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मुद्दे और जाति साधने पर जोर

भाजपा ने एक तरफ पांच मौजूदा सांसदों का टिकट काटा, तो कांग्रेस में भी प्रत्याशी चयन को लेकर विरोधी गुटों में खींचतान
किरोड़ी सिंह बैंसला ने बेटे विजय बैसला के साथ थामा भाजपा का दामन

जब चैत्र महीने में राजस्थान का मरुस्थली भू-भाग रेतीले अंधड़ से रूबरू हो रहा था, तो सत्तारूढ़ कांग्रेस और विरोधी दल भाजपा में उम्मीदवारी को लेकर मतभेदों के बवंडर उठ रहे थे। भाजपा ने अपने पांच सांसदों को फिर से टिकट देने से इनकार कर दिया। इनमें से एक झुंझुनू की सांसद पूछती रहीं कि आखिर उनका टिकट क्यों काटा गया? कांग्रेस में भी कुछ सीटों पर प्रत्याशियों के नामों पर कार्यकर्ताओं ने एतराज जताया। राजस्थान में लोकसभा की 25 सीटें हैं। इसके लिए दो चरणों में मतदान होगा। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने बाड़मेर सांसद सोनाराम, झुंझुनू से संतोष अहलावत, बांसवाड़ा से मानशंकर निनामा, भरतपुर से बहादुर सिंह कोली और नागौर से केंद्रीय मंत्री सी.आर. चौधरी को फिर से उम्मीदवार बनाना ठीक नहीं समझा। इनमें बाड़मेर सांसद कर्नल सोनाराम ने पिछले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा था और पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह को हरा कर संसद में पहुंचे थे। इस मर्तबा पार्टी ने उनकी जगह पूर्व विधायक कैलाश चौधरी को तवज्जो दी है। संसद में लंबे समय तक बाड़मेर की नुमाइंदगी कर चुके सोनाराम को टिकट कटने से बहुत बुरा लगा। कर्नल सोनाराम ने मीडिया से कहा कि पार्टी का एक वर्ग उनके खिलाफ लगातार काम कर रहा है। सेना से सियासत में आए सोनाराम ने कहा कि पार्टी ने उनकी जगह एक ऐसे नेता को प्रत्याशी बनाया है, जो विधानसभा चुनाव में तीसरे स्थान पर रहा था।

भाजपा ने बाड़मेर से कैलाश चौधरी, जोधपुर से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अजमेर से पूर्व विधायक भगीरथ चौधरी, जयपुर से रामचरण बोहरा, राजसमंद से दिया कुमारी, भीलवाड़ा से सुभाष बहेरिया, श्रीगंगानगर से निहालचंद, बीकानेर से केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल, झुंझुनू से नरेंद्र खीचड़, अलवर से महंत बालकनाथ, सीकर से सुमेधानंद, चुरू से राहुल कस्वां, कोटा से ओम बिरला, भरतपुर से रंजीता कोली, झालावाड़ से दुष्यंत सिंह, जयपुर ग्रामीण से केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह, जालौर से देवजी पटेल, पाली से केंद्रीय मंत्री पी.पी. चौधरी, करौली धौलपुर से मनोज राजोरिया, बांसवाड़ा से कनकमल कटारा, उदयपुर से अर्जुनलाल मीणा और टोंक सवाई माधोपुर से सुखबीर सिंह जौनपुरिया को मैदान में उतारा है। भाजपा ने नागौर सीट अपने नए सहयोगी और राष्ट्रिय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल के लिए छोड़ दी है। भाजपा की इस सूची में एक भी मुस्लिम नाम शामिल नहीं है, जबकि दो महिलाओं को उम्मीदवारी दी गई है।

सभा के दौरान गहलोत

कांग्रेस ने 25 उम्मीदवारों की फेहरिस्त में चार महिलाओं और एक अल्पसंख्यक उम्मीदवार को जगह दी है। कांग्रेस की सूची के मुताबिक जयपुर से ज्योति खंडेलवाल, दौसा से सविता मीणा, नागौर से ज्योति मिर्धा, जयपुर ग्रामीण से कृष्णा पूनिया, बाड़मेर से मानवेंद्र सिंह, जालौर से रत्न देवासी, पाली से बद्री जाखड़, जोधपुर से वैभव गहलोत, बीकानेर से मदन गोपाल मेघवाल, श्रीगंगानगर से भरतराम मेघवाल, चुरू से रफीक मंडेलिया, सीकर से सुभाष मेहरिया, झुंझुनू से श्रवण कुमार, टोंक सवाई माधोपुर से नमो नारायण मीणा, कोटा से रामनारायण मीणा, झालावाड़ से प्रमोद शर्मा, भीलवाड़ा से रामपाल शर्मा, चित्तौड़ से गोपाल सिंह ईड़वा, राजसमंद से देवकीनंदन गुर्जर, उदयपुर से रघुवीर मीणा, बांसवाड़ा से ताराचंद भगोरा, भरतपुर से अभिजीत कुमार जाटव, अलवर से जितेंद्र सिंह, अजमेर से रिज्जू झुनझुनवाला और भरतपुर से संजय जाटव मैदान में हैं।

