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यह आदत बुरी

इंटरनेट के इस्तेमाल से खुद को नहीं रोक पाते तो संभल जाएं, यह आपको बीमार और निकम्मा बना सकता है, देश में दोगुने हुए मामले
प्रतीकात्मक तस्वीर

जब मैं स्कूल में था तो माता-पिता की निगरानी में एक-दो घंटे रोज टीवी देखता था। दोस्तों के साथ बाहर जाता। बारहवीं में मुझे 90 फीसदी अंक मिले। कॉलेज में मैंने दोस्तों के साथ बाहर जाना और खेलना छोड़ दिया। हॉस्टल के अपने कमरे में लैपटॉप पर तीन-चार घंटे ऑनलाइन टीवी सीरीज और मूवीज देखता। फिर मुझे इसकी लत लग गई। मैं 12-13 घंटे ऑनलाइन टीवी सीरीज और मूवीज देखने लगा। क्लास जाना छोड़ दिया। परिजनों के फोन नहीं उठाता और अक्सर झूठ बोलता था। दस-पंद्रह दिनों में नहाता। खाने का भी ख्याल नहीं रहता था। मेरी गर्दन, कलाइयों और आंखों में हमेशा दर्द रहता। नींद नहीं आती। परीक्षा में फेल होने के बाद मैं घर आ गया। माता-पिता जब मुझे इंटरनेट के इस्तेमाल से रोकते तो मैं बेचैन हो उठता। उन पर हाथ उठाता। गाली देता। 2017 में डॉक्टर ने बताया मैं इंटरनेट एडिक्ट हूं। इलाज के बाद अब जिंदगी पटरी पर लौट रही है, लेकिन मेरे कीमती चार साल बर्बाद हो चुके हैं।

-अनुराग जैन, 21 साल, दिल्ली

मेरे पिता ने 2016 में जन्मदिन पर मुझे मोबाइल गिफ्ट किया। मैं सोशल साइट्स पर दो-तीन घंटे और फिर आठ-दस घंटे रोज बिताने लगी। फेसबुक पर लगातार तस्वीरें बदलती रहती। लाइक कम मिलने पर अपने बाल नोचने लगती और अंगुली चबाने लगती थी। इंटरनेट का इस्तेमाल नहीं करने पर अकेलापन महसूस होता। रिश्तेदारों और दोस्तों से बात करने में घबराहट होने लगी। मैंने घर से निकलना बंद कर दिया। परिजन जब इंटरनेट का इस्तेमाल करने से मना करने लगे तो बीते साल नवंबर में घर से भाग गई। पुलिस ने बचाया न होता तो मेरी आबरू नहीं बचती।

-अनन्या सागर, 24 साल, पटना

अनुराग जैन और अनन्या सागर की आपबीती पढ़ कर आपको अंदाजा लग गया होगा कि प्रॉब्लमेटिक इंटरनेट यूज (पीआइयू) आपके स्वास्थ्य को किस कदर प्रभावित कर सकता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे इंटरनेट एडिक्शन भी कहते हैं। यानी वह स्थिति जब आप चाहकर भी इंटरनेट का इस्तेमाल करने से खुद को रोक नहीं पाते। ऐसा होने पर न केवल पीड़ित का मानसिक और शारीरिक विकास प्रभावित होता है, बल्कि वह अवसर और रिश्ते भी गंवा बैठता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रग्स, एल्कोहल वगैरह की तरह ही इंटरनेट की लत भी खतरनाक है। यही कारण है कि पीआइयू के उपचार के लिए अब देश में विशेष सेंटर की दरकार महसूस होने लगी है।

एम्स, दिल्ली में साइकाइअट्री के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. यतन पाल सिंह बल्हारा ने आउटलुक को बताया, “इंटरनेट एडिक्शन अब पश्चिम की ही समस्या नहीं रही। भारत में भी यह ट्रेंड तेजी से बढ़ा है और स्वास्थ्य संबंधी बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है। इसके बावजूद देश में इससे जुड़े रिसर्च काफी कम हुए हैं।” उन्होंने बताया कि इसके कारण ही अक्टूबर 2016 में एम्स ने नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (एनडीडीटीसी) में बिहेवेरियल एडिक्शंस क्लीनिक (बीएसी) की स्थापना की। बीते दो साल में बीएसी में पीआइयू पीड़ितों की संख्या दोगुनी हो चुकी है।

