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चक्का बैठा, डब्बा गोल

चार पहिया और दुपहिया वाहनों की बिक्री में गिरावट अर्थव्यवस्थाख की बदहाली की भयावह कहानी
रौनक गायबः दिल्ली स्थित एक कार कंपनी का खाली पड़ा शोरूम

अभी हाल फिलहाल तक तो बड़ी, लक्जरी कारों और एसयूवी की ललक ऐसी थी कि ये हैसियत और आन-बान-शान की प्रतीक बन गई थीं। वही क्यों, शहरों, कस्बों, गांवों में दौड़ती मोटरसाइकिलें युवा दिलों की धड़कन और रफ्तार का प्रतीक थीं। दुनिया भर की वाहन कंपनियों के नए-नए ब्रांड और मॉडलों के लिए भारत बड़ा बाजार बना हुआ था। लेकिन अब न सिर्फ चार पहिया, दुपहिया वाहनों की बिक्री भी धड़ाम से गिर गई, बल्कि बाजार टूटने लगा, कंपनियां कारोबार समेटने लगीं, आउटलेट बंद होने लगे। उससे जुड़े ऑटो पार्ट्स और तमाम सहायक उद्योगों के शटर ‌गिरने लगे। आखिर नब्बे के दशक में शुरू हुए उदारीकरण की सबसे चमकदार कहानी बयान करने वाले वाहन उद्योग की बदहाली क्या देश की आर्थिक दुर्दशा की ही दास्तां है? क्या हाल के वर्षों में अर्थव्यवस्‍था के सभी मानकों में भारी गिरावट और लोगों की बदहाली की जिम्मेदार खासकर नोटबंदी और जीएसटी का ही नतीजा है?

आइए पहले जानते हैं कि वाहन उद्योग की बदहाली क्या कहती है? कारों की बिक्री चार साल और दुपहिया वाहनों की बिक्री दो साल के निचले स्तर पर है। 9-10 फीसदी की ग्रोथ पर रहने वाली पैसेंजर व्हीकल इंडस्ट्री 2018-19 खत्म होते-होते तीन फीसदी के ग्रोथ रेट पर पहुंच गई। कंपनियों ने 2018-19 में 33.77 लाख कारें और 2.11 करोड़ दुपहिया वाहनों की बिक्री की है। इस साल 13 साल में पहली बार स्कूटर की बिक्री भी गिर गई है। घटती मांग से देश भर में कंपनियों के 250 से ज्यादा रिटेल आउटलेट बंद हो चुके हैं। 1.28 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले ऑटोमोबाइल सेक्टर में नौकरियों का संकट खड़ा हो गया है। कई बड़ी कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनी की तलवार लटकने लगी है। नौकरियों के अवसर में दो फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है।

कार मार्केट में करीब 57.9 फीसदी बाजार पर काबिज मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड की बिक्री इस साल अप्रैल में 19 फीसदी गिर गई। हुंडई मोटर्स की बिक्री 10 फीसदी तो महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की नौ फीसदी तक गिर गई है। दुपहिया वाहनों की बिक्री नौ फीसदी तक गिरी है। अप्रैल में वाहनों की बिक्री 16 फीसदी गिरकर 20.1 लाख पर पहुंच गई। ऑटो डीलर्स के पास कार, बाइक और स्कूटर की इन्वेंट्री (बिना बिके वाहन) बढ़ गई है। सामान्य तौर पर 20-25 दिन तक रहने वाली इन्वेंट्री 45-50 दिन तक पहुंच गई। इसकी वजह से ऑटो कंपनियों को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ी है। कार से लेकर दुपहिया वाहन बनाने वाली कंपनियां तीन शिफ्ट की जगह दो शिफ्ट में उत्पादन कर रही हैं। उत्पादन में हुई कटौती का असर करीब 60 लाख लोगों को रोजगार देने वाले ऑटो कंपोनेंट सेक्टर पर भी पड़ा है। ऑटो कंपोनेंट कंपनियां कार और दुपहिया वाहन बनाने वाली कंपनियों के लिए ऑटो पार्ट्स बनाने का काम करती हैं। ये कंपनियां भी अपने प्रोडक्शन में कटौती कर रही हैं।

