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फायदा कम, नुकसान ज्यादा

इससे किसानों के एक वर्ग को कुछ फौरी राहत जरूर मिलती है लेकिन इससे संकट बढ़ता ही है
कर्जमाफी की जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है, उन्हें फायदा कम मिलता है

किसानों के लिए ज्यादातर कर्जमाफी ऐसे समय की जाती है जब चुनाव नजदीक आते हैं। ऐसे में साफ है कि राजनैतिक दलों के ये फैसले किसानों की समस्या दूर करने से ज्यादा राजनैतिक फायदे के लिए होते हैं। कर्जमाफी से किसानों को लंबी अवधि में इसका कोई फायदा नहीं मिलता है, उलटे बैंकों और राज्यों पर भी इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। अगर पिछले कुछ समय के आंकड़े देखे जाएं तो सीधे तौर पर कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले कर्ज की मात्रा में कमी आई है। ऐसे में बैंक 18 फीसदी का लक्ष्य पूरा करने के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे रूरल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड में निवेश, सिक्योरिटाइजेशन डील और रिटेल सेक्टर को कर्ज देने में करते हैं। यह उनके लिए बहुत फायदे का सौदा नहीं होता है। इस कवायद से बैंकों के कर्ज देने के लक्ष्य तो पूरे हो जाते हैं लेकिन इससे न तो किसान को कोई फायदा होता है और न तो बैंकों के बिजनेस पर सकारात्मक हो सकता है। उलटे उसका लाभ कम हो जाता है।

इसके अलावा एक अहम बात यह समझना जरूरी है कि कर्जमाफी का फायदा ऐसे किसानों को मिलता है, जो संस्थागत स्रोतों से कर्ज लेते हैं। इसके विपरीत हकीकत यह है कि छोटे और सीमांत किसान ज्यादातर कर्ज साहूकार, पारिवारिक सदस्य आदि से लेते हैं। ऐसे में कर्जमाफी की जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है, उन्हें उसका फायदा कम मिलता है। एक बैंकर की नजर से देखा जाए तो कर्जमाफी का एक नकारात्मक प्रभाव यह होता है कि किसान कर्ज चुकाने से बचता है। उसे लगता है कि चुनाव आएंगे तो कर्ज माफ हो जाएगा। इस प्रवृत्ति पर पूर्व आरबीआइ गवर्नर उर्जित पटेल ने भी चेताया था। उनका कहना था कि कर्जमाफी के कदम से किसानों को कर्ज न चुकाने का प्रोत्साहन मिलेगा, जो सही प्रवृत्ति नहीं है।

विश्व बैंक की एक रिसर्च के अनुसार, 2008-09 में यूपीए सरकार द्वारा की गई कर्जमाफी के कारण कर्ज नहीं चुकाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। खास तौर से चुनाव के साल में किसान ज्यादातर कर्ज नहीं चुकाते हैं। इसके अलावा कर्जमाफी का अहम असर यह पड़ता है कि भले ही किसान का कर्ज माफ हो जाता है लेकिन बैंकर की नजर में वह डिफॉल्टर होता है। इसकी वजह से नए कर्ज देने में चार से छह फीसदी की कमी आ जाती है। साथ ही यह भी देखा गया है कि जिन किसानों का कर्ज माफ होता है, बाद में उनकी वित्तीय स्थिति में कोई खास सुधार नहीं होता है। इससे साफ है कि कर्जमाफी की पहल जिस उद्देश्य से की जाती है, वह पूरी नहीं होती। इसके अलावा जब किसी राज्य में कर्जमाफी की घोषणा होती है तो उसका असर दूसरे राज्यों पर पड़ता है। उन राज्यों के किसान भी कर्ज चुकाने से परहेज करते हैं। उन्हें लगता है कि जब उस जगह कर्जमाफी हुई है तो उनके यहां भी कर्जमाफी जरूर होगी। ऐसे में कर्ज चुकाने की क्या जरूरत है। जिन राज्यों में कर्जमाफी होती है वहां पर विकास के कार्यक्रमों पर भी असर पड़ता है क्योंकि उनकी वित्तीय स्थिति बिगड़ जाती है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना जैसे राज्य इसके उदाहरण हैं।

कुल मिलाकर इन उदाहरणों से साफ है कि कर्जमाफी से किसान को तुरंत तो राहत मिल जाती है लेकिन उसका लंबी अवधि में कोई फायदा नहीं होता। यही नहीं, इसकी वजह से कृषि क्षेत्र में भी कोई ढांचागत सुधार नहीं होता है। जरूरत उन योजनाओं की है जो कृषि क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन कर सकें, ताकि किसान कर्ज का बेहतर फायदा उठा सके। कर्जमाफी को केवल उस समय लागू करना चाहिए जब मानसून खराब हो या फिर दूसरी कोई अनहोनी हो जाए। हालांकि इसे भी पार्टियों के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिए। कर्जमाफी के लिए एक स्पष्ट कानून बनना चाहिए, ताकि किसान को पता हो कि कर्जमाफी केवल किस सूरत में मिलेगी। अगर कानून बन जाएगा तो राजनैतिक दल भी केवल चुनावी फायदे के लिए ऐसे कदम नहीं उठा पाएंगे। इसका फायदा यह भी होगा कि किसान जानबूझ कर डिफॉल्टर नहीं बनेगा। वह सामान्य परिस्थितियों में कर्ज चुकाएगा। इससे उसकी क्रेडिट हिस्ट्री भी सुधरेगी और बैंकों की वित्तीय स्थिति भी बेहतर होगी।

कर्जमाफी का एक असर यह भी होता है कि जो किसान समय पर कर्ज चुकाते हैं, वे अपने आप को छला हुआ महसूस करते हैं। साथ ही बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ भी गिर जाती है। इस कारण बैंकों के मुनाफे में जहां कमी आती है वहीं उनकी गैर निष्पादित संपत्तियां (एनपीए) भी बढ़ जाती हैं। सरकार को चाहिए कि कृषि संकट को दूर करने के लिए लंबी अवधि के कार्यक्रम तैयार करे, जिसमें न केवल आधारभूत ढांचे का विकास हो बल्कि किसानों के लिए बेहतर बाजार भी तैयार हो सके। इसमें बाजार प्रोत्साहन योजना, न्यूनतम समर्थन मूल्य, कृषि में मशीनीकरण को बढ़ावा देने और आधुनिक तकनीक का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना जरूरी है। मतलब यह है कि कृषि घाटे का सौदा न रहे, बल्कि फायदे का सौदा बन जाए।

(लेखक पंजाब ऐंड सिंध बैंक के पूर्व चीफ जनरल मैनेजर हैं)

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