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गब्बर सिंह का प्रेम-त्रिकोण

बदलता वक्त बहुत कनफ्यूजन लाता है, बदलता हुआ कानून नए बवाल पैदा कर देता है
री-मेक, सीक्वेल का दौर

वक्त बदल रहा है, कानून के सेक्शन 497, 377 भी बदल लिए हैं। पति-पत्नी के बीच ‘वो’ की जगह लगभग कानून-सम्मत हो गई है। पुरानी फिल्मों की कहानियां किस तरह से अप्रासंगिक हो रही हैं, यह देखकर परेशानी होती है। अब वक्त है तमाम फिल्मों के री-मेक बनाने का, सीक्वेल बनाने का।

1964 में राज कपूर, राजेंद्र कुमार और वैजयंती माला की हिट फिल्म थी संगम। दो प्रेमियों के बीच एक प्रेमिका का मसला खड़ा हो जाता है। आज का बदला हुआ मामला होता, तो नए सीन में राजेंद्र कुमार, राज कपूर से कह रहे होते, “अब कोई दिक्कत नहीं है। सब मिल-जुलकर रह लेंगे।”

वैजयंती माला इस पर आपत्ति करते हुए कह रही होतीं, “मुझे भरोसा नहीं है तुम दोनों पर। क्या पता तुम मुझे छोड़कर एक-दूसरे के साथ ही सेटल हो जाओ। ऐसा करना अब अलाऊ है।” “सब मिल-जुलकर रह लेंगे”, “अब सब अलाऊ है” यह डॉयलॉग अब कई हिंदी फिल्मों का केंद्रीय डॉयलॉग हो सकता है। पर जब अलाऊ हो जाता है, तो आफतें ज्यादा हो जाती हैं। पहले प्रेम त्रिकोणों में दो प्रेमी और एक प्रेमिका होती थी या दो प्रेमिकाओं के बीच एक प्रेमी होता था। अब संयोजन, समीकरण कितनी तरह के होंगे, कुछ नहीं कहा जा सकता।

1978 में एक और हिट फिल्म आई थी, मुकद्दर का सिकंदर। अमिताभ बच्चन, रेखा, राखी और अमजद खान थे इसमें। अमजद खान रेखा की मुहब्बत में होते हैं, रेखा अमिताभ की मुहब्बत में होती हैं और अमिताभ राखी के प्रेम में होते हैं। अब नए बदलावों की रोशनी में इस फिल्म के संवाद दूसरे होते। अमजद खान कहते रेखा से, “ठीक है तुम्हें मुहब्बत है अमिताभ से, पर तुम मुझे भी एडजस्ट कर लो। कानून इसकी इजाजत देता है।”

सुपर हिट फिल्म शोले के रीमेक में गब्बर सिंह बसंती से निवेदन करता हुआ नजर आएगा, “मुझे वीरू से कोई दिक्कत नहीं है। बस तुम मेरे लिए भी जगह बनाओ। अब जगह बनाना कानून सम्मत है। कानून के नवीनतम बदलावों की जानकारी है मुझे।”

बसंती जवाब दे सकती है, “गब्बर मुझे तुम्हारा कोई भरोसा नहीं है। सांभा के साथ तुम्हारी मैत्री का आयाम कितने और किस तरह से अंतरंग हैं, मुझे नहीं पता। मैं वीरू से कहकर तुम्हारे लिए जगह बनवा भी दूं, तो भी मैं आश्वस्त नहीं हूं कि तुम आगे क्या करोगे। कालिया, सांभा जाने कितने नाम जुड़े हैं तुम्हारे साथ, मैं तुम्हारा क्यों एतबार करूं।”

बसंती की इस बात का जवाब गब्बर सिंह यह दे सकता है, “बसंती तुम मेरे साथ अन्याय कर रही हो। मेरे साथ पक्षपातपूर्ण बरताव कर रही हो। वीरू की जय के साथ दोस्ती को लेकर तुम कोई प्रश्न नहीं उठाती हो, पर कालिया और सांभा के साथ मेरे रिश्तों को लेकर तुम्हारे मन में इतने संदेह क्यों पैदा हो रहे हैं।”

बदलता वक्त बहुत कनफ्यूजन लाता है। बदलता हुआ कानून नए बवाल पैदा कर देता है।

तमाम फिल्मी लफड़े खत्म। तीसरा आता था, तो बवाल, सवाल, धमाल लेकर आता था। अब तीसरे का आना कोई मसला ही नहीं है। यश चोपड़ा की फिल्म सिलसिला की थीम ही अप्रासंगिक हो जाती है। इस फिल्म का री-मेक बने और उसमें रेखा के साथ संबंधों को लेकर जया अमिताभ बच्चन से दरियाफ्त करें, तो अमिताभ कह सकते हैं, “अब सेक्शन 497 की पुरानी बातों के आधार पर तुम ऐसे सवाल नहीं पूछ सकतीं। अब अलाऊ है। रेखा को भी जगह दो। रेखा के पति संजीव कुमार को भी मैं समझा लूंगा। यूं फिल्म में वह डॉक्टर बने हैं, डॉक्टर बिजी होते हैं, अखबार वगैरह नहीं पढ़ते। मैं उन्हें विस्तार से सेक्शन 497 के नए घटनाक्रम की जानकारी दूंगा और समझा दूंगा कि अब कोई मसला नहीं है। अब सब अलाऊ है।”

पति-पत्नी के बीच ‘वो’ को जगह देने वाले सेक्शन 497 के बदलाव पहले आ गए होते, तो सिलसिला फिल्म में अमिताभ बच्चन रेखा को समझा रहे होते, “अब हमें छुप-छुप कर मिलने की कोई जरूरत नहीं है, सब अलाऊ है अब।”

कभी-कभी, सिलसिला जैसी प्रेम-त्रिकोणवाली फिल्म बनाने के सुपर एक्सपर्ट यश चोपड़ा अब हमारे बीच नहीं हैं। वह होते तो उनकी हर फिल्म पर री-मेक और सीक्वेल की जरूरत होती।

1978 में एक हिट फिल्म आई थी, पति, पत्नी और वो। पूरी फिल्म की स्टोरी इस प्लाट पर घूमती थी कि संजीव कुमार और विद्या सिन्हा के वैवाहिक जीवन में ‘वो’ के तौर पर रंजीता की एंट्री हो गई। अब तो कोई स्टोरी ही नहीं बनती। स्टोरी में ‘वो’ यानी रंजीता खुद ही संजीव कुमार की पत्नी विद्या सिन्हा को डपट लेतीं, “देखिए मुझसे कुछ कहने की जरूरत नहीं है। साफ समझ लें, सेक्शन 497 से जुड़े बदलावों को अच्छी तरह से समझ लें। अब सब अलाऊ है। ‘सबका साथ सबका विकास’ इस घोषणा का ताल्लुक भी आप सेक्शन 497 के बदलावों से मानें।”

फिल्म वालों रीमेक बना डालो, इससे पहले की एकता कपूर इन विषयों पर अनगिनत एपीसोड के सीरियल खींचकर रख दें टीवी पर।

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