पूरी दुनिया की ऑटो कंपनियों को लुभाने वाला भारत का ऑटोमोबाइल बाजार अचानक सुस्ती का शिकार क्यों हो गया? सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (सिआॅम)के डिप्टी डायरेक्टर जनरल सुगातो सेन आउटलुक से कहते हैं, “बाजार में बेरुखी जुलाई 2018 से दिखने लगी। त्योहारों अपेक्षित में बिक्री नहीं हुई, जबकि ऐसा बहुत कम होता है कि त्योहारों के मौसम में बिक्री उम्मीद के अनुसार न हो। बेरुखी की बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम बढ़ना था। ब्याज दरें भी ज्यादा थीं। इसके अलावा बीमा लागत बढ़ने का असर भी पड़ा है। ऐसे में लोग अपना खर्च सिकोड़ने लगे। कार किसी भी वर्ग के लोग खरीदें, उनके लिए यह बड़ा निवेश होता है। दुपहिया वाहनों की बिक्री बहुत हद तक ग्रामीण भारत पर निर्भर होती है। ग्रामीण इलाकों में भी लोग खर्च करने से बच रहे हैं इसलिए बिक्री गिरी है। हालांकि यह भी समझना जरूरी है कि जब भी आम चुनाव होते हैं, उस वक्त लोग कुछ कम खर्च करते हैं।”

बंद हो रहे हैं शोरूम

गिरती बिक्री का असर ऑटो कंपनियों के डीलर्स पर सीधे पड़ा है। उनके लिए बिजनेस करना मुश्किल होता जा रहा है। हालात यह है कि कार, बाइक, स्कूटर शोरूम में खड़े हैं। पूरे देश में पिछले 16 महीने में 250 रिटेल आउटलेट बंद हो गए हैं, जिसका सीधा असर नौकरियों पर पड़ा है। रिटेल आउटलेट बंद होने से ही दो लाख से ज्यादा लोग बेरोजगार हो सकते हैं। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन (फाडा) के सीईओ सहर्ष दमानी बताते हैं, “देश में करीब 25 हजार रिटेल आउटलेट हैं, इसमें 250 बंद हो चुके हैं। यह अच्छा संकेत नहीं है। कार कंपनी का एक रिटेल आउटलेट खोलने में 6-8 करोड़ रुपये का खर्च आता है, जबकि दुपहिया वाहन के आउटलेट पर 4-5 करोड़ रुपये का खर्च आता है। इन आउटलेट में औसतन 80-100 कर्मचारी काम करते हैं। सीधा असर उन्हीं पर हुआ है।” फाडा के अध्यक्ष आशीष हर्षराज काले के अनुसार, “इस सेक्टर के लिए एक साथ कई समस्याएं खड़ी हो गई हैं। डीलरों के पास बिजनेस के लिए नकदी की समस्या है। इन्वेंट्री काफी बढ़ गई है, सेक्टर का आउटलुक निगेटिव होने से बैंक कर्ज नहीं दे रहे हैं।” फाडा के अनुसार अप्रैल महीने की शुरुआत ही निगेटिव हुई। इस महीने दुपहिया वाहनों के रजिस्ट्रेशन में नौ फीसदी, तिपहिया वाहनों में 13 फीसदी, ट्रक-बस जैसे कमर्शियल वाहनों में 16 फीसदी और कारों के रजिस्ट्रेशन में दो फीसदी की कमी आई है। इसी तरह इन्वेंट्री 45-50 दिनों तक पहुंच गई है। जबकि सामान्य तौर पर इसे 21 दिन होना चाहिए।

उत्पादन में कटौती

सिआॅम के अनुसार भारत में हर साल 70 लाख चार पहिया वाहन और करीब 2.70 करोड़ दुपहिया, तिपहिया वाहनों का उत्पादन करने की क्षमता है। इसके अलावा बड़े एक्सेल वाले कमर्शियल वाहन का उत्पादन किया जाता है, जो कुल मिलाकर देश में 3.40 करोड़ से ज्यादा वाहन प्रोडक्शन करने की क्षमता है। 2018-19 में ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री ने गिरती डिमांड को देखते हुए करीब तीन करोड़ वाहनों का ही प्रोडक्शन किया है। इसका सीधा मतलब है कि कंपनियां अपनी क्षमता से 15-20 फीसदी औसतन कम उत्पादन कर रही हैं। देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार कंपनी ने अप्रैल के महीने में 10 फीसदी तक उत्पादन में कटौती की है। इसके पहले कंपनी ने मार्च में 20.9 फीसदी उत्पादन में कटौती की थी।

