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रक्षा जगत में उभरती तकनीकें

नई तकनीकों के हिसाब से रणनीतियों में बदलाव ला रहे हैं रक्षा और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े संगठन
नए सैन्य उपकरण

ऐसे दृश्य की कल्पना कीजिए जहां रणक्षेत्र का मतलब एक होलोग्राफिक इलाका हो, पल-पल की जानकारी देने वाले सेंसर हों और संसाधन लगाने या कोई जवाब देने से पहले सारे परिदृश्य एवं मॉडल सामने आ रहे हों। सुनकर ऐसा लगता है जैसे किसी वैज्ञानिक थ्रिलर फिल्म की बात हो रही है। लेकिन यह आज के समय की सच्चाई है, जहां रक्षा क्षेत्र में आई नई तकनीकों से स्थिति की पल-पल की जानकारी मिलती है। आभासी दुनिया उभर कर सामने आती है। ये तकनीकें रक्षा क्षेत्र की योजना और ट्रेनिंग दोनों ही जगह अपनाई जा रही हैं। सिमुलेशन और सिनेरियो से इन तकनीकों का महत्व उभर कर सामने आता है, जहां निर्णय लेने के लिए तय मॉडल उपलब्ध होते हैं और निर्णय लेने वाले जोखिम की स्थितियों में अपना जवाब तय कर सकते हैं।

जब हम भारत में रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा की बात करते हैं तो मुझे ऐसी कई गेम चेंजर तकनीकें दिखाई देती हैं जो रक्षा से जुड़े उद्योग को झकझोरने वाली हैं। आज के समय के युद्ध निरंतर तकनीक आधारित होते जा रहे हैं और भारतीय सशस्‍त्र  बल भविष्य की लड़ाइयों के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। हमारे रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा से जुड़े संगठन उभरती तकनीकों के हिसाब से अपनी रणनीतियों में लगातार बदलाव ला रहे हैं। उनका जोर इस बात पर है कि संसाधनों की तैनाती एकदम कुशल अंदाज में की जा सके। सरकार अपने सशस्‍त्र बलों और अर्धसैनिक बलों को आधुनिक रक्षा हथियारों और उपकरणों के अलावा अगली पीढ़ी की तकनीकों से लैस कर रही है। इनमें साइबर, गुप्तचर सूचना तंत्र, रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स और सटीक वार करने वाली क्षमताएं शामिल हैं। भविष्य की लड़ाई के लिए हमें नेटवर्क सेंट्रिक रणभूमियों की तैयारी करनी होगी।

2017 में रक्षा संगठन ऐसे डिजिटल, ऑटोमेटेड और कुशल वातावरण तैयार करने में लगे हैं, जहां उभरती हुई तकनीकों को अपनाकर समय से गुप्तचर सूचना एवं परिस्थिति की जानकारी मिल सके।

इसे थोड़ा और समझने की जरूरत है। प्राकृतिक आपदाओं से लेकर आतंकवाद तक के खतरों के बीच हमारे लिए अपनी आंतरिक सुरक्षा को मुस्तैद करना बेहद जरूरी हो गया है। इन खतरों से कारगर ढंग से निपटने के लिए हमें परिस्थिति की सटीक जानकारी होनी चाहिए और विभिन्न स्रोतों से गुप्त सूचनाएं मिलनी चाहिए, ताकि निर्णय लेने वाले बेहद सटीक सूचना के आधार पर फैसले ले सकें। इन अभियानों के लिए रियल टाइम में स्थिति का चित्र मिलना चाहिए। निर्णय लेने के लिए एक व्यापक परिस्थितिगत जागरूकता के प्लेटफॉर्म की जरूरत होती है, जहां सभी डाटा उपलब्ध हों। रियल टाइम थ्रीडी जीआईएस टेक्नोलॉजी से नेटवर्क आधारित रणभूमि की पूरी जानकारी मिलती है। इसका इंटीग्रेशन ऑपरेशनल इन्फॉर्मेशन सिस्टम (ओआईएस), सिटरैप (सिचुएशनल रिपोर्ट) एवं प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) से होता है। इसके आधार पर सशस्‍त्र बलों के निर्णायक अधिकारी सही फैसले ले सकते हैं। ये सिस्टम उस समय और कारगर होते हैं जब वे अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से लैस कंट्रोल रूम से जुड़े हों, जहां एक ही डिस्प्ले पर स्थिति का पूरा चित्र उभर रहा हो।

लड़ाकू विमान की तरह मानवरहित लड़ाकू यान, लेजर एवं उच्च शक्ति की माइक्रोवेव वाले आग्नेयास्‍त्र, बैलेस्टिक मिसाइलें, हाइपरसोनिक मिसाइलें, साइबर वारफेयर और वियरेबल तकनीकें आज की लड़ाइयों का अभिन्न अंग हो गई हैं। इनके वर्चुअल काउंटरपार्ट-डिजिटल ट्विन भी विकसित करने की जरूरत है। डिजाइन एवं प्रोटोटाइपिंग के समय डिजिटल ट्विन क्षमताओं के आकलन में कारगर साबित होंगे। वर्चुअल प्रोटोटाइपिंग से महंगे डिजाइन खर्च भी खत्म होंगे।

तकनीक का पूरा चक्र घूम गया है, जहां इसका उपयोग युद्ध की ट्रेनिंग से लेकर रणभूमि तक हो रहा है। इसके उपयोग में गेमिंग से लेकर वर्चुअल रिएलिटी के आधार पर ट्रेनिंग देना, लागत की बचत करना, संवर्धित वास्तविकता वाली तकनीक ईजाद करना और सूचनाओं की बेहतर परिकल्पना करना शामिल हैं। ऐसे में जीआईएस डाटा का उपयोग सी4आई के लिए करना, वर्चुअल वातावरण बनाना और कोट्स वीआर गेम इंजन का उपयोग महत्वपूर्ण है। ये एप्लीकेशंस रियल टाइम मिशन के लिए बेहद अहम हैं और इनका प्रयोग सटीक डाटा लेने तथा ट्रेनिंग एवं नियोजन में हो सकता है। उच्च उपयोग वाले ग्राफिक्स और हेड माउंटेड डिस्प्ले (एचएमडी), वीआर ग्लव्ज और वायरलेस वैंड्स आदि से प्रशिक्षण लेने वाले को असली रणभूमि का अनुभव मिलता है।

जरा कल्पना करें कि इस तरह से तकनीक प्रशिक्षण की प्रक्रिया में कितना परिवर्तन लाएगी और मिशन की सफलता का प्रतिशत कितना बढ़ जाएगा। यह परंपरागत प्रशिक्षण को काफी पीछे छोड़ देगी, जिसमें समय और धन की लागत भी अधिक आती है। सरकार इंडीजिनस डिजाइन डेवलपमेंट एंड मैनुफैक्चरिंग नाम से एक नई श्रेणी विकसित कर रही है। इसका मकसद घरेलू कंपनियों को रक्षा निर्माण में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करना है। ऐसे में नई तकनीकें अपनाने वाले डिफेंस स्टार्टअप्स के लिए अनेक अवसर हैं। मैं अपनी बात का समापन इस एक वाक्य से करना चाहता हूं-‘इस बाजार में आविष्कार की संभावनाएं अपार हैं।’

(लेखक विजएक्सपर्ट के संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं)

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