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अब विधानसभा पर नजर

लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटों पर जीत के बाद भाजपा खेल सकती है राज्य में जल्द चुनाव कराने का दांव
मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर

हरियाणा के सियासी इतिहास में पहली दफा अकेले अपने दम पर 10 की 10 लोकसभा सीटें जीतने वाली भाजपा अब अक्टूबर से पहले ही विधानसभा चुनाव कराने का दम भर रही है। दरअसल विपक्षी दल करारी हार के कारणों को जब तक खोजें, उससे पहले ही भाजपा मतदाताओं के सिर चढ़े मोदी मैजिक को विधानसभा चुनाव में भी भुनाना चाहती है। अप्रत्याशित जीत से गदगद मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर हालांकि समय से पहले चुनाव कराने से इनकार करते हैं, लेकिन टीम संघ-भाजपा ने ‘मेरा बूथ-सबसे मजबूत’ के फॉर्मूले पर काम शुरू कर दिया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला का आउटलुक से कहना है कि सभी लोकसभा सीटों पर जीत से खुश पार्टी के कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव के लिए दोगुने जोश से तैयार हैं।

इन लोकसभा चुनावों में 10 सीटों पर 58 फीसदी वोट शेयर के साथ राज्य के कुल 90 विधानसभा हलकों में से 79 पर बड़ी जीत के बावजूद भाजपा भले ही गहन विश्लेषण में न पड़े पर उसके लिए चिंता का विषय यह है कि जिन 11 विधानसभा क्षेत्रों में उसकी हार हुई है, उनमें दो विधानसभा हलके उसके जाट कोटे के दो केबिनेट मंत्रियों कैप्टन अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ के हैं।

हिसार लोकसभा सीट पर 3.14 लाख वोट से जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को हराने वाले भाजपा के बृजेंद्र सिंह को इस लोकसभा क्षेत्र में पड़ते कैप्टन अभिमन्यु के नारनौंद हलके में 5,2977 वोट मिले हैं, जबकि जेजेपी के दुष्यंत चौटाला के 5,6007 वोट हैं। कांटे की टक्कर में कांग्रेस के दीपेंद्र हुड्डा से मात्र 7,503 वोटों से रोहतक लोकसभा सीट जीते भाजपा के अरविंद शर्मा को नौ में से जिन पांच विधानसभा हलकों में हार का सामना करना पड़ा, उनमें झज्जर हलका मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ का है। झज्जर में दीपेंद्र ने अरविंद शर्मा को 4416 वोट से पछाड़ा है। मोदी मैजिक में मनोहर मंत्रिमंडल के दो जाट कैबिनेट मंत्रियों के हलकों में हार कई सवाल खड़े करती है। भाजपा को पांच गुटों में बंटी कांग्रेस, विधानसभा में विपक्षी दल की भूमिका निभा रही पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला परिवार की इनेलो दो फाड़ होने का फायदा जींद उपचुनाव में मिला। अब वह रसातल की ओर बढ़ चली है। जाट आरक्षण आंदोलन के समय भले ही मुख्यमंत्री खट्टर की बतौर कमजोर प्रशासक किरकिरी हुई पर राज्य का एक बड़ा गैर-जाट तबका उनके साथ हो लिया। लिहाजा, चुनावों में जाट और गैर-जाट मतदाताओं का यह ध्रुवीकरण भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ। इस तरह भजनलाल के बाद दूसरे गैर-जाट मुख्यमंत्री के तौर पर खट्टर हरियाणा की भाजपाई सियासत में अपनी जगह मजबूत करने में कामयाब हुए। मुख्यमंत्री के करीबी संजय भाटिया ने पहली दफा लड़े चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज कुलदीप शर्मा को 6.56 लाख मतों के अंतर से हराकर देश भर में सवार्धिक मतों से जीतने वालों में नाम दर्ज कराया है। फरीदाबाद सीट पर भी केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर की जीत का अंतर छह लाख से अधिक रहा है। जीत के प्रति आश्वस्त कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को भी 1.64 लाख मतों से हार का सामना करना पड़ा।

2014 में 22.9 फीसदी वोट शेयर के साथ एकमात्र रोहतक सीट पर जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस का वोट शेयर 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 28.42 फीसदी हुआ है।

इसके बावजूद वह हरियाणा में खाता नहीं खोल सकी। 10 में आठ सीटों पर कांग्रेसी नेताओं के बेटे-बेटियां चुनाव मैदान में थे।

उधर, इनेलो की भारी हार से हताश प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने वाले अशोक अरोड़ा ने आउटलुक से बातचीत में स्वीकार किया कि परिवार की कलह ने पार्टी को खात्मे के कगार पर पहुंचा दिया है। इनेलो से टूट कर लोकसभा चुनाव से दो महीने पहले अस्तित्व में आई जेजेपी के संस्थापक दुष्यंत चौटाला ही अपनी जमानत बचा पाए हैं।

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