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कर्नाटक की पलटती बाजी

गहराते राजनैतिक संकट के बीच कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन सरकार पर अनिश्चितता के बादल
संकट में सरकारः राज्यपाल से मुलाकात के दौरान बागी विधायक

कर्नाटक के कांग्रेस-जनता दल (सेकुलर) गठबंधन ने पिछले एक साल में जिस दरार को पाटने की कोशिश की, वह तेजी से गहरी होती जा रही है। इसने नाटकीय ढंग से एच.डी. कुमारस्वामी की अगुआई वाली सरकार को गिरने की दहलीज पर ला दिया है। 14 विधायकों की ओर से इस्तीफा भेजने और दो निर्दलीयों द्वारा समर्थन वापस लेने के साथ ही कुमारस्वामी की सरकार पर बहुमत खोने की आशंका से अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं।

उधर, विधानसभा अध्यक्ष के.आर. रमेश कुमार ने कहा कि आठ विधायकों के इस्तीफे औपचारिक प्रक्रिया के अनुरूप नहीं हैं। विधानसभा अध्यक्ष ने विधायकों के इस्तीफे के मामले की सुनवाई के लिए 12 और 15 जुलाई की तारीख तय की है। सबसे बड़ी बात कि 12 जुलाई से ही विधानसभा का सत्र शुरू हो रहा है।

प्रदेश में राजनैतिक ड्रामेबाजी 1 जुलाई को उस वक्त शुरू हुई, जब कांग्रेस विधायक आनंद सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष को अपना इस्तीफा भेजा। फिर, 6 जुलाई को 12 और विधायकों (कांग्रेस से नौ और जद (एस) के तीन) ने सामूहिक इस्तीफे की घोषणा कर हैरत में डाल दिया। यह घटनाक्रम उस दौरान हुआ, जब मुख्यमंत्री कुमारस्वामी अपनी पांच-दिवसीय अमेरिका यात्रा पर थे।

9 जुलाई को कांग्रेस के एक और विधायक आर. रोशन बेग ने घोषणा की कि उन्होंने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया है। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी के.सी. वेणुगोपाल और प्रदेश अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव के खिलाफ मोर्चा खोलने की वजह से वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बेग को पिछले महीने ही पार्टी से निलंबित कर दिया गया था।

कर्नाटक में सरकार बनाने की उठा-पटक विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु नतीजे आने के बाद ही शुरू हो गई थी। 2008 की तरह इस बार भी भाजपा बहुमत के आंकड़े को छूते-छूते रह गई, लेकिन तमाम ऊहापोह के बीच राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा व‌िधायक दल के नेता बी.एस. येद‌ियुरप्पा को 17 मई को शपथ द‌िलाने का फैसला किया। राज्यपाल ने भाजपा को विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए 15 दिनों का लंबा समय भी दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया और उन्हें दो दिन के भीतर बहुमत साबित करने को कहा। लेकिन येदियुरप्पा सरकार बहुमत हासिल नहीं कर पाई। फिर, कांग्रेस और जद (एस) ने मिलकर गठबंधन की सरकार बनाई।

फिलहाल कांग्रेस पार्टी ने अपने सभी मंत्रियों को पद छोड़ने के लिए कहकर बागियों को लुभाने की कोशिश की है, ताकि नए मंत्रियों को चुना जा सके। लेकिन कर्नाटक संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है, क्योंकि सभी बागी विधायक अपने रुख पर अड़े हुए हैं। कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा अध्यक्ष को उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिए याचिका देने का फैसला किया है। उधर, कांग्रेस नेता सिद्धरमैया का दावा है कि विधायकों का इस्तीफा उनकी मर्जी से नहीं दिया गया है। उनके खिलाफ दल-बदल विरोधी कानून का इस्तेमाल करते हुए उनकी सदस्यता रद्द की जानी चाहिए। कांग्रेस ने भाजपा पर गठबंधन सरकार को अस्थिर करने के लिए उसके विधायकों को लालच देने का आरोप लगाया है। भाजपा का दावा है कि उसका इस संकट से कोई लेना-देना नहीं है।

