Advertisement

मध्य वर्ग को आईना

बजट में सपने बड़े लेकिन उन्हें पूरा करने के उपाय नहीं दिखते, सहूलियत से ज्यादा परेशानियां
ड्रीम बजटः संसद जाने के पहले अपनी पूरी टीम के साथ वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

कहने को तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह 2019-20 का पूर्ण बजट है, लेकिन यह अंतरिम बजट का पूरक ज्यादा लगता है, जिसे चुनाव के पहले पीयूष गोयल ने पेश किया था। सपने कई हैं, काम की बातें कम। फिर, चुनाव में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले मध्य वर्ग के लिए भी बजट में कुछ खास नहीं है। उस पर सहूलियतों से ज्यादा परेशानियां लाद दी गईं। नौकरियों की चर्चा बजट में नहीं है। नई नौकरियां निजी निवेश से ही निकलेंगी, लेकिन इसे बढ़ाने के उपाय भी बजट में नहीं हैं। मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए आयात घटाने पर जोर दिया गया है, लेकिन निर्यात बढ़ाने के उपाय नहीं हैं। निर्यात से भी रोजगार बढ़ता। आयात कम करने के लिए कस्टम और एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई गई है। यह कदम स्वदेशी लॉबी को खुश कर सकता है। आम आदमी इनकम टैक्स में छूट की बड़ी उम्मीद लगाए था। लेकिन वित्त मंत्री ने उसे निराश किया है। उनके लिए इनकम टैक्स के स्लैब और टैक्स रेट में कोई बदलाव नहीं है। पेट्रोल और डीजल पर शुल्क दो-दो रुपये बढ़ाने का सबसे ज्यादा असर इसी वर्ग पर होगा। दो करोड़ रुपये से ज्यादा सालाना आय वाले सुपर रिच पर सेस बढ़ाया गया है। इससे इनकम टैक्स की अधिकतम दर 42.7 प्रतिशत हो जाएगी। लेकिन टैक्स विभाग के पिछले साल के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 6,351 लोगों ने पांच करोड़ रुपये से ज्यादा आमदनी दिखाई थी। यानी टैक्स बढ़ोतरी का असर चुनिंदा लोगों पर ही पड़ेगा। इन दोनों कदमों से सरकार को इस साल 30,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त मिलने की उम्मीद है।

मध्य वर्ग को राहत सिर्फ घर खरीदने में है। अफोर्डेबल हाउसिंग स्कीम के तहत अभी होम लोन पर दो लाख रुपये तक के ब्याज पर टैक्स में छूट मिलती है। अब 3.5 लाख रुपये तक के ब्याज पर टैक्स में छूट का लाभ ले सकेंगे। लेकिन यह लाभ 31 मार्च 2020 तक घर खरीदने वालों को ही मिलेगा। हाउसिंग सेक्टर की कमजोर स्थिति को देखते हुए यह लाभ थोड़े लंबे समय तक दिया जा सकता था। इससे हाउसिंग से जुड़े सीमेंट और स्टील जैसे सेक्टर में भी फायदा होता। अफोर्डेबल स्कीम के तहत घर की कीमत 45 लाख रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए। इससे ज्यादा दाम के घर खरीदने वालों पर बोझ बढ़ेगा। अभी 50 लाख रुपये से अधिक की प्रॉपर्टी लेने पर खरीदार को एक प्रतिशत टीडीएस काटना पड़ता है। लेकिन अभी सिर्फ घर की कीमत पर टैक्स की गणना की जाती है। सितंबर 2019 से टैक्स गणना के लिए क्लब मेंबरशिप और कार पार्किंग आदि को भी कीमत में जोड़ना होगा।

शादी-ब्याह या घर के रेनोवेशन जैसे मौकों पर कॉन्ट्रैक्टर या प्रोफेशनल की सेवाएं लेना भी महंगा पड़ेगा। इन्हें साल में 50 लाख रुपए या ज्यादा का भुगतान करने वाले को पांच प्रतिशत टीडीएस काटना होगा। टैक्स की रकम अपने पैन के साथ सरकार के पास जमा करानी पड़ेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि अभी ऐसा कोई प्रावधान नहीं होने से कॉन्ट्रैक्टर या प्रोफेशनल द्वारा टैक्स चोरी की आशंका रहती है। यह प्रावधान भी 1 सितंबर से लागू होगा।

