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‘हम अलग हैं, अलग साबित होगे’

यह हमारी नाकामी है कि हम दिल्ली नगर निगम के चुनाव को राष्ट्रीय चुनाव जैसा बनने से रोक नहीं पाए।
मनीष स‌िसोद‌िया

दिल्ली नगर निगम चुनाव में हार के बाद पार्टी में मचे कोहराम से सवाल खड़ा हो गया है कि ञ्चया आम आदमी पार्टी बिखर जाएगी?  क्या नई राजनीति की डाल उसके हाथ से छूट गई है? ऐसे सवालों पर अरविंद केजरीवाल के बाद उसके सबसे कद्दावर नेता, दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया फौरन कहते हैं, ‘टीवी बहस में तो हजारों बार दफन की जा चुकी है आप।’ उन्हें पूरा भरोसा है कि आप उम्मीद पर खरा उतरेगी। आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह के साथ बातचीत में उन्होंने पार्टी की हार के कारणों और आगे की रणनीति पर चर्चा की। प्रमुख अंश:

 

आप सिस्टम बदलने के लिए आए थे। शुरुआत में मिले भारी जन समर्थन के बाद आज आप जहां खड़े हैं, उसे कैसे देखते हैं?

हम जहां खड़े हैं, उसे दो नजरिये से देखने की जरूरत है। एक नजरिया यह है कि एक राज्य में हमारी सरकार है। इस पर गौर करेंगे तो आपको कई बदलाव नजर आएंगे। पिछले दो साल से एक भी पैसे के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है। शुंगलू कमेटी तो बदले की भावना से बनाई गई थी। हमारी 400-500 फाइलों में उसे एक रुपये का भ्रष्टचार नहीं मिला। हम अलग हैं, यह तभी संभव है। मुझे देश में एक सरकार बता दीजिए जो सरकारी स्कूलों को सुधारने पर काम कर रही है। बिजली, पानी, मोहल्ला क्लीनिक जैसे बहुत सारे बदलाव हैं।

दूसरा पहलू हमारे ऊपर कीचड़ उछालने का है। हम बिजली माफिया से लड़ रहे हैं, पानी माफिया से लड़ रहे हैं, स्कूल माफिया से लड़ रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों इसके संरक्षक हैं। यह माफिया और इसके संरक्षक बेचैन हैं, इसलिए हम पर इतने आरोप लगाए जा रहे हैं। हमारे खाने के फर्जी बिल निकाल लाते हैं।

आप लोगों ने इतने अच्छे काम किए तो दिल्ली में एक विधानसभा उपचुनाव और नगर निगम चुनावों में अपेक्षित सफलता क्यों नहीं मिल पाई?

हम इन नतीजों की समीक्षा कर रहे हैं कि कितनी कम्युनिकेशन में गड़बड़ थी, कितनी संगठन में कमी रही और कितना ईवीएम जैसे फैक्टर प्रभावी रहे। यह समझना जरूरी है कि नौ अप्रैल को हुए उपचुनाव में हमें एक सीट पर 11 फीसदी वोट मिलते हैं, जबकि 23 अप्रैल के हुए चुनाव में हमें वहां 31 फीसदी वोट मिल जाते हैं। उसी जनता के बीच से सिर्फ 14 दिन के अंतर पर मिले वोटों में इतना अंतर?

रही बात नगर निगम में भाजपा के 10 साल के कुशासन की तो इसकी बात मीडिया ने होने ही नहीं दी। पूरा डिस्कोर्स बदल कर रख दिया। यह सवाल कहीं नहीं उठाया गया कि क्या भाजपा अपना जनाधार बचा पाएगी। हर बार यही पूछा गया कि क्या आप अपना वजूद बचा पाएगी। हां, यह हमारी नाकामी है कि हम दिल्ली नगर निगम के चुनाव को राष्ट्रीय चुनाव जैसा बनने से रोक नहीं पाए।

दो साल पहले आपने दिल्ली में ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। तब चुनाव का एजेंडा आप तय करते थे और विरोधी बचाव की मुद्रा में रहते थे। इस बार ऐसा नहीं हो पाया?

इस बार सारा का सारा मीडिया चुनाव का एजेंडा तय कर रहा था। बड़े-बड़े हित दांव पर थे। पिछले दो साल में हमने जिस तरीके से सारे माफियाओं से टक्कर ली, उस माफिया का सारा तंत्र भाजपा को सपोर्ट कर रहा था।

मतलब, मीडिया एंटी-आप काम कर रहा था।

मैं कहूंगा मीडिया एंटी-नेशनल काम कर रहा था। मीडिया अगर देश के किसी आदमी के खिलाफ काम करता है। वह भी एंटी-नेशनल है। देश मेरे लिए सिर्फ सीमाएं नहीं हैं। देश के लोग मेरे लिए देश हैं। दिल्ली नगर निगम के चुनावों में स्थानीय मुद्दों को छोड़कर आप के खिलाफ मनगढ़ंत मुद्दों पर सर्वे कराए गए।

इस सब के बावजूद लोकतंत्र को लेकर हमने जो अहम सवाल उठाया है वह ईवीएम का है। इसका कोई जवाब नहीं मिल रहा है। चुनाव आयोग ने कभी नहीं कहा कि ईवीएम हैक करने की चुनौती देंगे। लेकिन सारा मीडिया कह रहा था, चुनाव आयोग ने केजरीवाल को चुनौती दी। सूत्रों के हवाले से! अब कहां है वो सूत्र?

आपका कहना है कि ईवीएम की वजह से पंजाब और गोवा में आपको कामयाबी नहीं मिली?

