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चुनावी रण में तिकोना मुकाबला

मौजूदा हालात में आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता में कुछ कमी आई है और कांग्रेस मजबूत हुई है। किसान-उद्योगपति सरकार से खासे नाराज हैं
पीएम मोदी और बादल परिवार

पं जाब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले चंडीगढ़ नगर निकाय के चुनाव परिणाम भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में रहे। चंडीगढ़ के इन चुनाव परिणामों को, 2017 में पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनावों के मद्देनजर भाजपा के पक्ष में देखा जा रहा है जबकि सच यह है कि पंजाब के मुकाबले चंडीगढ़ एक छोटा सा बिंदु बराबर टापू है। यहां हुए नगर निकाय के चुनाव परिणामकिसी भी प्रकार से पंजाब के चुनावों को प्रभावित नहीं कर सकते। हालांकि भाजपा इसका दम भर रही है। पंजाब भाजपा के राज्य सचिव विनीत जोशी का तर्क है कि नोटबंदी के बाद यह ऐसा पहला चुनाव है जिसमें भाजपा को बड़ी संख्या में बहुमत मिला है और बेशक चंडीगढ़ में दूसरे प्रदेशों के लोग भी रहते हैं लेकिन

ज्यादा संख्या पंजाबियों की है। जहां तक बात पंजाब विधानसभा चुनावों की है तो हालात छह महीने पहले जैसे नहीं हैं। छह महीने पहले जनता के बीच आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी था लेकिन अब हालात पहले जैसे नहीं हैं। शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्‍ता प्रेम सिंह चंदुमाजरा कहते हैं कि आम आदमी पार्टी के नेताओं पर जब से टिकट बेचने,पंजाबियों को दरकिनार करने, मैनिफेस्टो में स्वर्ण मंदिर के साथ झाड़ू की तस्वीर छापने, शराब पीकर दरबार साहिब में माथा टेकने जैसे आरोप लगे हैं तब से 'आप’ की लोकप्रियता में कमी आई है। 'आप’ प्रवक्‍ता आशुतोष कहते हैं कि पार्टी पंजाब में तीन-चौथाई बहुमत से जीत रही है। न तो सिख मुख्यमंत्री बनने के मुद्दे पर विवाद है और न कोई और। पंजाब में नेतृत्व पंजाब के ही लोग करेंगे।

पंजाब के मसले पर राजनीतिक विश्लेषक देसराज काली का कहना है कि राज्य में बदली परिस्थितियों में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है। दलित प्रभुत्व वाले दोआबा में बहुजन समाज पार्टी संस्थापक कांशीराम की मौत के बाद पार्टी प्रमुख मायावती ने जिन नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया था वे अकाली दल में शामिल हो गए थे लेकिन वहां भी उन्हें तवज्जो न मिलने से अब उनका झुकाव कांग्रेस की ओर है। मालवा में खेती-किसानी और सिखों के धार्मिक मसलों पर 'आप’ की स्थिति पहले ठीक थी लेकिन अब हालात बदले हुए हैं। काली का कहना है कि जनता मानती है कि पार्टी के पास सिद्धांत, संगठन और संजीदा नेतृत्व की कमी है। इसी प्रकार माझा में भी कांग्रेस-'आप’ और अकाली दल आमने-सामने हैं। यही नहीं कांग्रेस से आप में शामिल हुए सुखपाल सिंह खैरा ने बोल दिया है कि पंजाब का मुख्यमंत्री सिख ही बनेगा। काली के अनुसार आप के पास मजबूत सिख चेहरा न होने की वजह से भी पार्टी को नुकसान हो सकता है। 'आप’, कांग्रेस और अकाली दल ने अपने-अपने प्रत्याशियों के नाम भी घोषित कर दिए हैं जबकि भाजपा करने वाली है। 'आप’ को छोडक़र अभी तक किसी पार्टी में उम्मीदवारों के नामों पर बगावती तेवर सामने नहीं आए हैं। बीते दो दफा से सत्तारूढ़ दल शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी से राज्य का किसान और उद्योगों से जुड़ा तबका खासा नाराज है। किसानों के मुद्दे तो सभी पार्टियां उठा रही हैं। सभी किसानों के वोट हासिल करने के लिए तमाम वादे कर रही हैं, लेकिन ये वादे सिर्फ चुनावी भाषणों तक सीमित न रह जाएं, इसलिए कुछ दिन पहले बीकेयू ने किसानों की संसद बुलाई थी।

