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लाल माटी में फिर-फिर बहता लहू

सुकमा के बुर्कापाल की घटना से सरकार की माओवाद से निपटने की रणनीति और सुरक्षा बलों में तालमेल की कमी पर लगे सवालिया निशान
माओवाद‌ियों ने हमले में बेहतर तैयारी और रणनीत‌ि का द‌िया पर‌िचय

बस्तर के घने वनों और घाटियों के सुरम्य ‘लाल माटी’  इलाके में सोमवार 24 अप्रैल की शुरुआत सामान्य दिन जैसी ही हुई थी। सुकमा जिले के बुर्कापाल कैंप से सुबह 6 बजे सीआरपीएफ के 74वीं बटालियन के 90  जवान डेढ़ किलोमीटर दूर सडक़ और पुलिया के निर्माण कार्य की सुरक्षा के लिए निकले। निर्माण स्थल गांव से 150 मीटर की दूरी पर है। दोरनापाल से जगरगुंडा कीओर जाने वाली सड़क पर जवान दो टुकड़ियों में बंट गए और निर्माण स्थल से आगे सर्चिंग करते हुए तीन किलोमीटर तक निकल गए। एक पार्टी बरसाती नाले के पास टेकरी पर चली गई। इस पार्टी में 36 जवान थे। रोड की दूसरी ओर दूसरी पार्टी चल रही थी। सर्चिंग के बाद दोपहर करीब साढ़े 12 बजे जवान टेकरी पर खाना खाने के लिए बैठे। इसी दौरान टेकरी पर माओवादियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। माओवादी यू शेप बनाकर तीन तरफ से हमला कर रहे थे। हमले में 25 जवान शहीद और आठ गंभीर रूप से घायल हो गए। इससे पहले, 11 मार्च को सुकमा जिले के ही भेज्जी इलाके (पोट्टाचेरू) में माओवादियों के घात लगाकर हमले में  सीआरपीएफ के 12 जवान शहीद हो गए थे। 

माओवादी हमले में जवानों की लगातार शहादत से कई सवाल खड़े होने लगे हैं। केंद्र और राज्य सरकार की माओवादियों से लड़ने की इच्छाशक्ति से लेकर रणनीति तक पर प्रश्नचिह्न  लग गए हैं?  बस्तर में तैनात 40 हजार अर्धसैनिक पुलिसबल और 12 से 15 हजार पुलिस के जवान आखिर अनुमानित 14-15 हजार हथियारबंद माओवादियों पर क्यों काबू नहीं कर पा रहे हैं?  सवाल यह भी है कि नक्सली हमले में सबसे ज्यादा सीआरपीएफ के जवान ही क्यों शहीद हो रहे हैं। चाहे वह ताडमेटला की घटना हो या फिर एर्राबोर या उपलमेटा का नक्सली हमला सभी बड़े हमलों में सीआरपीएफ के जवान ही खेत रहे। सुकमा जिले के ही ताडमेटला में अप्रैल 2010 में नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हुए थे।

सुकमा में शहीद जवानों को श्रद्धांजल‌ि देते राजनाथ स‌िंह और रमन स‌िंह

पुलिस का अनुमान है कि बुर्कापाल में करीब 300 नक्सलियों ने हमला किया। इनमें महिला नक्सलियों की तादाद भी काफी थी। महिला नक्सलियों ने जवानों के शव के साथ बर्बर व्यवहार किया। घटना के तीन दिन बाद दंडकारण्य जोनल कमेटी के माओवादी प्रवक्ता ने एक ऑडियो जारी कर बुर्कापाल हमले को 11 मार्च की घटना का विस्तार बताया। उसने यह भी कहा है कि बस्तर में महिलाओं के साथ अत्याचार और यौन शोषण के खिलाफ यह कार्रवाई की गई है। ऐसी कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी। 

सीआरपीएफ के अधिकारियों के मुताबिक,  नक्सलियों ने ऑटोमेटिक हथियारों से हमलाकर जवानों को चौंका दिया। उनके पास एके-47 जैसी ऑटोमेटिक राइफल भी थी। नक्सलियों ने हमले में अंडर बैरल ग्रैनेड लॉन्चरों का इस्तेमाल किया। संभव है कि 11 मार्च को हमले में लूटे गए लॉन्चरों का इस्तेमाल इस हमले में किया गया। अधिकारियों ने बताया कि नक्सलियों ने 22 स्मार्ट आक्वर्स, 13 एके सीरीज राइफल और 75 मैग्जीन, 5 इनसास राइफल और 31 मैग्जीन, 3000 से ज्यादा राउंड बुलेट्स, 22 बुलेटप्रूफ जैकेट, वायरलेस सेट्स और मेटल डिटेक्टर लूट लिए। नक्सलियों ने 100 से ज्यादा तीर बम से भी हमला किया और इसमें से एक दर्जन फटे ही नहीं। बताया जा रहा है कि इन तीर बम ने सबसे ज्यादा नुकसान किया।

