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समीकरणों की साज-संभाल

मोदी मंत्रिमंडल के फेरबदल के कई सियासी फलक मगर सवाल बरकरार कि यह कितना कारगर
नया दिखने की कवायदः मंत्रिमंडल में नए और ‘सक्षम’ चेहरों के साथ राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री

कभी भी किसी सरकार की चुनौतियां कम नहीं होतीं। और फिर बदलाव और सुशासन के वादों से विशाल बहुमत के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार के लिए तो यह वाकई बड़ी होंगी। यहीं क्यों, जब अगले आम चुनावों के लिए मिशन 350 का बेहद साहसिक लक्ष्य हो तो कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जा सकती। फिर हालात कुछ ऐसे हों कि विरोधियों की ही नहीं, अपनों की आलोचनाएं और आशंकाएं भी सामने हों तो समीकरणों को साधना बड़ी कवायद बन जाती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अपने मंत्रिमंडल में तीसरे फेरबदल को इसी पैमाने पर आंका जाना चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि चुनौतियों से निबटने के गुर मोदी और उनके सिपहसालार भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हर मौके पर ऐसे दिखाए हैं कि विरोधी भी हैरान रह गए। लेकिन चुनावी अग्निपरीक्षा की घड़ी ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है, मोदी-शाह की जोड़ी के गुर की परीक्षा भी कड़ी होती जा रही है। मौजूदा फेरबदल में छह मंत्रियों को बाहर करके नौ नयों को मौका दिया गया, चार राज्यमंत्रियों को कैबिनेट का दर्जा दिया गया, 32 मंत्रियों के विभाग बदले गए।

यानी वाकई यह विस्तार बड़े समीकरणों को साधने की कवायद कहा जा सकता है। यह अलग बात है कि सहयोगी दलों को इस बार छोड़कर एक और संभावित बदलाव की गुंजाइश छोड़ दी गई है। अब आइए देखते हैं कि इतनी बड़ी कवायद कैसे अंजाम दी गई, कैसे-कैसे समीकरण साधे गए और इससे क्या हासिल होने की उम्मीद की जा सकती है।

पहले तो यही जिक्र कि अपनी मर्जी के चौंकाने वाले फैसलों के लिए चर्चित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाणिज्य राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) निर्मला सीतारमण को देश की सीमाओं की सुरक्षा की कमान सौंपकर एक बार फिर न सिर्फ बाहर बल्कि अंदर के लोगों को भी चौंका दिया। पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर को गोवा का मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही वित्त मंत्री अरुण जेटली रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त दायित्व संभाल रहे थे।

मोदी ने सीतारमण को सिर्फ दूसरी महिला रक्षा मंत्री होने का गौरव ही प्रदान नहीं किया, बल्कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अर्थशास्‍त्र की स्नातकोत्तर भाजपा की इस अपेक्षाकृत नई नेता को विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ देश के सुरक्षा मामलों पर मंत्रिमंडल की अत्यंत महत्वपूर्ण समिति की दूसरी महिला सदस्य होने का मान-सम्मान भी दे दिया है। हालांकि भाजपा के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि प्रधानमंत्री ने तो उन्हें सरकार से बाहर करने का फैसला कर लिया था। उनसे इस्तीफा भी ले लिया गया था लेकिन आरएसएस और भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं के दबाव में उनका मंत्री पद बचा।

मोदी मंत्रिमंडल की एक अन्य प्रमुख सदस्य स्मृति ईरानी को भी पदोन्नत कर उनके साथ अतिरिक्त प्रभार के रूप में जुड़े सूचना-प्रसारण मंत्रालय को पूर्णकालिक तौर पर उनके नाम कर दिया गया। वे कपड़ा मंत्री भी बनी रहेंगी। मंत्रिमंडल में महिला सदस्यों की संख्या छह कैबिनेट मंत्री और तीन राज्यमंत्रियों की हो गई है। फिर भी, महिला सशक्तिकरण और संसद तथा विधायिकाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण की वकालत करने वाली सरकार के फेरबदल के बाद 76 मंत्रियों में महिलाओं की संख्या महज नौ ही हो पाई है।