करदाताओं की संख्या बढ़ाने के मकसद से कुछ लोगों के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना जरूरी किया गया है। अगर किसी ने करंट एकाउंट में एक करोड़ रुपये से ज्यादा जमा किया है, विदेश यात्रा पर दो लाख रुपये से अधिक खर्च किए हैं या सालाना बिजली बिल एक लाख रुपये से ज्यादा है, तो उसके लिए टैक्स रिटर्न फाइल करना जरूरी होगा। अभी कोई इन मदों पर चाहे जितना खर्च करे, लेकिन अगर टैक्सेबल इनकम छूट सीमा के भीतर है तो रिटर्न फाइल करना जरूरी नहीं है। करदाताओं को कुछ छिटपुट राहत की भी घोषणाएं की गईं। रिटर्न फाइलिंग आसान बनाने के लिए करदाताओं को पहले से भरे हुए रिटर्न फॉर्म उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें सैलरी, कैपिटल गेन्स, डिविडेंड, बैंक से मिलने वाला ब्याज, टैक्स डिडक्शन आदि की जानकारी होगी। इसके लिए बैंक, स्टॉक एक्सचेंज, म्यूचुअल फंड, ईपीएफओ जैसी जगहों से सूचनाएं ली जाएंगी। आधार और पैन को इंटरचेंजेबल बनाया जाएगा। इनकम टैक्स रिटर्न भरने में पैन की जगह आधार भी दे सकेंगे। फेसलेस ई-असेसमेंट योजना से करदाता को इनकम टैक्स अधिकारी के सामने पेश नहीं होना पड़ेगा।

सोने पर इंपोर्ट ड्यूटी 10 से बढ़ाकर 12.5 प्रतिशत की गई है। इससे सोने की तस्करी बढ़ने का अंदेशा है। भारत में हर साल 800-850 टन सोने की खपत होती है। इसमें से 100-120 टन सोना तस्करी के जरिए आता है। ड्यूटी बढ़ने से गहने महंगे भी होंगे। जबकि इंडस्ट्री के साथ-साथ वाणिज्य मंत्रालय ने भी इंपोर्ट ड्यूटी कम करने की मांग की थी।

इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए इनके लोन पर ब्याज में 1.5 लाख रुपये तक डिडक्शन का लाभ देने का प्रस्ताव है। इन पर जीएसटी भी 12 से घटाकर पांच प्रतिशत किया जाएगा। लेकिन इतने से इनकी बिक्री की उम्मीद बेमानी है। जब तक चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं होता, तब तक लोग इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने से परहेज करेंगे।

कृषि मंत्रालय का आवंटन 140 प्रतिशत बढ़ाकर 1.30 लाख करोड़ रुपये किया गया है, लेकिन पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के 75,000 करोड़ रुपये को भी इसी में शामिल कर लिया गया है। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए जीरो बजट फार्मिंग की बात कही गई है। सच तो यह है कि सरकार कई साल से किसानों की आय दोगुनी करने की बात कह रही है। लेकिन किसानों का हाल किसी से छिपा नहीं है। बजट में 2022 तक सबको घर देने और गांवों के हर परिवार को बिजली और एलपीजी कनेक्शन देने का लक्ष्य दोहराया गया है।

इकोनॉमी में हर साल 20 लाख करोड़ रुपये निवेश की जरूरत तो बताई गई है, लेकिन पैसा कहां से आएगा यह मालूम नहीं। राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत पर रखने का लक्ष्य है। बीते साल भी यही लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अंततः यह 3.4 प्रतिशत रहा। सालाना आठ फीसदी विकास दर के साथ पांच साल में अर्थव्यवस्था का आकार पांच ट्रिलियन डॉलर करने का लक्ष्य है। एसबीआइ रिसर्च के अनुसार इसके लिए बचत, निवेश और निर्यात, तीनों बढ़ाना जरूरी है। अभी तीनों की स्थिति खराब है। बजट करीब पांच लाख करोड़ रुपये घाटे का है। सरकार को 19,62,761 करोड़ रुपये राजस्व आय का अनुमान है। खर्च होंगे 24,47,780 करोड़ रुपये।

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने पहले बजट में कहा था कि कॉरपोरेट टैक्स की दर पांच साल में 30 से घटाकर 25 प्रतिशत की जाएगी। यह अभी तक नहीं हो सका है। इस बजट में सालाना 400 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए ही टैक्स की दर 25 प्रतिशत की गई है। अब तक 250 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली कंपनियों पर टैक्स की यह दर लागू होती थी। लिस्टेड कंपनियों में न्यूनतम पब्लिक होल्डिंग 25 से बढ़ाकर 35 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है। सेंट्रम ब्रोकिंग के अनुसार, मौजूदा भाव पर आकलन करें तो 3.7 लाख करोड़ रुपये के नए शेयर कंपनियों को बेचने पड़ेंगे। टीसीएस को सबसे ज्यादा करीब 59,000 करोड़ के शेयर बेचने होंगे। ज्यादा शेयर बाजार में होने से विदेशी कंपनियों के मैनेजमेंट को कंपनी पर नियंत्रण कम होने का डर रहेगा। इसलिए वे शेयर डिलिस्टिंग की सोच सकते हैं।

