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ग्रामीण आर्थिकी को मजबूत करना जरूरी

मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों के दौरान कृषि अर्थव्यवस्था और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कई पहल की, फिर भी जरूरी सुधार अभी नीतियों या राजनैतिक बहस का हिस्सा नहीं
कृषि में जोखिम कम करने के लिए व्यापक कृषि आय बीमा पॉलिसी तैयार करने और लागू करने की जरूरत

भारतीय मतदाता ने केंद्र में सरकार बनाने के लिए एक बार फिर भाजपा की अगुआई वाले एनडीए गठबंधन के पक्ष में बड़े पैमाने पर मतदान किया है। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान मुख्य राजनीतिक दलों के अभियानों में किसानों के मुद्दे हावी नहीं रहे, क्योंकि आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा ने व्यापक तौर पर उसकी जगह ले ली। नरेंद्र मोदी के विचारों वाले नए, पर मजबूत और समावेशी भारत का निर्माण किसानों को पीछे और उपेक्षित रखकर नहीं किया जा सकता है। हर किसी को किसानों की भलाई के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुधारों की उम्मीद है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में आक्रामक तरीके से आगे बढ़ाया जाएगा।

इससे इनकार करना तो मुश्किल है कि देश में किसान गहरे संकट में हैं। नाबार्ड के ऑल इंडिया रूरल फाइनेंशियल इन्क्लूजन सर्वे, 2015-16 के अनुसार, देश में खेती करने वाले परिवारों की औसत मासिक आय केवल 8,931 रुपये है। आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में कृषि परिवारों की आय राष्ट्रीय औसत आय (तालिका-1) से कम थी। 1995 से 2015 के दौरान लगभग तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की। नाबार्ड के सर्वे से यह भी पता चला है कि देश में लगभग 45 फीसदी कृषि परिवारों के पास बचत का कोई और साधन नहीं है।

मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों के दौरान कृषि अर्थव्यवस्था और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए कई पहल की। इनमें 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना, ई-नैम, 585 थोक बाजारों का एकीकरण, ए2 और एफएल लागत पर 50 फीसदी मार्जिन के आधार पर नया न्यूनतम समर्थन मूल्य, सिंचाई में निवेश वृद्धि, लघु सिंचाई पर फोकस, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और पहले पांच साल के कार्यकाल के अंत में पीएम किसान सम्मान निधि योजना शामिल हैं। लेकिन इन सभी योजनाओं को क्रियान्वयन संबंधी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई राज्यों में प्रतिकूल मौसम और मूल्य कारकों की वजह से कृषि और संबद्ध क्षेत्र में नकारात्मक वृद्धि दर देखी गई। अपर्याप्त निवेश और बुनियादी ढांचा भी क्रियान्वयन के रास्ते में बाधा बन कर आई। किसानों की आत्महत्या दर में भले ही कमीी आई हो, लेकिन फिर भी कृषि संकट की वजह से सालाना औसतन लगभग 12,000 किसानों ने आत्महत्या की। इस बीच, भारतीय जनता पार्टी ने अपने 2019 के संकल्प पत्र में कई नए वादे किए, जैसे (i) पीएम किसान निधि योजना का दायरा बढ़ाकर सभी किसानों के लिए सालाना 6,000 रुपये का भुगतान (ii) 60 वर्ष की आयु का होने के बाद छोटे और कम जोत वाले किसानों के लिए पेंशन (iii) मूल राशि के शीघ्र भुगतान की स्थिति में कम अवधि के लिए एक लाख रुपये तक ब्याज-मुक्त कर्ज (iv) मिशन मोड में सिंचाई का विस्तार और दिसंबर 2019 तक 68 लंबित सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करना (v) 10,000 नए किसान उत्पादक संगठनों का निर्माण (vi) फलों, सब्जियों, डेयरी और मत्स्य पालन के लिए प्रत्यक्ष मार्केटिंग तंत्र की स्थापना और (vii) अधिक उत्पादक और लाभदायक कृषि के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग।

