खड़ी हो रही है। जिस तरह देश की आर्थिक गतिविधियों में कई तरह के नए सेक्टर जुड़ रहे हैं, हाइवे और एक्सप्रेसवे का ऑपरेशन (संचालन और रखरखाव) देखने वाली एक नई इंडस्ट्री खड़ी हो रही और यह बहुत तेजी से बदल रही है। इसके पीछे टेक्नोलॉजी का बढ़ता उपयोग मुख्य वजह है। इस नई इंडस्ट्री में नए खिलाड़ी जुड़ रहे हैं जिससे प्रतिस्पर्धा भी बढ़ रही है। इस बदलाव का फायदा देश की इकोनॉमी के साथ आम लोगों को भी हो रहा है।

सरकार ने हाइवे और एक्सप्रेसवे के लिए कई कदम उठाए हैं। नए हाइवे से अलग देश में एक लाख किलोमीटर के नेशनल हाइवे हैं। हर दिन लाखों ट्रक, बस, कार और दूसरे वाहन इन सड़कों पर चलते हैं। इस यात्रा में वे कई बार टोल टैक्स जमा करने के लिए या आस-पास की सुविधा का लाभ उठाने के लिए रुकते हैं। ऐसे हाइवे का ठीक से रख-रखाव होना चाहिए, खासकर उनका जो पांच साल से ज्यादा पुराने हैं। अगर दुर्घटनाएं हो रही हैं तो उनका रख-रखाव और भी तेजी से करने की जरूरत है।

यह बड़ी चुनौती है कि हमारे हाइवे एकदम दुरुस्त बने रहें। दुरुस्त रखने की एक बड़ी इंडस्ट्री है, जिससे ज्यादा लोग वाकिफ नहीं हैं। उदाहरण के लिए, हमारी कंपनी फीडबैक ब्रिसा हाइवेज 5,500 किलोमीटर हाइवे लेन पर टोल और रख-रखाव का काम करती है। हर दिन ढाई लाख से ज्यादा वाहन हमारे प्लाजा से गुजरते हैं। हम रोज 20 करोड़ रुपये से ज्यादा का टोल इकट्ठा करते हैं और इसके लिए लगभग तीन हजार कर्मचारी देश भर में दूर-दराज के इलाकों में कई शिफ्ट में काम करते हैं।

सबसे बड़ा मुद्दा टोल टैक्स में छूट

हर हाइवे सेक्शन की अपनी चुनौतियां हैं। कुछ सामान्य हैं, तो कुछ पेचीदा। सबसे बड़ा मुद्दा है ‘टोल टैक्स में छूट।’ स्थानीय ग्रामीणों या सरकार के कुछ वर्गों के कर्मचारियों के वाहनों को टोल देने से छूट मिली हुई है। गाड़ियों पर स्टीकर लगा होने के बावजूद यह पता करना मुश्किल है कि कौन स्थानीय है। इसी तरह, हाइवे पर चलने वाले कई लोग टोल नहीं देते और ऐसा शहरी इलाकों में तीन फीसदी है तो कुछ इलाकों में 40 फीसदी तक है। इसकी वजह से सड़क के मालिक को (चाहे वह सरकार हो या प्राइवेट कंपनी) हाइवे के रख-रखाव के लिए ठीक-ठाक पैसा मिलना मुश्किल होता है और लोन चुकाने के लिए बहुत कम पैसा बचता है, मुनाफे की तो बात छोड़ दें। सभी ने स्थानीय नेताओं को टोल इकट्ठा करने वालों से लड़ते देखा होगा। ऐसे नेता बिना पैसा चुकाए वहां से निकलना चाहते हैं। ये रोज की दिक्कतें हैं और इसके लिए टोल इकट्ठा करने वालों के धैर्य का शुक्रिया कहना चाहिए।

हाइवे संचालकों की दूसरी चुनौती है, रूट पर दिन-रात लगातार नजर रखना। ड्राइवरों की सुरक्षा का ख्याल रखते हुए ऐसा करना सड़कों की आंख और कान बनने जैसा है। इस काम में यह भी देखना होता है कि कहीं कोई अतिक्रमण न हो या कहीं किसी सड़क पर रख-रखाव का कोई काम चल रहा हो तो वहां डायवर्जन बनाए जाएं।

दुर्भाग्यवश, भारत की सड़कें दुनिया में सबसे असुरक्षित हैं। हाइवे में, शहरी और जिलों की सड़कों पर 2015 में पांच लाख से भी ज्यादा रोड क्रैश हुए। इसलिए इन टोल प्लाजा में से किसी एक पर एंबुलेंस रखी होती है ताकि लोगों को नजदीकी अस्पताल ले जाया जाए।

