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कर्जमाफी से भी नहीं बहुरे दिन

यूपीए सरकार की कर्जमाफी से पटरी पर लौटी सहकारी समितियों की हालत फिर से खस्ता, माली हालत नहीं बदल पाई योगी सरकार
वीरानी ही पहचानः लखनऊ का जिला सहकारी बैंक

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से केवल 25 किलोमीटर दूर है नंदना गांव। बक्शी का तालाब ब्लॉक के इस गांव में 1962 से चल रही नवीकोट नंदना सहकारी समिति बीते चार साल से बंद पड़ी है। समिति के कार्यालय की हालत किसी कबाड़खाने जैसी है। टूटी पड़ी मेज-कुर्सियां और सड़ चुकी खाद की तीन सौ बोरियां बताती हैं कि कभी यहां किसानों का मेला लगता रहा होगा। लेकिन, अब वीरानी ही इसकी पहचान है। कार्यालय परिसर बच्चों के खेलने और आसपास के लोगों के लिए गोइठा (उपला) वगैरह सुखाने के काम आ रहा है। इसी तरह चार साल से बंद पड़े आजमगढ़ जिले की फूलपुर तहसील में स्थित सहकारी समिति प्रतापपुर की इमारत कब धराशायी हो जाए पता ही नहीं। गोंडा जिले के मनकापुर में चल रही साधन सहकारी समिति के दफ्तर पर भी अरसे से ताला जड़ा है।

यह बदहाली कुछ चुनिंदा सहकारी समितियों का ही सच नहीं है। भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के कारण राज्य की ज्यादातर समितियां इस हकीकत से दो-चार हैं। समितियों की जमीन पर कब्जे से लेकर गबन तक के मामले बढ़ते जा रहे हैं। किसानों की रीढ़ कही जाने वाली ज्यादातर सहकारी समितियों के घाटे में चलने और बंद होने के कारण इनके गठन का मकसद पूरा नहीं हो पा रहा। यहां तक कि प्रदेश सरकार की ओर से 86 लाख किसानों की कर्जमाफी के लिए करीब 36 हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद प्राइमरी कोऑपरेटिव सोसायटी लाभ में नहीं आ पाई हैं, जबकि कर्जमाफी के लिए 622. 82 करोड़ रुपये सोसायटी को भी दिए गए हैं।

सहकारिता आंदोलन के कारण 1904 में ग्रामीण किसानों को अल्पकालीन फसली ऋण मुहैया कराने के लिए सहकारी समितियों की शुरुआत हुई थी। उस समय इसका मकसद खेती के लिए उचित ब्याज और शर्तों पर किसानों को कर्ज देकर महाजनों के चंगुल से मुक्त कराना था। बाद में उर्वरक, बीज वितरण, कोल्ड स्टोरेज के संचालन, दुग्ध, गन्ना, हथकरघा विकास वगैरह के कार्यक्रम भी इन समितियों के माध्यम से शुरू हुए। सहकारी क्षेत्र का विस्तार होने पर समितियों के निबंधक का अधिकार गन्ना, उद्योग, खादी ग्रामोद्योग, आवास, दुग्ध, हथकरघा, मत्स्य, रेशम और उद्यान विभाग के अधिकारियों को भी दिया गया। समितियों के प्रबंधन के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव भी लोकतांत्रिक तरीके से किया जाता है।

नंदना सहकारी समिति के पूर्व अध्यक्ष हर्ष बहादुर सिंह ने आउटलुक को बताया, “सहकारी समितियों की बदहाली का मुख्य कारण सचिवों को वेतन नहीं मिलना है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। एक सचिव को तीन-तीन समितियों का चार्ज दे दिया जाता है और वह किसी को भी समय नहीं दे पाते।” उन्होंने बताया कि समितियों की सारी जमीनों को सरकारी अभिलेख में दर्ज किए जाने की जरूरत है। सुल्तानपुर जिले की तहसील जयसिंहपुर के खाद कारोबारी अमित सिंह ने बताया कि समितियों की हालत ठीक नहीं है। गोदाम जर्जर हो चुके हैं। सचिव के पास कई चार्ज होने के कारण किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मिल्कीपुर (फैजाबाद) ग्राम प्रधान रमेश चंद्र सिंह का कहना है कि समिति बंद होने के कारण करीब 1,200 किसान परेशान हैं। दरअसल सचिव की गलती का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है।