नोटबंदी का साफ असर दिखेगा किसानों के वोट पर

पंजाब में किसान आत्महत्या कोई नई बात नहीं है। लेकिन नोटबंदी ने किसानों की बची रीढ़ की हड्डी भी तोड़ दी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था वैसे भी कैश पर आधारित है। भारतीय किसान यूनियन (लखोवाल) के अध्यक्ष अजमेर सिंह लखोवाल का कहना है कि नोटबंदी की वजह से मंडियों से किसानों का धान मुश्किल से उठा और गेहूं बीजने के लिए उन्हें कर्ज नहीं मिल पाया। इसका परिणाम यह हुआ कि गेहंू की बुआई देर से हो पाई। लखोवाल का कहना है कि नोटबंदी का साफ असर पंजाब विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। किसान समेत कई लोग पंजाब में इस वजह से आत्महत्या कर चुके हैं।

पंजाब के मौजूदा हालात देखने के लिए आउटलुक संवाददाता ने राज्य के लगभग 30 गांवों का दौरा किया। बरनाला जिले का यह गांव है सपालकलां। ...मुझे गांव में रहने वाले सरदारा सिंह के घर जाना था। मटमैली ईंटों की जमीन वाली तंग गली के अंदर उनका घर है। एक दिन पहले सरदारा सिंह के 27 वर्षीय बेटे हरबंस सिंह ने कीटनाशक दवाई पीकर आत्महत्या कर ली है। हरबंस की चार वर्ष की बेटी कुछ नहीं जानती है और उसकी 25 वर्षीय विधवा रमजोत कौर किसी सवाल का जवाब नहीं देती है। उसके पिता सरदारा सिंह का कहना है कि हरबंस ने खेेती के लिए चार एकड़ जमीन ठेके पर ली थी। दो सालों से वह कपास लगा रहा था। लेकिन कीटनाशकों के लाख छिडक़ाव के बावजूद कपास पर हमला करने वाली सफेद मक्‍खी नहीं मरी। वजह थी राज्य में बीते दो सालों में सरकारी मिलीभगत से नकली कीटनाशक बेचे गए। बेमौसमी बारिश, ओलों ने हरबंस की गेंहूं की फसल बरबाद कर दी। वह नुकसान को इसलिए नहीं झेल पाया क्‍योंकि उसे लगता था कि पिछली दो फसलों के समय लिया गया कर्ज का कुछ हिस्सा वह इस गेंहूं की फसल से चुका देगा। हरबंस की आत्महत्या सिर्फ एक घटना नहीं है। गांव घूमने पर पता चला कि राज्य में हो रही किसान आत्महत्याओं में अब एक बड़ा बदलाव आया है। वह बदलाव यह है कि इससे पहले यहां अधेड़ उम्र या उम्रदराज किसान आत्महत्या करते थे लेकिन अब नौजवान किसान आत्महत्या कर रहे हैं। यही नहीं ऐसे कई मामले देखने को मिले जहां महिलाओं ने आत्महत्या की। बठिंडा के तलवंडी अकलियां गांव की रहने वाली गुरजीत कौर के आंसू थम नहीं रहे हैं। वह बताती है कि छह महीने बाद उनकी 19 वर्षीय बेटी की शादी थी। उसकी शादी के लिए कहीं से भी रुपयों का इंतजाम नहीं हो रहा था। 2 एकड़ जमीन है। जिसमें खास फसल नहीं होती। एक दिन जब उसके पिता सब जगह से थक-हार कर आए, कहने लगे कि कहीं से पैसों का इंतजाम नहीं हो रहा तो बेटी ने यह बात सुन ली। मैं कुछ देर बाद अंदर गई तो उसने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली थी। 

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