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अब अदालत ही सरकार

अतिक्रमण, बाघ, दवाइयों, अस्पतालों, हड़ताल सब की खबर सिर्फ हाइकोर्ट के आसरे
देहरादून का प्रेमनगर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के बाद

यूं तो पिछले छह महीनों में हाइकोर्ट नैनीताल ने दर्जनों महत्वपूर्ण और जनकेंद्रित फैसले दिए, लेकिन राजधानी देहरादून का अतिक्रमण हटाना मील का पत्थर साबित हुआ। 20 जून को दिए इस फैसले में कोर्ट ने इतनी लंबी लकीर खींच डाली कि राज्य की मशीनरी कुछ समझ ही नहीं पाई। अदालत ने वरिष्ठ नौकरशाह अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश को अतिक्रमण हटाने की इस ड्राइव के लिए नोडल अफसर नियुक्त किया है। इस कार्रवाई के तहत कई हजार निर्माण तोड़ दिए गए। संकरी सड़कें चौड़ी हो गईं। देहरादून-चंडीगढ़ हाईवे के बीच बोटल नेक प्रेम नगर का हिस्सा अब इतिहास बन चुका है।

वैसे तो यह काम चुनी हुई सरकार का है, लेकिन जब सरकारें वोट बैंक के चक्कर में किसी की नाराजगी मोल लेने से डरने लगती हैं, तो कोर्ट का सक्रिय होना लाजिमी है। देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार मनमोहन लखेड़ा ने 2012 में हाइकोर्ट में राजधानी के अतिक्रमण को लेकर एक याचिका दाखिल की थी, जिसे 2013 में स्वीकार कर लिया गया। कोर्ट ने 2014 में अतिक्रमण हटाने को कहा तो प्रशासन ने महज औपचारिकता पूरी कर हलफनामा दाखिल कर दिया। फिर हाइकोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर दिया। बाद में लोगों ने फिर कब्जे कर लिए। इसी बीच पीआइएल की सुनवाई का जिम्मा हाइकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस केएम जोसफ ने न्यायमूर्ति राजीव शर्मा को दे दिया। न्यायमूर्ति शर्मा ने इस मामले में कड़ा फैसला दिया, जिसका नतीजा सामने है। अभियान के खिलाफ कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट भी गए, लेकिन राहत नहीं मिली। फिर लोगों ने खुद ही अतिक्रमण और अवैध कब्जे हटाने शुरू कर दिए। 1932 के नक्शे के हिसाब से सड़कों को चौड़ा कर दिया गया। देहरादून-चंडीगढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग के बीच बसे प्रेमनगर के बड़े हिस्से को हटाना टेढ़ी खीर थी, लेकिन पुलिस बल के सामने इस बार शोर मचाने का लाभ नहीं मिला। राजमार्ग के बीच के इस हिस्से को पूरी तरह से साफ कर दिया गया। अभियान के बीच में भी राजनीति शुरू हुई, लेकिन बात नहीं बनी। कैंट विधायक हरबंश कपूर, मसूरी विधायक गणेश जोशी, रायपुर विधायक उमेश शर्मा और राजपुर रोड विधायक खजानदास (सभी भाजपा से) ने भीड़ के पक्ष में धरना दिया और यहां तक कहा कि जेसीबी मशीन अब उनकी लाश से होकर ही गुजरेगी। लेकिन अगली बार ये विधायक नजर नहीं आए।

हाइकोर्ट यहीं नहीं रुका, देहरादून के साथ ही हरिद्वार में भी अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए और ऊधमसिंह नगर के जिला मुख्यालय रुद्रपुर शहर को भी अतिक्रमण मुक्त करने के आदेश दिए और बड़े अफसरों को अभियान का नोडल अधिकारी बनाकर जवाबदेही तय कर दी। पिछले कुछ समय से उत्तराखंड में सरकार की सुस्ती की वजह से अदालती सक्रियता काफी जोरदार देखी गई है। मई में कोर्ट ने पुलिसकर्मियों से आठ घंटे से ज्यादा काम नहीं लेने, खुले में पशुओं की कुर्बानी प्रतिबंधित करने जैसे महत्वपूर्ण फैसले लिए तो राजधानी देहरादून को चार सप्ताह में अतिक्रमण मुक्त करने, वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने पर ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त करने, विशेष परिस्थितियों में ही रात 10 बजे से 12 बजे के बीच धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर बजाने, ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए कृषि भूमि के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले लिए।

