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आखिर अंतिम दौर में अड़े

मातहतों के बीच बेहद लोकप्रिय वर्मा पहली बार विवादों में
सीबीअाइ डायरेक्टर आलोक वर्मा

दिल्ली के प्रशासनिक गलियारों में आलोक वर्मा की पहचान विवादों से दूर रहने वाले अधिकारी की रही है। सीबीआइ के ताजा घटनाक्रम से सुर्खियों में आए 1979 बैच के एजीएमयूटी (अरुणाचल, गोवा, मिजोरम, केंद्रशासित प्रदेश) काडर के इस आइपीएस अधिकारी को उनके साथी दक्ष और सिस्टेमेटिक अधिकारी के तौर पर याद करते हैं। यही कारण है कि हाल के साल में वे दिल्ली पुलिस के इकलौते कमिश्नर रहे हैं जो विवादों में नहीं आए।

दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर आमोद कंठ ने आउटलुक को बताया, “जब मैं दिल्ली पुलिस में डीसीपी था तब वर्मा मेरे मातहत थे। वे काफी मेथडलॉजिकल अधिकारी रहे हैं। बतौर दिल्ली पुलिस कमिश्नर भी उनका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।दिल्ली के सेंट जेवियर्स स्कूल और सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ाई करने वाले वर्मा महज 22 साल की उम्र में आइपीएस अधिकारी बन गए थे। अपने बैच के वे सबसे युवा अधिकारी थे। दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनने से पहले वे कारागार महानिदेशक और मिजोरम तथा पुदुच्‍चेरी के पुलिस महानिदेशक की जिम्मेदारी संभाल चुके थे। एनसीआर में महिला पीसीआर शुरू करने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है। उनके कार्यकाल में दिल्ली पुलिस में प्रमोशन को लेकर कई नीतियों में बदलाव किए गए। नतीजतन, करीब 26 हजार पुलिसकर्मियों को प्रमोशन मिला। इनमें ज्यादातर को बीते दो दशक से प्रोन्नति नहीं मिली थी। यही कारण है कि मातहतों के बीच वे काफी लोकप्रिय रहे हैं।

वर्मा फरवरी 2017 में सीबीआइ के 27वें निदेशक बने थे। दो साल का उनका कार्यकाल अगले साल पूरा होना है, उससे पहले ही सरकार ने उन्हें छुट्टी पर भेज दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की चयन समिति ने उनका नाम फाइनल किया था। 45 उम्मीदवारों में से उनका नाम आरके दत्ता और सतीश माथुर के साथ शॉर्टलिस्ट किया गया था। विजिलेंस डिपार्टमेंट में काम करने का अनुभव होने के कारण उन्हें वरीयता मिली थी। 1997 में पुलिस मेडल और 2003 में राष्ट्रपति पुलिस मेडल से सम्मानित वर्मा जांच एजेंसी के पहले ऐसे मुखिया हैं जिन्हें सीबीआइ में काम करने का कोई अनुभव नहीं था।

मौजूदा विवाद के बाद कांग्रेस वर्मा के साथ खड़ी नजर आ रही है। लेकिन, खड़गे ने उनकी नियुक्ति पर आपत्ति जताई थी। वे दत्ता की नियुक्ति के पक्ष में थे। नियुक्ति की शुरुआत से ही वर्मा के विरोधी सीबीआइ में काम करने का अनुभव नहीं होने को लेकर उनकी आलोचना करते रहे हैं। लेकिन कंठ ने बताया, “सीबीआइ और पुलिस दोनों का अहम काम इन्वेस्टीगेशन है। पुलिस में रहते हुए इस काम में वर्मा अपनी महारत साबित कर चुके हैं। इसलिए सीबीआइ में काम करने का अनुभव कोई मायने नहीं रखता।”  

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