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जनादेश/2019 जम्मू-कश्मीरः लीजिए चुनाव का नया मॉडल

महज पांच फीसदी मतदान और 95 फीसदी बॉयकाट के नए चुनाव मॉडल का देश को तोहफा
कोई तो आएः अनंतनाग जिले के बिजबेहरा में मतदाता का इंतजार करते मतदानकर्मी

जम्मू-कश्मीर की छह संसदीय सीटों में दक्षिण कश्मीर की अनंतनाग का चुनाव सबसे चुनौतीपूर्ण था। छह मई की शाम जब मतदान संपन्न हुआ तो जम्मू-कश्मीर पुलिस ने राहत की सांस ली। कश्मीर पुलिस प्रमुख एस.पी.पाणि ने कहा कि अशांत क्षेत्र में चुनाव प्रक्रिया कामयाब करने के लिए काफी तैयारी की गई थी। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तो कहना था कि भविष्य में किसी अशांत क्षेत्र में सफलतापूर्वक मतदान कराने के नए मॉडल का तोहफा देश को दे दे दिया है। चार जिलों अनंतनाग, कुलगाम, शोपियां और पुलवामा में फैले इस संसदीय क्षेत्र में तीन चरणों में मतदान कराया गया। यहां पुलिस को वोटिंग या उसके बॉयकाट की फिक्र नहीं थी। उसे तो बस चुनाव संपन्न कराने भर की फिक्र थी। अधिकारियों के मुताबिक, “हमारी जिम्मेदारी निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने की थी। हमारी ड्यूटी सुरक्षा मुहैया कराने की थी, ताकि कोई हिंसा न हो। आतंकवादी चुनाव के दिन हिंसा करने और वोटिंग में व्यवधान डालने की फिराक में थे, लेकिन हमने सुरक्षाबलों की रणनीतिक तैनाती, तीन चरणों में वोटिंग और मतदान का समय घटाकर उनके मंसूबे नाकाम कर दिए। सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न करा दिया।”

दक्षिण कश्मीर संसदीय क्षेत्र जून 2016 में पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्री बनने से खाली हो गया था, लेकिन चुनाव आयोग वहां चुनाव नहीं करवा सका। आठ जुलाई 2016 को आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद छह महीने तक जारी विरोध प्रदर्शनों की वजह से चुनाव टाल दिए गए थे। उस दौरान पुलिस की गोली से 90 युवाओं की मौत हो गई और 23 हजार पैलेट गन से जख्मी हो गए। विरोध-प्रदर्शनों से निबटने के सख्त तरीकों से आतंकवाद की ओर नया रुझान पैदा हुआ और दक्षिण कश्मीर आतंकियों का पनाहगाह बन गया। हिंसा भड़कने की आशंका को देखते हुए महबूबा मुफ्ती सरकार ने चुनाव आयोग से उप-चुनाव को टालने की सिफारिश की। चुनाव आयोग ने उप-चुनाव को 2017 में दो बार और फिर 2018 में भी टाल दिया। इस तरह दक्षिण कश्मीर संसदीय क्षेत्र पूरे देश में सबसे ज्यादा समय तक चुनाव न हो पाने वाला क्षेत्र बन गया।

बकौल वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, उन्‍होंने चुनाव आयोग को सुझाया कि इस क्षेत्र में चुनाव तभी संभव है जब उसे तीन चरणों में कराया जाए और वोटिंग को दो घंटे कम कर दिया जाए। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया, “हम चाहते थे कि पूरी मतदान प्रक्रिया शाम चार बजे तक खत्म हो जाए, ताकि सुरक्षाबलों को मतदान केंद्रों से वापस जाने का पर्याप्त वक्त मिल जाए और उन्हें पत्‍थरबाजी और आतंकियों के हमलों का भी सामना न करना पड़े। अंधेरे में मतदान केंद्रों से सुरक्षाबलों की वापसी में दिक्कत आ सकती थी।”

चुनाव आयोग मतदान का समय सुबह सात बजे से शाम चार बजे तक करने पर राजी हो गया। इससे सुरक्षाबलों को मतदान के क्षेत्रों से वापस आने के लिए पर्याप्त वक्त मिल गया। पुलिस, सेना और अर्धसैनिक बलों की करीब 200 कंपनियां लगाई गईं। चुनाव से पहले पुलिस ने क्षेत्र के युवाओं की बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां भी कीं। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “हमने ज्यादातर युवाओं को रिहा कर दिया। ये गिरफ्तारियां एहतियातन की गई थीं। इससे शांतिपूर्ण मतदान कराने में मदद मिली।”

