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बदलेगी खेती की तस्वीर

नीति आयोग के मॉडल कृषि लैंड लीजिंग एक्ट को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान जैसे कई राज्यों ने अपनाया
मॉडल कृष‌ि लैंड लीज‌िंग एक्ट से उपज बढ़ने के साथ बढ़ेंगे रोजगार के साधन

देश में किसानों की स्थिति सुधारने के लिए यह जरूरी है कि ऐसे उपाय किए जाएं जिससे न सिर्फ उनकी आय बढ़े बल्कि फसल की पैदावार भी अधिक हो। हमारे यहां कुछ किसानों के पास काफी जमीन है और कुछ के पास कम। जिनके पास ज्यादा जमीन है वे खेत किराए पर उठाने (एग्रीकल्चर टीनेंसी) से इसलिए डरते हैं कि कहीं उनकी जमीन न चली जाए। दूसरी ओर, ऐसे किसान भी हैं जो टीनेंसी के तहत ली गई जमीन पर कर्ज, बीमा जैसी सुविधाएं नहीं मिलने से जमीन लेने से हिचकते हैं। ऐसे में नीति आयोग ने मॉडल कृषि लैंड लीजिंग एक्ट का मसौदा बनाया है, जिसमें दोनों के हितों का ध्यान रखा गया है।

भारत के अधिकांश किसान गरीबी और कर्ज के जाल में फंसे हुए हैं। इसका मुख्य कारण है कि इन्हें उचित कानून की जानकारी नहीं है और ये संस्थागत तथा नई तकनीकी खोजों से अनभिज्ञ हैं। 1960 और 1970 के बीच कई राज्यों में बनाए गए एग्रीकल्चर टीनेंसी और एपीएमसी कानून न सिर्फ अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं बल्कि फायदेमंद भी नहीं रहे हैं। इनका इस्तेमाल जमींदारों और व्यापारियों ने किसानों के शोषण के लिए किया। हालांकि अब हालात बदल चुके हैं। सभी बड़े बिचौलियों को खत्म कर दिया गया है और किसानों के पास बड़ा बाजार उपलब्ध है। टीनेंसी और बाजार से कानूनी और संस्थागत प्रतिबंधों के हटने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव आएगा, जिससे गरीबी मिटाने और आर्थिक विकास में मदद मिलेगी।

क्या कहता है आदर्श मसौदा

इसी मकसद से नीति आयोग के विशेषज्ञ समूह ने मॉडल कृषि लैंड लीजिंग एक्ट बनाया है। इसे सभी राज्य सरकारों को भेजा गया है। इसके प्रमुख प्रावधानों के अनुसार जो लोग अपनी जमीन खेती के लिए लीज पर देना या लेना चाहते हैं उन्हें लिखित करार करना होगा। करार में सभी शर्तें आपसी सहमति से तय होंगी। लीज की अवधि और किराया खेत मालिक और किसान आपसी सहमति से ही तय करेंगे। अगर लीज की अवधि नहीं बढ़ाई गई तो जमीन स्वत: मालिक के पास चली जाएगी। खेत लीज पर लेने वाला किसान लीज की अवधि के दौरान किसान फसल कर्ज, बीमा, आपदा राहत पाने का हकदार होगा। लीज पर दोनों पक्षों के बीच कोई विवाद होता है तो उसे तीसरे पक्ष या ग्राम पंचायत या ग्राम सभा की मध्यस्थता से सुलझाया जाना चाहिए। इससे भी विवाद न सुलझे तो तहसीलदार या उसके समकक्ष अफसर के पास अर्जी डालनी चाहिए। इसके बाद वह साक्ष्यों और सबूतों के आधार पर इस विवाद का हल चार सप्ताह में करेगा। फिर भी विवाद बना रहे तो उसके लिए भूमि विशेष न्यायाधिकरण होगा, जिसका गठन राज्य सरकार को इस कानूनी मसौदे के मुताबिक करना होगा। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज या जिला कोर्ट के जज को इसका प्रमुख बनाना चाहिए। इस कानूनी मसौदे के तहत ऐसे विवाद दीवानी अदालतों के दायरे में नहीं आएंगे।

