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राम नाम जपना, सारा संसार अपना

वसुधैव कुटुंबकम का वास्तविक अर्थ बड़ा गूढ़ है और इसे वे लोग ही समझते हैं, जो बार-बार इसका इस्तेमाल करते हैं
वसुधैव कुटुंबकम

प्रसिद्ध मराठी उपन्यासकार भालचंद्र नेमाड़े ने अपने एक भाषण में बताया कि जो संस्कृत श्लोक, “अयं निज परोवेत्ति गणनाम् लघुचेतसाम, उदारचरिताम तु वसुधैव कुटुंबकम्” बार बार उद्धृत किया जाता है वह हितोपदेश की उस कहानी में आता है, जहां एक सियार एक गधे को रात में किसी किसान के खेत में ककड़ियां खाने ले जाता है। जब गधा हिचकिचाता है कि यह पराया खेत है, यहां ककड़ियां खाना गलत होगा तो सियार उसे यह श्लोक सुनाता है।

जब मैंने यह बात सुनी तब मुझे समझ में आया कि यह श्लोक या इसका “वसुधैव कुटुंबकम” वाला हिस्सा बार-बार क्यों दोहराया जाता है। कई संस्थाओं के कार्यक्रमों में इसे मंच पर पिछले पर्दे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ पाया गया है। इसका अर्थ अज्ञानी जन यह समझते हैं कि सारी दुनिया हमारा परिवार है इसलिए हमें सारी दुनिया के लोगों से अपने परिवार जनों की तरह प्रेम करना चाहिए। लेकिन इसका वास्तविक अर्थ बड़ा गूढ़ है और इसे वे लोग ही समझते हैं, जो बार-बार इसका इस्तेमाल करते हैं।

दरअसल, इसका अर्थ यह समझना चाहिए कि सारी दुनिया के लोग हमारे परिवारजन हैं, इसलिए हमें सारी दुनिया को अपना घर मानना चाहिए। यानी हमें सारी दुनिया में खास तौर पर अमेरिका, इंग्लैंड और कैनेडा जैसे देशों में बसने की आजादी होनी चाहिए। एनआरआइ होना हमारा आदर्श होना चाहिए। इसी उद्देश्य से तमाम भारतीय वैध और अवैध तरीकों से विदेश जाने की कोशिश करते हैं। जो इसमें कामयाब हो जाते हैं और एनआरआइ बन जाते हैं उनका इसीलिए हमारे देश में, अपने देश में रहने वाले लोगों से भी ज्यादा सम्मान होता है।

सारी दुनिया हमारा घर है, इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि हमारा घर भी सारी दुनिया के लिए है। हमारा घर तो सिर्फ हमारे लिए है। हम रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने देश में नहीं देखना चाहते। हम बांग्लादेशियों को अपने देश से खदेड़ने के लिए इतने आतुर हैं कि अगर उनके साथ कुछ भारतीय भी बेघर हो जाएं तो हमें कोई फिक्र नहीं है। गेहूं के साथ घुन के पिसने में न हमारी अहिंसा आड़े आती है न शाकाहार। हमारे सारे पड़ोसियों को हम अपना दुश्मन समझते हैं। यही नहीं, हम अपने ही देशवासियों को खदेड़ने के लिए तैयार रहते हैं। गुजराती, उत्तर भारतीयों को खदेड़ रहे हैं, तमिल, कन्नड़ लोगों को और कन्नड, तमिलों को खदेड़ते रहते हैं। मराठी लोग शेष भारत के सभी लोगों को खदेड़ना चाहते हैं और पूर्वोत्तर के लोगों को बाकी देश वाले विदेशी मानते हैं। पूर्वोत्तर के लोग भी बाकी भारतवासियों को घुसपैठिया मानते हैं। हिंदू, मुसलमानों को घर में घुसने नहीं देते और सवर्ण दलितों को छूने से बचते हैं। सब मिलकर आदिवासियों को खदेड़ने की फिराक में रहते हैं। पिछड़े दूसरे पिछड़ों से खार खाते हैं और दलित दूसरी दलित जातियों से। अब समझ में आया कि कुछ लोग या संस्थाएं जोर-जोर से “वसुधैव कुटुंबकम्” का घोष क्यों करती रहती हैं।

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