मौजूदा योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के अलावा इन वादों को अगले पांच वर्षों में पूरा करना होगा। हालांकि, दुर्भाग्य से कुछ जरूरी सुधार जो किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार कर सकते हैं, वे अभी भी नीति या राजनीतिक बहसों का हिस्सा नहीं हैं।

आमूलचूल सुधार की जरूरत

सरकार को किसानों की भलाई के लिए कृषि क्षेत्र में कुछ उल्लेखनीय सुधारों को लागू करने की जरूरत है। सबसे पहले, कृषि को जोखिम रहित बनाने की जरूरत है। इसके लिए एक व्यापक कृषि आय बीमा पॉलिसी को बनाने और उसे लागू करने की जरूरत है, जिसमें मौसम और मूल्य जोखिम दोनों कवर हों, क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं से फसलों को नुकसान पहुंचता है, बाजार की विफलता के कारण उत्पादों की कीमतों में गिरावट होती है और नकारात्मक रिटर्न किसानों की समस्या की मुख्य वजह है। प्रस्तावित कृषि आय बीमा पॉलिसी मौजूदा पीएम फसल बीमा योजना और पीएम किसान की जगह ले सकती है, क्योंकि इनकी स्थिरता संदिग्ध है। इसके अलावा, सरकार को मौसम संबंधी जोखिमों को कम करने के लिए जलवायु अनुकूल कृषि विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास में पर्याप्त निवेश करना होगा।

दूसरा, भू-जल स्तर में तेजी से गिरावट पंजाब-हरियाणा बेल्ट में धान-गेहूं की फसल और पूरे शुष्क तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्र में गन्ने की खेती के लिए खतरा पैदा कर रही है। किसानों को ऐसे सभी क्षेत्रों में टिकाऊ कृषि प्रणालियों के लिए वैकल्पिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

तीसरा, कृषि पर जनसंख्या के दबाव को कम करने की आवश्यकता है। फिलहाल कृषि और संबद्ध क्षेत्र देश की जीडीपी में मुश्किल से 15 से 16 फीसदी का योगदान देते हैं, लेकिन लगभग 49 फीसदी मेहनतकश इससे जुड़े हैं। यह गरीबी और कृषि परिवारों के कर्ज के संकट में होने की मुख्य वजह है। आबादी को कृषि से गैर-कृषि क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए ग्रामीण गैर-कृषि रोजगार के अवसरों में तेज वृद्धि की जरूरत होगी। इसके अलावा, कृषि भूमि के पट्टे को वैध करने की आवश्यकता होगी, ताकि भू-स्वामी भूमि को खोने के डर के बिना उसे पट्टे पर दे सकें और निवेश कर सकें और गैर-कृषि कार्यों में खुद को लगा सकें। दरअसल, भारत सरकार को प्राथमिकता के आधार पर नीति आयोग के मॉडर्न लैंड लीजिंग एक्ट-2016 को अपनाने के लिए राज्य सरकारों को राजी करना चाहिए। पट्टे की जमीन को वैध करने से बंटाईदार को संस्थागत कर्ज, बीमा और अन्य सुविधाएं लेने में मदद मिलेगी।

चौथा, पूर्वी एशियाई देशों में कृषि विकास की सफलता की कहानी बताती है कि छोटे किसानों को बाजार से तभी फायदा मिल सकता है, जब वे स्वायत्त सहकारी समितियों या कंपनियों के साथ संगठित हों। सरकार को सभी क्षेत्रों में किसान उत्पादक संगठनों को व्यापक रूप से बढ़ावा देना चाहिए।

पांचवां, अभी भी भारत में 40 फीसदी किसान परिवार साहूकारों से उच्च ब्याज दर पर कर्ज लेते हैं। सरकार को साहूकारी कर्ज पर विशेष रूप से ब्याज दर को विनियमित करने और सभी जरूरतमंद किसानों को संस्थागत कर्ज मुहैया कराने की जरूरत है।

