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हसीना की जीत से उम्मीदें बढ़ीं

हालिया चुनाव में अवामी लीग की अगुआई वाले महागठबंधन की बड़ी जीत भारत के लिए सुखद लेकिन चुनौतियां भी हैं कई
बड़ी जीतः प्रधानमंत्री शेख हसीना के लिए पूरे क्षेत्र में नई फिजा तैयार करने का मौका

 

बांग्लादेश के लिए 30 दिसंबर 2018 ऐतिहासिक दिन था। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 11वें संसदीय चुनाव में एकतरफा जीत के साथ सत्ता में वापसी की। संसदीय चुनाव में कुल 300 में से अवामी लीग की अगुआई वाली महाजोट (महागठबंधन) 288 सीटें जीत गया।

इसमें कोई शक नहीं कि हसीना और उनकी अवामी लीग (एएल) ने विरोधियों के खिलाफ निर्णायक और भारी बहुमत से जीत हासिल की, लेकिन इस दरम्यान काफी नाटकीय घटनाक्रम भी हुए। कई बार लगा कि विपक्षी गठबंधन के एकजुट होने और सत्ता विरोधी रुझान के कारण अवामी लीग बुरी तरह हार जाएगी। लेकिन, हसीना के कुशल और चतुर नेतृत्व में सत्तारूढ़ दल ने चुनावों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसने पार्टी काडर को विरोधियों को पछाड़ने के लिए प्रेरित किया।

हालांकि, दुखद यह है कि चुनावी हिंसा में 17 लोग मारे गए। इसकी विभिन्न मानवाधिकार संगठनों, चुनाव पर नजर रखने वाली संस्थाओं, अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) ने काफी आलोचना की। सभी ने बैलेट बॉक्स से छेड़छाड़, पारदर्शिता की कमी और बड़े पैमाने पर धांधली के गंभीर आरोप लगाए।

दिलचस्प पहलू यह भी था कि डॉ. कमाल हुसैन के चुनावी मैदान में कूदने से चुनाव प्रचार नाटकीय और बेहद रोमांचक बन गया। 81 वर्षीय डॉ. कमाल एक प्रसिद्ध राजनैतिक चेहरा हैं और वह स्वतंत्र बांग्लादेश के पहले विदेश मंत्री रह चुके हैं। वे संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ और अंतरराष्ट्रीय न्यायविदों के हलकों में जानी-मानी शख्सियत भी हैं।  डॉ. कमाल हुसैन ने 90 के दशक के शुरुआती दिनों में गानो फोरम नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई, जिसका कोई जमीनी राजनीतिक आधार नहीं था। फिर भी वे राजनैतिक रूप से सक्रिय रहे। राजनीतिक दल बनाने के लगभग 26 साल बाद उन्होंने 2018 के संसदीय चुनाव में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के साथ साझेदारी करने का विकल्प चुना। क्या यह डॉ. कमाल का गलत फैसला था या प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए सोच-समझकर लिया जाने वाला फैसला था?

डॉ. कमाल को धर्मनिरपेक्ष, उदार और आजादी का समर्थक वाला व्यक्ति माना जाता था, जो बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी से नफरत करते थे। लेकिन उन्होंने जमात और बीएनपी के साथ गठबंधन करने का विकल्प चुनकर सभी को गलत साबित कर दिया। वे उस गठबंधन का हिस्सा बने, जो पाकिस्तान समर्थक और युद्ध अपराधों के सहभागी माने जाते हैं। कभी फादर ऑफ बांग्लादेश के हमराज माने जाने वाले शख्स का ऐसा अवसरवादी और जल्दबाजी में लिया गया फैसला सभी तर्कों और विचारों को झुठलाता है।  एक बड़ा तबका इसके पीछे छिपे एजेंडे को संदेह की नजर से देखता है। इसके अलावा, उनकी पत्नी भारत और बांग्लादेश से शत्रुतापूर्ण संबंध रखने वाले देश से ताल्लुक रखती हैं। इसलिए संदेह स्वाभाविक है। साथ ही, डॉ. कमाल ने पूर्व पीएम खालिदा जिया की रिहाई की वकालत की, जो फिलहाल भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल में हैं। इससे अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि उन्होंने जमात का समर्थन किया और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी ज्यादतियों को भूलकर धार्मिक चरमपंथ को बढ़ाने के लिए चुनावी मैदान में उतारा।

यह बेहद अहम है कि राजनीतिक रूप से जागरूक और बांग्लादेश के मतदाताओं ने चुनावों में कट्टरपंथियों को खारिज कर दिया। यह चुनावी नतीजों का सबसे मजबूत पहलू है। दूसरे शब्दों में, यह तरक्कीपसंद सोच और प्रगतिशील ताकतों की जीत है। यह बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुरक्षा की भावना देने के लिहाज से अहम है, जो अक्सर उत्पीड़न का शिकार होते हैं।

