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दान की जमीन पर हाथ साफ करने के दांव

बृजमोहन अग्रवाल ने सरकार को दान में दी गई जमीन पत्नी और पुत्र के नाम पर खरीदी, मामला सामने आने पर गरमाई राजनीति
बढ़ने लगी खटासः मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल

छत्तीसगढ़ में नेता जमीन के फेर में फंसते जा रहे हैं। फिलवक्‍त, भाजपा के कद्दावर नेता और राज्य के कृषि व जल संसाधन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल निशाने पर हैं। सरकार को दी गई दान की जमीन को बृजमोहन द्वारा पत्नी और पुत्र के नाम खरीदने का मामला सामने आने के बाद राज्य की राजनीति में भूचाल आ गया है। इस मामले को रफा-दफा करने के बजाय मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जिस तरह पूरी रिपोर्ट पार्टी आलाकमान को भेज दी उससे साफ नजर आने लगा है कि दोनों के बीच तलवारें खिंच गई हैं और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता खुलकर सामने आती दिखाई पड़ रही है। छत्तीसगढ़ में 13 साल के भाजपा शासनकाल में पहली बार सरकार के भीतर ऐसी तल्खी दिखाई दे रही है।

छत्तीसगढ़ में सरकारी या फिर आदिवासियों-किसानों की जमीन पर कब्जे के आरोप में घिरने वाले मंत्री-नेताओं में बृजमोहन अग्रवाल पहले नहीं हैं। विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल, नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल और पंचायत मंत्री अजय चंद्राकर, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव पर भी ऐसे ही आरोप हैं। कुछ मामलों में एफआइआर दर्ज हो गई है, तो कुछ पर अदालती कार्रवाई चल रही है।

बृजमोहन की तेजतर्रार कार्यशैली और जनता पर पकड़ मजबूत होने के कारण उनके विरोधियों को हमले और पटखनी देने का अच्छा मौका मिल गया। इस वजह से जब बृजमोहन पर सरकार को दी गई दान की जमीन खरीदने का आरोप लगा तो दूसरों की तुलना में ज्यादा तूल दिया गया। इस मामले के उजागर होने के दो दिन पहले ही बृजमोहन ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अपने खिलाफ दर्ज चुनाव याचिका में जीत हासिल की थी। बृजमोहन पर भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने के लिए कांग्रेस राज्य आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो पहुंच गई और इस्तीफे की भी मांग कर दी।

वहीं पूरे प्रकरण से हाईकमान को अवगत कराने और जांच मुख्य सचिव से कराए जाने के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बयान से मामला और गरमा गया।

सरकारी जांच समिति ने फटाफट जांच कर बृजमोहन के परिजनों के नाम 2009 में हुई रजिस्ट्री शून्य करने की सिफारिश के साथ मुख्य सचिव को रिपोर्ट सौंप दी। महासमुंद के कलेक्टर हिमशिखर गुप्ता ने आउटलुक को बताया कि समिति ने प्रारंभिक जांच में पाया कि दान की हुई जमीन सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो पाई थी, इस कारण 2009 में उसकी बिक्री और रजिस्ट्री हो गई। इस रजिस्ट्री को शून्य कराने के लिए सिंचाई और वन विभाग सिविल कोर्ट जाएंगे। इसके बाद राजस्व कोर्ट में जाकर सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज करने की कार्यवाही की जाएगी।

ऐसे खरीदी गई दान वाली जमीन

महासमुंद जिले के जलकी गांव के किसान विष्णु साहू ने 1994 में सिंचाई विभाग को बांध बनाने के एवज में जमीन दान में दी थी। बाद में यह जमीन वन विभाग को दे दी गई। 1994 में महासमुंद रायपुर जिले की एक तहसील थी और छत्तीसगढ़ भी नहीं बना था। विष्णु साहू कोई बड़ा किसान नहीं है। उसके पास तब केवल साढ़े 12 एकड़ ही जमीन थी।

इनमें से 10 एकड़ यानी 4.12 हेक्टेयर दान में दे दी, लेकिन यह जमीन सरकारी रिकार्ड में दर्ज नहीं हुई। ऐसे में विष्णु साहू ही जमीन का मालिक बना रहा। बताया जाता है कि अधिकारियों ने तब जमीन के बदले विष्णु साहू को पचास हजार रुपये मुआवजा और उनके दो बेटे को नौकरी का आश्वासन दिया था। लेकिन अफसरों ने आश्वासन पूरा नहीं किया। आर्थिक तंगी से गुजरते किसान ने 2009 में नौ हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से बृजमोहन के परिजनों को जमीन बेच दी। जलकी बहुत छोटा-सा गांव है। इतना छोटा कि वह एक पंचायत भी नहीं है, लेकिन सिरपुर के करीब होने से बृजमोहन के परिजनों ने जमीन खरीद ली। 

 

पुरातात्विक महत्व है सिरपुर का

छत्तीसगढ़ सरकार सिरपुर को विश्व पर्यटन के नक्शे में लाने की कोशिश में है। यहां कई प्राचीन बौद्ध स्तूप और स्मारकों के अलावा खुदाई में कई पुरातात्विक चीजें मिल रही हैं। कहा जाता है कि यहां कभी गौतम बुद्ध ठहरे थे। इस वजह से जापान, थाईलैंड और बुद्धिस्ट देशों के पर्यटक यहां आते हैं। यहां का शिव मंदिर भी खासा प्रसिद्ध है। बृजमोहन के परिजनों ने सिरपुर के पास एक रिसॉर्ट बनाया है। इस रिसॉर्ट के भीतर ही विष्णु साहू के दान की जमीन है।