कहने को तो यह फेरबदल प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के “न्यू इंडिया” के लक्ष्य और 2019 के लोकसभा चुनाव तथा उससे पहले होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया। इसमें मंत्रियों और नेताओं की प्रतिभा, कार्यक्षमता और संगठन तथा सरकार के कामकाज में उनके योगदान को आधार माना गया लेकिन सही मायने में इस पूरी कवायद में मोदी और अमित शाह की मनमर्जी और उनकी राजनैतिक आवश्यकताओं को ही तरजीह दी गई दिखती है। हालांकि कुछ मामलों में मोदी और शाह की मर्जी पर संघ और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का दबाव भी भारी पड़ गया।

भाजपा सूत्रों के अनुसार मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन से एक दो दिन पहले पार्टी के अंदर काफी राजनैतिक उठापटक हुई। यह भी एक कारण था कि पुनर्गठन की तिथि एक दिन आगे बढ़ाई गई। बताते हैं कि मोदी-शाह की जोड़ी सरकार से बाहर किए गए छह मंत्रियों के साथ ही निर्मला सीतारमण, उमा भारती, जयंत सिन्हा, गिरिराज सिंह और सुदर्शन भगत को भी हटाना चाहती थी। राजनाथ सिंह का विभाग बदले जाने की भी बात थी। सुषमा स्वराज रक्षा मंत्री बनने की इच्छुक थीं लेकिन संघ और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के दबाव के कारण ऐसा नहीं हो सका। अमित शाह ने तो उमा भारती का इस्तीफा भी ले लिया था। अंतिम समय पर संघ के शिखर नेतृत्व के हस्तक्षेप से उनका मंत्री पद बच तो गया, लेकिन उनके पास अब केवल पेय जल और स्वच्छता का जिम्मा ही रह गया है। इन सूत्रों के अनुसार झांसी में बागी तेवर अपना चुकीं भगवावेशधारी उमा के दबाव पर संघ नेतृत्व ने वृंदावन में चल रही उच्चस्तरीय बैठक में शामिल अमित शाह को समझाया कि उमा को मंत्रिमंडल से बाहर रखना भविष्य की योजनाओं के मद्देनजर उचित नहीं रहेगा। हालांकि मंत्रिमंडल में हैसियत घटाए जाने के विरोध में शपथग्रहण समारोह का बहिष्कार कर उमा भारती ने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं।

फिर, पुनर्गठन में अपने विभागों में छेड़छाड़ को भांपकर राजनाथ सिंह, सुषमा, अरुण जेटली और नितिन गडकरी जैसे वरिष्ठ मंत्रियों ने बैठक कर विभागों में किसी तरह का हेरफेर नहीं किए जाने का दबाव बनाया तो उनकी यथास्थिति बनी रही। इसमें भी संघ की भूमिका निर्णायक रही। भाजपा के भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार राजनाथ ने साफ कह दिया था कि अगर उनका विभाग बदलने की बात हुई तो वे संगठन का काम करना पसंद करेंगे। सुषमा के रक्षा मंत्री बनने की राह में जेटली रोड़ा बन गए।भाजपा सूत्रों के अनुसार संघ के दबाव की काट के लिए मोदी ने चार पूर्व नौकरशाहों-आर.के. सिंह,  सत्यपाल सिंह, हरदीप सिंह पुरी और के.जे. अल्फोंस को अंतिम समय पर मंत्री बनाने का फैसला किया। उन्हें शनिवार की रात को ही मंत्री बनाए जाने की सूचना दी गई। सिंह और अल्फोंस को मंत्री बनाकर मोदी ने संघ को भी अलग तरह का संदेश देने की कोशिश की है।

पूर्व नौकरशाह सिंह अक्टूबर 1990 में समस्तीपुर में जिलाधिकारी रहते भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को उनकी रथ यात्रा के दौरान गिरफ्तार करने और फिर जनवरी 2013 में केंद्र सरकार में गृह सचिव रहते अपने एक बयान के लिए चर्चित हुए थे। उन्होंने कहा था कि मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस में हुए आतंकी धमाकों में आरएसएस के दस लोगों के शामिल होने के पुख्ता प्रमाण हैं।

डीडीए में ‘डिमोलिशन मैन’ के नाम से चर्चित रहे अल्फोंस केरल में माकपा समर्थित निर्दलीय विधायक रह चुके हैं। मंत्री बनने के अगले दिन उन्होंने कहा, ‘‘मोदी सरकार समावेशी है। उसे केरल और गोवा जैसे राज्यों में लोगों के गोमांस खाने से किसी तरह की समस्या नहीं होगी।" उन्होंने केरल में भाजपा और ईसाइयों के बीच सेतु बनने की बात भी कही है।