देश में लैंड लीजिंग की कानूनी स्थिति

लैंड लीजिंग पर कानूनी पहलू के अनुसार देश के क्षेत्रों/राज्यों को मुख्य तौर पर पांच हिस्सों में बांटा जा सकता है। हर हिस्से में कुछ भिन्नता संभव है। केरल और जम्मू-कश्मीर ने बिना किसी अपवाद के कृषि भूमि को लीज पर देने से रोक लगा दी है। बिहार, तेलंगाना, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और त्रिपुरा में विधवा, नाबालिग, सैनिकों, शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर जमीन मालिकों को लीज देने की अनुमति दे रखी है। कर्नाटक में सिर्फ सेवारत सैनिक या नाविक को एक मार्च 1974 के बाद से जमीन को लीज पर देने की अनुमति है। पंजाब, हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और असम में लीज पर रोक नहीं है पर जमीन लेने वाले को (हरियाणा में छोड़कर) यह अधिकार है कि वह एक समय सीमा के बाद जमीन को उसके मालिक से खरीद सकता है। गुजरात और महाराष्ट्र में जमीन लेने वाला एससी/एसटी वर्ग से है तो उससे टीनेंसी निलंबित नहीं की जा सकती है। पंजाब में जमीन देने वाले के पास पांच एकड़ से कम जमीन है तो वह उसे खाली करा सकता है। पंजाब में छह और असम में तीन साल तक लगातार खेती करने वाला उस जमीन को खरीदने का हकदार हो जाता है। जिन राज्यों में लीज देने पर प्रतिबंध नहीं है, वहां कई शर्तें हैं। इन राज्यों में पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान शामिल हैं। पश्चिम बंगाल में सिर्फ लीज पर खेती की अनुमति है। यहां तय रकम नकद देने अनुमति नहीं है। आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में जमीन मालिक को जमीन वापसी का अधिकार है लेकिन उसे जमीन लेने वाले के पास आधी जमीन छोडऩी होगी। जमीन लीज पर देने के लिए अधिकांश राज्यों में जो नियम हैं उनके अनुसार लीज की अवधि तय करने के अलावा उपज का एक तिहाई से पांचवां हिस्सा तक देने का प्रावधान है। हालांकि यह कभी लागू नहीं हो पाता है।

जमीन लीज पर देने के जो कानूनी प्रावधान हैं उनसे कृषि की क्षमता प्रभावित हुई है। सबसे पहले, जमीन लीज पर देने के जो कानूनी प्रावधान या प्रतिबंध हैं उससे देश के लगभग सभी हिस्सों में कुछ परेशानी है। जमीन लेने वालों को जमीन कम समय के लिए मिलती है। अमूमन यह करार जबानी होता है और हर मौसम में खेत बदलने पर मजबूर होते हैं। नतीजा यह होता है कि जमीन लेने वाला किसान खेत को उपजाऊ बनाने या उसकी उर्वरता बढ़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं करता। दूसरी परेशानी यह है कि जमीन लीज पर लेने वाले को संस्थागत कर्ज, बीमा और अन्य सहायक सेवाएं नहीं मिल पाती हैं। इसका असर यह होता है कि जिस जमीन पर वह खेती करता है उसकी पैदावार प्रभावित होती है।

तीसरी परेशानी यह है कि कानूनी प्रावधानों की वजह से कई जमीन मालिक अपनी जमीन खाली छोड़ देते हैं। उन्हें इस बात का डर रहता है कि वे जमीन लीज पर देते हैं तो वह उनके हाथ से जा सकती है। 2012-13 के दौरान भारत में 263 लाख हेक्टेयर खेत खाली रहे थे। खेत खाली रहने से न सिर्फ उसकी उपयोगिता घटती है बल्कि कृषि उपज भी घटती है।