पंजाब, गोवा और दिल्ली के नतीजों पर यकीन नहीं होता। जमीनी हकीकत हम भी समझते हैं।

क्या पंजाब में पार्टी संगठन के भीतर कलह, मुख्यमंत्री के दावेदार को लेकर उठापटक जैसे मुद्दे आप के लिए निगेटिव नहीं रहे?

हम जीत जाते तो सारी बातें पॉजिटिव कही जातीं। हार गए तो निगेटिव कही जा रही हैं। राजनीतिक पंडिताई ऐसे ही काम करती है। 

इतनी उम्मीदों और इतने बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आते ही आपकी पार्टी में झगड़े शुरू हो गए। कई मंत्रियों, विधायकों पर भ्रष्टाचार, कदाचार के आरोप लगने लगे। फिर आप अलग कैसे हैं?

इस तरह के आरोप और सीडी कितने लोगों की कहां-कहां घूमती रहती है, सब जानते हैं। दोनों मंत्री हमने जीरो टॉलरेंस पर हटाए। इसलिए हम अलग हैं।

दुर्भाग्यपूर्ण है कि सवाल आम आदमी पार्टी के मंत्री की डिग्री पर उठे और सवाल देश के प्रधानमंत्री और उनकी सरकार में एक मंत्री की डिग्री पर भी उठ रहे थे। लेकिन पीएम की डिग्री की बात आती है तो यूनिवर्सिटी डिग्री दिखाने से मना कर देती है, हाईकोर्ट से भी स्टे लग जाता है। फर्जी डिग्री तो फर्जी डिग्री है, पीएम की हो या केंद्र के मंत्री की हो, या फिर राज्य के मंत्री की। इस मामले में देश का मीडिया और कई संस्थाएं मौन हैं।

दिल्ली से बाहर चुनाव लड़ने को लेकर आप असमंजस में रही है। अब भावी रणनीति क्या होगी?

कई राज्यों में चुनाव हुए जहां हम नहीं लड़े। लेकिन पंजाब में लगा कि वहां लोग हमारे साथ खड़े हैं, इसलिए वहां हम लड़े। थोड़ा आभास हमें गोवा से भी मिला। जहां हमें लगता है कि लोग हमारे साथ हैं, हमें वहां चुनाव लडऩे चाहिए। दिल्ली में सफल रहा। आगे जहां भी लगेगा, हम चुनाव लड़ेंगे। हर चुनाव लड़ेंगे जरूरी नहीं।

क्या केंद्र से टकराव और पीएम मोदी की आलोचना का खामियाजा आपको उठाना पड़ा?

जहां तक केंद्र से राज्य का विवाद है, उसमें हम सुप्रीम कोर्ट गए हुए हैं। हमारा मानना है कि जनता अगर नेता चुनती है, उसे काम करने का मौका भी मिलना चाहिए। मोहल्ला क्लीनिक कहां बनेगी, यह भी एलजी तय करेंगे यह ठीक नहीं है।

हमारी मोदी जी से कोई दुश्मनी नहीं है। लेकिन मोदी जी देश की सत्ता में बैठकर ऐसा कोई काम करेंगे जो देशहित में नहीं है, तब देश के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते और पार्टी होने के नाते तय है कि हम इस पर जरूर बोलेंगे। सवाल उठाना विपक्ष का धर्म है।  

आजकल हर मुद्दे को राष्ट्रवादी या राष्ट्रविरोधी खांचे में बांटकर देखने की प्रवृत्ति हावी है। इसे आप किस तरह देखते हैं?

देखिए एक है राष्ट्रवाद और एक है फर्जी राष्ट्रवाद। फर्जी राष्ट्रवाद प्रतीकों के इर्द-गिर्द घूमता है। देश से प्रेम करो देशवासियों से नहीं। फौज से प्यार करो फौजियों से नहीं। तिरंगे से प्यार करो, उसके नीचे खड़े लोगों को लूट लो! ये कैसी देशभक्ति है? फौज को सलाम करने की बात करते हो। लेकिन फौजी जब कहता है कि उसकी दाल में पानी मिलाया जा रहा है तो उसे सस्पेंड कर देते हो। ये कैसा राष्ट्रवाद है? यह फर्जी राष्ट्रवाद है।

जिस तरह भाजपा राज्यों में जीतती जा रही है। विपक्ष के एकजुट होने की बातें हो रही हैं। इसमें आम आदमी पार्टी खुद को कहां पाती है?

डेढ़ साल पहले तक इस देश में स्टार्ट अप, डिजिटल इंडिया, इनोवेशन, इनक्यूबेशन की बातें हो रही थीं। लेकिन अचानक पूरा डिस्कोर्स बदल गया। अब हम ‘काउ इंडिया, गोबर इंडिया’  की बात कर रहे हैं। यह बहुत दुखद है। जिस-जिस को भी यह बात समझ आ रही है, उन सब को इकट्ठा होना पड़ेगा। बात सिर्फ विपक्ष या राजनीतिक एकता की नहीं है। पूरे देश के लोगों को इकट्ठा होना पड़ेगा।

देश में पहले भी आंदोलनों से पार्टियां निकलीं, लेकिन बाकी राजनीतिक दलों की खामियों से खुद का अलग नहीं रख पाईं। आप पर भी वैकल्पिक राजनीति की राह से भटकने के आरोप लग रहे हैं। ऐसे में पार्टी का क्या भविष्य देखते हैं आप?

हमें पूरा भरोसा है कि हम अलग हैं और अलग साबित होंगे। अभी हमें दिल्ली में सिर्फ दो साल हुए हैं, तीन साल और बचे हैं। बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मु्द्दों पर हम ईमानदारी से काम करते रहेंगे। दिल्ली को देश की हेल्थ व एजुकेशन कैपिटल बनाएंगे। जहां-जहां हमें जनता मौका देगी, जी-जान से जनता की सेवा करेंगे। 

 

 

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