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पुलवामा के बाद

गम और गुस्से की इस घड़ी में संतुलित रवैया जरूरी है, युद्धोन्माद पैदा करने की कोशिश नहीं। सरकार को सभी विकल्पों को तौलकर कोई कदम उठाना चाहिए और चूकों तथा गफलतों के लिए जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए
पुलवामा हमले के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक

देश गम और गुस्से में है। कश्मीर में आतंक का दौर शुरू होने के बाद से अब तक सबसे अधिक जवानों को एक आतंकी हमले में देश ने खोया है। जाहिर है, देश के लोग इसके जिम्मेदारों को कड़ी सजा देने की सरकार से उम्मीद कर रहे हैं। हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ली है और विस्फोटक से लदे वाहन को सीआरपीएफ के काफिले की बस से टकराने वाला फिदायीन कश्मीर का युवा था। तथ्यों की कड़ी जुड़कर पाकिस्तान पहुंच जाती है। जैश का प्रमुख मसूद अजहर पाकिस्तान से ही ऑपरेट कर रहा है। यह पाकिस्तान सरकार को भी पता है क्योंकि उसकी बदनाम इंटेलिजेंस एजेंसी आइएसआइ उसका भारत के खिलाफ उपयोग करती है। ऐसे में देश में पाकिस्तान के खिलाफ गुस्सा है। प्रधानमंत्री भी इस हमले के बाद कई बार कह चुके हैं कि उनका भी खून उसी तरह खौल रहा है जैसा देश के लोगों का, और गुनहगारों को सजा दी जाएगी। हमारी सेना ऐसा करने में सक्षम है और सरकार की तरफ से उसे पूरी छूट है।

जाहिर है, समूचा देश इस मुश्किल घड़ी में शहीदों के साथ खड़ा है और अपनी भावनाएं जाहिर कर रहा है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से देश में ऐसा माहौल बना है, जैसे युद्ध होने वाला है। इसमें बड़ा योगदान न्यूज चैनलों का है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो ये चैनल युद्ध के लिए माहौल बनाने की कोशिश करते दिखते हैं। कुछ तो लगातार कवि सम्मेलन आयोजित कर वीर रस की कविताओं के जरिए युद्धोन्माद पैदा कर रहे हैं। कुछ टीवी एंकर अपने स्टूडियो में युद्ध मॉडल बनाकर रिटायर सैनिक अधिकारियों से पाकिस्तान के खिलाफ हमले पर चर्चा कर रहे हैं। इस बीच हमारे राजनैतिक तंत्र ने बहुत ही संतुलित प्रतिक्रिया के साथ एकजुटता का प्रदर्शन किया है। सभी दलों और नेताओं ने सरकार के हर फैसले के साथ खड़े रहने की बात कही है। यह समय की जरूरत भी है। दुश्मन को यह एहसास जरूर हो गया होगा कि भारत इस घड़ी में एकजुट है।

अब सवाल उठता है कि पाकिस्तान और वहां बैठे आतंकी सरगनाओं के खिलाफ भारत क्या कार्रवाई कर सकता है। इस मामले में भारतीय नेतृत्व की ओर राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी निगाहें लगी हुई हैं। प्रधानमंत्री ने साफ कहा है कि इसका बदला लिया जाएगा। सेना और अर्द्धसैनिक बलों के प्रमुख भी साफ कर चुके हैं कि भारत किसी भी तरह की कार्रवाई करने में सक्षम है। इस माहौल और सख्त रुख के मद्देनजर ही हमले के पांच दिन बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पहली प्रतिक्रिया दी। जैसी अपेक्षा थी, उन्होंने इस हमले में पाकिस्तान का हाथ होने से इनकार किया और भारत के सबूत देने की स्थिति में कार्रवाई करने की बात कही। उन्हें यह पता होना चाहिए कि भारत संसद पर हमले से लेकर मुंबई हमले, पठानकोट हमले और उड़ी हमले तक लगातार पाकिस्तान को सबूत देता रहा है। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पाकिस्तान पर आतंक को शह देने के आरोप भारत ही नहीं, ईरान और अफगानिस्तान भी लगाते रहे हैं।

ऐसे में भारत को यह देखना है कि सैनिक कार्रवाई करनी है या पाकिस्तान को कूटनीतिक प्रयासों के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना है ताकि आर्थिक रूप से उसकी कमर टूट जाए। भारत ने एमएफएन का दर्जा वापस लेने और पाकिस्तान से आयात पर सीमा शुल्क दरों को बढ़ाने के कदम उठाए हैं। पाकिस्तान के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में फ्रांस प्रस्ताव पेश करने जा रहा है। लेकिन पाकिस्तान की यात्रा के बाद भारत आए सऊदी प्रिंस पर हम कितना दबाव बना पाए, यह अभी साफ नहीं है। सऊदी प्रिंस पाकिस्तान को 20 अरब डॉलर निवेश का तोहफा दे आए हैं। पाकिस्तान को चीन का समर्थन हासिल है लेकिन चीन भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार पार्टनर भी है। इसलिए हमें अपनी इस हैसियत का उपयोग करना चाहिए।

इस बीच एक बड़ा सवाल देश में भी खड़ा हो रहा है। एक तबका कश्मीरी नागरिकों के खिलाफ माहौल बना रहा है। जब कश्मीर देश का अभिन्न अंग है तो कश्मीर के लोग भी दूसरे हिस्से के लोगों की तरह देश के नागरिक हैं। लेकिन पुलवामा हमले के बाद देश के कई हिस्सों में कश्मीरी छात्रों और लोगों के साथ ज्यादती की खबरें आईं। हमें ध्यान रखना चाहिए कि कश्मीर का भटका हुआ युवा ही आतंकियों के जाल में फंसकर वारदातों को अंजाम देता है। इसलिए दूसरे हिस्सों में जाकर बेहतर शिक्षा से जीवन को बेहतर करने की लालसा रखने वाले युवाओं के साथ गलत व्यवहार उनमें अलगाव की भावना ही पैदा करेगा।

ऐसे में संतुलित व्यवहार का ही परिचय देना चाहिए। सरकार क्या कदम उठाती है, वह मौजूद विकल्पों पर आधारित होना चाहिए, न कि मीडिया और उन्मादी भीड़ के दबाव में उठाया गया कदम। सरकार और सुरक्षा तंत्र को आत्मचिंतन भी करना चाहिए कि इतना बड़ा हमला किन चूकों की वजह से हुआ। इसकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए। जो लोग अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभा सके, चाहे वे सुरक्षा, खुफिया तंत्र के हों या प्रशासनिक और राजनैतिक तंत्र से जुड़े लोग, उनका जिम्मा तय किया जाना चाहिए। यह इसलिए जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसे हमलों को रोकने के लिए जरूरी कदम उठाए जा सकें।

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