Advertisement

नवीन बाबू का जादू बरकरार

पांचवीं बार जीत का बनाया रिकॉर्ड, विपक्ष में भाजपा मजबूत
नवीन पटनायक

मोदी और भाजपा के आक्रामक अभियान में भी नवीन पटनायक बहुत हद तक अपना गढ़ बचाने में कामयाब रहे, हालांकि संसदीय सीटों पर जरूर भाजपा  का कुछ जादू चला और वह आठ सीटें जीतने में कामयाब हो गई। भाजपा इस मामले जरूर सफल रही कि उसने कांग्रेस से विपक्ष की जगह हथिया ली। कांग्रेस राज्य में तीसरे स्‍थान पर पहुंच गई। हालांकि बात राज्य सरकार की आती है तो ओडिशा के लोग अभी भी ‘विश्वसनीय और जांचे-परखे’ नवीन पटनायक पर ही भरोसा करते हैं।

विधानसभा की 146 सीटों में से बीजू जनता दल ने 112 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 117 सीटें मिली थीं। भाजपा को विधानसभा की सिर्फ 23 सीटों पर ही सफलता मिली। हालांकि 2014 के चुनाव के मुकाबले भगवा पार्टी ने अपने प्रदर्शन में काफी सुधार किया। उस समय उसने सिर्फ 10 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। इस तरह उसे 13 सीटों का फायदा हुआ। फिर भी राज्य में सरकार बनाने का उसका सपना पूरा नहीं हो पाया। इसके विपरीत लोकसभा चुनाव में भाजपा आठ सीटों पर कब्जा करने में कामयाब रही। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उसे सिर्फ एक सीट मिली थी। 2014 में 21 में 20 सीटों पर कब्जा करने वाली बीजद को इस बार 12 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस बार एक सीट कांग्रेस को भी मिली है। 

राज्य विधानसभा चुनाव में बीजद की सफलता का कारण क्या है? लगातार पांचवीं बार अद्भुत सफलता के पीछे खुद नवीन हैं। इससे साबित होता है कि वह तमाम चुनौतियों के बावजूद अकेले ही अपनी पार्टी को पहले से बड़ी सफलता दिलाने में सक्षम हैं। चुनावी नतीजों पर न तो अर्जुन सेठी, दामोदर राउत और जय पांडा जैसे नेताओं के निष्कासन और न ही उम्मीदवारों की सूची में भारी बदलाव का कोई असर पड़ा। सत्ता विरोधी माहौल भी नहीं दिखाई नहीं दिया।

2014 के विपरीत जब ओडिशा मोदी लहर से पूरी तरह अछूता रहा था, भाजपा के प्रमुख प्रचारक मोदी ने जहां प्रचार किया, वहां लोगों का ध्यान खींचा। चुनाव में भाजपा को फायदा मुख्य रूप से मोदी और अमित शाह के नवीन और बीजद पर हमलों से मिला। लेकिन यह नवीन के लिए उनके ही गढ़ में गंभीर खतरा पैदा करने के लिए पर्याप्त नहीं था।

ओडिशा में भाजपा के सीमित फायदे के लिए आंशिक वजह लगातार सिमट रही कांग्रेस पार्टी है। पिछले चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा की 16 सीटें जीती थीं। वह लोकसभा की कोई सीट नहीं जीत पाई थी। इस बार वह और पिछड़ गई है। विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या घटकर अब नौ रह गई। विधानसभा में कांग्रेस की सीटें और घटने से मुख्य विपक्ष औपचारिक रूप से भाजपा बन गई। कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटने का मुख्य फायदा बीजद को हुआ। इससे भाजपा की राह कठिन हो गई।

रुझानों के बाद अटकलें थीं कि नवीन के इस बार चुनाव हारने की सबसे ज्यादा संभावना है। लेकिन उन्होंने इन अटकलों को नकार दिया। 73 वर्ष के हो चुके बीजद सुप्रीमो राजनीतिक करिअर के उस मुकाम पर हैं, जहां बिरले ही होते हैं और जिन्हें कभी ‘पराजय का स्वाद’ चखने को नहीं मिला।

Advertisement
Advertisement
Advertisement