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माइक वाला कवि

दिल की बात कहते हुए कैसे रखा जा सकता है जेब का खयाल
शांतनु आनंद और नंदिनी वर्मा एयरप्लेन पोएट्री सेशन में

एक ऐसे कॅरिअर की कल्पना करें जिसमें नौ से पांच अपनी डेस्क पर बैठ कर ईमेल का जवाब देते रहने के बजाय आपको मनपसंद काम करने की छूट मिले और उसके बदले पैसे भी दिए जाएं। एक दौर था जब कविता से पैसे कमाने का कोई मॉडल नहीं हुआ करता था। अब वह बीते दिनों की बात हो गई। मौखिक कविता के युग में आपका स्वागत है-एक ऐसी कला जो तेजी से पेशे के रूप में तब्दील होती जा रही है और खुद को अभिव्यक्त करने की इच्छा पाले हुए तमाम युवा मेधा इसे धीरे-धीरे अपना रही है। मौखिक कविता को अंग्रेजी में स्लैम पोएट्री कहते हैं। यह परंपरागत कविताई जैसा काम नहीं है। परंपरागत रूप से कविता लेखन उन्हीं पाठकों पर लक्षित होता है जो कविता प्रेमी हों लेकिन मौखिक कविता उन लेागों के लिए बनाई गई है जो आम लोग हैं। इसमें कविता पाठ के माध्यम से निजी स्तर पर लोगों से जुड़ने की कोशिश की जाती है।

मुंबई के 24 वर्षीय युवा शमीर रुबेन ने दो साल पहले फुलटाइम कवि और परफॉर्मर के रूप में काम करना शुरू किया था। उन्होंने सबसे पहले एक कार्यशाला में अपना कार्यक्रम पेश किया जब वह पुणे से संचार में परास्नातक की पढ़ाई कर रहे थे। उनकी मां की मौत 2012 में कैंसर से हुई तो उन्होंने मां पर एक कविता लिखी थी। इसी 'डियर मॉम’ शीर्षक से लिखी कविता को उन्होंने कार्यशाला में सुनाया। अगली बार उन्होंने श्रोताओं के सामने कविता पाठ किया और वह भी हाथ में कोई कागज लिए बगैर।

शमीर कहते हैं, ''मैं जितनी भी कविताएं लिखता हूं वे सब मेरा निजी उद्गार होती हैं। सारा जोर उन श्रोताओं से जुड़ने का होता है जो आपके सामने हैं ताकि उन्हें भी अपने सफर का हिस्सा बनाया जा सके और अपने जैसा महसूस कराया जा सके जिससे वे खुद को आयोजन का वैसा ही हिस्सा समझें जैसे कि आप हैं।’’

पोएट्री स्लैम इंक 1997 में बना एक एनजीओ है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौखिक कविता पाठ करने वालों के बीच सहयोग कायम करता है और इसका लक्ष्य ''ऐसी कविता के सृजन और प्रदर्शन को बढ़ावा देना है जो समुदायों को जोड़े और उन स्वरों को मंच मुहैया करा सके जिन्हें सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक अवरोधों के पार जाकर सुना जा सके।’’ एनजीओ की वेबसाइट के अनुसार मौखिक कविता में ''लेखन और प्रदर्शन पर दोहरा जोर होता है जो कवियों को अपने कहे और कहन पर केंद्रित होने को प्रोत्साहित करता है।’’

रुबेन के मुताबिक मौखिक कवि का हर शब्द मौलिक होता है। वह कहते हैं, ''कविता के दायरे में एक अघोषित समझौता होता है कि आपका कंटेंट मौलिक होना चाहिए। हर कविता आपके भीतर से निकली हुई होनी चाहिए। इसके बाद जब आप अपने लिखे का प्रदर्शन करते हैं तो उसमें भावनाएं आती हैं। अगर कोई दूसरे की कविता का पाठ कर रहा हो तो यह एकदम से साफ  हो जाता है।’’

भारत में स्लैम पोएट्री को आप स्टैंड अप कॉमेडी के शुरुआती दौर की तरह देख सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में तमाम युवा उद्यमी जो कॉलेज से तुरंत पढ़कर निकले या कुछ साल काम कर चुके थे, उन्होंने कविता पाठ के अपने-अपने समूह बनाए हैं। ऐसा ही एक समूह एयरप्लेन पोएट्री मूवमेंट के नाम से है जिसे मुंबई में नंदिनी वर्मा (24) और उनके सहपाठी शांतनु आनंद ने कैंपस डायरीज के बैनर तले शुरू किया है। इस काम में वह कैसे आईं, यह पूछने पर वर्मा अमेरिकी स्लैम कवियत्री सारा कीज का नाम लेते हुए कहती हैं, ''मैं कॉलेज में कैंपस डायरीज के साथ इंटर्न थी, जब मुझे टेड टॉक्स के एक सत्र के लिए कई स्टैंड अप कवियों का साक्षात्कार करने का अवसर मिला जिनमें कीज भी शामिल थीं। उसके बाद से ही मैं इससे जुड़ गई।’’