बेंगलूरू के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंस (निमहांस) के हेल्दी यूज ऑफ टेक्नोलॉजी (शट) क्लीनिक में भी दो साल में मरीज दोगुने हो गए हैं। शट में ही 26 वर्षीय के. सुंदरम का इलाज चल रहा है। वह नेटफ्लिक्स पर 10-12 घंटे वीडियो देखता था। जब कोई उसे ऐसा करने से रोकता तो वह मारपीट करने लगता। देश में नेटफ्लिक्स एडिक्शन का यह पहला मामला बीते साल अक्टूबर में सामने आया था। बकौल सुंदरम, “नौकरी जाने के बाद मैं जब भी दबाव महसूस करता नेटफ्लिक्स पर वीडियो देखने लगता। इससे मुझे खुशी मिलती थी और मैं अपनी सारी परेशानियां भूल जाता।”

बीएसी और शट के अलावा केवल दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ही इंटरनेट एडिक्शन के उपचार की विशेष व्यवस्था है। यह समस्या अब महानगरों तक ही सीमित नहीं रही। इसके कारण घर उजड़ने से लेकर अपराध करने तक के मामले छोटे-छोटे शहरों से भी सामने आ रहे हैं। बिहार के मुजफ्फरपुर की 28 साल की काव्या कामत से तलाक के लिए उसके पति ने शादी के तीन साल के भीतर ही जुलाई 2018 में अर्जी दाखिल कर दी। जब दंपती की काउंसलिंग कराई गई तो पता चला कि काव्या पीआइयू से पीड़ित है। बकौल काव्या, “कभी सोचा नहीं था कि शादी के वक्त पति ने जो मोबाइल गिफ्ट किया था उससे एक दिन घर उजड़ने की नौबत आ जाएगी।” कुछ ऐसी ही कहानी फरीदाबाद के 14 साल के अंकुश की है। उसके माता-पिता दोनों कामकाजी हैं। दो साल पहले उन्होंने बेटे को मोबाइल फोन गिफ्ट किया। फोन मिलने से पहले तक अंकुश पढ़ाई में अच्छा था और दोस्तों के साथ बाहर क्रिकेट खेलने जाता था। धीरे-धीरे उसे इंटरनेट गेमिंग की ऐसी लत लगी कि उसने घर से बाहर जाना बंद कर दिया। वह चिड़चिड़ा और नाराज रहने लगा। जब उसने स्कूल जाने से मना कर दिया तो बीते अक्टूबर में माता-पिता उसे डॉक्टर के पास ले गए। बिहार के सीतामढ़ी के 54 वर्षीय खुर्शीद आलम को एक युवती की शिकायत पर बीते साल नवंबर में गिरफ्तार किया गया। कपड़ा व्यवसायी खुर्शीद की पत्नी का 2016 में देहांत हो गया। अकेलापन महसूस होने पर उसने इंटरनेट का इस्तेमाल करना शुरू किया। फिर उसे फेसबुक की ऐसी लत लगी कि वह फर्जी प्रोफाइल बनाकर लड़कियों को फंसाने लगा।

दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में चीफ क्लिनिकल साइकलॉजिस्ट डॉ. एकता पुरी ने आउटलुक को बताया, “इंटरनेट से लैस स्मार्टफोन पर हर किसी की पसंद और पृष्ठभूमि के हिसाब से विकल्पों की भरमार है। गेम, मूवी से लेकर पोर्नोग्राफी तक। यही कारण है कि देश में स्मार्टफोन की बढ़ती पहुंच और पीआइयू के बीच सीधा रिश्ता दिखता है।” टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार मार्च 2016 से लेकर 2018 के बीच देश में इंटरनेट कनेक्शन की संख्या में 65 फीसदी का इजाफा हुआ। सितबंर 2018 में देश में 56 करोड़ इंटनेट कनेक्शन थे। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन के अनुसार मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं में से शहरी इलाकों के 46 और ग्रामीण इलाकों के 57 फीसदी 25 साल से कम उम्र के हैं।

