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किसी नए पेशे में कामयाबी हासिल करने के लिए हुनर के साथ साहस भी जरूरी। पेश है आठ ऐसे होनहार युवाओं की कहानी
अचिंत्य आनंद: शेफ का पेशा छोड़ अपनाई खेती

फैशन ब्लॉगर: बहुत दिन नहीं हुए जब ब्लॉग लिखने का चलन हुआ करता था और हर किसी ने हर चीज पर ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया था। कोई अपने पालतू जानवर की देखभाल के तरीके पर लिख रहा था तो कोई बालों की देखभाल पर। कुछ लोग दुनिया भर से कहानियां लेकर आ रहे थे तो कोई पेट की बीमारियों पर ही लिख रहा था। आज भले ही निजी ब्लॉग को लिखने का उतना चलन न रह गया हो लेकिन ब्लॉगिंग ने एक काम तो किया कि एक फुल टाइम कॅरिअर के दरवाजे खोल डाले। कई लोग आज इस पेशे को चुन रहे हैं। इन चिट्ठों को आज आप अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल के साथ जोड़कर अपनी लिखी सामग्री की तगड़ी मार्केटिंग कर सकते हैं और उसे बिकाऊ बना सकते हैं। सोचिए, सबसे ज्यादा बिकाऊ सामग्री क्या हो सकती है? जिसके फॉलोअर की एक समर्पित फौज हो? इस मामले में फैशन से बढ़कर आखिर क्या हो सकता है!

आज के दौर में फैशन ब्लॉगरों ने अपना एक अलग मुकाम बना लिया है। वे फैशन की अपनी चाहत को ब्लॉग करते हैं, अपने लिए ही काम करते हैं और इंटरनेट और सोशल मीडिया का पूरा दोहन करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि अधिकतर फुल टाइम फैशन ब्लॉगर संयोग से इस पेशे में आए। फैशन के दीवाने ऐसे लोग पहले अपनी पसंद की तस्वीरें ब्लॉग किया करते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पाया कि लोग उसे लाइक करने लगे, उस पर कमेंट करने लगे और उनकी सिफारिश के मुताबिक परिधान खरीदने भी लगे। इस चलन की ओर जब फैशन ब्रांडों का ध्यान गया तो कालांतर में यही ब्लॉगर फैशन कंपनियों के स्थानीय प्रचारक, प्रायोजक आदि बन बैठे जिन्हें चाहने वालों की अपनी एक फौज थी और जिन्हें लोगों से जुड़ने का हुनर आता था।

इस कारोबार में सबसे बड़े नामों में एक हैं मासूम मिनवाला जिनके पास बॉबी ब्राउन, क्लीनिक, तरुण तहिलियानी जैसे बड़े ब्रांड प्रचार के लिए आते हैं। मिनवाला कहती हैं, ''सोशल मीडिया के दौर में सारा मामला आपके फॉलोअरों की संख्या का होता है। जो चीज विनिमय और सहयोग के तौर पर शुरू हुई थी, आज वह कारोबारी सौदे में तब्दील हो चुकी है।’’ फैशन ब्लॉगर रसना भसीन बताती हैं कि कई ब्लॉगरों के अपने पैकेज होते हैं। अधिकतर फैशन ब्लॉगर जहां संयोग से इस धंधे में आए, वहीं यह काम आज एक कॅरिअर की शक्ल ले चुका है जिसे हर माह कुछ सौ लोग अपना रहे हैं। इनमें स्त्री और पुरुष दोनों हैं। इसमें प्रवेश करना भले आसान काम हो लेकिन नाम कमाना उतना आसान नहीं है और पैसे बनाना तो कहीं ज्यादा मुश्किल काम है।

कस्टम क्राफ्ट्स: बड़े ब्रांड वाले स्टोर और ओवरसेल के दौर में अपनी पसंद वाले सामान से बेहतर भला क्या हो सकता है। इससे भी बेहतर यह है कि जो चीज चलन में हो उस पर आप अपनी मुहर मार दें। होमग्रोन टीम की मालकिन शिवानी राय यही काम करती हैं। उन्होंने पैच के नए चलन को अपनाया है और अपने ग्राहकों की मांग के हिसाब से वस्तुओं में तब्दीली करती हैं। आपके नाम से लेकर स्कूल बैज तक, आपका पसंदीदा अक्षर और भोजन हर चीज को शिवानी पैच में तब्दील कर देती हैं। वे बताती हैं, ''मुझे सिलाई का काम पसंद था और पैचों की लोकप्रियता को देखते हुए मैंने कस्टमाइज करना शुरू किया।’’