सुगातो सेन के अनुसार, “बढ़ती इन्वेंट्री को देखते हुए सभी प्रमुख कंपनियों ने अपने प्रोडक्शन में कटौती की है।” सूत्रों के अनुसार कंपनियां इस समय तीन शिफ्ट में प्रोडक्शन की जगह दो शिफ्ट में ही प्रोडक्शन कर रही हैं। जिसका प्रतिकूल असर नौकरियों  पर पड़ने की आशंका है।

छोटी कारों का बुरा हाल

जापान के बाद भारत छोटी कारों (एंट्री लेवल) का सबसे बड़ा मार्केट है। लेकिन गिरती डिमांड बिगड़ती अर्थव्यवस्था का संकेत दे रही है। देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुजुकी की ऑल्टो और पुरानी वैगनआर की बिक्री अप्रैल के महीने में 39.8 फीसदी गिर गई है। इसी तरह स्विफ्ट, सेलेरिओ, बलेनो, इग्निस, नई वैगन आर सहित कॉम्पैक्ट कारों की बिक्री 13.9 फीसदी गिरी है। ऐसे ही रेनॉ की क्विड की बिक्री 7.87 फीसदी, टाटा की टिआगो की बिक्री 24.78 फीसदी और डैटसन गो की बिक्री 26.58 फीसदी गिर गई है।

 ग्रामीण भारत में घटी डिमांड

क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्‍त्री डी.के.जोशी के अनुसार, “छोटी कारों और दुपहिया वाहनों की बिक्री में गिरावट से साफ है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था सही से काम नहीं कर रही है। इसके अलावा निम्न मध्यम वर्ग पर भी दबाव है। ऐसे में वह खर्च कम कर रहा है।” एलारा कैपिटल की रिपोर्ट के अनुसार साल 2018-19 में महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की स्कूटर बिक्री में 76.9 फीसदी, हीरो मोटोकार्प की बिक्री में 18.6 फीसदी, होंडा की बिक्री में 3.7 फीसदी और यामहा की बिक्री में 12.1 फीसदी की गिरावट आई है। मार्च 2019 में 2018 की तुलना में मोटरसाइकिल की बिक्री 14.3 फीसदी गिर गई है। हीरो मोटोकॉर्प के चेयरमैन पवन मुंजाल बताते हैं, “अभी कुछ समय दुपहिया वाहन इंडस्ट्री के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। हालांकि हमें उम्मीद है कि 2019-20 की दूसरी छमाही में मांग बढ़ेगी और इंडस्ट्री में रिवाइवल होगा।”

कंपोनेंट कंपनियां भी परेशान

नेशनल स्किल डेवलपमेंट काउंसिल के अनुसार, देश में ऑटो मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में करीब 80 लाख लोग रोजगार पा रहे हैं। इनमें से 60 लाख अकेले ऑटो कंपोनेंट बनाने वाली कंपनियों में हैं। गिरती डिमांड का सीधा असर कंपोनेंट कंपनियों के कारोबार पर हुआ है। मारुति को कंपोनेंट देने वाली एक कंपनी के अधिकारी के अनुसार, “डिमांड में कमी का असर हमारे प्रोडक्शन पर हुआ है। इसकी वजह से प्रोडक्शन में कटौती की गई है।” इसी तरह एक अन्य कंपनी में काम कर रहे अधिकारी के अनुसार उसकी कंपनी कई कंपनियों के लिए कंपोनेंट की सप्लाई करती है। इसकी वजह से अभी प्रोडक्शन में कटौती तो नहीं की गई है, लेकिन डिमांड गिर गई है। अगर ऐसी ही स्थिति रही तो सीधा असर होगा। एमजी मोटर्स इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पी.बालेंद्रन के अनुसार, “डिमांड गिरने का असर पूरे ईको सिस्टम पर हुआ है। मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों से लेकर फाइनेंस कंपनियां, डीलर सभी परेशान हैं। बढ़ी ब्याज दरों, कच्चे तेल की कीमतें, बढ़ी बीमा लागत और चुनाव से सेंटीमेंट बिगड़ा है। हालांकि इंडस्ट्री का आउटलुक पॉजिटिव है, पूरी संभावना है कि चुनावों के बाद सेंटीमेंट में सुधार होगा।”

