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कॉल ड्रॉप 100 फीसदी खत्म करना संभव नहीं

ट्राई ने स्वतंत्र रूप से अलग-अलग शहरों का टेस्ट ड्राइव शुरू किया है, लेकिन ये समस्या एक झटके में दूर नहीं हो पाएगी
टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन आर.एस.शर्मा

देश के 120 करोड़ टेलीकॉम कस्टमर अभी भी कॉल ड्रॉप से लेकर पेस्की कॉल जैसी बेसिक प्रॉब्लम का सामना कर रहे हैं। दुनिया के दूसरे सबसे बड़े टेलीकॉम मार्केट में कहां कमी है। इस मामले पर टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन आर.एस.शर्मा ने आउटलुक के एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव से बातचीत की है। पेश है प्रमुख अंश...

-आम आदमी छोड़िए अब तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कॉल ड्रॉप से परेशान हैं। क्या वजह है कि तीन साल से कोशिश करने के बाद भी समस्या दूर नहीं हुई?

कॉल ड्रॉप की बहुत सारी वजहें हैं। जहां टॉवर इन्‍फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है, वहां टॉवर नहीं हैं। लोग टॉवर लगाने नहीं देते हैं, उन्हें लगता है कि टॉवर के रेडिएशन से कैंसर हो जाएगा। इसके अलावा टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर ने भी कस्टमर की तुलना में जरूरी टॉवर नहीं लगाए हैं। टेक्नोलॉजी की वजह से कनेक्टिविटी की भी प्रॉब्लम आ रही है। साथ ही नेटवर्क का मेंटीनेंस भी जरूरत के मुताबिक नहीं हो पा रहा है।

-जब इतनी सारी वजहें मौजूद हैं तो जाहिर है कि कॉल ड्रॉप होगी, तो एक रेग्युलेटर के रूप में ट्राई क्या कर रहा है?

ट्राई लगातार कदम उठा रहा है। अक्टूबर 2015 में हमने कॉल ड्रॉप रोकने के लिए कस्टमर को एक रुपये हर्जाना देने का प्रावधान किया था। लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर खत्म कर दिया कि आपके पास इस तरह का नियम बनाने का अधिकार नहीं है। इसके बाद हमने इसे रोकने के लिए 4-5 काम किए। अभी कंपनियों को दो फीसदी कॉल ड्रॉप के मानक मेंटेन करना होता है, जिसे ज्यादातर कंपनियां लागू कर रही हैं। लेकिन इसमें एक समस्या है कि कंपनियां ओवरऑल तो मानक पूरा कर लेती हैं लेकिन लोकेशन के आधार पर खामियां रह जाती हैं। इसे रोकने के लिए एक अक्टूबर 2017 से नई व्यवस्था लागू की है, जिसमें टॉवर के आधार पर कलकुलेशन किया जा रहा है। इसमें जो कंपनियां मानक पूरा नहीं करती हैं, उन पर पेनॉल्टी लगाई जाती है। इसके अलावा हमने पूरे देश का कवरेज मैप ऑनलाइन दिखाना शुरू किया है। साथ ही ट्राई ने स्वतंत्र रूप से अलग-अलग शहरों का टेस्ट ड्राइव भी शुरू किया है। इसी तरह डाटा स्पीड की निगरानी के लिए ऐप भी लांच किया है। हालांकि, यह भी समझना होगा कि ये समस्या एक झटके में नहीं दूर हो पाएगी। कॉल ड्रॉप 100 फीसदी खत्म करना संभव नहीं है लेकिन इसे न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है।

-क्या ट्राई कॉल ड्रॉप प्रॉब्लम को न्यूनतम करने के लिए नए नियम ला रहा है?

अभी अक्टूबर 2017 से नए नियम लागू किए गए हैं। फिलहाल हमें नए नियमों की जरूरत महसूस नहीं होती है। अगर जरूरत होगी, तो निश्चित तौर पर ट्राई नए नियम लागू करेगा। हालांकि मौजूदा नियमों पर एक्शन के बाद निश्चित तौर पर कॉल ड्रॉप में कमी आई है।

-एक्सपर्ट्स का कहना है कि लो टैरिफ रिजीम के बाद कंपनियां इन्वेस्टमेंट से बच रही हैं, जिसकी वजह से कॉल ड्रॉप है?

लो टैरिफ की स्कीम कंपनियां ही लाती हैं। इसका रेग्युलेटर से कोई लेना-देना नहीं है। इसके लिए कंपनियां पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। ये बात भी सही है कि कंपनियां भ्रांतियों की वजह से हर जरूरी जगह टॉवर नहीं लगा पाती हैं। कई लोग चाहते हैं कि सिग्नल तो आए लेकिन टॉवर नहीं लगे। ऐसा कैसे हो सकता है। वहीं कुछ लोग अपनी दुकान चलाने के लिए भ्रम फैला रहे हैं कि टॉवर से कैंसर होता है, जो पूरी तरह से गलत है। अभी तक 25 हजार स्टडी हो चुकी है, जिसमें किसी एक में भी कैंसर होने की बात सामने नहीं आई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्टडी में भी यह बात सामने आ गई है।

-ड्राइव टेस्ट में बीएसएनएल और एमटीएनएल मानक पूरा नहीं कर पाती हैं। ऐसा  क्यों है?

देखिए, हम रेग्युलेटर हैं। ट्राई सरकारी और प्राइवेट कंपनियों में कोई भेद नहीं करता है। हमारा निर्देश सभी तरह की कंपनियों के लिए समान होता है। जो भी कंपनी नियमों का पालन नहीं करती है, उसके खिलाफ तय नियमों के अनुसार एक्शन लिया जाता है।

-इसी तरह पेस्की कॉल का भी मामला है जहां पर अभी तक राहत नहीं मिल पाई है?

पेस्की कॉल पर नया रेग्युलेशन आ रहा है। इसके बाद अनचाही कॉल या पेस्की कॉल कंट्रोल में आ सकेगी। ट्राई ने कंपनियों को नए नियमों के तहत दिसंबर 2018 की डेडलाइन दी है। कंपनियों को उस अवधि तक जरूरी तैयारी पूरी कर लेनी होगी।

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