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कर्ज देने वाला ही लगा डूबने

उद्योगों को वित्त उपलब्ध कराने वाली संस्था यूपीएफसी की कई संपत्तियां हुईं कुर्क। भ्रष्टा चार से हाल-बेहाल
बदहालीः लखनऊ स्थित यूपीएफसी का क्षेत्रीय कार्यालय

योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बने भले ही छह महीने ही हुए हों, लेकिन उनकी सरकार के लिए छप्पन तरह की चुनौतियां पैदा हो गई हैं। सरकार को आए दिन विभिन्न क्षेत्रों में ढांचा एवं नीतिगत चुनौतियों से रू-ब-रू होना पड़ रहा है। जहां एक ओर प्रदेश में बिगड़ती कानून-व्यवस्था और चिकित्सा-स्वास्थ्य के मुद्दे पर योगी सरकार बैकफुट पर नजर आती है, वहीं प्रदेश में निवेश और रोजगार सृजन के बड़े-बड़े दावों की पोल भी खुलती दिखरही है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पूर्व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपना महत्वाकांक्षी संकल्पपत्र जारी किया था। इसमें उसने प्रदेश में पांच सालों में 70 लाख रोजगार एवं स्व-रोजगार के नए अवसर पैदा करने का वादा किया था। लेकिन यह कैसे होगा, इसका जवाब अभी तक नहीं मिला है। यह छोटे उद्योग-धंधों को बढ़ावा दिए बिना नामुमकिन है। यह काम उत्तर प्रदेश फाइनेंशियल कॉरपोरेशन (यूपीएफसी) के जरिए किया जा सकता है, लेकिन नए उद्योगों के वित्तपोषण का प्राथमिक दायित्व वहन करने वाली यह संस्था खुद मृत्युशैया पर है।

नवीन और छोटे उद्योगों को ‘सीड कैपिटल’ प्रदान करना तो दूर, यूपीएफसी खुद कर्ज के बोझ से दबा है। स्थिति की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि अभी हाल ही में डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (डीआरटी) ने कर्ज न चुका पाने के कारण कानपुर, वाराणसी और आगरा में उसकी कई संपत्तियां कुर्क कर लीं।

यूपीएफसी का यह हाल हमेशा से नहीं रहा है। आरंभिक दिनों में उसने कानपुर की प्रसिद्ध घड़ी डिटर्जेंट, मिंडा, फ्लेक्स को ऋण पोषित किया था। लेकिन आज उस पर अपनी प्राथमिक वित्त संस्था स्माल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (सिडबी) का मूल एवं ब्याज मिला कर 660 करोड़ रुपये से भी अधिक का ऋण बकाया है। वह इसको चुकाने की स्थिति में भी नहीं है। इसमें ब्याज का हिस्सा ही करीब 300 करोड़ रुपये है। यह संस्था की वास्तविक स्थिति बताती है।

वैसे कुर्की की कार्रवाई को यूपीएफसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अवैध बताया है। यही कारण है कि कुर्की के खिलाफ यूपीएफसी ने न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) में याचिका दायर कर दी है। अगर वहां से भी यूपीएफसी को राहत नहीं मिली तो कॉरपोरेशन हाई कोर्ट में गुहार लगाएगा।

यूपीएफसी के मुख्य प्रबंधक एवं सचिव सीएस बग्गा ने बताया कि डीआरटी ने जो संपत्तियां कुर्क की हैं वह सिडबी द्वारा कर्ज के विरुद्ध बंधक नहीं थीं, फिर भी ट्रिब्यूनल ने उनकी कुर्की का आदेश पारित किया। जिन मामलों में कुर्की हुई है, उनमें बंधक के रूप में आम तौर पर यूपीएफसी के देनदारों की संपत्तियां प्रस्तुत की गई थीं।

खराब तंत्र की भेंट चढ़ा यूपीएफसी

प्रदेश में छोटे और मझोले उद्योगों की शीर्ष संस्था इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) के कार्यकारी निदेशक डीएस वर्मा ने बताया कि यूपीएफसी का राज्य के उद्योगों के उत्थान में बड़ा योगदान रहा है, पर भ्रष्टाचार और कुप्रशासन के चलते वह खुद आखिरी सासें गिनता प्रतीत होता है। वर्मा कहते हैं, “भ्रष्टाचार के कारण, कई ऐसे व्यक्तियों को भी सहजता से ऋण मिल गया जो उद्योग चलाने के प्रति गंभीर नहीं थे। अब हालात ये हैं कि जो लोग अपना कर्ज चुकाना भी चाहते हैं, वह ब्याज समेत मूल धन को चुकाने में असमर्थ हैं, क्योंकि देनदारी की रकम बहुत बढ़ गई है। हमने यूपीएफसी से व्यावहारिक वन टाइम सेटलमेंट स्कीम लाने का आग्रह किया है, पर अभी तक कुछ हुआ नहीं है।” सेवानिवृत प्रांतीय प्रशासनिक सेवा (पीसीएस) अधिकारी और राजनेता बाबा हरदेव सिंह ने यूपीएफसी समेत राज्य के सभी सरकारी निगमों और फेडरेशन जैसी संस्थाओं को अफसरों की ऐशगाह करार दिया है। उनके मुताबिक, “ऐसी संस्थाओं में पैसे के लिए न तो सरकारी विभागों की जटिल बजट प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है और न ही ट्रेजरी में जाना पड़ता है। अफसर जैसा चाहें, वैसा करते हैं और इस कारण ही प्रदेश के ज्यादातर निगम और फेडरेशन का हाल बुरा है।”

