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जानलेवा सड़कें बनीं चुनौती

उत्तराखंड में हर साल 900 लोगों की हादसों में मौत, राज्य में चारधाम यात्रा सुरक्षित कराना प्रशासन के लिए है बड़ी जिम्मेदारी
टूटी सड़क पर चलते लोग

19 अप्रैल, 2017: देहरादून के विकासनगर से त्यूणी जा रही बस टोंस नदी में गिरी। हादसे में 45 यात्रियों की मौत।

28 अप्रैल, 2017: उत्तराखंड के नागथात और रुद्रप्रयाग में बारात ले जा रही मैक्स खाई में गिरी। 13 व्यक्तियों की मौत। 

महज 10 दिन में देवभूमि की सडक़ें 58 लोगों की जिंदगी की काल बन गईं। लेकिन, उत्तराखंड के मामले में ये कोई यदा-कदा होने वाली घटनाएं नहीं हैं। ये आंकड़ा किसी को भी परेशान कर देगा कि प्रदेश में सडक़ हादसों में हर महीने करीब 75 लोगों की जान जा रही है। बीते चार साल के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में साढ़े तीन हजार से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं। चार साल की अवधि में ये आंकड़ा देश के हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में जान गंवाने वाले आम लोगों की संख्या से भी बड़ा है। अब, चारधाम यात्रा शुरू होने के बाद प्रदेश की सड़कें एक बार फिर बड़ी चुनौती बन गई हैं।

यूं तो दुर्घटनाओं और चारधाम यात्रा का कोई सीधा संबंध नहीं है, लेकिन हर यात्रा के साथ एक भय जरूर पैदा होता है। ये भय सड़के पैदा करती हैं। उत्तराखंड में कच्चे पहाड़ों के बीच से गुजरती सड़के अक्सर ऐसी घटनाओं से रूबरू होती हैं जब एक साथ कई परिवारों में जिंदगी के चिराग बुझ जाते हैं। चारधाम यात्रा के साथ डर बढ़ने का एक कारण यह भी है कि पूरे गढ़वाल में जितनी आबादी है, करीब चार महीने के अंतराल में, उतने ही लोग देश भर से चारधाम पहुंचते हैं। ऋषिकेश से शुरू होकर केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जाने वाली पहाड़ी सडक़ों पर हर मोड़ पर दुर्घटना की आशंका मुंह बाए खड़ी होती है।

प्रदेश में बीते चार साल में सड़क हादसों की संख्या साल दर साल बढ़ी है और इस अवधि में मरने वालों का आंकड़ा 25 फीसद तक बढ़ गया है। हर साल औसत 900 लोग जान गंवा रहे हैं। यदि कश्मीर और देश के अशांत राज्यों से तुलना करें तो उत्तराखंड में सड़क हादसे उतने ही मारक हैं, जितने कि बाकी जगहों पर आतंकवादी। सन् 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद पूरे देश का ध्यान उत्तराखंड की ओर गया, लेकिन सड़क हादसों पर अब भी कोई ठोस नीति और रणनीति अमल में आती दिखाई नहीं देती है।

दरअसल, साल 2013 की आपदा के बाद चारधाम यात्रा को सुरक्षित ढंग से शुरू करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती थी। सैंकड़ों पुल और कई सौ किलोमीटर लंबी सड़कें बेहद खतरनाक हालत में पहुंच गई थीं। ये कटु सत्य है कि आपदा के वक्त विजय बहुगुणा के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार पूरे मामले को संभाल नहीं पाई। बाद में हरीश रावत मुख्यमंत्री बने और वे इस दावे के साथ विदा हुए कि चारधाम की सड़कें बेहतरीन स्थिति में हैं। पर, सरकार के तमाम दावों के विपरीत जमीनी हकीकत जुदा है। बीजेपी नेता और आरटीआई एक्टिविस्ट अजेंद्र अजय कहते हैं कि आपदा के बाद जो थोड़ा-बहुत काम हुआ, वो सिर्फ  केदारघाटी तक सीमित है। केदारनाथ जाने के लिए मोटर मार्ग का आखिरी पड़ाव गौरीकुंड था, वहां हालात अब भी बदतर हैं। इसका प्रमाण यह है कि खराब सड़कों की वजह से प्रशासन ने बाहर से आने वाली गाडिय़ों को सोनप्रयाग में रोकने का फैसला किया है।

हादसों पर नियंत्रण के प्रयास

सरकार का दावा है कि उनका ध्यान वीवीआईपी के साथ ही आम लोगों की यात्रा पर भी है। पर्यटन सचिव शैलेष बगोली का कहना है कि पीडब्ल्यूडी,  बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन और नेशनल हाइवे अथॉरिटी के अधिकारियों के साथ मिलकर चारधाम मार्गों को पूरी तरह ठीक कर दिया गया है। इस बार शराब और ओवर लोडिंग के मामलों पर खास तौर पर निगाह रखी जा रही है। यात्रा के लिए दिनों के निर्धारण को सख्ती से लागू किया गया है। यदि कोई ड्राइवर निर्धारित समय से पहले यात्रियों को लेकर वापस आता है तो उस पर कार्रवाई होनी तय है। उल्लेखनीय है कि यात्रा के लिए दिनों के निर्धारण की व्यवस्था को भाजपा की पिछली सरकार के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी द्वारा लागू किया गया था। लेकिन, कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद इसे कड़ाई से लागू नहीं किया गया।

