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महज कुंभ का ख्याल

प्रयाग कुंभ के मद्देनजर गंगा किनारे कारखाने तीन महीने रोकने के कामचलाऊ उपाय पर भी उठे सवाल
संकट में गंगाः प्रदेश में 128 नालों का पानी बिजनौर से लेकर वाराणसी तक गंगा में गिर रहा है

प्रयागराज में 15 जनवरी 2019 से शुरू हो रहे कुंभ मेले को अंतरराष्ट्रीय पहचान देने की तैयारियां जोरों पर हैं। इसके तहत सरकार की ओर से दर्जनों योजनाओं को पूरा कराने के लिए युद्ध स्तर पर कार्य कराए जा रहे हैं। सरकार की सबसे बड़ी चुनौती कुंभ के दौरान निर्मल और अविरल गंगा की भी है। सरकार की ओर से साफ कह दिया गया है कि गंगा में जीरो वाटर डिस्चार्ज पर ही फैक्ट्रियां चल पाएंगी वरना तीन महीने के लिए इन फैक्ट्रियों को बंद करना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कुंभ के दौरान गंगा को अविरल और निर्मल रखने के लिए 125 पेज का एक्शन प्लान तैयार किया है। इसमें हरिद्वार से लेकर प्रदेश में जिस-जिस जिले से होकर गंगा गुजरती है, उसकी विस्तृत रिपोर्ट है। यहां तक कि किस जिले में कौन-सा नाला या इंडस्ट्री का पानी गंगा में कहां पर गिर रहा है। एक-एक इंडस्ट्री का नाम और उसकी क्षमता की जानकारी दी गई है। इसके अलावा जिला स्तर पर क्या कार्रवाई करनी है और किस विभाग को करना है। इसकी भी जानकारी रिपोर्ट में दी गई है। सभी विभागों और जिले स्तर पर 15 दिसंबर तक सभी कार्य पूरे करने की समयसीमा तय की गई है। लखनऊ के गोमतीनगर में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कंट्रोल रूम बनाया गया है। गंगा में पानी की शुद्धता कितनी है, इसकी जांच कर रोजाना बुलेटिन जारी किया जाएगा।

प्रदेश में 128 नालों का पानी बिजनौर से लेकर वाराणसी तक गंगा में गिर रहा है। इन्हें बंद करने की कवायद पिछले एक-डेढ़ माह से शुरू हुई है। दरअसल, गंगा को फैक्ट्रियों से ज्यादा नालों से गिरने वाला पानी गंदा कर रहा है। गंगा को निर्मल करने के लिए सरकार की ओर से पहली बार इस तरह की पहल की गई है, जिसका लोग स्वागत कर रहे हैं, लेकिन सवाल भी उठा रहे हैं कि जब कुंभ की तैयारी पिछले डेढ़ साल से की जा रही थी, तो उद्यमियों को पहले मौका क्यों नहीं दिया गया।

विश्व में लेदर निर्यात के लिए कानपुर का अलग ही स्थान है। यहां पर बनने वाले उत्पाद पूरे यूरोप में निर्यात किए जाते हैं। ऐसे में अगर टेनरियों को तीन महीने के लिए बंद किया जाता है तो इसका फायदा पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, वियतनाम और चीन को सीधा मिलेगा। भारत के बाद चमड़ा उत्पादन में ये देश भी सक्रिय हैं। टेनरी मालिकों का कहना है कि अगर यूनिटें बंद रहेंगी तो हम निर्यात नहीं कर सकेंगे। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह संदेश भी जाएगा कि भारत विश्वसनीय निर्यातक नहीं है, जिससे देश की छवि भी धूमिल होगी। 

कानपुर महानगर में चमड़ा और अन्य उत्पाद बनाने वाली ज्यादातर टेनरी गंगा नदी के किनारे बसी हैं। इस कारोबार से कानपुर के करीब साढ़े चार सौ उद्यमी और एक हजार निर्यातक जुड़े हुए हैं। इनका निर्यात का करीब दो हजार करोड़ और घरेलू बाजार में भी दो हजार करोड़ रुपये का मासिक टर्न ओवर है। इन टेनरियों में करीब तीन लाख मजदूर कार्य करते हैं। कानपुर का चमड़ा उद्योग पहले से ही हाशिए पर है। आए दिन प्रदूषण के आरोपों में घिरी रहने वाली ये इंडस्ट्री 70 प्रतिशत खत्म होने की कगार पर है।

"गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने के लिए 125 पेज का एक्शन प्लान बनाया गया है। सरकार ने भी इसे मंजूरी दे दी है"

आशीष तिवारी, सदस्य सचिव, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक, कानपुर के जाजमऊ में 400 में से 264 टेनरियां ही चल रही हैं। ये 136 टेनरियां केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बंद कराई हैं। इसमें से कुछ अपने आप बंद हुई हैं। जबकि टेनरी मालिकों का कहना है कि वह सरकार द्वारा बनाई गई सभी गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं।

टेनरी में काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि तीन महीने अगर काम बंद हो जाएगा तो वह परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे। लंबे समय से चमड़े का काम करने वाले यह मजदूर दूसरे कामों को कर पाने में भी असमर्थ हैं। उद्यमियों का तर्क यह है कि उद्योगों को लेकर सरकार एक तरफ इन्‍वेस्टर समिट कर रही है, दूसरी तरफ जो उद्योग प्रदेश में चल रहे हैं उन्हें बंद किया जा रहा है। इस बाबत उद्यमी संगठन मुख्य सचिव से लेकर विभागीय अधिकारियों से भी मिल रहे हैं और अपनी समस्याओं से अवगत करा रहे हैं, लेकिन उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिल पा रहा है।

वेस्टर्न यूपी चेंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री की सहायक सचिव सरिता अग्रवाल कहती हैं कि पहले सर्वे कर खामियां बतानी चाहिए थीं, लेकिन सरकार ने तो सीधे तीन माह के लिए फैक्ट्रियों को बंद करने का फरमान जारी कर दिया। प्रदेश में अगर तीन माह के लिए फैक्ट्रियां बंद होती हैं तो उद्योगों में कार्यरत लाखों मजदूर बेरोजगार हो जाएंगे और सरकार को भी करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा।

एनसीआर पेपर मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष अरविंद कुमार अग्रवाल ने फैक्ट्रियों की बंदी को लेकर मुख्य सचिव से मुलाकात की और उद्यमियों की समस्याओं के बारे में बताया। उनका कहना है कि वेस्ट यूपी में 60 से 70 फीसदी पेपर मिलें प्रभावित हो रही हैं। सरकार को पहले से प्लान बनाना चाहिए था कि वह कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर पानी का ट्रीटमेंट कराए और जो खर्च आता है उसे उद्यमियों से ले ले, लेकिन अधिकारी अपने आप ट्रीटमेंट करते हैं, हमारी नहीं सुनते। जबकि कोई भी इंडस्ट्री सरकार के सहयोग के बिना नहीं चल सकती।

"कुंभ के दौरान दो हजार क्यूसेक पानी हरिद्वार, टिहरी से रोज चलेगा। इतनी मात्रा में पानी से गंदगी खुद छंट जाएगी"

धर्मपाल सिंह, सिंचाई मंत्री

यूपी लेदर इंडस्ट्री के अध्यक्ष ताज आलम का कहना है कि इससे पहले आठ साल से कुंभ के दौरान नहान की तारीखों के तीन दिन पहले वेस्‍ट डिस्चार्ज बंद कर दिए जाते थे। यह पानी भी ट्रीटेड होता था न कि अनट्रीटेड। ऐसे में कुल 20 या 22 दिन फैक्ट्री बंद होती थी, लेकिन इस बार कुंभ के मद्देनजर जून माह में एक नोटिस मिला, जिसमें 15 दिसंबर 2018 से 15 मार्च 2019 के बीच फैक्ट्री बंद करने की बात कही गई है।

उनका कहना है कि लेदर इंडस्ट्री पिछले तीन साल से पीछे जा रही है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में सात अरब डॉलर का निर्यात था, जो 2016-17 में घटकर छह अरब डॉलर हो गया। इसके बाद 2017-18 में और कम होकर, पांच अरब डॉलर पर आ गया। ऐसा सरकार की ओर से सहयोग नहीं मिल पाने के कारण हो रहा है। कारोबारियों ने अपने खरीदारों को कह दिया है कि आप मानसिक रूप से तैयार हो जाएं कि हो सकता है हम सप्लाई न कर पाएं।

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