नंदना सहकारी समिति के सचिव बाबू यादव का दावा है कि कम सुविधाओं के बावजूद बेहतर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बक्शी का तालाब क्षेत्र में आठ समितियां हैं। फिलहाल इनमें से तीन पहाड़पुर, नवीकोट नंदना और इंदौरा बाग ही चल रही हैं। लखीमपुर जिले के गोला गोकर्णनाथ तहसील में चल रही रोशन नगर सहकारी समिति की सचिव सोना देवी ने बताया कि किसी किसान का कर्ज माफ नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि गन्ने का भुगतान न होने के कारण किसान कर्ज चुका नहीं पा रहे हैं और समिति घाटे में चल रही है। हालांकि, सहकारिता विभाग की मानें तो प्रदेश की 7,479 सहकारी समितियों में से केवल 739 ही निष्क्रिय हैं। अधिकारियों का दावा है कि करीब 2,600 समितियां फायदे में चल रही हैं। बीते साल 30 जून तक 6,756 करोड़ रुपये से ज्यादा उत्तर प्रदेश सहकारी बैंक लिमिटेड का समितियों पर बकाया था और करीब 61 फीसदी की वसूली की गई थी। इस साल एक जुलाई 2018 तक करीब 4,454 करोड़ रुपया सहकारी समितियों पर बकाया था।

सहकारी समितियों की माली हालत में 2008 में केंद्र सरकार ने किसानों की कर्जमाफी से काफी सुधार आया था। तत्कालीन यूपीए सरकार ने 31 मार्च 1997 से 2007 तक के किसानों के ऐसे कर्ज माफ किए थे, जो फरवरी 2008 तक नहीं चुकाए गए थे। उस समय किसानों को किसी भी तरह के दस्तावेज नहीं जमा करने पड़े थे और केंद्र सरकार ने सीधे सरकारी बैंकों को ही योग्य किसानों की सूची जारी करने के निर्देश दे दिए थे। बैंकों से किसानों द्वारा लिए गए कर्ज से पहले सहकारी समितियों से लिए गए किसानों के कर्ज माफ किए गए थे। लेकिन, बीते कुछ साल में पंचायत स्तर पर बनी ज्यादातर सोसायटियों की हालत फिर से खस्ता हो गई है।

हालत यही है कि प्रदेश में चल रहे 50 जिला सहकारी बैंकों में से 16 बंद हैं। उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड के एमडी भूपेंद्र कुमार ने आउटलुक को बताया, “50 जिला सहकारी बैंकों में से 16 बैंक 2012 से बंद थे। अब इनमें से आठ बैंकों में गतिविधियां शुरू हो गई हैं। दो बैंकों से लोन भी दिया जा रहा है।” उन्होंने बताया कि नाबार्ड के साथ प्रदेश सरकार पंचवर्षीय योजना बना रही है। जनवरी से सभी 16 बैंकों से लोन का वितरण शुरू हो जाएगा।

