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जयदेव ने की साहित्य की जय

साहित्यिक रचनाओं को रेकॉर्ड कर जयदेव ने साहित्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है
जयदेव

जयदेव का फिल्म-संगीत जितना स्तरीय है, उतना ही स्तरीय है उनका गैर फिल्मी संगीत। साहित्यिक कृतियों को संगीतबद्ध करने वाले संगीतकार कम ही रहे हैं। जितने लोगों ने यह काम किया है उन सभी में जयदेव का नाम सबसे ऊपर रहेगा। साहित्य के क्षेत्र में यह उनका अमूल्य योगदान है। हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला को मन्ना डे से गवाने वाले जयदेव ही थे। उनके द्वारा संगीतबद्ध मधुशाला का वह कैसेट आज भी श्रोताओं के बीच बेहद लोकप्रिय है। मधुशाला में शराबखाने की लज्जत और मधुशाला जाने वालों के फलसफे को बहुत ही जीवंत और काव्यात्मक धुनों में जयदेव ने ढाला था। छायावादी कवियों की छंद, लययुक्त खूबसूरत उपमाओं वाली रचनाओं को उतने ही खूबसूरत तर्ज में जयदेव ने बांधा। जयशंकर प्रसाद की 'तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन’ को आशा से उन्होंने इतने सुंदर तरीके से गवाया कि तारीफ के शब्द नहीं मिलते। आशा ने इस रचना को एच.एम.वी द्वारा रिलीज माइ फेवरिट्स कैसेट में शामिल किया है। इस कैसेट में आशा भोंसले की पसंद के गीत हैं। महादेवी वर्मा की 'कैसे उनको पाऊं आली’ और अन्य रचनाओं को भी आशा के स्वर में अमर बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। मीरा की 'आली रे मेरे नैना’, 'कैसी लगन’, 'फागुन के दिन’ और 'बना ले नंदलाला’, गालिब की गजलें 'कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाए है मुझसे’ (जिनकी आलापयुक्त कुछ-कुछ अरबी शैली में बेहद लोच-भरी धुन जयदेव ने बनाई थी) और 'शौक हर रंग रकीब’, जिगर का कलाम 'कभी शाख-ओ-सब्ज-ओ-बाग’, फानी बदायूंनी का 'कारवां गुजरा किया’, नरेंद्र शर्मा का 'जो समर में हो गए अमर’, महादेवी वर्मा रचित 'जो तुम आ जाते एक बार’, 'मुखर पिक हौले बोल’, 'मोरे नैना जागे सारी रैना’ (जो अप्रदर्शित फिल्म फुटपाथ के लिए मूलत: रेकॉर्ड हुआ था), 'मधुर मधुर मेरे दीपक’, महादेवी वर्मा का ही रचित 'तुम सो जाओ मैं गाऊं’, 'महलों में आई’ (यह भी पहले फुटपाथ के लिए ही रेकॉर्ड किया गया था) 'नगरिया’, 'ना मैं लड़ी थी’ और बिस्मिल की अमर रचना 'सरफरोशी की तमन्ना’ आदि गीतों के साथ जयदेव और आशा भोंसले के गैर फिल्मी सफर के माधुर्य से एक अध्याय की परिभाषा बनती है। दिनकर की उर्वशी को भी संगीत से सजाने का काम जयदेव ने ही किया था। 

उर्वशी को गवाने के लिए उन्होंने दक्षिण भारत की मशहूर गायिका एस. पाल्ली की आवाज ली थी। सितार और तबले की विलक्षण ताल के साथ यह रचना आज भी अभिभूत करती है। यूट्यूब पर आप इस रचना को गुनगुनाते हुए जयदेव को भी देख सकते हैं। आशा के स्वर में कबीर की प्रसिद्घ रचना 'कौनो ठगवा नगरिया लूटल हो’ को एक बहुत ही दिलकश धुन में जयदेव ने ढाला था और बाद में फिल्म अनकही में शामिल किया था।