छठा, कृषि प्रसंस्करण की तीव्र वृद्धि और वैल्यू चेन कृषि की आर्थिक व्यवहारीयता और किसानों की भलाई तय करेगी। इसलिए, सरकार को कृषि प्रसंस्करण और वैल्यू चेन में पर्याप्त रूप से निवेश करना चाहिए और निजी क्षेत्र को भी निवेश के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इस संदर्भ में ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में शिक्षित कृषक युवा अब पारंपरिक खेती में रुचि नहीं रखते हैं। लेकिन ग्रामीण स्तर पर प्राथमिक कृषि प्रसंस्करण गतिविधियों को शुरू करने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने के साथ उनकी मदद की जा सकती है। सातवां, न तो मौजूदा उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) और न ही राज्य समर्थित कीमतें गन्ना उत्पादकों को मूल्य स्थिरता और समय पर भुगतान सुनिश्चित कर सकती हैं। उत्पाद विविधता, उत्पादन में लचीलापन, विनियमन और स्थिर निर्यात-आयात नीति के जरिए चीनी उत्पादन और मूल्य अस्थिरता की चक्रीय प्रकृति को तोड़ने की जरूरत होगी।

आठवां, हाल के वर्षों में कृषि में सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों से निवेश में गिरावट का रुझान दिखा है। किसानों की आय दोगुनी करने संबंधी दलवई समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि आय में वांछित 9.2 फीसदी की वार्षिक वृद्धि दर हासिल करने के लिए 2016-17 से 2022-23 के दौरान कृषि में कुल निवेश में सालाना 13.54 फीसदी की दर से होनी चाहिए। इसके लिए अतिरिक्त कर संग्रह, सेस, सब्सिडी को युक्तिसंगत और प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष संस्थानिक ऋण के प्रवाह में वृद्धि करके संसाधनों को जुटाना जरूरी होगा।

नौवें, पिछले कुछ वर्षों में ई-नैम जैसे कृषि विपणन सुधारों को लागू करने के मामले में कुछ प्रगति के बावजूद कई ठोस सुधार अभी भी लंबित हैं। मॉडल कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन अधिनियम-2017 को प्रभावी तरीके से लागू करने से कृषि में व्यवसाय करने में आसानी होगी और किसानों की आय में सुधार करने में मदद मिलेगी।

दसवां, कृषि प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए पर्याप्त शोध एवं अनुसंधान जैसे आइसीएआर-एसएयू प्रणाली की आवश्यकता है, जो पर्यावरण, छोटे किसानों, महिला किसानों के हितैषी हैं और कम लागत वाली भी हैं।

ग्यारहवां, भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण से पहले रिकॉर्ड को सही तरीके से अपडेट किया जाना चाहिए। यह न केवल किसानों को दी जाने वाली विभिन्न सब्सिडी में पारदर्शिता, कुशलता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करेगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि और गैर-कृषि विकास के दरवाजे भी खोलेगा।

बारहवां, वन अधिकार अधिनियम, 2006 को प्रभावी तरीके से लागू करना, आदिवासी किसानों और अन्य वनवासियों की आजीविका तथा आय में सुधार के लिए महत्वपूर्ण होगा।

सरकार को ग्रामीण विकास केंद्रों के तहत गांवों के हर कलस्टर में स्कूलों, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, बैंक, पशु चिकित्सा देखभाल, अस्पताल, बाजार, एग्री क्लीनिक वगैरह में निवेश करना चाहिए और निजी क्षेत्र को भी निवेश के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। इससे विकास, रोजगार मुहैया कराने और कृषि संकट को कम करने में मदद मिलेगी।

अंत में, मोदी सरकार ने कृषि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अपने पहले कार्यकाल में कई उपाय किए। लेकिन, तीव्र, समावेशी और टिकाऊ कृषि विकास तथा उचित समयसीमा के भीतर किसानों के संकट को दूर करने के लिए ठोस और आमूलचूल बदलाव की जरूरत है।

(लेखक काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट में प्रोफेसर और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व चेयरमैन हैं)

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