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सौतेले व्यवहार से दो-चार

पुरुष वेस्टइंडीज मैच के लिए महिला टी-20 वर्ल्डकप से ऐन पहले टीम का कैंप वानखेड़े से बदला
कब आएगी समझ ः महिला क्रिकेट भी पुरुषों से कमतर नहीं

तारीख 23 जुलाई 2017... महिला क्रिकेट विश्वकप का फाइनल और इंग्लैंड के सामने थी भारतीय टीम। एक वक्त भारतीय टीम जीत की दहलीज पर थी, लेकिन अंतिम पलों में मैच हाथ से फिसल गया और भारत 36 रनों से मैच गंवा बैठा। हालांकि, भारतीय टीम के इस प्रदर्शन की हर जगह तारीफ हुई। तब लगा कि महिला क्रिकेट भी पुरुषों से कतई कमतर नहीं है और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) ने भी आगे बढ़कर महिला क्रिकेट को गंभीरता से लेने में रुचि दिखाई। लेकिन, यह भ्रम भी जल्द ही टूट गया। इसी महीने नौ नवंबर से वेस्टइंडीज में महिला क्रिकेट का टी-20 वर्ल्डकप शुरू होने वाला है। इसकी तैयारियों के मद्देनजर मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में महिला खिलाड़ियों के लिए टी-20 कैंप लगाया जाना था, जिसे ऐन समय पर शिफ्ट कर दिया गया। इससे महिला खिलाड़ियों के प्रैक्टिस का एक दिन यूं ही बर्बाद हो गया। दरअसल, मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) ने वानखेड़े स्टेडियम में कैंप लगाने की मंजूरी नहीं दी, तो कैंप को एक दिन बाद ब्रेबोर्न स्टेडियम में ही लगाने की इजाजत मिल पाई। तब जाकर इस समस्या का हल निकल सका। वहीं, इस पूरे मामले पर बीसीसीआइ के एक्टिंग प्रेसिडेंट सी.के. खन्ना ने आउटलुक को बताया कि यह सारा मामला मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए) के वानखेड़े स्टेडियम से भारत और वेस्टइंडीज के बीच होने वाले चौथे एकदिवसीय मैच को ब्रेबोर्न स्टेडियम शिफ्ट करने से जुड़ा है। उन्होंने बताया कि इस फैसले के बाद एमसीए ने महिला टी-20 वर्ल्डकप की तैयारी के मद्देनजर महिला खिलाड़ियों के लिए कैंप आयोजित करने में असमर्थता जता दी। हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि मैच शिफ्ट करने की वजह से ही इस कैंप को रद्द किया गया। लेकिन, यह सवाल मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन से पूछा जाना चाहिए।   

महिला क्रिकेट टीम टी-20 वर्ल्डकप से पहले छह दिनों का कैंप शुरू करने वाली थी। लेकिन उसे यह कैंप क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया (सीसीआइ) के मालिकाना हक वाले ब्रेबोर्न स्टेडियम में शुरू करना पड़ा। अगर भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम को किसी सीरीज या वर्ल्डकप वगैरह के लिए तैयारियों की जरूरत होती, तो क्या उनके साथ इस तरह का भेदभाव होता! इस पर बीसीसीआइ की कमेटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर (सीओए) की सदस्य और पूर्व भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी डायना एडुलजी ने खेद जताया। उन्होंने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय महिला टीम समय से कैंप शुरू नहीं कर पाई और मुझे नहीं लगता कि विराट कोहली की टीम के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाता।महिला और पुरुष टीम के लिए भला इस तरह के अलग-अलग नियम क्यों होने चाहिए। 

यह सारा विवाद उस वक्त शुरू हुआ, जब बीसीसीआइ ने भारत और वेस्टइंडीज के बीच होने वाले चौथे एकदिवसीय मैच को वानखेड़े से ब्रेबोर्न स्टेडियम शिफ्ट कर दिया। दरअसल, यह मैच पहले वानखेड़े स्टेडियम में होने वाला था, लेकिन बीसीसीआइ और एमसीए के बीच चल रही लड़ाई की वजह से एमसीए ने बीसीसीआइ से कहा कि वह महिला खिलाड़ियों के लिए कैंप का आयोजन नहीं कर सकता है। पूर्व भारतीय महिला क्रिकेटर डायना कहती हैं कि दोनों के बीच जारी इस विवाद का खामियाजा महिला खिलाड़ियों को उठाना पड़ा और कैंप का पहला दिन उनका बेकार गया। वेस्टइंडीज में होने वाले टी-20 वर्ल्डकप के लिहाज से यह कैंप बहुत अहम है, लेकिन महिला खिलाड़ियों के प्रति इस तरह का रवैया बेहद चौंकाने वाला है। उन्होंने बीसीसीआइ के जनरल मैनेजर (क्रिकेट ऑपरेशंस) सबा करीम की भूमिका पर भी सवाल उठाए, जिन्होंने इस समस्या का हल निकालने का वादा किया था, लेकिन बाद में उन्होंने कैंप को ब्रेबोर्न शिफ्ट करने की जानकारी दी।

