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न्याय व्यवस्था का एक विकल्प

भारत में बिहार अकेला ऐसा राज्य है जहां ग्राम पंचायत के साथ ग्राम कचहरी की भी व्यवस्था की गई है
ग्राम कचहरियां संसाधनों की कमी, समय से मानदेय न मिल पाने और रसूखदारों के प्रभुत्व से जूझ रही हैं

भारतीय ग्रामीण समाज में सभी वर्गों के पांच अनुभवी बुजुर्ग तटस्थ रहकर सभी पक्षों को मद्देनजर रखकर फैसला करते थे। वे झगड़ों का निस्तारण करने के साथ झगड़ा करने वालों के बीच फिर से एकता और भाईचारा स्थापित करते थे। समय के साथ पंचों की तटस्थता में कमी आई। पंचायतों में उच्च वर्ग, उसमें भी पुरुषों का बोलबाला होने लगा। इस संस्था पर अधिकतर उच्च जातियों ने कब्जा कर लिया। नतीजन पंचों के माध्यम से गरीबों, दलितों, पिछड़ों तथा महिलाओं को समुचित न्याय नहीं मिल पा रहा था। 

इस पृष्ठभूमि में बिहार पंचायती राज अधिनियम 1947 में ग्राम कचहरी की परिकल्पना और व्यवस्था की गई। भारत में अकेला बिहार ऐसा राज्य है जहां ग्राम पचांयत के साथ ग्राम कचहरी की व्यवस्था है। ग्राम कचहरी के चुनाव ग्राम पंचायत के साथ होते हैं। बिहार में ग्राम पंचायतों के बराबर ही 8,391 ग्राम कचहरियों की संख्या है। बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 के अनुसार ग्राम कचहरियों का सामाजिक दायरा बढ़ा है। इन कचहरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग को मिलाकर 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। इसके अतिरिक्त 50 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं के लिए भी है। इससे पहले ग्रामीण न्याय व्यवस्था में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं था। बिहार में 8,391 ग्राम कचहरियां हैं इतने ही सरंपच, उप-सरपंच और एक लाख पंद्रह हजार 542 पंच हैं। इनकी अवधि ग्राम पंचायतों की तरह पांच वर्ष है।

प्रत्येक कचहरी में कचहरी सचिव सरपंच और न्याय पीठ की सहायता करता है। सचिव के साथ-साथ न्यायमित्र की नियुक्ति का भी प्रावधान है। न्यायमित्र किसी मान्यता प्राप्त संस्थान या विश्वविद्यालय से विधि डिग्री धारक होता है। ग्राम कचहरी 1000 रुपये तक का जुर्माना कर सकती है। ग्राम कचहरी के निर्णय के खिलाफ तीस दिनों के अंदर ग्राम कहचरी की पूर्ण न्यायपीठ में अपील की जा सकती है। पूर्ण न्यायपीठ में सात पंचों की उपस्थिति आवश्यक है। पूर्ण न्यायपीठ के निर्णय के विरुद्ध दीवानी मुकदमों की अपील तीस दिनों के अंदर सब-जज तथा फौजदारी मुकदमों की अपील जिला एवं सत्र-न्यायाधीश के समक्ष दायर की जा सकती है। उपरोक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि न्याय दिलाने की व्यवस्था ग्रामीणों के द्वार पर की गई है। ग्राम कचहरी मुकदमों का निबटारा बातचीत और लोगों को समझा कर करती है। सरपंच और पंच गांव के सभी तबकों से होते हैं। सरपंच और पंच को समस्या और समाधान के बारे में पता होता है, इसलिए मामला समझने और सुलझाने में उन्हें देर नहीं लगती। 

एक अध्ययन के अनुसार ग्राम कचहरियों में आए मुकदमों में से 58 फीसदी जमीन से संबंधित थे। 85 फीसदी दलित और पिछड़े वर्गों से थे। ध्यान देने योग्य बात यह है कि ग्राम कचहरियों के पास आए कुल मुकदमों में से मात्र तीन फीसदी मुकदमे ही न्यायालयों तक गए।

ग्राम कचहरी की जमीनी सच्चाई जानने के लिए लेखक सीतामढ़ी, नालंदा, नवादा तथा पटना जिलों के कुछ गांवों में गया और सरंपच, पंच, कचहरी सचिव, न्यायमित्र के साथ अन्य लोगों से चर्चा की। सीतामढ़ी जिले के रामपुरारी ग्राम कचहरी के सरपंच मुखिया, पंच, न्यायमित्र, कचहरी सचिव और वादी से बातचीत में अनेक बातें सामने आईं। इस कचहरी ने दो भाइयों के बीच शौचालय बनाने पर उठे विवाद का निपटारा किया। इसी जिले की रंजीतपुर पूर्की के सरपंच, पंच, न्यायमित्र से चर्चा से एक महत्वपूर्ण बात सामने आई कि वादी अपनी समस्या के समाधान के लिए ग्राम कचहरी जाने के बजाय थाने जाता है। थाने को चाहिए कि अगर समस्या कचहरी के अधिकार क्षेत्र की है, तो वे वादी को ग्राम कचहरी भेजे। ये कचहरियां वादी से फीस के अतिरिक्त अन्य खर्चों के लिए 100 से 150 रुपये तक लेती हैं। इनके पास जमीन की नाप-जोख करने वाला अमीन निजी होता है। उसकी फीस भी निर्धारित नहीं है।   

नालंदा जिले के सलाऊ ब्लॉक के सरियपुता गांव के नरेश पासवान ने बताया कि उसका भाई के साथ जमीन का झगड़ा था। सरपंच ने उसके भाई को समझाया लेकिन झगड़े का निपटारा नहीं हुआ। नरेश थाने गया और समाधान हो गया। नरेश का कहना था, “आजकल डंडे का जमाना है और वह डंडा थाने में है।” जिला निवादा के हरूबा ब्लॉक के गांव मेधवा में दलित वर्ग के कुछ लोगों से बात हुई। उन्होंने बताया कागजों में सब है लेकिन वास्तविकता में कुछ नहीं है। ग्राम कचहरी और ग्राम पंचायत दोनों में पैसे वालों का वर्चस्व है। पटना जिले के मौनपुरा ग्राम कहचरी के पंच से मुलाकात हुई जबकि सरपंच बुलाने पर भी नहीं आया। लाले बाबू चौधरी पंच ने बताया कि इस साल 37 मुकदमों का निपटारा ग्राम कचहरी द्वारा किया जा चुका है। फतवा ब्लॉक के ग्राम कचहरी के सरपंच जितेन्द्र कुमार से बातचीत में पता चला कि उनकी कचहरी ने 2016 से अब तक 72 मुकदमे निपटाए हैं और 30 मुकदमे प्रक्रिया में हैं। उन्होंने दुखी होकर कहा, “कोई मदद नहीं करता। कचहरी में सौतेला व्यवहार किया जाता है। पुलिस से उन मुकदमों में मदद नहीं मिलती, जिनमें झगड़ा होने का अंदेशा रहता है।” सरपंच ने बताया उसका मानदेय तीन महीने से ब्लॉक में आया हुआ है लेकिन उसे दिया नहीं जा रहा है। राज्य सरकार को इसके लिए कदम उठाने चाहिए, ताकि यह व्यवस्था प्रभावी रूप से कार्य करे।

(लेखक भारतीय वित्त सेवा से सेवानिवृत्त हैं)

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