कार्टूनिस्ट दिव्या भाटिया ने अपनी एक करीबी मित्र के अनुरोध पर कस्टम सामान बनाना शुरू किया। वे बताती हैं, ''मैंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर तस्वीर डाल दी और मेरे पास डायरेक्ट मैसेजों से अनुरोध आने लगे।’’ उसके बाद दिव्या ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जूता हो या नाइटसूट, यहां तक कि बटन पर भी आप अपना नाम या कुछ भी लिखवा सकते हैं।

पेट केयर: पहले दर्जे की हवाई यात्रा, आरामदेह स्पा, प्लेडेट, ऑन-द-मूव सैलून, गामेर्ट मील, महंगे एक्सेसरी और कपड़े-ये सब कुछ आपके प्यारे से पालतू पशु के लिए हैं। हम सब अपने पालतू पशुओं को बहुत चाहते हैं और पशु प्रेमियों को लेकर मजाक भी किया जाता है कि आपके पास अपने लिए पैसे भले न हों लेकिन आप अपने पशुओं पर जरूर खर्च करेंगे। अगर यह बात सच है, तो इस दीवानेपन का दोहन आज कुछ नए किस्म के उद्यमी कर रहे हैं। पालतू पशुओं की देखभाल की श्रेणियों की कोई सीमा नहीं है। इस काम में जोखिम बहुत है (चूंकि आप जीवित प्राणियों का कारोबार कर रहे हैं) लेकिन इसमें मुनाफा भी बहुत तगड़ा है।

दिल्ली के बेला डेलिवर्स का उदाहरण लें। यह दुकान पालतू पशुओं के लिए विशिष्ट बेकरी उत्पादों को बेचती है जिनकी कीमत 1,800 से 9,000 रुपये के बीच कुछ भी हो सकती है। इस दुकान को शुरू करने में दो साल लग गए लेकिन एक बार यह चल पड़ी तो इसकी मालकिन आकांक्षा दास फिर रुकी नहीं। मुंबई में हार्लीज कॉर्नर कुत्तों के लिए दिन भर का खाने का सामान बेचती है। आपको बस अपने पालतू कुत्ते के लिए पैकेज चुनना है। दिन में आप कितनी बार उसे क्या-क्या खिलाना चाहते हैं और सब कुछ आपके दरवाजे पर पहुंच जाएगा। इसके बाद महंगी सेवाएं आती हैं, जैसे पेट ग्रूमिंग, जो सामान्य रूप से बाल और नाखून काटने से काफी आगे की चीज है। ग्रूमिंग का मतलब है आपके पालतू के लिए शाही व्यवस्थाएं, जैसे अरोमाथेरेपी स्नान, ब्लो ड्राई, बालों का रंगरोगन, मसाज, मैनिक्योर और पर्मिंग तक सब कुछ।

पालतू पशु के लिए स्पा का खर्च प्रतिदिन 500 से 30,000 तक जाता है। अगर आपके पास कोई पालतू पशु नहीं है और फिर भी आप उसे दुलराना चाहते हों, तो आपके लिए पेश है पेट कैफे जहां आप घंटे के हिसाब से भुगतान कर के कुत्ता, बिल्ली, हैमस्टर, गिनी पिग, तोते को कुछ देर के लिए अपना बना सकते हैं।

इलस्ट्रेटर: जब चुंबक और हैपिली अनमैरेड जैसे ब्रांड पहली बार आए थे तब लोगों को पता लगा था कि इलस्ट्रेशन नाम की भी कोई चीज होती है। उत्पादों की रोजाना मार्केटिंग के लिए डिजाइन बनवाने का काम काफी जोखिम भरा होता था। आज इस जरूरत को पूरा करने के लिए तमाम ब्रांड मौजूद हैं और ऑनलाइन सहयोग से आपका काम करने के लिए तमाम कंपनियां उपलब्ध हैं जो इलस्ट्रेटर को खरीदार से मिलवाती हैं।

इलस्ट्रेटर आज के दौर का फैशन डिजाइनर है। इनके पास हुनर है, अपनी शैली है और अगर आप जेब ढीली करने को तैयार हो तो ये अपने काम में हास्यबोध भी पैदा कर सकते हैं। हैपिली अनमैरेड के सह- संस्थापक रजत तुली कहते हैं, ''हमने जब दर्शक खोजने शुरू किए तो ऐसे खरीदारों को खोजना कठिन था जो क्यूरेटेड उत्पाद पर खर्च करने को तैयार हों।’’