कर्नाटक में कांग्रेस और जद (एस) गठबंधन की इस हालत के लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं है। खासतौर पर लोकसभा चुनाव में भाजपा द्वारा राज्य में शानदार प्रदर्शन के बाद। गठबंधन की पार्टियां लोकसभा की 28 सीटों में से एक-एक सीट पर सिमट गईं। इसके बाद चुनावी शिकस्त के लिए कांग्रेस और जद (एस) के नेता एक-दूसरे पर अंगुली उठा रहे हैं। फिर भी अभी तक यही माना जा रहा था कि केवल चंद विधायक ही गठबंधन सरकार के लिए गंभीर खतरा हैं। इनमें गोकक के विधायक रमेश जारकीहोली भी हैं जो पिछले एक साल से अधिकांश समय बागी रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि 6 जुलाई को कुछ ऐसे  नेता उनके साथ हो लिए, जिनके बारे में ऐसी कोई संभावना ही नहीं थी। इनमें मुख्य रूप से पूर्व गृह मंत्री और बेंगलूरू से वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक ए.एच. विश्वनाथ शामिल हैं, जो हाल तक जद (एस) के प्रदेश अध्यक्ष थे।

कहा जाता है कि विश्वनाथ खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे, क्योंकि वरिष्ठ होने के बावजूद उन्हें मंत्री पद के लिए नजरअंदाज कर दिया गया था। विश्वनाथ के इस कदम ने कई लोगों को हैरत में डाल दिया। पूर्व कांग्रेसी विश्वनाथ सिद्धरमैया से टकराव के बाद पार्टी से अलग हो गए थे और 2017 में जद (एस) में शामिल हो गए। अभी पिछले हफ्ते ही नए पदाधिकारियों के लिए एक पार्टी समारोह में उन्हें पार्टी सुप्रीमो एच.डी. देवेगौड़ा के साथ देखा गया था। लेकिन उसके दो दिन बाद ही वे बागियों का नेतृत्व कर रहे थे। उनमें से सिद्धरमैया को नापसंद करने वाले बेंगलूरू के कांग्रेस विधायकों का एक समूह भी है।

परिस्थितियां बदलने के साथ भाजपा भी सरकार बनाने के मौके का इंतजार कर रही है। भाजपा 2018 के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी (105 सीट) के रूप में उभरी थी, लेकिन बहुमत से पीछे थी। कर्नाटक विधानसभा में 224 सीटें हैं। बहुमत का आंकड़ा 113 है।

यदि सत्तारूढ़ गठबंधन के 14 विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लिए जाते हैं, तो सदन की ताकत 224 से घटकर 210 रह जाएगी। तब कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन के विधायकों की संख्या 117 से घटकर 103 हो जाएगी।  इसमें बहुजन समाज पार्टी का एक विधायक भी शामिल है। इसके अलावा दो निर्दलीय विधायक हैं, जो समय-समय पर पाला बदलते रहे हैं। उन्होंने शुरू में सरकार का समर्थन किया, फिर भाजपा की तरफ रुख कर लिया। उसके बाद कुमारस्वामी सरकार में मंत्री बन गए। अब उन्होंने फिर से समर्थन वापस लेने की घोषणा की है।

इस बीच, आउटलुक के प्रिंट में जाने तक के घटनाक्रमों के मुताबिक, कांग्रेस और जनता दल (एस) के विधायकों के इस्तीफे पर विधानसभा अध्यक्ष के.आर. रमेश कुमार ने राज्यपाल वजुभाई वाला को खत लिखा है। उन्होंने बताया है कि कोई बागी विधायक उनसे नहीं मिला है। यही नहीं, आठ विधायकों के इस्तीफे औपचारिक प्रक्रिया के मुताबिक नहीं हैं। विधानसभा अध्यक्ष के मुताबिक पांच विधायकों को पक्ष स्पष्ट करना था कि उनके इस्तीफे दल-बदल विरोधी कानून के दायरे में आते हैं या नहीं। इन 13 विधायकों में 10 कांग्रेस और तीन जद (एस) के हैं। विधानसभा अध्यक्ष के अनुसार आठों विधायकों को 21 जुलाई तक अपना पक्ष और इस्तीफे की वजह बताने को कहा गया है। इस तरह फिलहाल सरकार का भविष्य विधानसभा अध्यक्ष के पाले में चला गया है। वैसे यह पहली बार नहीं है, जब ऐसी नौबत आई हो। 2010 में जब भाजपा की सरकार थी, तब तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के.जी. बोपय्या ने भाजपा के 11 बागी विधायकों और पांच निर्दलीयों को अयोग्य घोषित कर दिया था, जिससे भाजपा की सरकार बच गई थी।

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