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गरम हवा में मुद्दे कहां

बेहतर होगा कि मतदाता हवाई मुद्दों के बजाय अपने जीवन की बेहतरी के लिए वोट करें, क्योंकि इसी से लोकतंत्र मजबूत होगा और उसका भविष्य भी बेहतर होगा
जनता के और जमीनी मुद्दे गायब

सत्रहवीं लोकसभा के चुनावों के मतदान आखिरी दौर में हैं। लेकिन देश और लोगों के लिए अगले पांच साल की दिशा-दशा तय करने वाले इस चुनाव में बहुत कुछ असामान्य है। मसलन, जन-साधारण के जीवन को बेहतर करने या आर्थिक जीवन को प्रभावित करने वाले मसले, अधिकांश बहस और चुनावी कैंपेन में नहीं दिख रहे हैं। विचारधाराओं और जाति-धर्म के नाम पर छींटाकशी चरम पर है। चुनाव आयोग के पास प्रधानमंत्री से लेकर प्रमुख पार्टियों के अध्यक्षों के विवादित बयानों की शिकायतों के अंबार लग रहे हैं। चुनाव आयोग पर पक्षपात के आरोप भी खूब उछल रहे हैं। कई मामलों में आयोग का रवैया चौंकाने वाला भी है। कहीं वह बहुत तेजी से एक्शन लेता दिखता है तो कहीं एक्शन की उम्मीदों को ही धूमिल करता नजर आता है। पार्टियों के बड़े नेताओं की भाषा पर भी सवाल उठ रहे हैं। लेकिन इस हाइ वोल्टेज ड्रामे के बीच कुछ गायब है तो वह आम आदमी के जीवन को  बेहतर करने वाले मसले। या यूं कहें कि उसके जीवन को कष्टकारी बनाने वाली परिस्थितियों पर कोई बात ही नहीं कर रहा है।

सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार पार्टी का मानना है कि इन सभी मसलों की संजीवनी राष्ट्रवाद और सुरक्षा के मसलों में है। इससे सहमत होने वालों की तादाद भी अच्छी-खासी है। यह बात अलग है कि जब कुछ विस्तार में जाइए तो इसमें अज्ञानता और झूठ का अंबार ही मिलता है। दूसरी ओर, अगले कुछ माह में देश की अर्थव्यवस्था को लेकर कई तरह की चिंताएं खड़ी हो रही हैं। खुद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष दुनिया की सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था की बात कहकर इसका संकेत दे चुका है। जो दल सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं, उनको इससे जूझना होगा, लेकिन क्या उन्हें मतदाताओं को यह नहीं बताना चाहिए कि वे कैसे इन चुनौतियों का सामना करेंगे। सच्‍चाई से मुंह फेरने से कोई फायदा नहीं होने वाला है और न ही भावनात्मक मुद्दे लोगों के जीवन की मुश्किलों को कम कर सकते हैं। इसके लिए तो साफ नीति और समझ की जरूरत है। लेकिन कोई इस पर बात करता नहीं दिखता।

वैसे पांच साल सरकार चलाने वाली पार्टी पर इसका जिम्मा अधिक है। उसे बताना चाहिए कि जब देश की अर्थव्यवस्था मजबूत है, तो सरकारी और गैर-सरकारी कंपनियां क्यों डूब रही हैं और लाखों लोगों का रोजगार क्यों छिन रहा है? एक समय की निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एयरलाइन डूब गई है। बीस हजार से अधिक लोग बेरोजगार हो गए और इससे परोक्ष रूप से जुड़े करीब एक लाख से अधिक लोगों पर इसका असर पड़ा है। कुछ सबसे कुशल मंत्रियों और हाइ-प्रोफाइल अधिकारियों को जिम्मा देने के बावजूद सरकारी एयरलाइन कंपनी एयर इंडिया वेंटीलेटर पर क्यों है? सरकार अगर उसमें करदाताओं की गाढ़ी कमाई डालना बंद कर दे, तो यह भी बंद हो जाएगी। सरकारी कंपनी पवन हंस को कर्मचारियों का वेतन देने में दिक्कत आ रही है। आखिर, हवाई चप्पल वालों को हवाई यात्रा का सपना दिखाने वाली सरकार की नीतियों में क्या खामी रह गई कि बड़ी एयरलाइन कंपनियों के कर्मचारी जमीन पर आ गए?

फिर, एक समय देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल के पचास हजार लोगों की नौकरी पर तलवार लटक रही है, क्योंकि कंपनी लगातार घाटे में है और यह नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। इसकी सहयोगी एमटीएनएल की हालत तो और खराब है। अब कहा जा रहा है कि लाखों करोड़ रुपये के डूबत कर्ज वाली कंपनी आइएलएंडएफएस में न्यू पेंशन स्कीम (एनपीएस) का पैसा भी डूबने की आशंका है। मार्केट से अधिक रिटर्न की लालच में निवेश मानकों में दी गई ढील के चलते कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) का पैसा भी कुछ कंपनियों में डूब रहा है। आम आदमी को म्यूचुअल फंड के जरिए निवेश की सलाह पुरानी है, लेकिन कई निजी कंपनियों में लगा म्यूचुअल फंड का पैसा भी डूबने की आशंका है।

ये सभी संकेत कमजोर होती अर्थव्यवस्था के हैं। दशकों बाद दुपहिया वाहनों की बिक्री घट रही है। देश की सबसे बड़ी कार कंपनी उत्पादन में एक चौथाई की कटौती की घोषणा कर चुकी है। सीएमआइई के ताजा आंकड़े बेरोजगारी की दर आठ फीसदी बता रहे हैं। देश के कई हिस्सों में चुनाव की कवरेज के दौरान लोगों की नौकरी खोने की पीड़ा इस लेखक ने खुद देखी है। लेकिन सरकार और सत्तारूढ़ दल इसे मानने को तैयार ही नहीं हैं। खासतौर से वित्त मंत्री की अपनी दलीलें हैं। वे चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन सरकार के पक्ष को अपने ब्लॉग्स के जरिए बखूबी रखते हैं।

लगता है, चुनावी मौसम में सब कुछ जायज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल में कह दिया कि तृणमूल कांग्रेस के 40 विधायक उनके संपर्क में हैं और 23 मई को नतीजों के बाद वे ममता बनर्जी को छोड़ देंगे। इस बीच प्रधानमंत्री की जाति और कांग्रेस अध्यक्ष की नागरिकता को लेकर भी शिकायतें की गईं। अब चुनावी समर में मतदाता किसे सत्ता की चाबी देता है, यह तो 23 मई को ही पता चलेगा। लेकिन बेहतर होगा कि वह हवाई मुद्दों के बजाय अपने जीवन की बेहतरी के लिए वोट करे, क्योंकि इसी से लोकतंत्र मजबूत होगा और उसका भविष्य़ भी बेहतर होगा।

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