अब इलस्ट्रेटर किताबों तक सीमित नहीं रह गए हैं। इलस्ट्रेटर अलीसिया सूजा अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर रोजाना की बातों को स्केच के माध्यम से बेचती हैं। उनके किरदार इतने लोकप्रिय हैं कि अब टाइम्स ऑफ  इंडिया अखबार उन्हें अपने मास्टहेड की डिजाइन के लिए अपने यहां रखने जा रहा है। सूजा कहती हैं, ''मैंने सोशल मीडिया पर अपने फॉलोवरों की मदद से खूब तरक्की की है और पिछले साल ही अपना स्टोर शुरू किया है।’’ उनके ऑनलाइन स्टोर में उत्पादों की संख्या कई गुना बढ़ गई है।

कार्ड से लेकर कुत्ते के कॉलर तक और मग्गे से लेकर चुंबक, नोटपैड और कुशन कवर तक सूजा हर चीज पर इलस्ट्रेशन करती हैं। हर किसी को थोड़ा सा हट कर चाहिए होता है और इलस्ट्रेटर वही हलका सा फर्क पैदा कर देता है। इसीलिए वह बिकता है।

माइक्रो फार्मिंग: अगर आपके पास टेरेस या बगीचा हो और आपको बागवानी का शौक भी हो तो माइक्रो फार्मिंग यानी लघु कृषि एक अच्छा धंधा हो सकता है। आजकल हर चीज ऑर्गनिक खाने का चलन है। लोग हर उस चीज का मुंहमांगा दाम देने को तैयार हैं जिसमें रासायनिक तत्व कम हों। उद्यमी इसी का लाभ उठा रहे हैं।

ऑर्गनिक टेरेस गार्डेनिंग या ओटीजी खासकर बेंगलूरू में लोकप्रिय है जहां शहरी किसान अपनी बालकनी, रूफटॉप या टेरेस तक में सब्ज‌ियां और फल उपजाते हैं। कई ने तो अंशकालिक रुचि के तौर पर केवल अपने लिए यह काम शुरू किया था लेकिन आज यह एक फुल टाइम पेशे में तब्दील हो चुका है और लोग अपने आसपास के समुदाय के अलावा रेस्त्रां को भी अपना उगाया माल बेच रहे हैं। ग्रोइंग ग्रीन्स के नितिन और हंसा सागी को ही लीजिए जिन्होंने अपने बगीचे में छोटे औषध पौधे उगाने की शुरुआत की और निजी ऑर्डर लेने लगे। वे अब शहर के बाहरी इलाके में जमीन खरीद चुके हैं और न केवल शहर बल्कि देश भर के खानसामों को माल की आपूर्ति कर रहे हैं।

कृषि क्रेस के अचिंत्य आनंद अब भी अपने फार्महाउस में ही खेती करते हैं लेकिन माइक्रोगीन से फलों और सब्ज‌ियों तक ही पहुंच पाए हैं। पेशे से शेफ रहे आनंद ने खेती का काम यह समझने के लिए शुरू किया कि जिन चीजों से वे खाना पकाते हैं वे कैसी हैं। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे कहते हैं, ''मैं हमेशा से एक एकीकृत और टिकाऊ फार्म बनाना चाहता था जो ग्राहकों को अच्छे उत्पाद दे सके।’’ यह कॅरिअर कुछ ही साल पुराना है लेकिन आज इतनी तेजी से फैल चुका है कि माइक्रोफार्मिंग उपकरण बेचे जाने लगे हैं और माइक्रो फार्मिंग पर पाठ्यक्रम भी शुरू हो चुके हैं। अब यह फलता-फूलता कारोबार हो चुका है।

स्पेशलाइज्ड हॉलीडे प्लानर : आप अगर छुट्टियां मनाने की सोच रहे हैं तो गोवा, कश्मीर, थाइलैंड, पेरिस या न्यूयॉर्क पुरानी जगहें हो गई हैं। आप जाहिर है ऐसा कोई काम नहीं करना चाहेंगे जो जाने कितनी बार आपसे पहले किया जा चुका हो। यहीं आपको विशिष्ट तरीके से आपकी छुट्टियों का नियोजन करने वाले हॉलीडे प्लानरों की जरूरत पड़ती हैं। बच्चों की छुट्टियों से लेकर एकल यात्रा या केवल औरतों की ट्रिप तक आप जो चाहें, ये प्लानर आपको लाकर देंगे। विशिष्टता ऐसी कि भेड़ाघाट में आप क्याकिंग अवकाश पर जा सकते हैं, हिमाचल प्रदेश में थांग्का पेंटिंग देखने जा सकते हैं या फिर बोरा बोरा में केवल स्पा करवाने जा सकते हैं। गर्ल्स ऑन दि गो की संस्थापक ताई बोस ने वकालत का अपना पेशा छोड़कर 2008 में उन लड़कियों की छुट्टियों को नियोजित करने का धंधा चुना जो खुद ही अकेले यात्रा करती हैं। वे कहती हैं, ''उसके बाद से हमने अंटार्कटिका से लेकर नगालैंड के हेड हंटर गांव तक और मंगोलिया के पहाड़ों की चढ़ाई तक का टूर आयोजित किया है।’’