कैश ट्रांजेक्शन पर अंकुश लगाने के लिए बैंक से साल में एक करोड़ रुपये से ज्यादा निकालने पर दो प्रतिशत टीडीएस काटने का प्रस्ताव है। सालाना 50 करोड़ रुपये से ज्यादा टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए डिजिटल पेमेंट जरूरी किया गया है। इन पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) न तो कंपनी देगी, न ग्राहक। इसका बोझ आरबीआइ और बैंक मिलकर उठाएंगे। डिजिटल पेमेंट शुरू नहीं करने वाली कंपनियों पर जुर्माना लगेगा। पेमेंट कंपनियों के संगठन पीसीआइ के चेयरमैन नवीन सूर्या का कहना है कि इन कंपनियों की कमाई एमडीआर से ही होती है। यही बंद हो गया तो इंडस्ट्री बैठ जाएगी।

मेगा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने के लिए सरकार विदेशी कंपनियों को आमंत्रित करेगी। सरकार अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर का फायदा उठाना चाहती है। एपल जैसी बड़ी कंपनियां अपने प्रोडक्ट की ज्यादातर मैन्युफैक्चरिंग चीन में ही करवाती हैं। सेमी कंडक्टर, कंप्यूटर सर्वर और लैपटॉप जैसे एडवांस टेक्नोलॉजी वाले प्रोडक्ट बनाने के लिए ग्लोबल कंपनियों को आमंत्रित किया जाएगा। इन कंपनियों को टैक्स में राहत भी दी जाएगी। पूरी स्कीम की घोषणा बाद में की जाएगी। यह कदम अच्छा है। अगर यह सफल रहा तो विदेशी निवेश के साथ नौकरियां भी बढ़ सकती हैं।

अभी शेयर बायबैक में घरेलू निवेशकों पर 10 प्रतिशत और विदेशी पर 15 प्रतिशत टैक्स लगता है। अब सबके लिए 20 प्रतिशत टैक्स का प्रस्ताव है। कंपनी यह रकम काटकर निवेशकों को पैसे देगी। हाल के वर्षों में डिविडेंड के बजाय बायबैक के जरिए बड़े निवेशकों को पैसे देने का चलन बढ़ा है। टैक्स बढ़ने से इस पर अंकुश लग सकता है। सिंगल ब्रांड रिटेल के लिए लोकल सोर्सिंग के नियम आसान किए जाएंगे। इससे एपल, आइकिया और एचऐंडएम जैसी विदेशी कंपनियों को फायदा होगा। हालांकि नियमों में क्या संशोधन किए जाएंगे, यह बाद में तय होगा।

सरकारी बैंकों की हालत सुधारने के लिए 70,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। लेकिन यह रकम उन्हें तीन साल में दी जाएगी, जो ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। एनबीएफसी के लिए लिक्विडिटी बढ़ाने के उपाय किए गए हैं। बैंक इनकी अच्छी क्वालिटी के एसेट खरीद सकेंगे। बैंकों को इस पर नुकसान हुआ तो 10 प्रतिशत तक नुकसान की भरपाई सरकार करेगी। फाइनेंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल के महानिदेशक महेश ठक्कर के अनुसार, इससे लिक्विडिटी संकट के समाधान में खास मदद तो नहीं मिलेगी, लेकिन यह कदम बताता है कि सरकार कितनी गंभीर है। प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म नाइट फ्रैंक इंडिया के सीएमडी शिशिर बैजल के अनुसार हाउसिंग से जुड़ी एनबीएफसी को मदद से इस सेक्टर में तेजी लौटने की उम्मीद है। वैसे, एनबीएफसी को भले फायदा हो, सरकारी बैंकों के नुकसान की भरपाई तो आखिरकार करदाताओं के पैसे से ही होगी। विदेशों में काफी सस्ता फंड उपलब्ध है। इसलिए सरकार वहां से पैसे उधार लेगी। इससे घरेलू मनी मार्केट पर बोझ कम होगा और ब्याज दरें कम रखने में मदद मिलेगी। लेकिन इसमें करेंसी की कीमत घटने-बढ़ने का बड़ा जोखिम भी है।

विनिवेश का लक्ष्य 1.05 लाख करोड़ रुपये तय किया गया है, जबकि पिछले साल 90,000 करोड़ का ही लक्ष्य पूरा नहीं हो सका। जिन कंपनियों में एलआइसी जैसी संस्थाओं की होल्डिंग है, उनमें सरकार अपनी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से कम कर सकती है। सरकारी कंपनियों के ईटीएफ में निवेश पर इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम की तरह डिडक्शन का लाभ देने का प्रस्ताव है। इससे विनिवेश में मदद मिलेगी। इस ईटीएफ ने एक साल में 11.5 प्रतिशत रिटर्न दिया है, जो निवेश के दूसरे कई माध्यमों से ज्यादा है। सामान्य इक्विटी म्यूचुअल फंड की तुलना में इनमें निवेश पर खर्च भी कम आता है।

Advertisement
Advertisement
Advertisement