सुकमा इलाका, खासकर दोरनापाल का क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ है। सड़क बनने से फोर्स का मूवमेंट बढ़ेगा, लोगों की आवाजाही भी बढ़ जाएगी, नक्सली यह नहीं चाहते। हमले का सूत्रधार हिडमा उर्फ इदमुल उर्फ पोडियाम भीमा को बताया जाता है। हिडमा सुकमा के जगरगुंडा का रहने वाला है और माओवादियों की पीपुल्स लिबरेशन ऑफ गुरिल्ला आर्मी की साउथ बस्तर बटालियन की कमान का मुखिया है। उसकी टीम में 13 कमांडर बताए जाते हैं। 2012 के बाद छत्तीसगढ़ में हुए ज्यादातर बड़े नक्सली हमलों की साजिश इसी ने रची है। झीरम और ताडमेटला में 107 लोगों की हत्या के पीछे भी हिडमा का ही हाथ था। झीरमघाटी में 23 मई 2013 को नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर कांग्रेस के बड़े नेताओं समेत 31 लोगों की हत्या कर दी थी। हिडमा को पकड़ने के लिए पांच साल से ऑपरेशन चल रहा है। बताया जाता है कि उसने दो शादियां की हैं। पहली पत्नी को शादी के कुछ साल बाद छोड़ दिया और फिर महिला नक्सली राजे उर्फ राजक्का से शादी कर ली।

पिछले 17 साल में  बस्तर में शहीद जवानों की संख्या हजार तक पहुंच चुकी है। हालांकि सरकार इसकी पुष्टि नहीं करती। आंकड़े यह भी जाहिर करते हैं कि नक्सली हमले में ज्यादा सीआरपीएफ के जवान ही फंसते हैं। ताड़मेटला, एर्राबोर, उपलमेटा या फिर रिसगांव की घटना हो। बस्तर में सीआरपीएफ की पहली तैनाती 2002 में हुई, जब राज्य के गृह मंत्री स्व. नंदकुमार पटेल थे, जो 2013 में खुद नक्सली हिंसा के शिकार हुए। अभी बस्तर के सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर जिले में सीआरपीएफ की 40 बटालियन यानी 40 हजार जवान तैनात हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ आर्म फोर्स, डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) और जिला पुलिस के जवान भी नक्सलियों से लड़ रहे हैं। कांकेर और कोंडागांव में बीएसएफ के जवान मोर्चे पर हैं। 

पुलिस और खुफिया विभाग का अनुमान है कि बस्तर इलाके में तीन हजार के आसपास हार्डकोर नक्सली होंगे। इसके अलावा संघम, चेतना नाट्य मंडली और जनताना सरकार के साथ गांव स्तर पर कुछ छोटे संगठन हैं, जो नक्सलियों के लिए काम करते हैं।

बस्तर में सबसे बड़ी समस्या सुरक्षा बलों में तालमेल की कमी है। ग्रामीणों का विश्वास नहीं जीत पाने की वजह से नक्सलियों के बारे में सूचनाएं भी ज्यादा नहीं मिल पातीं। हालांकि छत्तीसगढ़ पुलिस के डीजी अमरनाथ उपाध्याय और सीआरपीएफ के प्रभारी डीजी सुदीप लखटकिया ने तालमेल न होने की बात को खारिज किया। छत्तीसगढ़ के पूर्व पुलिस महानिदेशक और नक्सल मामलों के जानकार विश्वरंजन का मानना है, ‘बस्तर में मल्टी फोर्स में बेहतर तालमेल होना चाहिए, जो नहीं है। इसके अलावा हर घटना के बाद गहन समीक्षा होनी चाहिए, वह नहीं होती है। इसलिए बस्तर में फोर्स लगातार नक्सलियों के जाल में फंस जाती है। आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों के ग्रेहाउंड बल की सफलता का कारण हर घटना के बाद लंबी डी ब्रीफिंग होना है। कहा जा रहा है कि 11 मार्च की घटना के बाद सीआरपीएफ गलतियों की समीक्षा कर लेता तो शायद 24 अप्रैल की घटना नहीं होती।’

बस्तर में नक्सलियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष 2005 के बाद बढ़ा, जब वहां सलवा जुडूम शुरू हुआ। इससे बस्तर इलाके में नक्सल विरोधी और समर्थक दो धड़े हो गए। सुरक्षा बल नक्सल विरोधियों के जरिए नक्सलियों तक पहुंचने लगे। इससे नक्सलियों का वर्चस्व टूटने लगा। विश्वरंजन का कहना है कि सरकार को नक्सलियों पर नियंत्रण पाना है तो नक्सलियों के तौर-तरीके और गतिविधियों का आकलन करके वैसी रणनीति बनाई जानी चाहिए। बस्तर में शिवरामप्रसाद कल्लूरी के आईजी रहते नक्सली घटनाएं काफी काम हो गई थीं और कई नक्सलियों ने सरेंडर भी किया। उन्हें हटाने के बाद घटनाएं बढ़ गई।

