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18 या 28, सबमें समभाव

नरम-गरम
जीएसटी रहस्य

नरम-गरम

18 या 28, सबमें समभाव

आलोक पुराणिक

गीता ही वह ग्रंथ है, जो राह दिखाता है। जीएसटी विकट विषय है, जटिल, इसे समझने के लिए गीता का सहारा लिया जाए।

यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति। शुभाशुभपरित्यागी भक्त‌िमान्य: स मे प्रिय:

जीएसटी भावार्थ:

जो न कभी हर्षित होता है, न द्वेष करता है, न शोक करता है, न कामना करता है, वही पूर्ण है। पांच प्रतिशत के कम जीएसटी पर हर्षित न होने वाला और 28 प्रतिशत से ज्यादा जीएसटी पर शोक न दिखाता, जो सब समभाव से लेता है, ऐसा व्यक्त‌ि ही पूर्ण होता है।

क्या शोक करना कि तुम्हारे डिओ पर 28 परसेंट जीएसटी लगा दिया गया। शोक व्यर्थ है। डिओ पर खर्च न करोगे, तो कहीं और खर्च हो जाएगा। कहीं और खर्च न करोगे, तो कहीं और हो जाएगा। इसलिए जो खर्च जहां हो जाए, समभाव से लो।

न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत। कार्यते ह्यवश: कर्म सर्व: प्रकृतिजैर्गुणै

जीएसटी भावार्थ:

नि:संदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में क्षणमात्र भी बिना कर्म किए नहीं रहता क्योंकि सारा मनुष्य समुदाय प्रकृति-जनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है। मनुष्य कर्म ही इसलिए करता है कि सरकार उस पर टैक्स लगा सके। हर कर्म पर कर लगे ऐसी ही सरकारों की इच्छा होती है। जीएसटी के तहत ऐसा ही करने का प्रयास किया गया है। हर कर्म पर टैक्स लगाकर हर जातक को यह बताने की कोशिश की गई है कि टैक्स भी हर जगह वैसे ही मौजूद है, जैसे परम पिता। कोई शराब पिएगा, तो उसमें टैक्स है। शराब पीकर ब्लड प्रेशर हो जाएगा और ब्लड प्रेशर की दवा खाएगा तो उसमें भी टैक्स है।

टैक्समय मैं सब जग जानी..। कोई मिठाई खाएगा, उस पर टैक्स है। मिठाई खाकर शुगर हो जाए, इंसुलीन लेनी पड़े, तो उस पर भी टैक्स है। टैक्स और परम पिता से मुक्त कुछ भी नहीं है।

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्त‌ि तत्वत:। सोऽविक्सपेन योगेन युज्यते नात्र संशय:

जीएसटी-भावार्थ

जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्यरूप तत्व को जानता है, वह ज्ञान से युक्त हो जाता है, इसमें संशय नहीं है। अर्थात जो भी इस सत्य को पहचान लेता है कि सरकार यानी टैक्स लेने की शक्त‌ि। पहले इंटरटेनमेंट टैक्स राज्य सरकार को देते थे, अब जीएसटी के तौर पर लिया जाएगा। करों से मुक्त‌ि नहीं है, नाम बदल जाते हैं। कर एक चोला त्याग कर दूसरा पकड़ लेता है, वैसे उत्पाद शुल्क ने एक चोला त्याग कर दूसरा चोला ग्रहण कर लिया, जीएसटी। पर इससे ऐसा नहीं होता कि तेरी जेब से रकम नहीं जाएगी। तेरी जेब से रकम जाएगी, हर हाल में जाएगी। राज्य को न जाएगी, तो केंद्र को जाएगी। जो इस सत्य को समझ लेता है, वह किसी भी संशय से मुक्त हो जाता है। इसलिए ऐसे सवाल न कर कि क्या सस्ता होगा, क्या महंगा होगा। हे तात, जो अभी सस्ता है वह अगले ही बजट में महंगा हो लेगा। कम भुगतान करना पड़ेगा, ऐसी सोच भ्रम है। सत्य यही है कि तेरी जेब में जो भी कुछ है, वह देर-सबेर जेब से बाहर जाना ही है। इसलिए जो रकम बची रह गई है जेब में, उसकी खुशी न मना और जो रकम चली गई है जेब से, उसका दुख मत कर।

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