इसके अलावा, इसी साल जुलाई महीने में ही महिला क्रिकेट टीम के कोच तुषार अरोठे की जगह रमेश पवार को कोच बनाया गया। यह फैसला भी वर्ल्डकप शुरू होने से महज चार-पांच महीने पहले ही लिया गया।

जारी है भेदभाव की पुरानी कहानी

बीसीसीआइ ने इसी साल सात मार्च को भारतीय क्रिकेट टीम के लिए कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम और सालाना वेतन के प्रारूप की घोषणा की। इससे भी साफ जाहिर होता है कि देश में क्रिकेट को नियंत्रित और बढ़ावा देने वाली संस्था कैसे महिला और पुरुष क्रिकेट टीम के बीच भेदभाव करती है।पुरुष क्रिकेटरों को पहले तीन ग्रेड यानी ग्रेड ए, बी और सी के तहत ही सालाना सैलरी दी जाती थी, लेकिन इस बार ए प्लस नाम से एक अलग ग्रेड बनाया गया है, जिसके तहत इस वर्ग में आने वाले खिलाड़ियों को सालाना सात करोड़ रुपये मिलेंगे। वहीं, ग्रेड ए के तहत पांच करोड़ रुपये, ग्रेड बी के तहत तीन करोड़ रुपये और ग्रेड सी के तहत  एक करोड़ रुपये पुरुष खिलाड़ियों को मिलेंगे। इस फीस प्रारूप के मामले में महिला खिलाड़ी पुरुषों के सामने कहीं नहीं टिकती हैं। यहां तक कि महिला खिलाड़ियों के शीर्ष ग्रेड के तहत मिलने वाली रकम पुरुषों के ग्रेड सी से भी आधी है। महिला खिलाड़ियों के लिए ग्रेड ए, बी और सी के तहत फीस इस तरह तय की गई है। ग्रेड ए में आने वाली खिलाड़ियों को 50 लाख रुपये, बी में 30 लाख रुपये और सी के तहत आने वाली खिलाड़ियों को महज 10 लाख रुपये सालाना ही मिलेंगे।

आज हम सभी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए समान अधिकार की बात करते हैं, लेकिन आंकड़े इससे कुछ अलग कहानी बयां करते हैं। ऊपर के आंकड़े भी बताते हैं कि महिला खिलाड़ियों को पुरुष टीम की तुलना में लगभग 14 गुना कम फीस मिलती है। हालांकि, यह भी अजीब बात है कि इससे पहले महिला क्रिकेटरों के लिए कॉन्ट्रैक्ट का कोई प्रावधान नहीं था और बीसीसीआइ ने इस साल पहली बार यह शुरू किया। महिला और पुरुष खिलाड़ियों के लिए एक-समान भुगतान की बहस लंबे अरसे से चल रही है, लेकिन अभी तक यह अपने मुकाम तक नहीं पहुंच सकी है। असमान भुगतान मौलिक रूप से गलत है। हालांकि, भारतीय महिला खिलाड़ियों के लिए राहत की एक बात यह हो सकती है कि उन्हें बीसीसीआइ के प्रशासनिक तंत्र की मुख्यधारा में शामिल कर लिया गया। यह अलग बात है कि इस प्रक्रिया में नौ साल लग गए।

इसमें कोई शक नहीं कि हममें ज्यादातर लोग अधिकांश क्रिकेटरों, यहां तक कि टीम के सभी 11 खिलाड़ियों का नाम भी अंगुलियों पर गिन लें। लेकिन, सवाल यह है कि हममें से कितने लोगों को पता है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम का कप्तान कौन है? क्या यह सही है कि एक ही देश में एक ही खेल का प्रतिनिधित्व करने वाली महिला टीम मीडिया या आम लोगों का ध्यान आकर्षित नहीं कर पाती है। यह सवाल वर्षों से हमारे सामने बार-बार आ रहा है कि कैसे महिला क्रिकेट के टैलेंट को हम गौर नहीं कर पा रहे हैं, जबकि उनका प्रदर्शन कई बार पुरुष टीम की तुलना में काफी बेहतर रहा है। कई खिलाड़ी पुरुषों की तुलना में अपने प्रदर्शन से हमें चौंका रही हैं। इसके बावजूद एक ही खेल यानी क्रिकेट में महिला और पुरुष टीम के बीच का अंतर या भेदभाव आज भी बरकरार है, जिसका हालिया उदाहरण है टी-20 वर्ल्डकप से ऐन पहले उनकी तैयारियों के लिए आयोजित किए जाने वाले कैंप को बदल देना।

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