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शास्त्रीयता की मिठास वाला संगीत

अली अकबर खां की पृष्ठभूमि शास्त्रीय संगीत की थी, फिल्मी दुनिया में उन्होंने अलग तरह के गाने रचे
पंकज राग

जिन शास्त्रीय संगीत के उस्तादों ने चुनिंदा हिंदी फिल्मों में संगीत दिया उनमें अली अकबर खान का नाम भी प्रमुखता से आता है। जोधपुर के राजघराने से उन्हें नवकेतन की फिल्मों में संगीत देने के लिए चेतन आनंद लाए। 'इप्टा’ से संबद्ध रहे चेतन हमेशा स्तरीय सिनेमा निर्मित करने के प्रयास में रहते थे। इसी स्तर की तलाश में वह पहले रविशंकर को भी बतौर संगीतकार लाए थे और छठे दशक में आंधियां (1952) के लिए अली अकबर खां को चुना गया। इस फिल्म में तीन भागों में रिकॉर्ड किया लता के स्वर में 'है कहीं पर शादमानी और कहीं नाशादियां’ की संजीदा धुन के साथ अली अकबर खां का सरोद क्‍या खूब बजा है! इस गीत की तारीफ संगीतप्रेमी आज तक करते हैं। वहीं फिल्मों के लोकप्रिय रूमानी गीत 'वो चांद नहीं है दिल है किसी दीवाने का’ (हेमंत, आशा) को तो एच.एम.वी. ने वर्षों बाद रिलीज हेमंत कुमार के रेयर जेम्‍स कैसेट्स में भी शामिल किया है। इन दोनों गीतों में मिठास को बढ़ाने के लिए बांसुरी का भी बड़ा लुभावना प्रयोग अली अकबर खान ने किया। लक्ष्मीशंकर के स्वर में 'नैन मन मोर बना’ भी फिल्म की एक अच्छी कंपोजीशन थी। हल्के ऑरकेस्ट्रेशन के साथ की मेलोडी आंधियां की विशेषता रही है।

यह भी एक रोचक तथ्य है कि संगीतकार जयदेव आंधियां (1952) और अली अकबर द्वारा स्वरबद्ध नवकेतन की ही हमसफर (1953) में अली अकबर खान के सहायक रहे थे। हमसफर में अली अकबर खान को साहिर लुधियानवी के गीतों को स्वरबद्ध करने का मौका मिला। किशोर कुमार और साथियों के स्वर में 'लीला अपरंपार प्रभुजी’ थोड़ा लोकप्रिय जरूर रहा था पर कंपोजीशंस में कोई खास बात नहीं थी। तलत और आशा के गाए दो रूमानी गानों में से 'किसी ने नजर से नजर जब मिला दी’ भी कोई विशेष असर नहीं छोड़ती। गीता के स्वर में 'हसीन चांदनी भीगी-भीगी हवाएं’ और बांसुरी के सुंदर प्रयोग वाली 'कोई दूर बजाए बांसुरी’ (लता) ठीक-ठाक रचनाएं थीं। कुल मिलाकर हमसफर का स्कोर कमजोर ही माना जाएगा और शायद यही कारण हो कि नवकेतन ने इस फिल्म के बाद बतौर संगीतकार अली अकबर खान को फिर अवसर नहीं दिया।

संगीतकार अली अकबर खान

अली अकबर खान सरोद वादक के रूप में तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मशहूर रहे ही हैं, शास्त्रीय संगीत की दुनिया में उनकी महारत से भी सभी परिचित हैं। राहुल देव बर्मन ने भी अली अकबर खान से ही सरोद सीखा था। अली अकबर खान को कुछ बांग्ला फिल्मों में भी संगीत देने का अवसर मिला। सत्यजित राय की प्रसिद्ध फिल्म देवी में संगीत देते हुए उन्होंने राग चंद्र नंदन का बहुत सुंदर इस्तेमाल किया। यह वही राग चंद्र नंदन था जिसे वर्षों पहले शाम के चार रागों मालकौंस, चंद्रकौंस, नंदकौंस एवं कौशी कन्नड़ के मिश्रण से तैयार किया गया था। देवी में सत्यजित राय के लिखे एक गीत को रामप्रसादी लोक धुन में सजाया गया था। इसी प्रकार फिल्म क्षुधिता पाषाण में अमीर खान साहब से 'पिया के आवन की’ और 'घिमता घिमता’ अमीर खान तथा प्रतिभा बनर्जी से 'कैसे करे रजनी’ तथा अंतरिक्ष में प्रतिभा बनर्जी और स्वरूप लता से 'तरस तरस गाए नैन’ और सुरेर प्यासी में ए.टी. कानन और प्रतिभा बनर्जी से 'पिया बिन जिया मोरा’ जैसे विशुद्ध शास्त्रीय गीत उन्होंने हिंदी में गवाए। हिंदी फिल्मों के कथानक की अपेक्षा बांग्ला फिल्मों ने अली अकबर खान की शास्त्रीय संगीत की विशेषता को प्रखर और उद्यमित होने का कहीं अधिक अवसर दिया। वर्षों पहले पंद्रहवीं से उन्नीसवीं सदी के संगीत की याद लेकर सृजित आशा भोंसले के साथ उनके एलबम द लेगेसी की भिन्न रागों में खयाल, तराना, प्रार्थना, होरी जैसी रचनाएं बहुत चर्चित और लोकप्रिय रहीं।

(लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी एवं संगीत विशेषज्ञ हैं।)

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