अब पुलिस इलाके में 200 से ज्यादा आतंकियों की मौजूदगी की आशंका के बावजूद चुनाव संपन्न कराने को “मॉडल” के रूप में पेश करने का जश्न मना रही है। लेकिन यहां आखिरी चरण में दो फीसदी से भी कम मतदान को राजनैतिक नेता लोकतंत्र की विफलता बता रहे हैं। दक्षिण कश्मीर में जनवरी से सुरक्षाबलों के करीब 50 जवान मारे जा चुके हैं। इस दौरान क्षेत्र में करीब इतने ही आतंकी मारे गए। पुलिस अधिकारियों का कहना है, “इससे यह देश में अजीब क्षेत्र बन गया है। देश में किसी क्षेत्र में इतनी हिंसा नहीं हुई। हम चुनाव कराने में सफल रहे, इससे हमारी कुशल रणनीति की कामयाबी साबित होती है।”

हालांकि, पीडीपी के युवा नेता वहीद पर्रा कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में पहली बार अधिकारियों ने लोगों को चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लेने से हतोत्साहित किया। पुलिस ने सुरक्षा कारण बताकर क्षेत्र में प्रचार करने की इजाजत नहीं दी। उनका कहना है कि क्षेत्र में बड़ी संख्या में मतदान बूथों को आपस में मिला दिया गया, जिससे मतदाताओं के लिए मताधिकार का इस्तेमाल करना मुश्किल हो गया। वे कहते हैं, “यह राज्य प्रायोजित आतंक है। एक तरह से लोगों से कहा गया कि वोटिंग करने से उन पर खतरा बढ़ जाएगा।”

उनका कहना है कि सरकार ने ही आश्वस्त किया कि चुनाव का बॉयकाट हो। मतदान से एक दिन पहले मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए। पर्रा आरोप लगाते हैं, “प्रक्रिया तो यही रही है कि चुनाव से पहले ही आतंक विरोधी अभियान रोक दिए जाएं। लेकिन शोपियां में ऑपरेशन चलाया गया और दो आतंकियों को मार दिया गया। यह लोगों को वोट डालने से रोकने के मकसद से जानबूझकर किया गया।”

छह मई को मतदान वाले दिन बॉयकाट अप्रत्याशित था। आइएएस अधिकारी से नेता बने शाह फैसल ने कहा, “अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र के पुलवामा क्षेत्र में 99.24 फीसदी मतदाताओं ने मतदान का बॉयकाट किया। यह अप्रत्याशित है। राजनैतिक दलों को शर्म से अपना सिर झुका लेना चाहिए और घरों में बैठ जाना चाहिए। जब किसी ने वोट ही नहीं दिया तो सांसद बनने का औचित्य नहीं रह जाता है।”

श्रीनगर से 60 किलोमीटर दूर शोपियां में रामबिआरा नदी के निकट बसे बालपुरा आर्मी गुडविल स्कूल के बाहर छह मई को बड़ी संख्या में सीआरपीएफ के जवान गेट की सुरक्षा में लगे थे। स्कूल के गेट और परिसर में सेना के भी जवान तैनात थे। जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बल भी गश्त लगा रहे थे। स्कूल में आसपास के तीन गांवों के लिए मतदान केंद्र बनाया गया था। यहां कुल 3,995 मतदाताओं में सिर्फ तीन वोट पड़े।

सीआरपीएफ के एक जवान ने कहा कि सुबह से सिर्फ मीडिया के लोग आते दिखाई दिए। जवान ने कहा, “कश्मीर में मेरी तैनाती चार महीने पहले हुई थी। मतदान केंद्र पर पूरी तरह बॉयकाट अजीब है।” यह मतदान केंद्र तीनों गांवों से दूर है। यहां नगण्य वोटिंग होना तैनात सुरक्षाबलों के बीच भी कौतूहल पैदा करने वाला है।

शोपियां का करेवा मानलू इकलौता इलाका था, जहां मतदान केंद्र पर सोमवार को सुबह से ही लंबी लाइनें दिखाई दीं। मानलू मतदान केंद्र पर अपना चेहरा छिपाती महिलाओं के एक समूह ने कहा, “यह चुनाव विकास या किसी पार्टी के लिए नहीं है। यह चुनाव अनुच्छेद 370 और 35ए को बचाने के लिए है।” 75 वर्षीय रिटायर्ड अध्यापक गयासुद्दीन ने कहा कि ऐसे उम्मीदवार को वोट दिया जो संसद में आवाज उठाएगा। यहां ज्यादातर मतदाता गुर्जर हैं।

दक्षिण कश्मीर से उम्मीदवारों में पीडीपी की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, नेशनल कॉन्फ्रेंस के हाइकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हसनैन मसूदी, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर, भाजपा के सोफी यूसुफ और 14 दूसरे मैदान में हैं। अगर इस क्षेत्र से महबूबा हार जाती हैं तो उनकी पार्टी के लिए गहरा झटका होगा, जो 2018 में भाजपा से गठजोड़ टूटने के बाद संकट में है। चुनाव बॉयकाट से पीडीपी बुरी तरह प्रभावित हुई है। नाराज पर्रा कहते हैं, “ऐसा मॉडल पेश किया गया जो लोगों को वोट करने से रोकता है। इस मॉडल को तो देश मंजूर नहीं करेगा।”

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