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समाधान की राह यह भी

बशर्ते एफपीओ पैदावार बढ़ाने, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग पर फोकस करें
एफपीओ की अहमियतः पैनल चर्चा में (बाएं से) दीपक मेहता, अभिलक्ष लिखी, ए.आर. खान और डॉ. डी.एन. ठाकुर

फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (एफपीओ) कृषि से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करने, निवेश, प्रौद्योगिकी और बाजार तक पहुंच के लिए एक अत्यंत प्रभावी तरीका बनकर उभरा है। इसकी जरूरत इसलिए भी है कि कोऑपरेटिव कहीं सफल है, तो कहीं नहीं। आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स के दूसरे पैनल डिस्कशन में इन्हीं से जुड़े मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई। इस सिलसिले में नाबार्ड के सीजीएम ए.आर. खान कहते हैं कि यहां जरूरत है पैदावार बढ़ाने, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग बेहतर करने की। जब तक ये सारी चीजें किसान अपने हाथ में नहीं लेंगे, तब तक बिचौलिए लाभ कमाते रहेंगे। वे आगे कहते हैं कि अगर हम संगठित होकर काम करें तो भी एफपीओ का मुनाफा तीन से चार फीसदी से अधिक नहीं होता है, लेकिन अपने उत्पाद को एकत्रित कर मार्केटिंग करें तो आठ से 12 फीसदी तक मुनाफा बढ़ता है।

हालांकि मुनाफा तब बढ़ता है, जब हम गुणवत्ता बढ़ाएं और उसमें वैल्यू एडिशन करें। ऐसे एफपीओ की वृद्धि दर 12 से 23 फीसदी तक बढ़ी है। कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव अभिलक्ष लिखी ने इस मामले में हरियाणा सरकार की एक योजना का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि हर जिले में बागवानी के क्षेत्र का आकलन किया गया कि कहां-कहां सब्जियां उगती हैं और कहां फल उगते हैं। ऐसे करीब साढ़े चार हजार बागवानी गांवों के 114 क्लस्टर बनाए गए। इसका मकसद था कि क्लस्टर की जिम्मेदारी एफपीओ को दी जाए, जो वहां ग्रेडिंग, शॉपिंग, पैकिंग के लिए बैक हाउस लगाएंगे। उसके लिए हरियाणा सरकार ने 80 फीसदी सब्सिडी का प्रावधान किया है।

पैनल का संचालन कर रहे एनसीडीसी के डिप्टी एमडी डी.एन. ठाकुर ने कहा कि कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव ने काफी विस्तार से एफपीओ के बारे में समझाया, लेकिन अहम सवाल यह है कि जब कोऑपरेटिव क्षेत्र था, तो फिर एफपीओ की जरूरत क्यों पड़ी।

इस पर नाबार्ड के सीजीएम ए.आर. खान ने कहा कि एफपीओ से संबंधित कंपनी एक्ट में विशेष रूप से कहा गया है कि इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को संगठित करना है। उन्होंने कहा कि 2008 से अभी तक हमने तमाम एफपीओ की मदद की है। 2,100 एफपीओ बनाए भी हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या नेतृत्व की है। एफपीओ को लेकर जो प्रमुख समस्या सामने आ रही है, वह राज्यों में कोई ठोस नीति नहीं होने के कारण है। हम किसानों को जागरूक करने के लिए कई राज्यों में कैंपेन चला रहे हैं। उन्हें बता रहे हैं कि वे किस प्रकार से एफपीओ के माध्यम से लाभ कमा सकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले साल केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि 22 हजार ग्रामीण बाजारों में सुधार करेंगे। हमारा सुझाव यह था कि क्यों न इन्हें एफपीओ से जोड़ दें। ये उसके मैनेजमेंट को संभालें और देखें कि कैसे और क्या करना है। एफपीओ का काम उपज को बढ़ाना और खुद ही सारी चीजें करना है। नाबार्ड ने लोन के लिए नई संस्था बनाई है, जो सिर्फ एफपीओ को ही लोन देती है। एफपीओ के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एडवाइजरी कमेटी भी बनाई गई है। सरकारें भी कोऑपरेटिव की तुलना में एफपीओ को अधिक तरजीह देती हैं। लेकिन इसे लेकर कोऑपरेटिव के लोगों के बीच राय बंटी है। उनका कहना है कि सरकार को एफपीओ की तरह कोऑपरेटिव को भी मदद देनी चाहिए।

एमसीएक्स के एनर्जी एंड एग्री हेड दीपक मेहता ने पैनल डिस्कशन के दौरान कहा कि अभी हमने महाराष्ट्र सरकार के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया है कि हम सात-आठ वेयरहाउस खोलेंगे। एमसीएक्स में कॉटन का कॉन्ट्रैक्ट है, जिसे वायदा बोलते हैं, जिसमें चार-पांच माह बाद फसल की बिक्री होती है। हमने करीब 100 एफपीओ को ट्रेनिंग दी है। एफपीओ इन गोदामों में अपना माल जमा कर सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कोई बिचौलिया नहीं है। इसलिए जो भी दाम है, वह ज्यादा से ज्यादा किसान की जेब में जाता है। इसके अलावा एमसीएक्स और सेबी की ओर से भी कई सुविधाएं दी जा रही हैं। एनसीडीसी के डिप्टी एमडी डॉ. डी.एन. ठाकुर ने कहा कि चाहे सहकारिता हो या एफपीओ इन्हीं कोशिशों से सारी ज्वलंत समस्याओं का समाधान निकल सकता है। 

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