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जोगी हम तो लुट गए तेरे प्यार में

जानिए ऐसे गीतकार के बारे में जो संगीतकार भी था और कई भाषाओं का ज्ञाता होने के साथ प्रखर वक्ता भी
गंगा जमना का पोस्टर

प्रेम धवन को यूं तो हम गीतकार के रूप में जानते हैं पर उन्होंने कई हिट फिल्मों में संगीत भी सफलतापूर्वक दिया था। शहीद (1965) में संगीतकार भी वही थे और भैरवी में 'मेरा रंग दे बसंती चोला’ (महेंद्र, मुकेश, राजेंद्र मेहता) जैसे सदाबहार गीत की संगीत रचना का श्रेय उन्हें ही जाता है। शहीद के अन्य बेहतरीन देशभक्ति गीतों, 'पगड़ी संभाल जट्टा’ (रफी, साथी), 'ऐ वतन, ऐ वतन, हमको तेरी कसम’ (रफी, साथी), दरबारी काबड़ में, 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ (रफी, मन्ना डे, राजेंद्र मेहता) के अलावा लता के स्वर में, पंजाबी रंग में रंगा 'जोगी हम तो लुट गए तेरे प्यार में’ जैसा लुभावना गीत भी प्रेम धवन की ही देन है। 13 जून, 1923 को अंबाला में जन्मे और लाहौर की गलियों में पले-बढ़े प्रेम धवन के पिता लाहौर जेल में वार्डन थे और वहीं राजनीतिक कैदियों से मुलाकात ने उनके युवा जहन में सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबद्धता जगाई। लाहौर के एफ.सी. कॉलेज से पढ़ाई खत्म कर वह 'इप्टा’ में शामिल होने बंबई चले आए, जहां पं. रविशंकर, सलिल चौधरी, बलराज साहनी, कैफी आजमी, चेतन आनंद और दीना पाठक के साथ उनका बुद्धिजीवी विकास भी हुआ और रविशंकर तथा उदय शंकर से संगीत और नृत्य की शिक्षा भी मिली। प्रेम धवन ने कई भाषाएं सीखी थीं और वह बहुत अच्छे वक्ता भी थे।

जिद्दी फिल्म का 'चंदा रे जा रे जा रे’ उनका लिखा पहला फिल्मी गीत था। अंदाज, आरजू, परदेशी, तराना, हम हिंदुस्तानी में उनके लिखे गीत घर-घर में गूंजे थे। संगीतकार चित्रगुप्त के अधिकांश गीतों के रचयिता प्रेम धवन ही थे। प्रेम धवन बहुत अच्छे नृत्य-निर्देशक भी थे और 'हरियाला सावन ढोल बजाता आया’, 'उड़ें जब-जब जुल्फें तेरी’ जैसे गीतों में नृत्य-निर्देशन उन्हीं का था। जहां तक संगीत का प्रश्न है, 'ऐ मेरे प्यारे वतन’ जैसे मार्मिक गीत के इस लेखक ने शहीद के अलावा कोई बहुत अधिक उल्लेखनीय संगीत नहीं दिया। पर उनकी कुछ रचनाएं अवश्य बहुत खूबसूरत बनी हैं। पंजाबी लोक संगीत का इस्तेमाल उनकी संगीतबद्ध रचनाओं में अकसर दिखाई देता है। हालांकि राजनीतिक-देशभक्ति धारा की तरफ अपने झुकाव को फिल्मों में भी उन्होंने अपने गीतों और संगीत के माध्यम से समय-समय पर प्रकट किया, लेकिन सातवें दशक के बाद की फिल्मों में इस धारा की बहुत कम होती गई जगह ने उन्हें भी मुख्यत: फिल्मों की प्रचलित

व्यक्तिनिष्ठ रूमानी प्रवृत्तियों में ही मसरूफ रहने पर विवश कर दिया। रात के अंधेरे में (1969) के पंजाबी रिद्म पर सृजित कर्णप्रिय गीत 'न जाने पीर दिल की बेपीर बालमा’ (लता) की प्रथम पंक्ति में अप्रत्याशित ढंग से फिलर का प्रयोग बहुत लुभावना था। इसी फिल्म का 'अगर बेवफा तुझको पहचान जाते’ (लता, रफी), पवित्र पापी (1970) का दर्दीले सुरों के साथ 'तेरी दुनिया से हो के मजबूर चला’ (किशोर) और पंजाबी शैली में 'लागे जिसको वही ये दुख जाने’ (लता) जैसे गीत प्रेम धवन के सुपरहिट गीतों में स्थान रखते हैं।

वीर अभिमन्यु (1970), वीर अमर सिंह राठौड़ (1970), सुभाष घई के नायक के रूप में अभिनीत भारत के शहीद (1972) का उनका संगीत असफल रहा। शायर-ए-कश्मीर महजूर (1973) के 'ओ खेतों की शहजादी’ (तलत), 'तमन्ना कब से है दिलबर’ (सुमन) और 'फिर मुझे दीदार’ (महेंद्र) जैसे सुंदर गीत भी अनसुने ही गुजर गए। मेरा देश मेरा धरम (1973), किसान और भगवान (1974), फर्ज और कानून (1978), क्वाजा अहमद अद्ब्रबास की नक्सलाइट्स (1980), गंगा मांग रही बलिदान (1981) जैसी फिल्मों का संगीत भी पिटा-पिटा ही रहा। इस फिल्म में एक नक्सलाइट पुत्र के पुलिस अफसर पिता के दुख और क्रोध की मन:स्थिति को सितार के एक लंबे और तीव्र टुकड़े से प्रेम धवन ने अतीव सुंदरता से प्रकट किया था। रूमा गुहा ठाकुरता ने अपने गैर फिल्मी एलबम में वक्त की आवाज में प्रेम धवन के लिखे और कंपोज किए गीत 'लाखों उसे सलाम’ को बड़ी खूबसूरती से गवाया था।

फिल्मों से अलग होकर प्रेम धवन ने अपना अधिकांश समय नेपियन सी रोड के अपने फ्लैट में पढ़ने-लिखने में ही बिताया। सात मई, 2001 को मुंबई के जसलोक अस्पताल में उनका निधन हो गया।   

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं।)

 

 

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