6,219 स्कूली बच्चों पर दिल्ली पुलिस और बीएसी का अध्ययन बताता है कि हर पांच में से एक छात्र पीआइयू से पीड़ित है। इंटरनेट गेमिंग, सर्फिंग, सोशल नेटवर्किंग साइट्स को लेकर दीवानगी बच्चों की पढ़ाई और सोशल लाइफ को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। अध्ययन के मुताबिक 37 फीसदी छात्र पढ़ाई के दबाव से निपटने के लिए इंटरनेट का सहारा ले रहे हैं। 25 फीसदी स्कूली बच्चों ने अध्ययन के दौरान माना कि वे चाहकर भी खुद को इंटरनेट का इस्तेमाल करने से नहीं रोक पाते।

इंजीनियरिंग कॉलेज के तीन हजार छात्रों पर किए गए बीएसी के अध्ययन में भी करीब 25 फीसदी छात्रों ने इंटरनेट इस्तेमाल पर नियंत्रण रख पाने में खुद को असमर्थ बताया। बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग में मनोवैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार ने आउटलुक को बताया कि 2015-17 तक उन्होंने पटना संभाग के चार केंद्रीय विद्यालयों के कक्षा छह से आठ तक के छात्रों पर अध्ययन किया था। इससे पता चलता है कि 33 फीसदी छात्रों को इंटरनेट की लत है। पीजीआइ, चंडीगढ़ का एक अध्ययन बताता है कि 8.24 फीसदी रेजीडेंट डॉक्टर भी पीआइयू से पीड़ित हैं। डॉ. बल्हारा ने बताया, “15-25 साल की उम्र के लोगों में यह परेशानी ज्यादा दिख रही है। इस आयु वर्ग के 25 फीसदी लोगों का इंटरनेट इस्तेमाल पर नियंत्रण नहीं रख पाने की बात खुद स्वीकार करना बेहद खतरनाक स्थिति है, क्योंकि यह मामला सिर्फ कुछ साल बर्बाद होने का नहीं, पूरा करिअर चौपट होने का है।” डॉ. पुरी के मुताबिक, इंटरनेट एडिक्शन के मामले सालाना 15-20 फीसदी की दर से बढ़ रहे हैं। ज्यादातर पीड़ित युवा हैं और अमूमन इंटरनेट पर गेमिंग तथा पोर्नोग्राफी देखते हैं।

"इंटरनेट एडिक्शन स्वास्थ्य संबंधी बड़ी चुनौती बनकर उभर रहा है। खासकर, किशोर और युवाओं में। लेकिन, इसके उपचार के विशेष संस्थान गिनती के ही हैं"

- डॉ. यतन पाल सिंह बल्हारा, एसोसिएट प्रोफेसर, एम्स (दिल्ली)

बिहार मनोवैज्ञानिक संघ की 2017-18 की रिपोर्ट बताती है कि 20-30 फीसदी इंटरनेट एडिक्ट को ही तीन महीने में इस समस्या से छुटकारा मिल पाता है। 40-50 फीसदी पीड़ित की स्थिति छह महीने के इलाज के बाद संतोषजनक हो पाती है। करीब 20 फीसदी मरीज ऐसे होते हैं जिनमें एक साल के इलाज के बाद भी संतोषजनक सुधार नहीं होता।

पीआइयू के बढ़ते मामलों को देख यह सवाल उठना लाजिमी है कि इंटरनेट का कैसे और कितनी देर इस्तेमाल करें। डॉ. बल्हारा ने बताया, “समय से ज्यादा महत्वपूर्ण यह ध्यान रखना है कि आप इंटरनेट का इस्तेमाल क्यों करते हैं। दो-तीन घंटे का इस्तेमाल भी एडिक्ट बना सकता है और जब एडिक्शन चरम पर पहुंचता है तो पता चलता है कि पीड़ित 18-19 घंटे इंटरनेट इस्तेमाल कर रहा है।”