कई मामलों में तो मंत्रिपरिषद से बाहर किए गए मंत्रियों की भरपाई उनके जातिगत विकल्पों से की गई है। मसलन, बिहार से राजीव प्रताप रूडी की जगह उनके सजातीय, राजकुमार सिंह को स्वतंत्र प्रभार के साथ ऊर्जा राज्यमंत्री बनाया गया। उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के कटु विरोधी अश्विनी चौबे को स्वास्थ्य और कल्याण राज्यमंत्री बनाया गया है।

उत्तर प्रदेश में 75 साल की उम्र सीमा पार कर चुके कलराज मिश्र और प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बने महेंद्रनाथ पांडेय के इस्तीफे की भरपाई की गरज से गोरखपुर के राज्यसभा सदस्य शिवप्रताप शुक्ल को वित्त राज्यमंत्री बनाया गया है। शुक्ल और गोरखपुर से ही राज्य के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के बीच राजनैतिक अनबन के मद्देनजर माना जा रहा है कि शुक्ल के जरिए आदित्यनाथ पर एक तरह का अंकुश लगाने की कोशिश हो सकती है। उत्तर प्रदेश से एक और राज्यमंत्री संजीव कुमार बालियान की जगह उनके ही सजातीय, मुंबई के पुलिस आयुक्त रहे सत्यपाल सिंह को मानव संसाधन, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्यमंत्री बनाया गया है।

इसी तरह से राजस्थान के अजमेर से सांसद सांवरलाल जाट के निधन से रिक्त पद की भरपाई जोधपुर के राजपूत सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को कृषि और किसान कल्याण राज्यमंत्री बनाकर की गई है। राज्य से एक और राजपूत, पूर्व ओलंपियन राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को प्रोन्नत कर सूचना-प्रसारण राज्यमंत्री के साथ ही स्वतंत्र प्रभार के साथ खेलकूद मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया है।

मध्यप्रदेश से आदिवासी फग्गन सिंह कुलस्ते का इस्तीफा लेकर उनकी जगह टीकमगढ़ से छह बार से लोकसभा सदस्य चुने जाते रहे दलित समाज के वीरेंद्र कुमार खटिक को महिला तथा बाल कल्याण और अल्पसंख्यक मामलों का राज्यमंत्री बनाया गया। कर्नाटक में उत्तरी कन्नड से सांसद अनंत हेगड़े को कौशल विकास और उद्यमिता राज्यमंत्री बनाकर विधानसभा के अगले चुनाव को ध्यान में रखा गया है। हेगड़े अपनी आक्रामकता के लिए चर्चित रहे हैं।

मंत्रिपरिषद के तीसरे फेरबदल के बाद मोदी की मंत्रिपरिषद में सदस्यों की संख्या 76 हो गई है जिसमें 27 कैबिनेट, 11 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 36 राज्यमंत्री शामिल हैं। इसके बावजूद अभी भाजपा के सहयोगी तथा एनडीए के कई घटक दल सरकार में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाने से मुंह फुलाए बैठे हैं। एनडीए में भाजपा के सबसे पुराने सहयोगी शिवसेना ने तो अपने एकमात्र मंत्री अनंत गीते के साथ शपथग्रहण समारोह का बहिष्कार कर विरोध भी जता दिया है। जदयू और अन्नाद्रमुक जैसे नए सहयोगी दल भी मंत्रिपरिषद में अपना उचित हिस्सा चाहेंगे। नियमतः अभी पांच मंत्री और बनाए जा सकते हैं। अगर सहयोगी दलों को सरकार में हिस्सेदारी देनी है तो इसके लिए एक और फेरबदल करना होगा।   

आधिकारिक तौर पर तो यही कहा जा रहा है कि निर्मला सीतारमण के साथ ही स्वतंत्र प्रभार वाले तीन अन्य राज्यमंत्रियों पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान और मुख्तार अब्बास नकवी को भी उनके बेहतर कामकाज के आधार पर प्रोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया गया। पीयूष गोयल को गांव-गांव तक बिजली पहुंचाने और धर्मेंद्र प्रधान को घर-घर रसोई गैस पहुंचाने की प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी उज्‍ज्वला योजना पर बेहतर अमल का पुरस्कार मिला। मुख्तार अब्बास नकवी को संगठन और सरकार की बात ढंग से रखने तथा संसद में विपक्षी दलों के साथ अच्छा तालमेल बनाए रखने का लाभ मिला। वे अब कैबिनेट मंत्री के रूप में अल्पसंख्यक मुसलमानों का चेहरा होंगे। उन्हें अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया है।