साहित्यिक रचनाओं को जयदेव बहुत शालीन और परिष्कृत तरीके से स्वरबद्ध और संगीतबद्ध करते थे। ऑफ बीट सी धुन और परंपरा से हटकर छंद का प्रयोग उनकी विशेषता थी। हरकतों और मुरकियों का व्यापक प्रयोग 'मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ और 'जो तुम आ जाते एक बार’ में अतिरंजित न होकर एक सौम्य और शिष्ट सी परंपरा के भीतर ही बड़े कौशल से जयदेव ने अवस्थित किया है। जयदेव की रचनाएं सरल भले ही न हों, पर इनके भीतर हमेशा एक सरल मेलोडी रहती थी। इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण आशा के स्वर में 'कैसे उनको पाऊं आली’ के रूप में देखा जा सकता है। सितार, सरोद, संतूर और बांसुरी का मधुर प्रयोग उनकी कई रचनाओं में मिलता है। गांधार लगाने की उनकी कला के तो सभी कायल हैं। यह तथ्य कम लोग ही जानते हैं कि फिल्म प्रेम पर्वत (1973) के मशहूर गीत, 'ये दिल और उनकी निगाहों के साए’ (जिसका आरंभ भी शुद्ध गांधार से होता है) को मूलत: जयदेव ने गैर फिल्मी गीत के रूप में कंपोज किया था पर निर्देशक वेद राही को यह गीत इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे अपनी फिल्म में ले लिया। पहाड़ी पर आधारित इस धुन के साथ जयदेव ने बांसुरी और संतूर का अविस्मरणीय प्रयोग किया था।

यह एक रोचक तथ्य है कि 'जो समर में हो गए अमर’ को जयदेव ने लता से पहले गवाया था। इस गीत की शब्दावली और धुन दोनों ही इतनी मार्मिक है कि जटिल कंपोजीशन होने के बावजूद आज भी इसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। छाया गांगुली के स्वर में सूरदास का भजन 'मोहे अब के बेर उबारो’ भी जयदेव की एक चर्चित रचना रही है। गीत 'सत्यमेव जयते’ को संगीतबद्ध कर हिंदुस्तान-पाकिस्तान युद्ध के समय 12 दिसंबर, 1971 को लता से रामलीला मैदान, दिल्ली में गवाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने का श्रेय भी जयदेव को ही है। चंदन दास की गाई मशहूर गजल 'शबो रोज मौसम बदलते रहे’ के स्वरकार जयदेव ही थे, यह तथ्य कम लोग जानते हैं। पीनाज मसानी और हरिहरन की कई आरंभिक रचनाओं के कंपोजर जयदेव ही थे। पीनाज की गाई 'तुमको हम दिल में’, 'वादा-ए-शाम-ए-फर्दा पे’ आदि कई गजलों के कंपोजर जयदेव रहे हैं। दूरदर्शन के 'आरोही’ कार्यक्रम में जयदेव द्वारा संगीतबद्ध पीनाज मसानी द्वारा गाया 'मोरा अंग अंग नवरंग’ तथा हरिहरन का गाया 'दाता ओ दाता’ आज भी कई सुधी श्रोताओं को याद है। भूपेंद्र के गाए 'वो दिन कितने सुंदर थे’ गीत की राग बागेश्री में जयदेव ने अद्भुत-सी सौम्य धुन बनाई थी। हरिहरन ने लेस्ली लुइस के साथ निकाले अपने एलबम कोलोनियल कजिंस-आत्मा की रचना गाइडिंग स्टार की मूल धुन की प्रेरणा जयदेव की बनाई धुन से ही ली है।

उनकी अंतिम रेकॉर्डिंग फिराक गोरखपुरी की गजलों की थी। 'हम भी फिराक इंसान थे आखिर तर्के मुहब्बत से क्या होता’ को रेकॉर्ड करते समय वे अभिभूत हो गए थे और बोल उठे थे कि जिस काम को मैं वर्षों से पूरा करना चाहता था, अब वह पूरा हो गया... अब मौत बेशक मुझे ले जाए। उस समय क्या पता था कि हफ्ते-भर के भीतर सचमुच मौत उन्हें ले जाएगी।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं)

 

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