फाइनेंस सेक्टर भी लुढ़का

गिरती बिक्री का असर अब फाइनेंस कंपनियों के बिजनेस पर भी दिखने लगा है। हालत यह है कि फाइनेंस कंपनियों का बिजनेस करीब 30 फीसदी गिर गया है। फाइनेंस इंडस्ट्री डेवलपमेंट काउंसिल के चेयरमैन रमन अग्रवाल के अनुसार, “डिमांड में कमी और, क्रेडिट की उपलब्धता कम होने से एनबीएफसी सेक्टर का बुरा हाल हो गया है। कर्ज की लागत दो फीसदी तक बढ़ गई है। फंड जुटाने के रास्ते कम हो गए हैं। आइएल ऐंड एफएस संकट के बाद से दिक्कतें काफी बढ़ गई हैं। पहले इंडस्ट्री औसतन 15 फीसदी की दर से ग्रोथ कर रही थी। अब वह डी-ग्रोथ मोड में आ गई है। रेग्युलेटर के स्तर पर कदम उठाए जाने चाहिए। अकेले एक ट्रक की बिक्री से 8-10 लोगों को रोजगार मिलता है। अच्छे दिन का एहसास दिलाने वाला ऑटोमोबाइल सेक्टर पिछले 15-20 महीने में कई सारी चुनौतियों का सामना कर रहा है। बिगड़ा सेंटीमेंट लंबे समय तक रहा तो 1.28 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाला क्षेत्र नई सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ा हो जाएगा। जरूरत इस समय त्वरित कदम उठाकर उसे सुधारने की है, जिससे भारत का मो-टाउन आकर्षण का केंद्र बना रहे।

 

कैसे घटी रफ्तार..

छह साल में सबसे खराब दिवाली

दुपहिया वाहनों की बिक्री में 10-12 फीसदी तो कारों की बिक्री में पांच फीसदी गिरावट

नौकरियों की अनिश्चितता और शेयर मार्केट की गिरावट का हुआ असर

बीमा कराना महंगा

दुपहिया वाहनों के लिए थर्ड पार्टी बीमा पांच साल के लिए जरूरी

कारों के लिए थर्ड पार्टी बीमा तीन साल के लिए जरूरी

प्रोडक्शन में कटौती

घटती डिमांड से कंपनियों ने प्रोडक्शन कम किया

कॉन्ट्रैक्ट श्रमिकों के रोजगार पर सीधा असर

250 शोरूम बंद

बिक्री नहीं होने से इन्वेंट्री 50 दिन पहुंची

डीलर्स के लिए बिजनेस करना मुश्किल

ग्रामीण क्षेत्र से डिमांड कम

दुपहिया वाहनों की बिक्री दो साल के निचले स्तर पर

छोटी कारों की बिक्री 40 फीसदी तक गिरी

खरीदारी से परहेज

नौकरियों के अवसर कम होने से अनिश्चितता बढ़ी

बेरोजगारी दर 45 साल के उच्चतम स्तर पर

फाइनेंस बिजनेस गिरा

ऑटो फाइनेंस बिजनेस 27 फीसदी गिरा

कंपनियों के पास नकदी की दिक्कत

नए मानकों से महंगी

बीएस-6 मानक लागू होने से लागत बढ़ी

कार और दुपहिया वाहनों के बढ़ेंगे दाम

रोजगार का संकट

सेक्टर 1.28 करोड़ लोगों को रोजगार देता है

केवल एक फीसदी शोरूम बंद होने से दो से ढाई लाख नौकरियों पर खतरा

कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स परेशान

डिमांड कम होने से शिफ्ट में कटौती

असंगठित सेक्टर में रोजगार का संकट

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