चौथी बात यह है कि जमीन की लीज उन्हीं लोगों की दी जाती है जो भूमिहीन हैं या छोटी जोत के मालिक हैं। अगर जमीन का अधिक उपयोग हो, इसमें अधिक निवेश किया जाए और अधिक लोगों को काम पर लगाया जाए तो ज्यादा फायदा होगा। जमीन को लीज पर लेने वाले की आजीविका और उसके परिवार में श्रमिकों की संख्या का भी बहुत महत्व है।

इस बात के कई साक्ष्य हैं कि आर्थिक ताकतें जमीन के लीज को संचालित करती हैं। जबकि प्रतिबंध या प्रावधान लीज के लिए जमीन की उपलब्धता कम करते हैं। ऐसा होने से लीज पर जमीन लेने की इच्छा रखने वाले किसानों को परेशानी होती है। अगर जमीन को लीज पर लेने को कानूनी बना दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों को ज्यादा जमीन मिलेगी। भूमिहीन और सीमांत किसान इससे अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति मजबूत कर पाएंगे।

भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का हिस्सा करीब 14 से 16 फीसदी है। जबकि इसमें कुल श्रमशक्ति का 49 और ग्राणीम श्रमशक्ति का 64 फीसदी हिस्सा लगा है। जनसंख्या के बड़े हिस्से का मुख्य रूप से कृषि पर आश्रित होने का प्रमुख कारण जमीन का छोटा टुकड़ा होना है। इसकी वजह से कृषि मजदूरों की प्रति व्यक्ति आय कम है और वे गरीबी के शिकार हैं। कृषि की भी अपनी एक सीमा है। अब वह और श्रमिकों का बोझ नहीं उठा सकती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि कृषि कार्य में लगे लोगों को गैर कृषि कार्य में लगाया जाए। जमीन को लीज पर देने की प्रक्रिया को कानूनी रूप देना इस समस्या के हल के लिए मददगार साबित होगा। इससे जमीन मालिक अपनी जमीन गंवाने की डर छोडक़र जमीन लीज पर देंगे और गैर कृषि क्षेत्र में निवेश करेंगे। ऐसा होने से कृषि पर से जनसंख्या का बोझ कम होगा।

राज्यों ने अपनाया मॉडल कानून

हाल ही में उत्तर प्रदेश ने कानून में संशोधन किया है। इसके अनुसार हर प्रकार के जमीन मालिकों के लिए लीजिंग को कानूनी रूप दिया गया है। उत्तराखंड और राजस्थान ने भी अपने कानून मॉडल एक्ट की तरह बनाए है। मध्यप्रदेश ने भी बिल पास किया है जिसे राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार है। ओडिशा ने भी नया बिल बनाया है जिसे आने वाले मानसून सत्र में पेश किए जाने की उम्मीद है। तेलंगाना भी इस पर काम कर रहा है। कर्नाटक ने विकास आयुक्त के नेतृत्व में इस पर काम करने के लिए समिति बनाई, जिसने हाल ही में अपनी सकारात्मक रिपोर्ट सौंप दी है। महाराष्ट्र भी इस दिशा में कानून बनाने की तैयारी कर रहा है। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि सभी राज्य अपनी स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार इस मॉडल एक्ट को पूरी तरह लागू करने पर विचार करेंगे।

मॉडल कृषि लैंड लीजिंग एक्ट में प्रावधान है कि जमीन लीज पर देने की प्रक्रिया को कानूनी रूप दिया जाए। ऐसा करने से जमीन लीज पर देने वाले में जमीन जाने का भय खत्म होगा और जमीन लेने वाले को कर्ज, बीमा, आपदा राहत मिलने का हक मिलेगा। ऐसा होने से ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गरीबों द्वारा जमीन का समुचित उपयोग तो होगा ही, लोगों को रोजगार के ज्यादा साधन भी उपलब्ध होंगे। लैंड लीजिंग ग्रामीण लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाने के लिए भी प्रेरित करेगा जिससे गरीबी कम होगी। ऐसे में हम कह सकते हैं कि यह जमीन के मालिक और लीज पर लेने वाले, दोनों के लिए फायदेमंद होगा।

(लेखक नीति आयोग की लैंड पॉलिसी सेल के प्रमुख हैं।)

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