नौकरशाही में अनुभवों का लाभ लेने की गरज से चार पूर्व नौकरशाहों को भी मंत्री बनाया गया। लेकिन उन्हें ऐसे विभाग दिए गए जो उनके अनुभव क्षमता से मेल नहीं खाते। पूर्व राजनयिक हरदीप सिंह पुरी को शहरी विकास और आवास विभाग मिला जबकि दिल्ली में डीडीए के चर्चित अधिकारी रह चुके अल्फोंस को पर्यटन, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और गृह मंत्रालय से जुड़े रहे पूर्व नौकरशाह सिंह को ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा (स्वतंत्र प्रभार) राज्यमंत्री बनाया गया। 

प्रधानमंत्री और अमित शाह की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरने वाले रेल मंत्री सुरेश प्रभु, उमा भारती,  एसएस अहलूवालिया और विजय गोयल की सरकार में हैसियत घटा दी गई। रेल भाड़े में तरह-तरह की वृद्धियों और रेल दुर्घटनाओं के लिए ही चर्चित होते रहे प्रभु से रेल मंत्रालय लेकर स्वतंत्र प्रभार वाले ऊर्जा राज्यमंत्री पीयूष गोयल को रेल मंत्री बना दिया गया। गोयल कोयला मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभालते रहेंगे। सुरेश प्रभु अब वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का जिम्मा संभालेंगे। इसी तरह से उमा भारती से जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्रालय लेकर सड़क परिवहन, राजमार्ग, जहाजरानी और नदी विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे संघ के प्रिय नितिन गडकरी के साथ नत्थी कर दिया गया।

मंत्रिपरिषद में कद और पद तो विजय गोयल और महेश शर्मा का भी घटा है। गोयल से खेलकूद मंत्रालय का प्रभार लेकर सूचना-प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को तथा शर्मा से पर्यटन मंत्रालय लेकर अल्फोंस को दे दिया गया। बात तो बड़बोले और अकसर अपने विवादित बयानों के कारण चर्चा में रहने वाले गिरिराज सिंह को भी सरकार से बाहर करने की होती रही लेकिन बिहार में दबंग भूमिहारों की उपेक्षा भारी पड़ने की वजह से उन्हें कुटीर, मध्यम एवं लघु उद्यम मंत्रालय का राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बना दिया गया।    

मोदी मंत्रिपरिषद में यह फेरबदल ऐसे समय किया गया है जब 17वीं लोकसभा के चुनाव में बस डेढ़ साल का समय शेष रह गया है। लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही कराए जाने की चर्चाओं के बीच में 2018 में होने वाले कई राज्य विधानसभाओं के साथ ही 2019 में तय लोकसभा चुनाव और कुछ राज्य विधानसभाओं के चुनाव भी करा लिए जाने की बातें जोर मारती रहती हैं। इस लिहाज से देखें तो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव में जीतना भाजपा के लिए चुनौती हो सकती है।

अर्थव्यवस्‍था खस्ताहाल है। रोजगार सृजन नहीं हो रहे हैं। इसके अलावा कई राज्यों में बदलते सामाजिक समीकरण भी अनुकूल नहीं दिख रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, दादरा नगर हवेली, दमन दीव, और गोवा की 324 लोकसभा सीटों में से 288 पर एनडीए और 257 पर अकेले भाजपा के नेता चुनाव जीते थे। निजी और अनौपचारिक बातचीत में भाजपा और संघ के कई बड़े नेता भी मानते हैं कि इन राज्यों में पार्टी को काफी सीटें गंवानी पड़ सकती हैं।

बहरहाल, मोदी मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन के बाद अब अमित शाह की भाजपा टीम में भी भारी फेरबदल किए जाने की संभावना बताई जा रही है। लेकिन क्या सिर्फ सरकार और संगठन में कुछ पैबंद लगाने भर से भाजपा की चुनावी नैया पार हो सकेगी या फिर पिछले लोकसभा चुनाव के समय किए गए वायदों को ‘चुनावी जुमलों’ के मुहावरे से बाहर निकालकर सतह पर भी कुछ काम होंगे? भाजपा का आम कार्यकर्ता कुछ इसी तरह के सवाल कर रहा है।       

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