हर सेक्शन की गतिविधियों पर कंट्रोल रूम से नजर रखी जाती है। टोल प्लाजा से गुजरने वाले वाहनों को भी देखा जाता है। अंतत: हाइवे की पांच साल में सुधार-मरम्मत करनी होती है ताकि टूटी-फूटी जगहों को उनके पुराने रूप में लाया जा सके। इसमें क्रैक को रिपेयर करने की तकनीक, सड़क को बराबर करना वगैरह शामिल है।

हर इंडस्ट्री की तरह, हाइवे इंडस्ट्री भी बदल रही है। नई तकनीक आ रही है। नए बिजनेस मॉडल आजमाए जा रहे हैं। नए खिलाड़ी आ चुके हैं, जिनमें आपस में प्रतिस्पर्धा है कि कैसे लोगों के सड़क पर चलने के अनुभव को बेहतर और सुरक्षित बनाया जाए।

इलेक्ट्रॉनिक टोल व्यवस्था से सुधरेंगे हालात

इलेक्ट्रॉनिक टोल व्यवस्था कुछ ऐसी ही है, जो जल्द ही हर नेशनल हाइवे पर होगी। यहां, हर वाहन का स्मार्ट कार्ड होगा जो इसकी विंडशील्ड पर लगा होगा। इस कार्ड में पहले से पैसे होंगे। जब यह वाहन टोल बूथ से गुजरेगा, बूथ पर लगे सेंसर कार्ड को दूर से पढ़ लेंगे। इससे वाहन संख्या का पता चलेगा और टोल की राशि सीधे अकांउट से कट जाएगी। भारत में इसे ‘फास टैग’ कहा जाता है। अभी तक, यह केवल नेशनल हाइवे पर है लेकिन जल्द ही इसे स्टेट हाइवे तक बढ़ाया जा सकता है। इससे समय की भी बचत होगी क्योंकि वाहनों को टोल प्लाजा पर रुकना पड़ता है और पैसे देने और छुट्टे लेने में समय लगता है। इससे डिजिटल पेमेंट और कम कैश को भी बढ़ावा मिलेगा जिसे सरकार भी बढ़ावा दे रही है।

भविष्य में हो सकता है कि एक भी टोल बूथ न हों। अगर सारे वाहनों में फास टैग हो तब सारे टोल प्लाजा के पास एक टॉवर होगा, जो एक लेन में कई कार्ड पढ़ लेगा। इन सारी तकनीक का इस्तेमाल लोगों और अधिकारियों के सहयोग के बिना संभव नहीं है। कोई हाइवे सिर्फ ‘ए’ जगह को ‘बी’ जगह से ही नहीं जोड़ता है, यह ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘एफ’ को भी जोड़ता है और इनमें से ज्यादातर जगहों पर हाइवे कस्बों के बीच से गुजरते हैं। इसलिए हाइवे का संचालन करने वालों को रोड सेफ्टी अभियान, ब्लड डोनेशन कैंप और सुरक्षा से जुड़ी दूसरी चीजें भी करनी होती हैं।

कई हाइवे बिल्ड एंड ट्रांसफर स्कीम के तहत प्राइवेट कंपनियों द्वारा बनाए जाते हैं। इनमें से कुछ कंपनियां हाइवे की बीस साल की उम्र तक निवेश रखती हैं लेकिन कई लोग अपने शेयर दूसरे निवेशकों को बेच देते हैं। कई विदेशी और घरेलू निवेशक जैसे कि बीमा कंपनी और पेंशन फंड हाइवे पर अच्छा निवेश करती हैं क्योंकि उन्हें अच्छा रिटर्न भी मिलता है। अब हाइवे के कई नए मालिक हैं, जिनमें बैंक भी शामिल हैं।

सरकार के पास टोल-ऑपरेटर-ट्रांसफर स्कीम भी है, जिसमें सरकारी हाइवे के टोल इकट्ठा करने के अधिकार सरकार बेच रही है ताकि नए हाइवे बनाए जा सकें (जो पीपीपी मॉडल के तहत बने प्राइवेट हाइवे से अलग है)। कई कंपनियां और फंड इसके लिए हामी भी भर रहे हैं।

मालिक कोई भी हो, हाइवे को सुचारु रूप से चलना चाहिए। हमें रख-रखाव के मानकों का पूरा ख्याल रखना है और टोलिंग का भी। जैसे, टोल बूथ पर तीन मिनट से ज्यादा का इंतजार न हो। हमें सब कुछ साफगोई से चलाना है और इससे मिले पैसों के लिए उत्तरदायी रहना है। यह कठिन बिजनेस है लेकिन हमें खुशी है कि हम राष्ट्र में अपने तरीके से योगदान कर रहे हैं।

(लेखक फीडबैक ब्रिसा हाइवेज के प्रबंध निदेशक हैं)

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