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अलगाव बढ़ाने की जुगत

पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस की सरकार बनाने की कवायद के बाद राज्यपाल के विधानसभा भंग करने से उठ रहे कई सवाल
जम्मू में मीडिया से मुखातिब जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 21 नवंबर को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती के सरकार बनाने के दावे के कुछ समय बाद ही विधानसभा भंग कर दी। महबूबा मुफ्ती ने सबसे पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के मौखिक समर्थन से संबंधित पत्र राज्यपाल को फैक्स किया और बाद में ट्वीट किया कि राजभवन की फैक्स मशीन काम नहीं कर रही है। फिर जल्द ही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद गनी लोन, जो लंदन में थे, ने भी सरकार बनाने के दावे से जुड़ा पत्र ट्वीट किया। राज्यपाल की फैक्स मशीन से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद उन्होंने इस पत्र को राज्यपाल के निजी सचिव को भेजा था।

‘फैक्स विवाद’ के बावजूद राज्यपाल मलिक ने पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के महागठबंधन को राज्य में सरकार बनाने का मौका देने से इनकार के पीछे नाजुक सुरक्षा व्यवस्था का हवाला दिया।

पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर कहते हैं, “इसमें कुछ भी नया नहीं है कि कैसे दिल्ली की केंद्र सरकार ने पिछले 70 साल से जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र के साथ आंखमिचौली खेली है। लेकिन, विधानसभा भंग करने को लेकर राज्यपाल के स्पष्टीकरण से साफ जाहिर होता है कि राज्य में सुरक्षा बलों की भारी तादाद के बावजूद मुख्यधारा के धर्मनिरपेक्ष दलों के मुस्लिम नेतृत्व पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।”

राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का तर्क दिया कि सुरक्षा बल आतंक विरोधी अभियान में लगे हैं और धीरे-धीरे हालात पर काबू पा रहे हैं, ऐसे में उनके लिए स्थिर और माकूल माहौल बनाने की जरूरत है। अख्तर कहते हैं, “राम माधव और भाजपा के स्थानीय नेताओं ने नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी महागठबंधन के लिए पाकिस्तान से निर्देश लेने का आरोप लगाया, लेकिन राज्यपाल तो उससे भी आगे बढ़ गए। वे गैर-भाजपा दलों की सरकार गठन में सुरक्षा पहलू भी ले आए। यह राज्य में लोकतंत्र के लिए एक बिलकुल नया आयाम है। राज्य में दलों को भले ही बहुमत हासिल हो, लेकिन क्या सरकार बनाने के लिए सुरक्षा जांच पर खरा उतरना होगा?”

अख्तर कहते हैं, “मलिक नेक इरादों वाले राज्यपाल मालूम होते हैं, लेकिन उन्हें कश्मीर और केंद्र के बीच की खाई पाटने की जरूरत है। ये हालात भाजपा के राजनैतिक ताकत के रूप में उभरने से ही शुरू नहीं हुए हैं।”

उधर, मलिक का कहना है कि अगर राजनैतिक दलों को शक्ति परीक्षण का मौका दिया जाता, तो अराजकता पैदा हो जाती। मलिक का तर्क है, “मुझे पता था कि पीडीपी और सज्जाद लोन दोनों में से किसी के पास संख्याबल नहीं था। अगर मैंने किसी एक को बहुमत साबित करने के लिए बुलाया होता, तो उससे कई समस्याएं खड़ी हो जातीं। जम्मू-कश्मीर में सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। नेताओं के पास खूब पैसा है। लोगों के पास 50 कमरे वाले घर हैं। उनके पास करोड़ों के कालीन हैं। इससे विधायकों की खरीद-फरोख्त को बढ़ावा मिलता। इसमें बहुत अधिक पैसा लगता। इसमें आतंकवादियों को भी शामिल किया जाता। इसमें कुछ लोग मारे भी जाते। इससे अराजकता पैदा हो जाती। इस साल जून में भाजपा और पीडीपी सरकार के विघटन के बाद जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू है और तभी से पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस विधानसभा भंग करने की लगातार मांग कर रहे हैं।” राज्यपाल ने यह भी कहा कि महबूबा मुफ्ती ने एक महीने पहले उनसे मुलाकात की और कहा कि एनआइए उसके विधायकों को दल बदलने के लिए धमका रही है। हालांकि, भाजपा और सज्जाद लोन की अगुआई वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस विधानसभा भंग करने के खिलाफ है और दोनों दलों के नेता सज्जाद लोन के नेतृत्व में सरकार बनाने की तरफ इशारा कर रहे थे। 

दो महीने पहले पीडीपी नेता अल्ताफ बुखारी ने पीडीपी, एनसी और कांग्रेस के बीच एक महागठबंधन बनाने का विचार जाहिर किया था। पीडीपी के 29, नेशनल कॉन्फ्रेंस के 15 और कांग्रेस के 12 विधायकों के साथ यह गठबंधन आसानी से बहुमत हासिल कर लेता। लोन ने महागठबंधन को दिवास्वप्न करार दिया। लेकिन, दूसरी तरफ वह पीडीपी के “बागी” विधायकों के उनके साथ आने को तर्कसंगत ठहरा रहे थे। अपने गुस्से वाले ट्वीट में लोन ने कहा, उन्हें लगता है कि उन्होंने महागठबंधन के विचार को खत्म कर दिया। लेकिन तीनों पार्टियां परदे के पीछे काम कर रही थीं। जब 21 नवंबर को नेशनल कॉन्फ्रेंस की मदद से पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन ने आकार लिया और सरकार बनाने का फैसला किया, तो केंद्र सरकार ने दखल दिया।

पीडीपी के एक अन्य नेता वहीद-उर-रहमान पर्रा का तर्क है कि राज्यपाल हालात को जटिल बना रहे हैं। उनका कहना है कि राज्यपाल मानते हैं कि वे राज्य के मुख्यमंत्री हैं और अधिकारों को नहीं छोड़ना चाहते हैं। पर्रा कहते हैं, “हमें लगता है कि सरकार गठन की पूरी संभावना थी। इसलिए विधानसभा भंग करने के लिए उन्हें केंद्र से निर्देश मिले और उन्होंने खुशी-खुशी ऐसा कर दिया। मुझे डर है कि वह विधानसभा चुनावों में भी देरी करेंगे।”

हालांकि, राज्यपाल ने आउटलुक को बताया कि ये महज अनुमान भर हैं। मलिक कहते हैं, “हम कानून और संविधान का पालन करेंगे। हम चाहते हैं कि जल्द-से-जल्द चुनी हुई सरकार बने।”

विधानसभा भंग करने के मुद्दे पर विश्लेषकों का कहना है कि सबसे अहम बात यह है कि केंद्र राज्यपाल को बतौर औजार इस्तेमाल करके विधानसभा को लंबे समय तक भंग रखना चाहता है। कम-से-कम तब तक, जब तक भाजपा लोकसभा चुनाव का ऐलान न कर दे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला के राजनैतिक सचिव तनवीर सादिक कहते हैं कि विधानसभा भंग करने के लिए सुरक्षा कारणों का हवाला देना इसकी वास्तविक वजहों से मुंह छुपाना है। वे कहते हैं, “हम जानते हैं कि यह जानबूझकर फैलाई जाने वाली अफवाह है। आखिरकार, सुरक्षा के लिए भी राजनैतिक व्यवस्था की जरूरत है, वरना कश्मीर में अविश्वास की खाई चौड़ी होती जाएगी।”

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