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पत्थरबाज अब बंदूक उठाने को तैयार

दक्षिण कश्मीर के हालात 1991 जैसे पर इस बार नौजवान आमने-सामने लडऩे की तैयारी में
शोपियां में आतंकियों के हाथों जान गंवाने वाले लेफ्टिनेंट उमर फयाज के जनाजे में शामिल लोग

दक्षिण कश्मीर के एक गांव में पेशे से शिक्षक अब्दुल अहमद मीर बाहर सड़क पर चल रहे उपद्रव का नजारा देखने के लिए अपने दो मंजिले मकान की खिड़कियां बार-बार खोलते बंद करते हैं। बाहर युवक पूरी ताकत और जोश से सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंक रहे हैं, जो इस अधेड़ को 1990 के दहशत भरे दिनों की याद दिला रहा है, जब राज्य में पहली बार आतंकवाद ने पैर रखा था। 56 साल के मीर को करीब 25 साल पहले अपने गांव तुर्कवानगाम की सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान की घेराबंदी याद आ जाती है। उस समय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने घेरा डाला था। वे कहते हैं, ''हम सभी डर गए थे। सभी लोग भाग खड़े हुए थे। मैं आठ दिनों बाद घर लौटा था।’’ जाड़े में हुई उस कार्रवाई में गांव के लोगों को खुले मैदान में रखा गया और उन्हें बर्फ पर बैठने को मजबूर किया गया।

इसी दौरान एक बुजुर्ग वहां आते हैं और मीर की बातों से सहमति जताते हैं। अब्दुल रशीद नाम के इन बुजुर्ग का सेब का बागान कुछ दूरी पर ही है। वे कहते हैं, ''हां, तब डर का भयानक माहौल था। हमलोग दहशतजदा पीढ़ी के हैं।’’ नई सदी की शुरुआत के बाद माहौल में सुधार आया और 17 साल में तुर्कवानगाम में कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। शोपियां और आसपास के सुरम्य माहौल में अशांति फैल गई है। 4 मई को सेना ने जम्मू-कश्मीर पुलिस की सहायता से तुर्कवानगाम सहित 20 गांवों में आतंकियों के खिलाफ व्यापक तलाशी अभियान चलाया। दरअसल, यह सेना की सबसे बड़ी कार्रवाई थी जो इन 20 गांवों में चली। हालांकि इससे स्थिति तो नहीं सुधरी पर आतंकी और उग्र जरूर हो गए। पुलिस पर उनके हमले बढ़ गए। परिणाम यह हुआ कि एक सप्ताह में दक्षिण कश्मीर में अलग-अलग हुए हमलों में छह पुलिसकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पूरी घाटी में छात्रों का आंदोलन जारी रहा और पुलिस तथा सुरक्षा बलों पर पत्थर और ईंटें फेंकी गईं।

इस इलाके में मुख्यधारा के राजनीतिक दलों की गतिविधियां ठप पड़ गई हैं। सभी के कार्यकर्ता श्रीनगर चले गए है। सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) भी अपने गढ़ से गायब हो गई है। सिर्फ नेशनल कॉन्फ्रेंस ही ऐसी पार्टी है जो यहां मौजूद है और सोशल मीडिया पर आवाज उठा रही है। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी साफ तौर पर मानती हैं कि स्थिति 1990 की तरह ही खराब है। वे कहती हैं, ''मुझे 1996 की याद आ रही है। उस वक्त एक सभा करना भी मुश्किल था।’’ मुख्यमंत्री आठ मई को श्रीनगर में सिविल सेक्रेटेरिएट के आरंभ होने पर पारंपरिक तौर पर पत्रकारों से बात कर रही थीं। वे कहती हैं, ''लेकिन लोग तब की स्थिति से भी बाहर निकले थे और इस बार भी इस समस्या का हल होगा।’’ पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला पीडीपी के खिलाफ तगातार ट्वीट करते रहे हैं। उनका आरोप है कि हालात से निपटने में बड़ी लापरवाही बरती गई।

तुर्कवानगाम में मुख्यधारा की पार्टियों से लोगों का मोहभंग हो रहा है। मीर और रशीद 1990 की तरह गांव छोड़कर नहीं भागते। वे अपने घरों से नौजवानों और सुरक्षा बलों के बीच की भिड़ंत देखते हैं। मीर कहते हैं, ''नौजवानों ने सेना को किसी भी घर की तलाशी नहीं लेने दी है। वे किसी से डरते नहीं हैं।’’ मीर स्थानीय बाजार में बातचीत जारी रखते हैं, तभी वहां गांव के 20 साल के आसपास के कई लडक़े पहुंच जाते हैं। इनमें से जो सबसे बड़ा है वह खुद को इनका प्रवक्ता बताता है। लंबे और अच्छी डीलडौल वाला यह युवक कहता है कि मैंने सेब के व्यापार के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी। वह कहता है, ''मैं उस वक्त गांव में नहीं था जब सेना की कार्रवाई चल रही थी। लेकिन जब मुझे इसका पता चला तो मैं दौड़ते हुए वहां पहुंचा और पत्थर फेंक रहे लड़कों के साथ हो गया।’’