सत्तारूढ़ कांग्रेस में भी प्रत्याशी चयन को लेकर विरोधी गुटों में खींचतान हुई और कुछ स्थानों पर कार्यकर्ताओं ने पार्टी की ओर से घोषित उम्मीदवारों के नाम पर नाराजगी जताई। बाड़मेर से पूर्व सांसद हरीश चौधरी खुद अपने लिए प्रयासरत थे। वे अभी राज्य सरकार में मंत्री भी हैं, लेकिन उन्हें दिल्ली की सियासत में अधिक रुचि है। झालावाड़ में पार्टी उम्मीदवार प्रमोद शर्मा पहले भाजपा में थे। इसलिए कांग्रेस के स्थानीय कार्यकर्ता कुछ खिन्न थे। नागौर में ज्योति मिर्धा का भी पार्टी के कई प्रमुख नेता विरोध कर रहे थे, लेकिन दिल्ली में उनके संपर्क और दीपेंद्र हुड्डा से निकट रिश्तेदारी ने इस विरोध को किनारे कर दिया। अजमेर में रिज्जू झुनझुनवाला नया नाम हैं। वे उद्योगपति हैं और भीलवाड़ा में रिहाइश है। पूर्व मंत्री बिना काक के दामाद झुनझुनवाला के नाम का भी विरोध हुआ। पार्टी के एक गुट ने दिल्ली में कुछ सीटों पर कमजोर प्रत्याशी उतारने की शिकायत की। हालांकि, यह कहा गया कि अब उम्मीदवारों के नाम में फेरबदल रणनीतिक रूप से ठीक नहीं होगी।

उधर, भाजपा में रह-रह कर मतभेद सतह पर आते रहे। भाजपा को सबसे पहले उस वक्त धक्का लगा जब पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने अपने बीकानेर जिले में केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल का विरोध किया। भाटी ने सार्वजनिक रूप से मेघवाल को उम्मीदवार बनाने का विरोध किया और इस कदर नाराज  हुए कि पार्टी से नाता ही तोड़ लिया। चुरू के सांसद कस्वां को भी अपने ही संगठन के लोगों का विरोध झेलना पड़ा। कोटा में सांसद ओम बिरला को फिर से मैदान में उतारने पर कुछ पूर्व विधायकों ने एतराज किया। पूर्व विधायक भवानी सिंह राजावत और प्रह्लाद गुंजल ने बिरला के नाम का विरोध किया। जयपुर के सांसद रामचरण बोहरा को भी ऐसे ही विरोध से गुजरना पड़ा। पार्टी संगठन इससे निजात पाता, तब तक दौसा सीट को लेकर घमासान मच गया। पार्टी का एक गुट ओमप्रकाश हुड़ला को टिकट देने की  पैरवी कर रहा था। लेकिन राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा ने इसमें पेच फंसा दिया। वे किसी भी कीमत पर हुड़ला के नाम पर तैयार नहीं हुए। पार्टी संगठन ने दोनों पक्षों के बीच सुलह सफाई के लिए कई प्रयास किए, लेकिन कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ। अंततः पार्टी ने दौसा से जसकौर मीणा को टिकट दिया। भाजपा प्रवक्ता पंकज मीणा कहते हैं कि भाजपा सभी 25 सीटें जीतेगी और टिकटों को लेकर कोई विवाद नहीं है। उधर, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक चुनावी सभा में कहा ‘केंद्रीय मंत्री सी.आर. चौधरी मैदान से ही हट गए हैं। पार्टी ने उन्हें टिकट देना ही ठीक नहीं समझा। गहलोत ने कहा कि बाकी चार केंद्रीय मंत्री भी चुनाव हारेंगे।

कांग्रेस ने पिछले महीने ही 12 निर्दलीयों को अपनी पार्टी के साथ ले लिया। इससे कांग्रेस को बल मिला। मगर भाजपा ने जाति समुदायों के कुछ प्रमुख लोगों को अपनी पार्टी में शामिल कर इसकी भरपाई करने की कोशिश की है। भाजपा ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल से गठबंधन किया है। बेनीवाल पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के मुखर विरोधी रहे हैं। पार्टी ने जब बेनीवाल से गठबंधन के लिए प्रेस कॉन्फ्रेंस किया, इसमें राजे की गैर मौजूदगी चर्चा का विषय बन गई। इसके पहले पार्टी ने किरोड़ी लाल मीणा को फिर से पार्टी में शामिल कर लिया था। मीणा की गिनती भी राजे के विरोधियों में की जाती है। कुछ विश्लेषक कहते हैं कि इन घटनाओं से लगता है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अब राजे की महत्ता कम करना चाहता है। हालांकि राजे समर्थक कहते हैं कि वसुंधरा राजे आज भी प्रदेश में सबसे लोकप्रिय चेहरा हैं और उनकी उपेक्षा की गई तो पार्टी को खामियाजा उठाना पड़ सकता है।

जयपुर में वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी कहते हैं कि कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन में ज्यादा दूरंदेशी दिखाई है। पार्टी ने प्रयोग भी किए और महिलाओं को भी ठीक जगह दी है। सैनी कहते हैं कि भाजपा कुछ डरी-सी लगती है। इसीलिए भाजपा जाति समीकरणों को साधने में लगी है। भाजपा को लगता है पुलवामा के बाद के माहौल ने उनकी जीत तय कर दी है। लेकिन कांग्रेस का कहना है कि बेरोजगारी और किसानों की बदहाली के मुद्दे भाजपा को भारी पड़ेंगे।

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