असल में, इस बार प्रदेश सरकार ने कर्जमाफी का ऐलान करते वक्त किसानों की दो केटेगरी बनाई थी। पहला, ऐसे किसान जिन्होंने 31 मार्च 2016 तक कर्ज लिया था और 31 मार्च 2017 तक चुका नहीं पाए थे। दूसरा, ऐसे किसान जिन्होंने 2011 तक कर्ज लिया और 2014 तक चुका नहीं पाए थे। इसमें पहले सोसायटी से लिए गए कर्ज माफ करने के लिए मानक निर्धारित नहीं किए गए थे। बाद में सोसायटी के किसानों को भी कर्जमाफी का लाभ देने के निर्देश दिए गए। लेकिन, सोसायटी के ज्यादातर किसानों के पास आधार कार्ड नहीं होने और जिला सहकारी बैंकों में खाते नहीं होने से समस्या पैदा हो गई। नतीजतन, कर्जमाफी का लाभ पहले बैंकों को मिल गया। जिला सहकारी बैंकों के 34,052 किसानों को कर्जमाफी का लाभ नहीं मिल पाया जबकि ट्रांजेक्शन असफल रहने या बैंक से कर्जमाफी योजना का लाभ मिलने के कारण 31.25 करोड़ रुपये वापस हो गए। उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड ने कर्जमाफी स्कीम के तहत 20 नवंबर तक 4,70,351 किसानों का 622.82 करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया है।

बड़ी संख्या में किसानों को कर्जमाफी का लाभ नहीं मिलने की शिकायत पर सरकार ने करीब छह माह पहले ऑनलाइन शिकायत पोर्टल की शुरुआत की और कर्जमाफी की आखिरी तिथि को बढ़ाया गया। इसमें ऐसे किसानों को मौका दिया गया जो योजना से वंचित रह गए थे और उन्होंने लाभ लेने के लिए पोर्टल पर शिकायत की थी।

रालोद के प्रदेश प्रभारी राजकुमार सांगवान ने बताया कि भ्रष्टाचार के कारण सहकारी समितियों की यह हालत हुई है। समितियां घाटे में चल रही हैं। उन्होंने बताया, “किसानों के नाम पर नेता सुख-सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। विभिन्न आयोजनों के नाम पर आंख बंद कर पैसे पानी की तरह बहाए जा रहे हैं। इन पैसों का इस्तेमाल समितियों के संचालन में किया जाए तो किसानों की जिंदगी में खुशहाली लाई जा सकती है।”

 “पूर्व की सरकारों ने किया बेड़ा गर्क”

सहकारी समितियों की खस्ताहालत, भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को लेकर उत्तर प्रदेश के सहकारिता राज्य मंत्री उपेंद्र तिवारी से शशिकांत ने बातचीत कीः

सहकारी समितियों की स्थिति दयनीय कैसे हुई?

सहकारिता विभाग सेवा का माध्यम था, लेकिन, सपा और बसपा की सरकारों ने उसे लूटपाट और भ्रष्टाचार का अड्डा बना दिया। जिन किसानों ने पैसा जमा किया था, वह पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारी बैंकों के सुधार के लिए करीब 600 करोड़ रुपये दिए। लेकिन, वह पैसा बैंकों को सुदृढ़ करने पर नहीं लगाया गया। यह पैसा फर्जी नियुक्ति की भेंट चढ़ गया और उसी पैसे से वेतन वितरण वगैरह शुरू कर दिया गया।

सहकारी बैंकों से किसानों को लोन भी नहीं मिल पा रहा है?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में जब सरकार बनी तो बैंकों पर ताले लगे थे और किसानों को 10-10 साल से पैसे नहीं मिल रहे थे। ऐसी विषम परिस्थिति के बाद भी सरकार ने फैसला किया कि प्रत्येक सहकारी बैंक पांच-पांच फीसदी के हिसाब से हर माह बकाया देंगे।

सहकारी समितियों की मजबूती के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं?

अनाज भंडारण के लिए 500 बड़े गोदाम बनने जा रहे हैं। भंडारण की क्षमता बढ़ाकर यहीं के किसानों से खरीदारी कर सार्वजनिक वितरण प्रणाली से उसी अनाज को बांटा जाएगा। इससे किसानों को भी फायदा होगा और सरकार का ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी बचेगा।

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