कल्लूरी विवाद

आईपीएस अधिकारी एसआरपी कल्लूरी का हमेशा से विवादों से नाता रहा।  वे 1994 बैच के हैं। अपने काम करने के तरीके से वे कभी विरोधी दल तो कभी  सामाजिक और मानव अधिकार संगठन के नेताओं और कार्यकर्ताओं के निशाने पर आ जाते हैं। कल्लूरी जून 2014 में बस्तर के आईजी बनाए गए थे। शुरुआती दौर में कल्लूरी के नेतृत्व में नञ्चसलियों की धर-पकड़ और आत्मसमर्पण काफी हुए। बस्तर आईजी रहते कल्लूरी ने नक्सलियों से मुकाबले के लिए एक संगठन बनवा दिया था। इस संगठन के बैनर पर सरेंडर करने वाले कुछ नक्सलियों की शादी करवाई गई। बारात में कल्लूरी के अलावा दूसरे पुलिस अफसर भी शामिल हुए। इस संगठन के लोगों ने सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया के घर हंगामा कर बस्तर छोडऩे का अल्टीमेटम दे दिया। फिर कल्लूरी सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर नंदिनी सुंदर समेत चार लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने, बीजापुर में सुरक्षा बलों द्वारा 16 आदिवासी  महिलाओं से रेप के मामले में उलझ गए।

कल्लूरी के कार्यकाल में पहली बार ऐसा हुआ कि जवान ही नक्सलियों के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे। रायपुर एयरपोर्ट पर एक नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगवानी करने वालों में कल्लूरी को देखकर सब चौंके। फरवरी 2017 में सरकार को कल्लूरी को हटाना पड़ा। कल्लूरी 2001 से 2003 तक के अजित जोगी कार्यकाल में भी विवादों में रहे। तब बीजेपी उन पर आरोप लगाती थी। जोगी के पक्ष में काम करने की शिकायत पर चुनाव आयोग ने उन्हें 2003 में बिलासपुर के एसपी पद से हटा दिया था। 

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सुकमा घटना के बाद कहा कि माओवादी ऐसा बौखलाहट में कर रहे हैं। वे सुरक्षाबलों की कार्रवाई से डरे हुए हैं। वर्ष 2016 में सुरक्षा बलों ने सभी माओवाद प्रभावित राज्यों खासकर छत्तीसगढ़ में सफलता प्राप्त की और 135 उग्रवादियों को मार गिराया। 2015 के मुकाबले 2016 में वामपंथी उग्रवादियों के आत्मसमर्पण और गिरफ्तारी में 47 फीसदी की वृद्धि हुई है।  लेकिन 24 अप्रैल की घटना के बाद रायपुर में राजनाथ सिंह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह रणनीति में फेरबदल की बात कर रहे हैं। यानी आंकड़े सही तस्वीर जाहिर नहीं कर रहे थे।

 

 

‘अब आक्रामक अभियान चलेगा’

डी.एम. अवस्थी

छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक (नक्सल ऑपरेशन) डी. एम. अवस्थी ने आउटलुक से खास बातचीत में कहा कि नक्सलियों के खिलाफ आक्रामक होने की जरूरत है। पुलिस आक्रामक रणनीति अपनाएगी। तौर-तरीकों में भी कुछ बदलाव करेगी। कुछ अंश:

 

बुर्कापाल की घटना के बाद पुलिस क्या रणनीति अपनाएगी?

अब नक्सलियों को उनकी भाषा में जवाब दिया जाएगा। अभी तक फोर्स थोड़ा डिफेंसिव थी। अब पूरी तरह से ऑफेंसिव हो जाएगी।   

नक्सलियों से बातचीत की कोई संभावना देखते हैं ?

नक्सली जिस तरह हथियार लूट रहे हैं और हमले किए जा रहे हैं, उससे नहीं लगता कि कोई बातचीत संभव है..

बुर्कापाल की घटना को इंटेलिजेंस नाकामी कहा जा रहा है ?

यह पूरी तरह से गलत है। सीआरपीएफ के जवान सडक़ बनाने वालों की सुरक्षा के लिए गए थे। जवान किसी वॉर या मुठभेड़ के मोर्चे पर नहीं गए थे। इस घटना के बाद रोड ओपनिंग पार्टी बंद कर दी गई है। अब फोर्स का इस्तेमाल नक्सलियों को जवाबी हमला देने में ही होगा। 

बस्तर में भारी संख्या में फोर्स होने के बाद भी नक्सलियों को माकूल जवाब क्यों नहीं मिल पा रहा है?

माकूल जवाब देने के लिए लोकल फोर्स ज्यादा होनी चाहिए। जैसे छत्तीसगढ़ आर्म फोर्स और डीआरजी की संख्या दो से तीन गुना तक बढ़ाई जाने की जरूरत है। लोकल फोर्स फ्रंट पर रहे और सीआरपीएफ प्रोटेक्शन दे।

कहा जाता है कि नक्सली ठेकेदारों व अन्य लोगों से काफी चंदा वसूलते हैं? उनकी इकॉनमी काफी मजबूत है।

इसका कोई  पुख्ता सबूत नहीं है , पर सूचना के अनुसार नक्सली हर साल 500 करोड़ रुपये तक वसूली करते हैं।

 

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