कोर्ट के फैसलों का सिलसिला यहीं नहीं रुका। एक साल के भीतर निकाय सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट लगाने और नदियों के किनारे बायो-मेडिकल वेस्ट फेंकने पर पाबंदी लगाने का फैसला भी दिया। इसके अलावा कोर्ट ने एससी-एसटी वर्ग के मंदिर में प्रवेश और पूजा को जायज ठहराते हुए सरकार को चेतावनी दी कि अब विरोध की घटना दोबारा न हो। कोर्ट ने अगस्त में हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज की स्टाफ नर्स उर्मिला मैसी की याचिका पर सुनवाई करते हुए तीसरे बच्चे के जन्म पर भी मातृत्व अवकाश देने का आदेश दिया और एक निर्णय के तहत ऐसे आइएएस और अन्य अफसरों से राज्य संपत्ति विभाग के आवास तत्काल खाली कराने को कहा जिन्होंने राजधानी से बाहर ट्रांसफर होने के बावजूद देहरादून में सरकारी मकान पर कब्जा कर रखा है। सड़कों पर आवारा घूमने वाले गोवंशीय पशुओं के लिए 25 गावों में गोशाला बनाने और कॉर्बेट तथा अन्य वन पार्कों से वन गुर्जरों को बाहर करने का फैसला भी सुनाया।

कोर्ट ने एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी की कि यदि उत्तराखंड में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स सक्रिय नहीं है तो क्या वन्य जीवों को गुजरात शिफ्ट कर दिया जाए? हाइकोर्ट ने अगस्त में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक 444 दवाइयों की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी।

कोर्ट ने नदियों के किनारे भूमि आवंटन पर रोक लगाने के साथ हरिद्वार में गंगा के घाटों की सफाई, गैर पंजीकृत अस्पतालों को तत्काल बंद करने और डॉक्टरों के ब्रांडेड दवाइयां लिखने पर रोक लगाने, धार्मिक स्थलों और आवासीय भवनों में बनाए कमर्शियल प्रतिष्ठानों को सील करने, प्रदेश में होने वाली कर्मचारियों की हड़ताल को अवैध घोषित करने, देहरादून के औद्योगिक नगर सेलाकुई में सरकारी जमीन पर हुए अतिक्रमण को हटाने, कुमाऊं तथा गढ़वाल में बाघों के लिए रेस्क्यू सेंटर खोलने जैसे जनहित के निर्णय भी दिए।

सितंबर में राजधानी देहरादून को 24 घंटे में कूड़ा मुक्त करने के आदेश दिए, डॉक्टर की पर्ची पर दवा और बीमारी का नाम कंप्यूटर से लिखने, प्रदेश में अग्रिम जमानत याचिका के प्रावधान लागू करने, हल्द्वानी के एक स्कूल में बच्ची के साथ हुए दुष्कर्म की घटना पर 24 घंटे के भीतर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने जैसे मामलों में भी हाइकोर्ट को सख्त  निर्णय लेने पड़े।

बाघों की मौत की सीबीआइ जांच

सरकार और वन मंत्री हरक सिंह रावत सोते ही रहे और 23 अगस्त को जिम कॉर्बेट व अन्य वन्य जीव विहारों में बाघों की मौत को लेकर सख्त टिप्पणी करते हुए हाइकोर्ट ने सीबीआइ से जांच कराने के आदेश दे दिए। उत्तराखंड में 2018 में नौ बाघ, 67 तेंदुओं और 17 हाथियों की मौत हुई। 2017 में यह आंकड़ा और भयावह था। उस साल 17 बाघ और 101 तेंदुओं की मौत ने वन्य जीव प्रेमियों को हिलाकर रख दिया। 2016 में 14 बाघ और 104 तेंदुओं की मौत हुई थी।

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