इसके अलावा, भारत-बांग्लादेश संबंध पहले की तुलना में बेहतर होंगे और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चुनाव परिणामों ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ को एक बड़ा झटका दिया है, जो अपनी पैठ जमाने के लिए बांग्लादेश को अस्थिर करने के प्रयासों में अतिसक्रिय रहा है। हाल में एक आइएसआइ ऑपरेटिव को बीएनपी नेता से बात करते पकड़ा गया था, जिसने चुनाव में जीतने के लिए मदद मांगी और इसके लिए चीनी मदद का भी आग्रह किया। हालांकि, कुख्यात छवि और बांग्लादेश में आइएसआइ के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए यह नामुमकिन है कि वह शांत रहेगी। इसमें कोई शक नहीं कि हसीना को भारी जनादेश मिला है, लेकिन इसने लोगों की उम्मीदें भी बढ़ा दी हैं।

चुनाव पूर्व अपनी प्रतिबद्धता के मुताबिक बांग्लादेश को भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने के अपने वादे को पूरा करने के लिए हसीना ने नए मंत्रिमंडल में किसी भी दागी चेहरे को जगह नहीं देने की योजना बनाई है। इससे उनकी नई टीम की साफ छवि बनेगी। वह उन लोगों को भी शामिल करने की योजना बना रही हैं, जिन्हें चुनाव में टिकट नहीं दिया गया था। इसे विरोधी स्वर को शांत करने की दिशा में उठाए जाने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है। बांग्लादेशी क्रिकेट टीम के कप्तान मशरफे मोर्तजा नरैल-2 से सांसद चुने गए हैं और संभवतः विश्वकप के बाद उन्हें मंत्री बनाया जा सकता है। इस बीच, अमेरिका और यूरोपीय संघ पहले ही बांग्लादेश पर आरोप लगा रहे हैं और चुनावों की वैधता पर संदेह जाहिर कर रहे हैं। हालांकि हसीना इन आरोपों से ज्यादा परेशान नहीं हैं। उनके जनादेश को पहले से ही उन देशों का समर्थन हासिल है, जो उनके और उनकी सरकार के लिए मायने रखते हैं। इनमें भारत, रूस, चीन, श्रीलंका, ईरान और सऊदी अरब शामिल हैं।

हसीना की शानदार जीत भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है। बांग्लादेश भारत का घनिष्ठ मित्र और सहयोगी है। बीएनपी-जमात सरकार के समय बांग्लादेश में शरण लेने वाले सभी पूर्वोत्तर भारत के विद्रोहियों को खदेड़ कर बांग्लादेश ने अपनी विश्वसनीयता साबित कर दी है। हसीना द्वारा उठाए गए कदमों से उल्फा और मणिपुर के विद्रोही गुटों को भागना पड़ा। ऐसा माना जाता है कि दोनों देशों के बीच एक मजबूत साझा खुफिया तंत्र है और उनकी काउंटर इंटेलिजेंस मशीनरी अच्छी तरह से काम करती है।

कट्टरपंथ और आतंक से जुड़ी विध्वंसक गतिविधियों में शामिल होने की आशंका के बीच कई हजार रोहिंग्या बांग्लादेश में डेरा डाले हुए हैं। हसीना ने अपनी बुद्धिमत्ता से उन्हें अलग शिविर में रखा है, ताकि इस तरह की किसी भी आशंका को सफल न होने दिया जाए। नए जनादेश के बाद बांग्लादेश सरकार को रोहिंग्याओं को निशाना बनाने के किसी भी प्रयास को रोकने के लिए नए सिरे से पहल करनी चाहिए। भारत इस मामले में बांग्लादेश को अपना सहयोग दे सकता है। भारत और बांग्लादेश आर्थिक मोर्चे पर संयुक्त रूप से 130 किमी की दोस्ती वाली तेल पाइपलाइन के साथ आगे बड़ रहे हैं। इस पाइपलाइन का उद्‍घाटन सितंबर 2018 में किया गया था। यह भारत में सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) को परबतीपुर (बांग्लादेश में दिनाजपुर) से जोड़ेगा। यह परियोजना 364 करोड़ रुपये की है, जिसके 30 महीनों में पूरा होने की उम्मीद है। इसकी सालाना क्षमता 10 लाख मीट्रिक टन की है।

आपसी सहयोग का एक अन्य ऐतिहासिक क्षेत्र ढाका-तुंगी-जोयदेबपुर दोहरी गेज रेलवे लाइन रेल परियोजना है। इसके अलावा दोनों देश परमाणु सहयोग के क्षेत्र में समझौता कर रहे हैं और व्यापार घाटे को कम करने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे हैं। हसीना को अपनी नई टीम के साथ धार्मिक अतिवाद और कट्टरता को खत्म करने वाले सुधारों के साथ नई प्रतिबद्धताओं के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। बाहरी मोर्चे पर, ढाका को सभी मित्र देशों के साथ अपने संबंधों को सुधारना चाहिए। साथ ही, विभिन्न मामलों में दोषी बीएनपी के चेयरपर्सन तारेक रहमान को हत्या और भ्रष्टाचार के मामलों का सामना करने के लिए ब्रिटेन से प्रत्यर्पण के लिए राजनयिक प्रयास तेज करने चाहिए। यह लोगों में विश्वास भरेगा और बांग्लादेश और भारत के भौगोलिक, राजनीतिक हितों के खिलाफ काम करने वाले पाकिस्तानी बलों को हतोत्साहित करेगा।

(लेखक सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी और सुरक्षा विश्लेषक हैं)

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