वर्मा और आनंद के लिए एयरप्लेन पोएट्री मूवमेंट कमाई का इकलौता जरिया है। इस मूवमेंट में नई प्रतिभाओं को तलाशने से लेकर स्कूलों और कॉलेजों में मौखिक कविता प्रशिक्षण की कार्यशालाएं चलाने तक कई काम शामिल हैं। वर्मा के मुताबिक उनकी  सबसे बड़ी उपलब्ध‌ि भारत की पहली स्लैम पोएट्री प्रतिस्पर्धा का आयोजन कराना रही है जिसमें कुल 1200 प्रतिभागी आए थे, जो देश में अब तक किसी भी स्लैम पोएट्री आयोजन की सबसे बड़ी संख्या है।

रुबेन और वर्मा दोनों इस बात से सहमत हैं कि कार्यशालाओं के अलावा देश में इस कला के लिए और ज्यादा औपचारिक प्रशिक्षण की जरूरत है। चूंकि यह कला अपनी प्रकृति में वैयक्त‌िक है लिहाजा अधिकतर स्लैम कवि खुद ही सीखे हुए होते हैं। वर्मा और आनंद हालांकि इस परिदृश्य को बदलने की कोशिश में हैं। वर्मा बताते हैं, ''हम लोग मुंबई और दिल्ली के स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाएं आयोजित करने के लिए उनसे संपर्क कर रहे हैं। अधिकतर स्कूल जहां हम कार्यशाला करते हैं वे छात्रों को पढ़ाने के नए तरीके अपनाना चाहते हैं। उन तक पहुंचने के लिए हमें अभी बहुत कुछ करना बाकी है, लेकिन हम देख रहे हैं कि कई शिक्षक हमें कार्यशालाओं के लिए न्योता दे रहे हैं ताकि उनके छात्र इस कला से परिचित हो सकें।’’

दिल्ली का एक समूह ब्रिंग बैक दि पोएट्स भारत में मौखिक कविता के पुराने समूहों में एक है जो प्रदर्शन आधारित कविता के लिए जगह बनाने में जुटा हुआ है। ऐसा ही एक अन्य मंच है माइल्डली अॅफेंसिव कंटेंट। शमीर कम्यून नाम के समूह के लिए काम करते हैं जहां अलग-अलग किस्म की मंचीय कलाओं को प्रोत्साहन दिया जाता है जिनमें कविता, किस्सागोई और नृत्य शामिल हैं। उनका काम कम्यून के ऑनलाइन मंच पर दूसरे कवियों की रचनाओं को तलाशना, संग्रहीत करना और तराशना है। रुबेन कहते हैं, ''अपनी बात कहने के लिए हमारे पास आज सोशल मीडिया के रूप में सबसे बड़ा मंच उपलब्ध है।’’ मौखिक कविता की प्रगति का अहम श्रेय इसी माध्यम को है। किसी की नजर जब किसी कवि के कविता पाठ के वीडियो पर पड़ती है तो उसे लगता है कि यह उसका काम हो सकता है।

स्लैम कविता से जुड़े लोगों के मुताबिक आज इस कला के सामने दो तरह की चुनौतियां हैं: इस आंदोलन को छोटे शहरों तक कैसे ले जाया जाए और क्षेत्रीय भाषाओं के कवियों को इससे कैसे जोड़ा जाए। दूसरी चिंता यह है कि एक धंधे के रूप में इसे कैसे आकर्षक बनाया जाए। रुबेन कहते हैं कि छोटे शहरों तक इस कला को ले जाने के प्रयास हो रहे हैं और कई समूह छोटे शहरों की ओर बढ़ रहे हैं। रुबेन को लगता है कि तमाम छोटे शहरों, कस्बों और क्षेत्रीय भाषाओं में मौखिक कविता का अस्तित्व पहले से ही है लेकिन कविता पाठ का वीडियो बनाकर उसे जन उपभोग की सामग्री में तब्दील करना और बड़े मंच पर ले आना बड़ी चुनौती है। वह कहते हैं, ''मलयालम और दूसरी भाषाओं में कुछ बेहतर कविताएं हैं लेकिन उनका ऐसा वीडियो बनाना एक बड़ी बाधा है जिसे देखकर दूसरी भाषा बोलने वाले दर्शक पर वैसा ही प्रभाव पड़े जैसा उस भाषा को जानने वाले पर होता है।’’

जहां तक कॅरिअर का सवाल है, कुछ ने इसे अपने खर्चे-पानी का जरिया तो बना लिया है लेकिन पेशे के तौर पर यह अभी भी शुरुआती चरण में है। संस्थाएं ज्यादातर कार्यशाला और सोशल मीडिया के माध्यम से पैसा बनाती हैं। वर्मा के मुताबिक ''हमने देखा है कि ऐसे कार्यक्रम देखने के लिए लोग टिकट खरीदते हैं और पैसे चुकाने को तैयार रहते हैं, लेकिन हमें अभी बहुत दूर जाना है।’’ 

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