उन्होंने बताया कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में लोगों को पता होता है कि इंटरनेट उनकी जिंदगी और रिश्तों को प्रभावित कर रहा है फिर भी वे खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते। अमूमन वे तय नहीं कर पाते कि कब इस्तेमाल करना है कब नहीं। मसलन, पढ़ाई के वक्त बच्चे गेम खेलने लगते हैं। सोने के वक्त युवा सोशल साइट्स पर होते हैं। कई लोग जब दूसरे काम कर रहे होते हैं तब भी वे मोबाइल और इंटरनेट के बारे में ही सोचते रहते हैं। मसलन, बच्चे स्कूल में छह से सात घंटे होते हैं तो उनके पास मोबाइल नहीं होता, लेकिन उस वक्त भी उनके दिमाग में यही चल रहा होता है कि घर पहुंचकर इंटरनेट पर क्या करना है। डॉ. पुरी ने बताया कि बच्चे जब इंटरनेट का इस्तेमाल करें तो माता-पिता को उन पर नजर रखनी चाहिए, जबकि बड़े जरूरी होने पर ही इसका इस्तेमाल करें।

ज्यादातर मामलों में पीआइयू पीड़ित इंटरनेट का इस्तेमाल करने से रोकने पर बेचैन और हिंसक हो जाते हैं। उनकी कलाई और गर्दन में दर्द होता है और आंखें कमजोर हो जाती हैं। भूख नहीं लगना, अनिद्रा जैसी कई बीमारियां हो जाती हैं। डॉ. कुमार ने बताया, “सर्फिंग से रेडिएशन लगातार निकलता है जो यूजर के टेस्टोस्टेरोन/एस्ट्रोजन हार्मोन को प्रभावित करता है। इससे यौन समस्याएं पैदा होती हैं। पीड़ित अवसाद और अन्य तरह की मानसिक परेशानियों से जूझने लगता है। परिवार और समाज से सीधे संवाद से बचता है। इससे आत्महत्या की प्रवृत्ति भी बढ़ती है।”

"इंटरनेट एडिक्शन को लेकर जागरूकता तो बढ़ी है, पर हर कोई सोचता है कि वह एडिक्ट नहीं हो सकता। समस्या बेहद गंभीर होने पर ही लोग इलाज के लिए आते हैं "

- डॉ. एकता पुरी, चीफ क्लिनिकल साइकलोजिस्ट, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल

डॉ. बल्हारा के अनुसार, इंटरनेट का एडिक्शन भी अन्य लत की तरह ही खतरनाक है। बड़ा फर्क यह है कि ड्रग्स वगैरह के एडिक्ट को उसका इस्तेमाल बंद करने के लिए कहा जाता है, जबकि इंटरनेट एडिक्ट से इसका इस्तेमाल बंद करने के लिए नहीं कहा जा सकता। उन्होंने बताया कि इस चुनौती से पार पाने के लिए इंटरनेट के हेल्दी यूज को लेकर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर एम्स एक रीजनल रिसोर्स सेंटर बना रहा है। इस प्लेटफॉर्म पर पूरे साउथ ईस्ट-एशिया के लोग कहीं से भी मदद पा सकेंगे। डॉ. पुरी ने बताया, “अब लोग यह समझने लगे हैं कि इंटरनेट एडिक्शन जैसी कोई चीज होती है। लेकिन, हर किसी को यह लगता है कि वह एडिक्ट नहीं हो सकता। उपचार के लिए तो लोग तब पहुंचते हैं जब एडिक्शन अपने चरम पर होता है। इसलिए प्रीवेंशन को लेकर जागरूकता बढ़ाने की सबसे ज्यादा जरूरत है।”

बेशक, इंटरनेट ने दुनिया हमारी मुट्ठी में ला दी है। लेकिन, इसकी लत पश्चिमी देशों और चीन वगैरह में भयावह स्तर पर पहुंचीं तो वहां इसके लिए अलग क्लीनिक खोले गए और सरकारी योजनाएं चलाई गईं। इस पर कई किताबें भी आ चुकी हैं। अब यह रोग हमारे यहां भी अपना पंजा फैलाने लगा है। इसी वजह से सावधान हो जाने और खासकर युवाओं में जागरूकता फैलाने की जरूरत भारी है। तो, इंटरनेट का इस्तेमाल सोच-समझ कर करें।

(पहचान गुप्त रखने के लिए पीड़ितों के नाम बदल दिए गए हैं)

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