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जाति गणित की गोलबंदी

एससी/एसटी एक्ट से अगड़ी जातियां भाजपा से नाराज, तो राहुल की मंदिर दर्शन से वोट में सेंध की कोशिश
चुनावी बिगुलः उज्जैन में रैली के दौरान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया

मध्य प्रदेश में एक तरफ “विश्वास है शिवराज पर” गूंज रहा है, तो दूसरी तरफ “वक्त है बदलाव का”। विश्वास और बदलाव की लड़ाई में जातीय समीकरण बहुत मायने रखने वाले हैं। खासकर यह कि अनुसूचित जाति और जनजाति के वोट क्या करवट लेते हैं? वैसे गुजरात की तर्ज पर राहुल गांधी मंदिर दर्शन के सहारे यहां भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने में जुट गए हैं। अनुसूचित जाति  और जनजाति एक्ट में संशोधन के बाद राज्य के कुछ हिस्सों में जिस तरह ब्राह्मण समाज के लोग सड़कों पर आए, उससे कांग्रेस उसका फायदा उठाने में लगी है। यही वजह है कि राहुल गांधी ने चित्रकूट के कमतनाथ मंदिर से लेकर दतिया के पितांबरा पीठ और उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में परंपरागत तरीके से पूजा-पाठ किया। भाजपा विकास और युवाओं को साधकर चौथी बार सत्ता पर काबिज होना चाहती है। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी जन-आशीर्वाद यात्रा बीच में ही स्थगित करनी पड़ी। कांग्रेस का आरोप है कि यात्रा में लोगों की भीड़ न होने के कारण उसे बीच में ही रोकना पड़ा।

कांग्रेस के प्रवक्ता भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि मुख्यमंत्री शिवराज की सभाओं में भीड़ ही नहीं, बल्कि उनके अपने कार्यकर्ता भी नहीं आ रहे हैं। भोपाल में भाजपा ने युवाओं को लुभाने के लिए टाउनहॉल का आयोजन किया था। इसके जरिए पार्टी का लक्ष्य 10 लाख युवाओं को सीधे पार्टी से जोड़ने का है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मुख्यमंत्री ने प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों के नए वोटरों से संवाद किया। भूपेंद्र गुप्ता का कहना है कि इस कार्यक्रम में भी कुर्सियां खाली थीं। वहीं, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि चुनाव आचार संहिता और टिकटों पर मंथन के लिए जन-आशीर्वाद यात्रा स्थगित की गई है। मध्य प्रदेश में भाजपा अपने ही जाल में उलझ गई दिखती है। एससी/ एसटी एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लोग जिस तरह हिंसक हुए, खासतौर से ग्वालियर और चंबल संभाग में अनुसूचित जाति वर्ग के लोग सड़क पर आए। इनको साधने के लिए एससी/एसटी एक्ट में संशोधन किया गया, तो अगड़ी जाति के लोग नाराज हो गए। विंध्य इलाके में जिस तरह से ब्राह्मण समाज के लोगों की प्रतिक्रिया रही, वह भाजपा के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती। राज्य की साढ़े सात करोड़ की आबादी में करीब 23 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियां हैं और प्रदेश के 19 जिलों में इनका प्रभाव है। अनुसूचित जाति की आबादी करीब 16 प्रतिशत हैं। अनुसूचित जाति का प्रभाव ग्वालियर और चंबल संभाग के साथ उत्तर प्रदेश से सटे इलाकों में ज्यादा दिखता है। आदिवासी इलाकों में आदिवासी शक्ति संगठन के आंदोलन और रैली से राजनीतिक माहौल में तब्दीली दिखाई पड़ती है। दूसरी तरफ सपाक्स जैसे संगठन जातिगत आरक्षण को युक्तियुक्त बनाने की बात कर आगे बढ़ रहे, उसका भी चुनावी नतीजों पर प्रभाव तय माना जा रहा है। सपाक्स राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी खड़े करने की बात कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो सपाक्स पार्टी का भले कोई प्रत्याशी न जीते, लेकिन खेल बिगाड़ने में तो उसकी भूमिका हो ही सकती है।

कांग्रेस नेता माणक अग्रवाल का मानना है कि भिंड-मुरैना और बुंदेलखंड इलाके में जाति समीकरण का असर दिखाई दे सकता है। आदिवासी सीटों पर जयस खेल बिगाड़ सकती है। दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि मध्य प्रदेश में भाजपा विकास और सुशासन के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ेगी। यहां जातीय समीकरण जैसी कोई स्थिति नहीं रहेगी। कांग्रेस जातिवादी संगठनों को परोक्ष रूप से सहयोग कर रही है। 