दुर्घटनाओं की बड़ी वजहें

राज्य में 108 एंबुलेंस सेवा शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके अनूप नौटियाल कहते हैं कि विभिन्न अध्ययनों के आधार पर सरकार को भी पता है कि दुर्घटना की दृष्टि से संवेदनशील जगहें कौन सी हैं, लेकिन सरकार के एक्शन में कमी है। 19 अप्रैल को विकासनगर से त्यूणी जा रही बस उसी संवेदनशील स्ट्रैच में दुर्घटना की शिकार हुई, जो पहले से ब्लैक स्पॉट के रूप में चिह्नित है। पहाड़ों पर यात्रा के लिए जो सुरक्षा के मानक हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे ड्राइवरों को भी पहाड़ में अनुमति दी जा रही है, जिनके पास केवल मैदानी राजमार्गों पर गाड़ियां चलाने का अनुभव है। पहाड़ में सड़कों की खराब हालत के अलावा भूस्खलन भी दुर्घटनाओं का बड़ा कारण है। ओवलोडिंग और अनफिट वाहन भी चुनौती खड़ी करते हैं। और यदि ड्राइवर को शराब की लत भी हो तो फिर यात्रियों की जान हर वक्त संकट में ही रहती है।

अगर हादसा हुआ तो बचना मुश्किल

पहाड़ों में 108 सेवा की शुरुआत 15 मई 2008 को की गई। पहाड़ी मार्गों और दुर्गम इलाकों में दुर्घटना होने पर राहत कार्य के लिए इस एंबुलेंस में प्रशिक्षित लोग और जरूरी उपकरण होते हैं। लेकिन, अब 108 एंबुलेंस सेवा को खुद ही मदद की दरकार है। 2008 में कुल 90 एंबुलेंस के साथ शुरू हुई इस सेवा में 2010 और 2011 में कुछ और एंबुलेंस जोड़ी गईं। इसके बाद कोई नई एंबुलेंस नहीं आई। अब नौ साल से ज्यादा पुरानी एंबुलेंस दुर्गम स्थानों पर कब तक लोगों की मदद कर पाएंगी, ये बड़ा सवाल है। 108 एंबुलेंस सेवा के मीडिया प्रभारी मोहन राणा भी मानते हैं कि अब नई एंबुलेंस की जरूरत है, खटारा हो चुकी एंबुलेंस और उसके उपकरणों को खुद ही उपचार की जरूरत है। इसके साथ ही अस्पतालों की स्थिति भी संकट में बढ़ोतरी करती है। घटना चाहे पिथौरागढ़ में हो या चमोली में, गंभीर घायलों को 150-200 किलोमीटर तक लेकर जाना पड़ता है। ऐसे में, आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों को बचा पाना कितना मुश्किल साबित होता है।

चारधाम यात्रा के वीवीआईपी

28 अप्रैल को गंगोत्री-यमुनोत्री के कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड में चारधाम यात्रा की शुरुआत हो गई। केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट भी खुल गए हैं। केदारनाथ के तीन मई को और बदरीनाथ के छह मई को खुले। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का तीन मई को केदारनाथ पहुंचने का कार्यक्रम था। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस उम्मीद में हैं कि चारधाम यात्रा पर रिकॉर्ड श्रद्धालु आएं। सीएम प्रधानमंत्री की यात्रा को एक अच्छे संकेतक के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं। पर प्रधानमंत्री यहां की सड़कों की स्थिति देखते तो उन्हें वस्तुस्थिति की जानकारी मिलती। जो तस्वीर दिखाई गई और जो असल हकीकत है उसमें गहरी खाई जितना ही फर्क है।

 केदारनाथ पर खास ध्यान

चारधाम यात्रा उत्तराखंड की आर्थिक जीवन-रेखा भी है। आपदा के बाद ये यात्रा बुरी तरह प्रभावित हुई थी। हालांकि, पिछले साल से हालात बदले हैं। पिछले वर्ष पूरी यात्रा के दौरान 15 लाख लोग उत्तराखंड आए। इनमें से केदारनाथ में करीब साढ़े तीन लाख यात्री आए थे। इस बार पांच लाख से ज्यादा यात्रियों के आने की उम्मीद की जा रही है। चारों धाम में कुल 25 लाख यात्रियों के आने की संभावना है। यह संख्या पिछले साल की तुलना में करीब 10 लाख ज्यादा होगी। सरकार का फोकस केदारनाथ पर ज्यादा है, अभी केदारनाथ में हर रोज तीन हजार यात्री रुक सकते हैं। इस क्षमता को पांच हजार तक बढ़ाने की तैयारी है।

 

 

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