प्रधानमंत्री से शिकायत

महासमुंद के किसान नेता ललित चंद्रनाहू ने दो साल पहले विष्णु साहू द्वारा दान की जमीन सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज न होने और बृजमोहन की पत्नी और पुत्र के नाम रजिस्ट्री हो जाने की शिकायत कमिश्नर और कलेक्टर से की। प्रधानमंत्री कार्यालय को भी पत्र लिखा। प्रधानमंत्री कार्यालय के संज्ञान के बाद मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने मुख्य सचिव को तलब कर पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा। बृजमोहन अग्रवाल का कहना है कि हमारी ओर से कोई गलती नहीं हुई है। नियमानुसार ही  किसान से जमीन खरीदी गई।

दूसरों के दामन भी साफ नहीं

कहा जा रहा है कि बृजमोहन से जुड़ा मामला न होता तो इतना बवाल नहीं मचता। बीजेपी नेता ननकीराम कंवर जब रमन सिंह कैबिनेट में थे तब उनके पुत्र ने जांजगीर-चांपा जिले में एक निजी कंपनी की फैक्टरी के लिए आदिवासियों की जमीन खरीदने का काम किया था। विवादों में आने के बाद वहां के तत्कालीन कलेक्टर बृजेश मिश्रा ने आदिवासियों की जमीन की रजिस्ट्री शून्य की थी।

विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने पिता नरसिंह अग्रवाल के नाम से ट्रस्ट बनाकर रायपुर नगर निगम की जमीन पर मंदिर बनवा लिया। कुछ लोग इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कुछ दुकानें तोड़ी गईं। मंदिर यथावत है। आम लोगों ने मंदिर को हटाने का विरोध किया तो कार्रवाई रुक गई।

नगरीय प्रशासन मंत्री अमर अग्रवाल पर भी बिलासपुर के भदोरा और आसपास के गांवों में उनके परिजनों द्वारा आदिवासियों की जमीन खरीदने का आरोप लगा। पंचायत व ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर पर आय से अधिक संपत्ति का मामला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चल रहा है। इनके खिलाफ सीलिंग की जमीन में अदला-बदली की शिकायत भी की गई है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के खिलाफ भिलाई साडा की जमीन गलत तरीके से अपने परिजनों के नाम पर लेने के मामले में राज्य आर्थिक अपराध ब्यूरो में एफआइआर दर्ज हो चुकी है। नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव पर बांध की जमीन का उपयोग बदलकर कालोनी के लिए निजी व्यक्ति को देने का आरोप है। कहा जाता है कि सरगुजा रियासत के समय सिंहदेव के पूर्वजों ने बांध के लिए 27 एकड़ जमीन दी थी। इनमें से पांच एकड़ में तालाब है। बाकी खाली होने के कारण वर्षों पहले एक कलेक्टर ने 22 एकड़ जमीन का लैंड यूज बदल दिया, जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार ऐसा नहीं किया जा सकता।

दोनों ही पार्टियों के दिग्गज नेताओं पर जिस तरह आरोप लग रहे हैं, उससे लग रहा है कि 2018 का विधानसभा चुनाव राज्य में रोचक होगा।

तय है पलटवार

डॉ. रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल के बीच भले ही राजनीतिक रिश्ते कटुता के हों, लेकिन दोनों में पारिवारिक रिश्ते अच्छे कहे जाते हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि डॉ. रमन सिंह सहयोगी के नाते बृजमोहन के हर व्यक्तिगत और पारिवारिक कार्यक्रम में जाते हैं। बृजमोहन और राजस्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय खुलकर डॉ. रमन सिंह का विरोध करते हैं।

पहले बृजमोहन अग्रवाल, प्रेमप्रकाश पांडेय और अजय चंद्राकर की तिकड़ी थी। आजकल अजय चंद्राकर ने इनसे दूरी बनाकर सौदान सिंह को साध लिया है। बृजमोहन को अब तो दान वाली सरकारी जमीन छोड़नी पड़ेगी, क्योंकि सरकार की समिति ने बृजमोहन के परिजनों के नाम रजिस्ट्री शून्य करने की सिफारिश कर दी है।

माना जा रहा है कि बृजमोहन अब आक्रामक तरीके से विरोधियों पर वार करेंगे। उन्होंने साफ कर दिया है कि उनके विरोधी उनकी जमीन के और कई ऐसे गलत मामले सामने लाएंगे। उनके खिलाफ षड्यंत्र करेंगे। ऐसे में तय है कि आने वाले दिनों में छत्तीसगढ़ भाजपा में विवाद बढ़ेंगे। वैसे भी पिछले दिनों पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय ने छत्तीसगढ़ का अगला विधानसभा चुनाव नरेन्द्र मोदी के नाम से लड़ने का बयान देकर छत्तीसगढ़ भाजपा की राजनीति की फिजां ही बदल दी।

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