हर कोई घूमने का शौकीन होता है। लोगों को बस कुछ नए की दरकार है। परंपरागत तरीके से छुट्टियां नियोजित करने वाले इसमें आपकी मदद तो कर सकते हैं लेकिन लोग अब खुद ही अपनी छुट्टियां प्लान करने की ख्वाहिश करते हैं। ऐसे में यात्राओं पर केंद्रित सोशल नेटवर्क भी तेजी पकड़ रहा है। ट्रैवेल यूआर जैसे ब्रांड न केवल आपके अवकाश प्लान करते हैं बल्कि सैलानियों को अपने अनुभव व स्थलों के बारे में विचार साझा करने का एक मंच भी मुहैया कराते हैं। इंस्पायर्ड ट्रैवेलर जैसी दूसरी कंपनियां सदस्यों के बीच यात्रानुभवों को साझा करने पर केंद्रित हैं जिससे यात्रा की योजनाएं निकलती हैं। इनकी विशिष्टता सोशल नेटवर्क पर इन्हें फॉलो करने वालों की भारी संख्या है।

फूड फोटोग्राफर: सोशल मीडिया से आप पैसा बना सकते हैं बशर्ते आपके फॉलोवर काफी ज्यादा हों। यह काम खाने-पीने की चीजों की तस्वीरें पोस्ट कर के भी किया जा सकता है और ऐसे फूड फोटोग्राफरों का एक अच्छा-खासा समूह काम कर रहा है। ये लोग रोजमर्रा के खाने-पीने के सामान की तस्वीरें पोस्ट करते रहते हैं जब तक कि इनके फॉलोवर बहुत ज्यादा न हो जाएं। इसके बाद शुरू होता है ब्रांडों के साथ सहयोग का सिलसिला। छायाकारी में विशेषज्ञता प्राप्त लोगों की कमी नहीं है जो मीडिया में पहले से कार्यरत हैं लेकिन फूड फोटोग्राफर आम तौर से नए लोग हैं जिन्होंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके अपनी फोटोग्राफी का अलग ब्रांड ही स्थापित कर लिया है।

बेकर और फूड ब्लॉगर शिवेश भाटिया की तस्वीरों को चाहने वालों की संख्या आज 87,000 तक पहुंच चुकी है। उन्होंने एचपी कंपनी के साथ उसके नए लैपटॉप के प्रचार के लिए और मोबाइल कंपनी शाओमी के साथ गठजोड़ किया है। वे फूड फोटोग्राफी करते हुए उनके ब्रांड का प्रचार करेंगे। भाटिया कहते हैं, ''मेरा संकल्प है कि आप जिस काम में अच्छे हों उसे आपको मुफ्त में कभी नहीं करना चाहिए।’’

टॉय डिजाइ‌न‌िंग: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन ने जब 2002 में टॉय डेवलपमेंट एंड डिजाइन का नया विषय शुरू किया उस वक्त इस क्षेत्र को समझने वालों की संख्या ही कुछ सौ में रही होगी। आज इस क्षेत्र को अपनाने वालों की संख्या में काफी इजाफा हो चला है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत के खिलौना बाजार में नाटकीय तरीके से वृद्धि हुई है चूंकि टेलीविजन पर बच्चों के कार्यक्रमों में इजाफा हुआ है। इसी के साथ खिलौना डिजाइनरों की संख्या में भी इजाफा हुआ है हालांकि अब भी एक कॅरिअर के तौर पर यह पर्याप्त अलोकप्रिय है।

इस कारोबार में कुछेक कामयाब व्यक्त‌ियों में सुहासिनी पॉल का नाम आता है जिन्होंने भारत के पहले समर्पित डिजाइन स्टूडियो पिंक एलिफैंट की स्थापना की है। पॉल के ग्राहकों की लंबी सूची है जिनमें डिज्नी, हेप, किंडर जॉय, रॉयल किंग, एसेल्टे कॉर्प, नोकिया, प्लान स्ट्रैटेजीज यूके, फ्रैंक, प्लेग्रो और एडियट्स शामिल हैं। वे भारत के खिलौना उद्योग की संभावनाओं पर लगातार सेमिनार और कार्यशालाएं चलाती हैं जिनमें छोटा भीम, हनुमान और सुप्पंडी जैसे किरदारों की ताकत का लगाया जाता है।

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