मध्य प्रदेश की राजनीति में एक समय था, जब ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था, लेकिन आज उनकी संख्या और रसूख़ दोनों में कमी आ गई है। नवंबर 1956 में मध्य प्रदेश के गठन के बाद साल 1990 तक पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने लगभग 20 वर्षों तक शासन किया। लेकिन पिछले दो दशकों से भी ज्यादा से कोई ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं बन सका है। राज्य के पहले मुख्यमंत्री कांग्रेस के पंडित रविशंकर शुक्ल थे, जबकि कांग्रेस के ही श्यामाचरण शुक्ल 1990 में ब्राह्मण समाज से आने वाले प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री थे। कहा जाता है कि श्यामा चरण शुक्ल जब 1969 में पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उनके 40 मंत्रियों में से 23 ब्राह्मण थे। एक अनुमान के मुताबिक, प्रदेश में ब्राह्मणों की संख्या पांच से छह फीसदी है। जानकारों के मुताबिक, राज्य के विंध्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा 29 फीसदी सवर्ण आबादी है। विंध्य में 14 फीसदी ब्राह्मण मतदाता हैं। ये अब तक भाजपा के वोट बैंक रहे हैं।

आरक्षण के मुद्दे ने यहां वातावरण बदल दिया है। शिवराज की यात्रा पर जिस तरह पथराव हुआ, यह उसी का संकेत है। लोकनीति और अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने कुछ महीने पहले जातियों और राजनीति के संबंध की पुष्टि करने के लिए सर्वे किया। सर्वे में कहा गया कि प्रदेश में 65 फीसदी वोटर प्रत्याशी की जाति देखकर वोट करते हैं। भाजपा-कांग्रेस और दूसरे दल किस तरह के चेहरे मैदान में उतारते हैं और किस जाति को ज्यादा प्राथमिकता देते हैं, यह भी बहुत मायने रखेगा।

तीन तलाक और राम मंदिर जैसे मुद्दे सामने आने से मध्य प्रदेश में मुस्लिम मतदाता भी बड़ी भूमिका में रह सकते हैं। वैसे तो मुस्लिम वोट को कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक माना जाता रहा है। लेकिन राहुल गांधी के कमान संभालने के बाद कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ा है। अब कांग्रेस के नेता मुस्लिम वोट बैंक पर बात करने से बचने लगे हैं। मध्य प्रदेश के एक कांग्रेस नेता का कहना है कि इस मुद्दे पर बात करने से हमें नुकसान होता है। कांग्रेस में मुसलमानों के मुद्दे पर अधिकांश बयान देने वाले नेता दिग्विजय सिंह को पार्टी ने चुप करा दिया है। यहां तक कि मध्य प्रदेश में राहुल गांधी की चुनावी सभाओं में भी वे नहीं रहते। पिछले दिनों उन्होंने ट्वीट कर जानकारी दी कि प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने उन्हें दूसरे जरूरी काम सौंपे हैं। इस कारण वे राहुल गांधी की सभा में नहीं रहेंगे। मध्य प्रदेश के 4.94 करोड़ वोटरों में 10.12 प्रतिशत (50 लाख) मुस्लिम वोटर हैं, जो पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ और भोपाल संभाग में 40 सीटों पर दखल रखते हैं।

राज्य के शाजापुर, मंडला, नीमच, महिदपुर, मंदसौर, इंदौर-5, नसरुल्लागंज, इछावर, आष्टा, उज्जैन दक्षिण सीटों पर 16-16 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं। 2018 के चुनाव में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहेगी। कहा जाता है कि मध्य प्रदेश के दिल में बसे मालवा और मध्य क्षेत्र के पास राज्य के सत्ता की चाबी है। इस क्षेत्र को जीते बिना सत्ता के सिंहासन तक नहीं पहुंचा जा सकता है। यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्य प्रदेश में 15 साल के सत्ता के वनवास को खत्म करने के लिए मालवा क्षेत्र पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। इस इलाके पर भाजपा की मजबूत पकड़ मानी जाती रही है, लेकिन मंदसौर में किसानों पर गोली चलने की घटना से भाजपा के प्रति नाराजगी बढ़ी है। किसानों को टारगेट कर राहुल कर्जमाफी की बात कर रहे हैं। कुल 230 विधानसभा सीटें में से मालवा और मध्य क्षेत्र में 86 सीटें है। 2013 के विधानसभा चुनाव में इन 86 सीटों में से कांग्रेस महज 10 सीटें ही जीत सकी थी। इन दोनों क्षेत्रों में भाजपा 50 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रही थी। मालवा क्षेत्र में 50 सीटों में से भाजपा के पास 45 सीटें हैं, जबकि कांग्रेस के पास महज चार सीटें हैं।

मालवा क्षेत्र में भाजपा के कैलाश विजयवर्गीय और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की पकड़ मानी जाती है। कांग्रेस की ओर से इन इलाकों की कमान ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास है। मध्य प्रदेश में एक-एक सीट पर मारामारी रहेगी और सोशल इंजीनियरिंग पर भी ध्यान दिया जाएगा, क्योंकि भाजपा-कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे में पेच दर पेच का एक कारण जातिगत समीकरण भी है।

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