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न्यू इंडिया की कमजोर नींव

इलाज के अभाव में काल के गाल में समाते बच्चे, भीड़ द्वारा बेकसूरों की हत्या, अर्थव्यवस्था के संदिग्ध आंकड़े तो न्यू इंडिया की नींव मजबूत नहीं करेंगे। सो, बातों और दावों से आगे बढ़ना होगा
नई सरकार के सामने चुनौतियों का अंबार

जब 2022 में देश आजादी के 75 साल पूरे कर रहा होगा, तब तक देश में दावे के अनुरूप ‘न्यू इंडिया’ आकार ले रहा होगा, जहां सबके सिर पर छत होगी, कानून-व्यवस्था बेहतर होगी, सबको बराबरी का जीवन जीने और अवसर पाने का हक होगा। दावा यह भी है कि देश की अर्थव्यवस्था पांच खरब डॉलर (अभी करीब 2.7 खरब डॉलर) की हो जाएगी यानी हर ओर खुशहाली पसरी होगी। यकीनन यह होना चाहिए लेकिन क्या हम सच्चाई से आंखें चुराकर यह हासिल कर सकते हैं। इस समय देश में मजबूत नेतृत्व और स्थायित्व वाली सरकार है। कोई राजनैतिक मजबूरी फैसले लेने में रोड़ा नहीं अटका सकती। लेकिन हाल की घटनाएं और सरकारी जवाबदेही का अभाव दूसरे तरह के हालात की ओर इशारा कर रहे हैं। ऐसा नहीं होता तो क्या तकरीबन 15 साल से सत्ता में काबिज एक मुख्यमंत्री के राज्य में गरीब मां-बाप के अबोध बच्चों का जीवन इलाज के अभाव में मृत्यु की भेंट चढ़ जाता। ऐसी ही अवस्‍था में 150 से ज्यादा बच्चे काल के गाल में समा चुके हैं। हर दिन, हर घंटे इसमें इजाफा होता जा रहा है। यह कैसे संभव है? कथित सुशासन और गवर्नेंस की नाकामी का इससे बड़ा आईना और क्या हो सकता है!

स्वास्‍थ्य सेवा की खस्ताहाली की पुष्टि के लिए नीति आयोग की राज्यों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर ताजा रिपोर्ट भी बिहार और उत्तर प्रदेश को सबसे निचले पायदान पर रखती है। स्वास्थ्य पर राज्यों और केंद्र सरकार का खर्च भी उनकी गंभीरता पर सवाल खड़ा करता है। सरकार यह क्यों भूल जाती है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाएं प्राथमिकता में सबसे ऊपर होनी चाहिए, क्योंकि सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य बीमा का कोई पुख्ता सिस्टम नहीं है। बड़े-बड़े विज्ञापनों में किए जा रहे वादे जमीनी हकीकत नहीं बदल सकते। जब हम बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर ही इतने उदासीन हैं तो ‘न्यू इंडिया’  की नींव तो कमजोर ही रहेगी।

गवर्नेंस की नाकामी का दूसरा ताजा उदाहरण झारखंड के सरायकेला में भीड़ द्वारा पीट-पीट कर एक युवक की हत्या है। 24 साल के तबरेज अंसारी को आठ घंटे से अधिक भीड़ पीटती रही और पुलिस ने उसके इलाज की चिंता करने के बजाय उसे गिफ्तार कर हवालात में डाल दिया। हालात बिगड़ने पर उसे अस्पताल ले जाया गया तो मौत हो गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसके सिर में गंभीर चोट की भी पुष्टि हुई है। सवाल है, पुलिस का काम लोगों की सुरक्षा है या भीड़ का साथ देने का। चिंताजनक पहलू यह है कि अंसारी की पिटाई का वीडियो भी भीड़ में ही किसी व्यक्ति ने बनाया। भीड़ ने अंसारी को ‘जय श्री राम’ और ‘जय हनुमान’ के नारे लगाने को भी कहा। ये दोनों एक घातक प्रवृत्ति का संकेत हैं।

असल में जिस तरह हमारी संसद में विरोधी दलों के सांसदों पर छींटाकशी के लिए शपथ ग्रहण के दौरान ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए गए, उससे जाहिर है यह नारा राजनैतिक रंग ले चुका है। यह राजनैतिक नारा अब सड़कों और गली-कूचों में एक खास संदेश का वाहक बनता दिख रहा है। सरायकेला की हत्यारी भीड़ इस नारे में राजनैतिक ताकत और संरक्षण भी देख रही थी, जिस तरह गोरक्षा या ऐसे ही किसी नाम पर पिछले कुछ साल में हिंसा बढ़ी है और उसमें एक खास समुदाय को निशाना बनाया गया है। झारखंड में तो भीड़ द्वारा हत्या की घटनाएं काफी ज्यादा हुई हैं। पिछली सरकार के दौरान एक मंत्री ने भीड़ हत्या के दोषियों को जेल से बाहर आने पर माला पहनाया, वह इस घातक प्रवृत्ति को बढ़ावा देने वाला ही था।

गवर्नेंस की तीसरी बड़ी नाकामी देश के कई हिस्सों में पानी का गंभीर संकट है। पिछले कई साल से नदियों और जल संरक्षण को प्राथमिकता देने के दावे किए जा रहे हैं तो ऐसे हालात क्यों पैदा हो रहे हैं? तमिलनाडु में पीने के पानी का गंभीर संकट देश के लिए एक बड़े खतरे का संकेत है। यह स्थिति महाराष्ट्र और गुजरात में भी भयावह है। ये  तीनों ही राज्य अपेक्षाकृत अधिक विकसित और संपन्न हैं, इसलिए इनमें हालात बदतर होना इस बात का गवाह है कि सरकारें अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रही हैं। किसी ठोस नीति और कार्यान्वयन का अभाव भविष्य में किसी बड़े संकट की जमीन तैयार कर रहा है।

ताजा अंक में हमने एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) को आवरण कथा बनाया है। दमयंती दत्ता ने इस भयावह महामारी के फैलते खतरे की विस्तार से जानकारी दी है। बात केवल बिहार के मुजफ्फरपुर की नहीं है, यह बीमारी देश के बड़े हिस्से में पांव जमा रही है और अगर समय रहते हम नहीं जागे तो संकट का मुकाबला मुश्किल होगा। इसी तरह अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ों को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। केंद्र सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम ने जीडीपी की वृद्धि दर पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इस पूरे मसले को तीन अर्थविदों प्रोफेसर अरुण कुमार, विश्वजीत धर और प्रणब सेन ने विस्तार से बताया है। नई सरकार जब अपना पहला बजट पेश कर रही होगी, तो आंकड़ों पर सफाई जरूरी होगी। इसलिए ‘न्यू इंडिया’ का भावी स्वरूप क्या होगा, वह काफी कुछ ऊपर जिक्र किए मसलों पर सरकार के फैसलों से तय होगा, न कि केवल बातों और दावों से।

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