तुर्कवानगाम शोपियां से 16 किलोमीटर दूर एक संपन्न गांव है। यहां दो-तीन मंजिले घर बने हुए हैं। शोपियां श्रीनगर से उत्तर-पश्चिम से 60 किलोमीटर दूर एक जिला है। इसकी पहचान सेब के लिए है। शोपियां-तुर्कवानगाम रोड पर दोनों ओर लाल और मीठे सेबों के बाग हैं। गांव के ज्यादातर लोग बागवानी करते हैं। इसी के सहारे वे नई कार खरीदते हैं और उस पर चलते हैं। खेतों के बाड़ों और रोड पर 'बुरहान वानी जिंदाबाद’ के नारे लिखे हुए हैं। यहां पाकिस्तान के हरे झंडे की पेंटिंग भी दिखाई पड़ती है।

तुर्कवानगाम के लोगों ने 2014 में पीडीपी को वोट दिया था। अब वहां के लोग कहते हैं कि मुख्यधारा की पार्टियों के दिन खत्म हो गए हैं। वहां जुटे नौजवानों का प्रवक्ता कहता है, ''ध्यान दें, कश्मीर का एकमात्र हल है-और वह बंदूक से ही निकलेगा।’’ उसकी इस बात से सभी सहमत हैं। वे कहते हैं कई युवा विद्रोह का दामन थामना चाहते हैं पर आतंकवादी उन्हें भर्ती करने से इनकार कर रहे हैं। प्रवक्ता कहता है, ''आप पूछ रहे हैं मैं पत्थर फेंकने के लिए क्यों लौटा? पिछले साल कई लोग मारे गए। कई अंधे हो गए तो कई घायल। आज अगर मैं यह सोंचू कि मैं गोली या छर्रे से मारा जाऊंगा तो मैं पत्थर नहीं फेंक पाऊंगा। मैं किसी से नहीं डरता।’’ वहां मौजूद एक अन्य युवक इस बात की खिल्ली उड़ाता है कि उन्हें पत्थर फेंकने के लिए पाकिस्तान से पैसे मिलते हैं। वह कहता है, ''पाकिस्तान आर्थिक रूप से भारत से कमजोर है। ऐसे में वे (भारत) हमें पत्थर नहीं फेंकने के लिए ज्यादा पैसे क्यों नहीं देते? हमारी लड़ाई कहीं से पैसे के लिए नहीं है।’’

कुलगाम-शोपियां रोड पर कुचेदूरा गांव में एक परिवार शोक में डूबा हुआ है। इस परिवार के एक सदस्य की मौत हाल की हिंसा में हो गई है। घर के बाहर टेंट लगा है और परिवार के मुखिया अब्दुल हकीम शेख से मिलने और शोक जताने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है। शेख के छोटे भाई नजीर अहमद की मौत उस वक्त हो गई थी जब आतंकियों ने इमाम साहब गांव में सेना पर हमला किया था। सेना के वाहन को नजीर चला रहा था। सेना गांवों से तलाशी अभियान चला कर लौट रही थी। जब उन पर हमला किया गया तो दो सैनिक घायल हो गए और दो बच्चों के पिता एक युवक की मौत हो गई। नजीर का परिवार सेना से गुस्से में है। शेख कहते हैं, ''वे मेरे भाई को सैनिकों को पहुंचाने के लिए ले गए थे। चौधरी गुंड के निकट सेना के लोगों ने नजीर को ऑपरेशन स्थल तक ले जाने से पहले उसके ड्राइविंग संबंधी कागजात अपने कब्जे में ले लिए थे।’’ वे कहते हैं, ''सेना नजीर और अन्य सूमो ड्राइवरों को जबरदस्ती रात्रि गश्त के लिए ले जाती थी। उन्हें इसके लिए कुछ भी नहीं दिया जाता था।’’

उधर, आतंकियों के हिंसक अभियान की एक तस्वीर नौ मई को देखने को मिली, जब आतंकियों ने शोपियां में अपने रिश्तेदार के यहां आए 22 साल के सेना के अफसर उमर फयाज को पहले अपहृत किया और फिर मार डाला। लेफ्टिनेंट फयाज बहन की शादी में भाग लेने अपने ननिहाल हरमन आए थे। अपहरण करने के बाद आतंकियों ने न सिर्फ उनकी पिटाई की बल्कि ऐसा करने के बाद मार डाला। बाद में अगले दिन उनका शव गांव के चौक पर मिला। वह कुलगाम के रहने वाले थे।

घाटी के हालात के बदतर होने का एक दूसरा हवाला पिछले कुछ हफ्ते में जारी किए गए कई वीडियो में मिला। इनमें कश्मीर की स्थानीय कथित आजादी की लड़ाई के आंदोलन को खारिज किया गया है और इस्लामीकरण पर जोर दिया गया है। इससे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेता सैयद अली शाह गिलानी, मीरवायज उमर फारूक, यासीन मलिक जैसे नेता काफी नाराज बताए जाते हैं। कश्मीर में यह एक तरह की नई सियासी तस्वीर भी पेश कर रहा है।

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