तारीख पर तारीख

एक नवंबर 1954 को स्थापित यूपीएफसी का मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश में लघु एवं मध्यम स्तर की औद्योगिक इकाइयों को दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराना था। इस बाबत संस्था ने 31 मार्च 2009 तक 42,000 इकाइयों को करीब 32,238 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करते हुए कुल छह लाख नए रोजगार पैदा किए। लेकिन पिछले 10 साल में इस संस्था का पतन होता चला गया और 2007 से लगभग इसने किसी भी नए उद्योग को वित्तीय सहायता प्रदान नहीं की। इस समय यूपीएफसी जहां एक ओर कर्ज में डूबी हुई है, वहीं इसके खिलाफ या इसके द्वारा दायर अनगिनत मुकदमे जिले एवं उच्च न्यायालय में आज भी लंबित हैं।

ताजा आंकड़ों के अनुसार, यूपीएफसी के हाई कोर्ट में 68 करोड़ रुपये से संबंधित करीब 490 मुकदमे लंबित हैं। इसी तरह विभिन्न जिला न्यायालयों में 22 करोड़ रुपये की लेनदारी-देनदारी के मामलों के चलते 320 मुकदमे चल रहे हैं। इनमें से कई मुकदमे 30 या इससे भी अधिक साल से लंबित हैं। यह चिंताजनक स्थिति है।

निर्रथक रहे प्रयास

ऐसा नहीं है कि पूर्ववर्ती सरकारों ने यूपीएफसी को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास नहीं किए। 2009 में तत्कालीन मायावती सरकार में यूपीएफसी को पटरी पर लाने के लिए एकमुश्त 275 करोड़ रुपये की सहायता देने का प्रस्ताव रखा गया था। यह सिडबी के ऋण के वन टाइम सेटलमेंट के रूप में होता और संस्था पूरी तरह से कर्जमुक्त होकर अपने मूल स्वरूप में लौट आती। पर ऐसा कुछ हो नहीं सका। इसके बाद अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान 2013 में यूपीएफसी बोर्ड ने एक बार फिर से 275 करोड़ रुपये के वन टाइम सेटलमेंट का प्रस्ताव पारित किया। इस बोर्ड में राज्य सरकार के अलावा सिडबी का प्रतिनिधित्व भी रहता है।

दरअसल राज्य सरकार की योजना थी कि यूपीएफसी की फैजाबाद और मुरादाबाद की कुछ संपत्तियों को बेच कर धन जुटा लिया जाए, लेकिन अंत में परिणाम शून्य ही रहा और यूपीएफसी का रसातल की ओर बढ़ने का क्रम जारी रहा। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी अपनी एक रिपोर्ट में यूपीएफसी के कार्यकलापों और वहां व्याप्त अनियमितताओं पर तल्ख टिप्पणी की थी। ऐसा होना लाजिमी भी था। कई मामलों में यूपीएफसी ने दिवालिया बकायेदारों की बंधक संपत्ति तक का अधिग्रहण करने में कोताही और देरी की। इसके लिए धन की कमी का रोना रो दिया गया।

 

दर्जनभर कार्यालय, सैकड़ों कर्मचारी

इस समय यूपीएफसी के एक दर्जन कार्यालय हैं। ये आगरा, इलाहबाद, अलीगढ़, बरेली, गाजियाबाद, गोरखपुर, झांसी, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, नोएडा और वाराणसी में हैं। इसके अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या करीब 350 के आसपास है। 2013 में जब यूपीएफसी की संपत्तियों का आकलन किया गया तो इसकी कुल अचल संपत्तियां 200-225 करोड़ रुपये की आंकी गई थी। इसके अलावा 400-500 करोड़ रुपये के कर्ज की वसूली भी बाकी थी।

अब केंद्र की नोडल एजेंसी

ऐसा नहीं है कि यूपीएफसी के पास इस समय कोई काम नहीं है। इस समय खाड़ी देशों में नौकरी की तलाश में जाने वालों के लिए केंद्र सरकार ने यूपीएफसी को राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी के रूप में मान्यता दी हुई है। उसका कार्य ऐसे लोगों का सत्यापन करके उनको वैधानिक तौर पर बाहर के देशों में रोजगार के लिए जाना सुनिश्चित करना है। यूपीएफसी अब तक सौ-डेढ़ सौ लोगों का पंजीकरण कर उन्हें विदेश भेज चुका है।

नई सरकार भी पुराने ढर्रे पर

अब जर्जर हो चुके यूपीएफसी के उत्थान के लिए योगी सरकार को प्रबल इच्छाशक्ति दिखानी पड़ेगी। नई प्रदेश सरकार ने नए उद्योग-धंधों को बढ़ावा देने के लिए एक हजार करोड़ रुपये के कोष बनाने की घोषणा कर दी है, जिसको सिडबी के सहयोग से ही संचालित किया जाएगा। लेकिन अभी तक योगी सरकार के किसी भी मंत्री ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है। योगी सरकार ने अपनी नई औद्योगिक निवेश नीति  की घोषणा तो कर दी है लेकिन अभी तक इस बारे में शासनादेश तक जारी नहीं किए हैं। यानी सरकार भले नई हो, काम उसी पुराने ढर्रे पर चल रहा है।

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